गरीबी में जन्मा एक महान राष्ट्र-नायक : अब्राहम लिंकन

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If the Negro is a man, why then my ancient faith teaches me that “All Men Are Equal” and that there can be no moral right in connection with one man’s making a slave of another. -Abraham Lincoln

गरीबी में जन्मा एक महान राष्ट्र-नायक

अब्राहम लिंकन का जन्म 1809 में होजिन विली के निकट केंटुकी में 18×16 फुट के कक्ष में हुआ था। जिसका फर्श कच्चा और गंदा था। एक कमरे के इस मकान में मिट्टी की बनी एक चिमनी थी जिससे घर में खाना पकाने से पैदा हुआ धुआं बाहर निकाला जाता था।
इसी छोटे से मकान में लिंकन परिवार के नौ सदस्य रहते थे। एक कमरे का मकान जिसमें खाने-नहाने और शौच जाने के लिए भी व्यवस्था की गई थी। आप अनुमान लगा सकते हैं, कितना गंदा रहता होगा घर और इतने बड़े परिवार के लिए कितना छोटा पड़ता होगा, परंतु सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। गरीबी इस परिवार की सबसे बड़ी सच्चाई थी जिससे पूरा परिवार जूझ रहा था। लिंकन के पिता का नाम थॉमस लिंकन तथा माता का नाम नेंसी हेंक्स था। पिता का पिछला कारोबार चौपट हो चुका था और वे लकड़ी चीरकर उसे बाजार में बेचने का काम करते थे। कभी-कभी कुछ पैसों के लिए उन्हें लकड़ी चीरने के लिए दूसरों के यहां भी जाना पड़ जाता था। इस प्रकार वे एक लकड़हारे मजदूर थे। जिनकी आमदनी इतनी कम थी कि परिवार के सदस्यों का पेट भी ठीक से नहीं भर पाता था। ऐसे में बच्चों लिए कपड़े बनवाना, उनकी पढ़ाई का खर्च उठाना तथा रहने के लिए अच्छे मकान का इंतजाम करना असंभव था।
लिंकन की माता नेंसी बहुत सुंदर और अच्छे स्वभाव की महिला थीं, परंतु वे दुर्भाग्य की मारी थीं। बहुत छोटी अवस्था में उनका पहला विवाह हैनरी स्पैरो के साथ हुआ था। बाद में उनका विवाह टूट गया और वे वर्जीनिया के चाय बागान के मालिक के सम्पर्क में आईं। उससे उनको गर्भ रह गया। इसी अवस्था में उन्होंने थॉमस लिंकन से शादी कर ली। शादी के बाद उन्होंने जिस बच्चे को जन्म दिया उसका नाम अब्राहम लिंकन था। इस प्रकार अब्राहम की माता नेंसी हेंक्स थीं और पिता वर्जीनिया के चाय बागान का मालिक था, जो कभी अब्राहम लिंकन के सम्पर्क में नहीं आया। उन्हें पिता के रूप में जिस पुरुष का नाम मिला था वह थॉमस लिंकन था और मां के रूप में जिस महिला का नाम मिला वह नेंसी हेंक्स थी।
नेंसी हेंक्स लिंकन को बहुत प्यार करती थीं। थॉमस लिंकन के साथ रहते हुए नेंसी ने तीन और बच्चों को जन्म दिया। इस प्रकार लिंकन चार भाई-बहन हो गए। लिंकन के पिता थॉमस लिंकन उन्हें प्यार से ‘एबी’ कहा करते थे। माता भी उन्हें इसी नाम से पुकारती थीं।
छ: वर्ष की अवस्था में एबी को केंटुकी के प्राइमरी स्कूल में दाखिल कराया गया। इस स्कूल में एक वर्ष तक एबी ने पढ़ाई की। घर की माली हालत ठीक न होने के कारण बच्चे के कपड़े और जूते ठीक नहीं होते थे। इससे देखने में वह बड़ा अजीब-सा लगता था। दूसरे बच्चे बन ठनकर स्कूल आते थे। उन बच्चों के बीच अपने आपको अजीब-सा पाकर एबी हीनता की भावना से भर जाता था।
एबी की स्कूल के पहले वर्ष में तस्वीर खींचते हुए, लार्ड लांगफोर्ड ने अपनी पुस्तक ‘अब्राहम लिंकन’ में लिखा है—“His skin was shrivelled and yellow. His shoes, when he had any, were low. He wore buckskin breeches, linsey – woolsey shirt and a cap made of the skin of a squirrel or coon.
लिंकन के साथ पढ़े लोगों का कहना है कि वह पढ़ने में बहुत तेज था। उसका लेख बहुत सुंदर था तथा लिखने की गति तेज थी। वह कपड़ों की वजह से भद्दा जरूर लगता था, परंतु उसके अंदर का व्यक्ति अभिव्यक्ति के लिए सदा बेचैन नजर आता था और उसकी तीखी निगाहें चीजों को चीरती हुई-सी दिखाई पड़ती थीं।
खेलने और दोस्त बनाने में भी एबी किसी से पीछे नहीं था। उसकी व्यवहार कुशलता दूसरे बच्चों को उसकी ओर आकर्षित करती थी। बच्चों को वह बहुत प्यार और अपनापन देता था।
दुर्भाग्य से एक वर्ष बाद ही उसके पिता को काम के कारण केंटुकी छोड़ना पड़ा और परिवार वहां से चलकर स्पेंसर काउंटी आ गया। इस समय एबी की आयु सात वर्ष थी। परिवार की आर्थिक हालत इतनी बिगड़ गई कि पिता ने अपने सात साल के बेटे अब्राहम के हाथों में कुल्हाड़ी पकड़ा दी और स्कूल छुड़ा दिया।
सात साल की छोटी-सी अवस्था में जब दूसरे बच्चे मस्ती करते थे, स्कूल जाते थे और स्कूल से लौटकर दिन-भर खेलते थे तब अब्राहम लकड़ियां चीरने में पिता की मदद करता था। दिन-भर लकड़ियां चीरने से परिवार की कुछ मदद हो जाती थी। न पढ़ने के लिए समय था, न खेलने के लिए, लेकिन एबी ने अपनी जिज्ञासा और अभिव्यक्ति की इच्छा को नष्ट नहीं होने दिया। सात साल का बच्चा एबी सवेरे बहुत जल्दी उठकर पढ़ने बैठ जाता था, परंतु उसकी पढ़ाई स्कूली नहीं थी। वह बाइबिल पढ़ता था। कहानियों की किताबों, यात्राओं के वृत्तांत तथा रोबिंसन क्रूसो के कारनामे तथा अमेरिका के महान नेता तथा राष्ट्रपति वाशिंगटन की जीवनी पढ़ा करता था।
शाम को लकड़ियां चीरने की ऊब कम करने के लिए वह बाहर भाग जाता था और अपने हम-उम्र तथा बड़ी उम्र के बच्चों के साथ खूब खेलता था।

मां की मृत्यु का दुख

लिंकन अभी केवल 9 वर्ष का था कि उसकी माता नेंसी का देहांत हो गया। नेंसी बहुत भावुक और प्यार करने वाली स्त्री थी। उसने अपने पति और पुत्र दोनों को बहुत प्यार दिया था, परंतु फिर भी वह दोनों से वैसी आत्मीयता नहीं पा सकी, जिसकी वह अधिकारिणी थी।
स्त्री जीवन की बड़ी विडम्बना यह है कि वह दूसरों पर आश्रित रहते हुए और बड़ों की इच्छाओं के अनुसार हांके जाते हुए भी उन सभी कार्यों की सजा स्वयं भुगतती है जो उसने अपनी मर्जी से नहीं किए। या तो परिवार ने उस पर वे कार्य थोपे थे या फिर किसी और पुरुष ने वैसा करने पर उसे विवश किया था।
ऐसी ही विडम्बना नेंसी हेंक्स के साथ रही। उसकी शादी इतनी कम उम्र में कर दी गई थी जब वह न शारीरिक सम्बंधों का अर्थ जानती थी, न विवाह का, न मातृत्व का। पर सामाजिक व पारिवारिक दबावों के चलते उसे वे सभी काम करने पड़े जो विवाह के बाद एक स्त्री को करने पड़ते हैं।
जब उसके पहले पति ने उसे घर से निकाला और वर्जीनिया के व्यापारी ने उसका यौन शोषण किया, तब भी वह निर्दोष थी। गरीब घर की बेटी के साथ जो-जो समाज में पुरुष करते आए हैं, वह सब उसके साथ हुआ। उसने वह सब झेला और इसके बाद झेली अपने दूसरे पति थॉमस लिंकन की घृणा और अपने बेटे, अब्राहम लिंकन की आंखों में तैरते प्रश्नों की पीड़ा।
थॉमस लिंकन ने नेंसी से शादी तो कर ली थी, परंतु जब उसे पता लगा कि वह पहले से ही गर्भवती है, किसी दूसरे पुरुष के बच्चे की मां बनने वाली है तो वह उखड़ गया। उसके बाद न तो वह पत्नी को पूरी आत्मीयता दे पाया, न उसके द्वारा जने गए पराए पुरुष के बेटे अब्राहम लिंकन को।
स्त्री की अस्मिता पर लगा दाग स्त्री को तो पीड़ा देता ही है, उन पुरुषों को भी सुकून नहीं दे पाता जो बाद में पति तथा पुत्र के रूप में उसके जीवन में आते हैं। अस्मिता लुटी स्त्री दुर्भाग्य के ऐसे शाप से शापित हो जाती है कि खुले मन से अपने जीवन में आने वाले पुरुषों पर, पति तथा बेटों के रिश्तों पर जी भरकर खुले मन से अपना प्यार लुटाने के बावजूद वह उनकी असली आत्मीयता की हकदार नहीं बन पाती। इसीलिए यह सवाल उठता है कि स्त्री की अस्मिता से छेड़छाड़ करना पुरुष के लिए सबसे बड़ा अपराध क्यों न माना जाए? एक पुरुष द्वारा जबरन भोगी गई स्त्री अस्मिता लुटने के साथ ही ऐसे दल-दल में जा गिरती है कि फिर जो भी उसके संपर्क में आता है वह मानसिक स्तर पर उससे अपने जीवन के तार नहीं मिला पाता। एक विवादास्पद दूरी सदा बनी ही रहती है जो उस स्त्री को टीस पहुंचाती ही है जिसे अपनाने का नाटक करता हुआ कोई पुरुष केवल उससे शारीरिक सम्बंध बना पाता है, मानसिक नहीं बना पाता, साथ ही उस पुरुष को भी स्त्रीत्व के सम्पर्क की गहराई तक नहीं जाने देती जिसने स्त्री को चोट से उबारने का संकल्प लेते हुए स्वयं को सुखी करने की इच्छा के साथ उसे अपनाया था।
नेंसी ने थॉमस लिंकन पर अपना पूरा प्यार लुटाया। उसके बच्चों को पालने में, उसे शारीरिक व साहचर्य सुख देने में कोई कमी नहीं रखी, फिर भी वह उस कलंक को न मिटा सकी जो चाय बागान के मालिक ने उसकी कोख को हरी करके उसके स्त्रीत्व पर लगा दिया था। थॉमस लिंकन जानता था कि नेंसी का इसमें कोई दोष नहीं है, सारा दोष उस व्यापारी का है, परंतु फिर भी इस अहसास से कि जो स्त्री आज उसकी पत्नी है वह पहले भी दो-दो पुरुषों की अंकशायिनी रह चुकी है और एक के साथ शारीरिक सम्बंधों के प्रमाणपत्र के रूप में पुत्र को जन्म दे चुकी है, वह तिलमिला उठता था। बार-बार उसके मन में आता था कि काश! नेंसी उसके जीवन में आने से पहले किसी और पुरुष के जीवन में नहीं आई होती और यदि आई भी थी तो उसकी निशानी को तो उसके गले मढ़ने के लिए साथ नहीं लाई होती, परंतु जो हो चुका था, उसे मिटाया तो नहीं जा सकता था। अतः पति-पत्नी बनने के बाद भी थॉमस लिंकन और नेंसी ने अंदर ही अंदर एक पीड़ा सदा झेली।
ऐसा ही कुछ अब्राहम लिंकन के साथ भी हुआ। समाज इतना जालिम है कि स्त्री-पुरुष के सम्बंधों से जुड़ी हर बात को चटखारे ले-लेकर बयान करते कभी थकता नहीं। यद्यपि ये चटखारे सभी को कभी-न-कभी, किसी-न-किसी मोड़ पर आहत अवश्य करते हैं, फिर भी यह दुष्ट समाज अपनी दुष्टता से बाज नहीं आता।
अब्राहम को अपने ही रिश्तेदारों से बचपन में ही यह पता लग गया था कि उसका असली पिता तो कोई और ही है। इस बात से उसके जेहन में एक खलबली मच गई। वह सोचने लगा कि उसकी मां ने ऐसा क्यों किया। वह उसके असली पिता को छोड़कर यहां क्यों आ गई। बच्चे के मन को इस जानकारी ने दो हिस्सों में बांट दिया था। एक हिस्सा उस पिता के बारे में कल्पनाएं करता रहता था जिसका कि वह अंश था और दूसरा उस पिता के बारे में जिसके साथ परिवार में वह रह रहा था। बच्चे के मन की प्राकृतिक संरचना में एक हल्की-सी विभाजन रेखा आ जाने से उसका वह सकून छिन गया था जो बच्चों को सहज प्राप्त होता है और मां के प्रति एक ऐसी शिकायत-सी उसके मन में बस गई थी जिसे वह स्वयं भी पूरी तरह नहीं जानता था।
मां जब-जब अब्राहम को प्यार करती उसे अपनी गोद में बैठाकर दुलारती तो वह यकायक उसके चेहरे पर देखने लगता था। मां को बच्चे की आंखों में तैरता एक सवाल नजर आता था। जिसे वह ठीक से पढ़ नहीं पाती थी, परंतु हां, वह उस सवाल से डर जाती थी और अपने आप में ही सहमकर उससे दूर हटने लगती थी।
नौ वर्ष तक बच्चे की निकटता में असहजता के अहसास की पीड़ा झेलती हुई इस अहसास की खाई को पाटने के लगातार प्रयास करने के बावजूद सदा असफल रही मां नेंसी एक दिन उसे तथा अपने अन्य बच्चों को छोड़कर दुनिया से चली गई।
मां के जाने के बाद अब्राहम लिंकन को लगा कि उसने एक ऐसे व्यक्ति को खो दिया है जो दुनिया में उसका सबसे ज्यादा अपना था। मां के बिछोह की पीड़ा ने एबी को तड़पा दिया। उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। वह बार-बार मां के बारे में सोचता और रो पड़ता था।
पता नहीं क्यों उसे बार-बार ऐसा लगता था जैसे मां उसके व्यवहार से दुखी होकर उसे छोड़कर चली गई, मानो वह कहना चाहती है— एबी तूने सदा मेरे चेहरे पर प्रश्न भरी निगाहों से देखा, तूने मेरे विश्वास को, मेरी ममता को आहत किया। बेटा मैं तुझे कैसे समझाती कि मां होने से पहले मैं स्त्री हूं। स्त्री जो पुरुष के लिए केवल भोग्या है। उसे देखते ही पुरुष फिसल पड़ता है और भूल जाता है परिणामों की वीभत्सता को जो इस फिसलन के बाद स्त्री और उसकी कोख से जन्म लेने वाली संतान की जिंदगी में अपरिभाषित पीड़ा बनकर बस जाती है और कभी निकलने का नाम नहीं लेती।
बेटी-बेटों के प्रति ममता को कलंकित करने वाली, पति के प्रति प्यार को अभिशापित करने वाली इस स्थिति को पैदा होने से रोकने के लिए कोई ऐसा इंतजाम क्यों नहीं किया जाता जिससे जाने या अनजाने किसी भी हालत में ऐसी घटना घटे ही नहीं। क्योंकि जब यह घट जाती है तो जीवन और सम्बंधों की सहजता हमेशा-हमेशा के लिए जाती रहती है।
वर्षों तक एबी अपनी मां को याद कर-करके अकेले में रोता रहा। वह जान गया था कि थॉमस लिंकन उसका असली पिता नहीं था, अतः पिता की छाती से लगकर सोने की इच्छा उसके मन में प्रायः उठी ही नहीं और जब कभी उठती भी तो उसने उसे यह कहकर दबा लिया कि वह उसका असली पिता नहीं है।
बच्चे छोटे-छोटे थे। गरीबी की हालत में उन्हें पालने में लगकर थॉमस लिंकन अपना जीवन कैसे चला पाता, अत: उसने जल्दी ही दूसरी शादी कर ली। साराह जोंस्टन नामक एक स्त्री जिसके पहले पति से तीन बच्चे थे, थॉमस लिंकन के साथ विवाह कर एबी की सौतेली मां बनकर घर में आ गई।
साराह जोंस्टन विवाह के बाद साराह लिंकन बन गई। सौतेली मां ने जब यह पाया कि एबी प्राय: अपने आपमें ही सिमटा रहता है। पढ़ाई छूट चुकी है, वह पिता के साथ लकड़ी काटने में हाथ बंटाता है और काम से थक जाने के बाद मन बहलाने के लिए बच्चों के बीच चला जाता है, तो उन्होंने एबी के दिल की गहराइयों तक पहुंचने का निश्चय कर लिया।
एक दिन शाम के समय एबी बच्चों के साथ खेलकर लौटा तो घर के अंदर आने के बाद पानी पीकर सीधा घर के पिछवाड़े की ओर चला गया। सौतेली मां सावधान थीं। वे बाहर निकलीं और एबी की टोह लेती हुई, उसके निकट जा पहुंची। उन्होंने देखा एबी दोनों घुटनों में सिर छिपाए सिसक रहा था। मां की आहट तक का उसे पता नहीं चल पाया। साराह लिंकन ने उसके सामने बैठते हुए उसके सिर को घुटनों से ऊपर उठाया और कहा- “बेटा एबी, तुम यहां अकेले-अकेले क्यों रो रहे हो। तुम तो घर के बड़े बेटे हो। तुम्हें रोता देखकर तुम्हारे भाई-बहन भी रोने लगें तो तुम क्या करोगे?”

“मुझे मां की बहुत याद आती है। ” एबी ने कहा।

साराह लिंकन ने बड़े प्यार से एबी को अपनी गोद में बैठाया और छाती से चिपकाते हुए कहा- “आज से मैं तेरी मां भी हूं और एक अच्छी दोस्त भी। तू मेरे से कुछ भी नहीं छिपाएगा। जो बात हो मुझसे बताएगा। मैं वादा करती हूं, तेरी सारी पीड़ा मैं स्वयं पी जाऊंगी, तुझे तनिक भी तकलीफ नहीं होने दूंगी।”
सौतेली मां के मुंह से सगी मां जैसे शब्द सुनकर एबी भावुक हो गया और मां के सीने से लगकर खूब देर तक रोता रहा।
उस दिन के बाद एबी अपनी सौतेली मां का सबसे प्यारा बेटा बन गया। अपने प्यार और अपनी असीम ममता से सौतेली मां ने एबी का मन जीत लिया। वह अपनी असली मां को भूलने लगा और सौतेली मां को उसने पूरी तरह अपनी मां के रूप में स्वीकार कर लिया।
साराह लिंकन पढ़ी-लिखी सुसंस्कृत महिला थीं। उन्होंने सबसे पहला काम यह किया कि अब्राहम लिंकन को स्कूली शिक्षा से जोड़ दिया। अब तक एबी सात स्कूल बदल चुका था। हर स्कूल उसे बीच में ही छोड़ना पड़ा था।
स्पेंसर काउंटी से उखड़कर थॉमस लिंकन अपने परिवार के साथ इंडियाना पहुंच गए वहां उन्होंने खेती का काम करना शुरू कर दिया।
1830 तक थॉमस लिंकन अपने परिवार के साथ इंडियाना में रहे। अब तक लिंकन की आयु 21 वर्ष की हो चुकी थी तथा सौतेली मां के प्रयासों से वे लकड़ी चीरने के काम के साथ-साथ समय निकालकर पढ़ाई भी करते रहे थे। इसी वर्ष थॉमस लिंकन ने इंडियाना में अपनी सारी जमीन केवल 125 डालर में बेच दी और इलिनाइस नामक प्रांत में चले गए।
यहां से अब्राहम लिंकन ने अपना रास्ता बदल लिया। उन्होंने पिता का साथ छोड़ दिया तथा अपने सौतेले भाई जॉन हेंसटन तथा चचेरे भाई जॉन हेंक्स के साथ न्यू ऑरलीन्स चले गए और वहां से ऑफट नामक व्यक्ति की सहायता से न्यू सलेम नामक छोटे से गांव में बस गए।
एक वर्ष तक अब्राहम लिंकन का जीवन बिना लक्ष्य के भटकते हुए बीता। 1831 के मध्य तक पहुंचते-पहुंचते लिंकन की लम्बाई छ: फुट चार इंच हो गई थी। पतले शरीर वाला यह 22 वर्षीय लड़का देखने में पूरा दैत्य लगता था।

शरारती लड़का

पिता से अलग होने के बाद अब्राहम लिंकन बहुत शरारती हो गया था और उसे ‘नॉटी बॉय’ के नाम से जाना जाने लगा था। व्यंग्य करने और चुटकुले सुनाने का शौक उसे इतना बढ़ गया था कि लोग उसे देखते ही कहने लगते थे—“हां लम्बू जी…क्या चुटकुला सुनाने के लिए तैयार हैं?”
वह कहता- “बिल्कुल, मुझसे जब चाहो तब चुटकुला सुन लो।” और वह चुटकुला सुनाने लगता था। जिसे सुनते-सुनते लोग हंसने लगते थे। दोस्तों के बीच अब्राहम लिंकन बहुत लोकप्रिय होता जा रहा था।
उसका लेख इतना सुंदर हो गया था कि लोग तारीफ करते-करते नहीं थकते थे। एक कहावत बन गई थी—“Abraham Lincoln his hand and pen. He will be good but God knows when? “
एक बार अब्राहम ने एक बहुत बड़ी शरारत कर डाली। ग्रिग्सबी भाइयों का विवाह हुआ था और रात को उनकी सुहागरात मनाई जानी थी। दोस्त के नाते, सुहागरात के लिए बिस्तर तैयार करने का जिम्मा अब्राहम लिंकन ने ले लिया। उसने अनेक दोस्तों को विश्वास में लेकर एक बड़ी शरारत करने का फैसला कर लिया। बिस्तर तैयार करने के बाद दुल्हनों को अपने-अपने बिस्तर पर अपने पति का इंतजार करने के लिए भेज दिया गया। अब अब्राहम लिंकन ने ग्रिग्सबी भाइयों को गुमराह कर दिया और दोनों भाइयों को पटाकर एक दूसरे की पत्नी के बिस्तर में भेज दिया। जब वे बेचैनी से अपनी पत्नी का घूंघट उठाने लगे तो चीखकर बाहर भाग आए। वे उनकी पत्नियां नहीं थीं। तब अब्राहम ने अपने मजाक का खुलासा कर दिया। सब लोग खूब हंसे। इसके बाद ग्रिग्सबी भाई अपनी-अपनी पत्नी के पास गए और सुहागरात की रश्म पूरी हुई। इसी प्रकार अपनी मंजिल को तलाशते हुए अपने आप पढ़ाई-लिखाई का काम पूरा करते हुए, अमेरिका के हालात तथा मानवीय समस्याओं को समझने में अपना समय बिताते हुए अब्राहम को एक वर्ष और बीत गया। इस एक वर्ष में जो सबसे महत्त्वपूर्ण विचार अब्राहम के दिमाग में बैठा वह था अमेरिका में मौजूद गुलामी की प्रथा को मिटाने का। बचपन से अब्राहम ने काली चमड़ी वाले ‘रेड इंडियन’ (अमेरिका के मूल निवासी) तथा अफ्रीकी नीग्रो को अंग्रेजों द्वारा गुलाम बनाकर रखने की प्रथा और कालों पर होते अत्याचारों को देखा था। उसे बहुत बुरा लगा करता था। इनके साथ जानवरों जैसा सलूक देखने में आता था। 22-23 वर्ष के अब्राहम लिंकन के दिल में यह बात बैठ गई कि यह सरासर गलत है। कुछ किया जाना चाहिए जिससे मनुष्य को मनुष्य की गुलामी से मुक्त किया जा सके।
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