गर्भस्थ शिशु विकास की अवस्थाओं की विवेचना करें।

प्रश्न – गर्भस्थ शिशु विकास की अवस्थाओं की विवेचना करें। (Discuss the Periods Pre-natal develpoment.)
उत्तर – किसी बच्चे का जन्म स्त्री और पुरुष के सम्भोग (Sexual intercourse) से होता है। पुरुष एवं स्त्री दोनों में एक प्रकार की कोशिका (cell) पायी जाती है और जब ये कोशिकाएँ आपस में मिलती हैं तो बच्चे का जन्म एक कोशिका के रूप में शुरू होता है। पुरुष में पाई जानेवाली कोशिका को शुक्राणु या Spermatozoa कहते हैं। स्त्री में पाई जाने वाली कोशिका को अंडाणु या Ovum कहते हैं। अंडाणु शुरू में बहुत ही छोटा एक आलपीन के सिर (head of a pin) के बराबर का होता है जिसमें एक न्यूक्यिस (Nucleus) होता है जो चारों तरफ साइटोप्लाज्म (cytoplasin) नामक द्रव्य से घिरा रहता है। इस न्युक्लियस कुछ ऐसे आकार पाए जाते हैं जिन्हें क्रोमोजोम्स (chromosomes) कहते हैं। क्रोमोजोम्स में पाए जानेवाले जीन (zene) बच्चे के वंशानुक्रम के भागी होते हैं। इसी जीन के द्वारा बच्चे माता-पिता या अपने पूर्वजों के गुण को प्राप्त करते हैं। प्रत्येक मनुष्य के न्युक्लियस में 48 क्रामोजोम्स होते हैं जिसमें वह 24 अपनी माता से एवं 24 पिता से प्राप्त करता है। ये क्रोमोजोम्स सदा जोड़े में होते हैं। स्त्रियों में सिर्फ X क्रोमोजोम्स पाए जाते हैं एवं पुरुषों में XY दोनों क्रोमोजोम्स पाए जाते हैं। स्त्री एवं पुरुष के XX क्रोमोजोम्स के मिलने से लड़की तथा XY क्रोमोजोम्स के मिलने पर लड़का पैदा होता है। अतः भावी संतान के सेक्स निर्धारण में पुरुष की भूमिका होती है न कि स्त्री की ।
स्त्री-पुरुष के शुक्राणु एवं अंडाणु के मिलने पर नया शिशु उत्पन्न होता है और तत्पश्चात बच्चे के विकास की क्रिया प्रारंभ होती है। विकास शुरू होने की प्रथम अवस्था उत्पत्तिकाल (fertilization) है। इस उत्पत्ति काल से लेकर दो सप्ताह तक ही अवस्था को बीजावस्था (germinal period) कहते हैं। इस समय शिशु अंडे के आकार ( egg like) के समान होता है। इस समय इसे बाहर से कोई पोषाहार नहीं मिलता तथापि इसकी आंतरिक बनावट में काफी अंतर आता है एवं कोशिकाओं का विभाजन (cell division) होता रहता है। इस समय वह माँ के गर्भ से सटा नहीं बल्कि उसमें तैरता रहता है। उत्पत्ति काल (fertilizaiton) के पन्द्रह दिनों के दौरान यह माँ के गर्भाशय (uterus) की दीवारों से सट जाता है और पराश्रित होकर माँ द्वारा पोषण पाने लगता है।
आंतरिक विकास की दूसरी अवस्था भ्रूणावस्था (The embryonic period) है जो दूसरे सप्ताह के अंत से लेकर दो महीने तक चलती है। इस समय यद्यपि वह माता के रक्त से सम्बन्धित नहीं होता तथापि माँ द्वारा ही पोषण ग्रहण करता है। इस समय अत्यंत तीव्र गति से विकास होता है और इस दौरान भ्रूण (embryo) एक छोटे व्यक्ति का आकार ले लेता है। इस अवस्था में कोश समूह (cell mass) तीन परतों में बँट जाती है। बाहरी परत (Ectoderm) से बाहरी त्वचा, बाल, नाखून, दाँत, ज्ञानात्मक कोष (sensory organs or cells) तथा सम्पूर्ण स्नायुमंडल (whole nervous system) का विकास होता है। बीच वाली परत को मेसोडर्म (Mesoderm) कहते हैं, जो त्वचा की भीतरी परत माँसपेशियाँ, परिचालन अंग (circulatory organs) एवं उत्सर्जन अंग ( excretory organs) के विकास के लिए उत्तरदायी है। सबसे भीतरी परत एंडोडर्म (endoderm) कहलाती है। इसपर सम्पूर्ण पाचन-संस्थान (digestive tract), फेफड़ा (Lungs), यकृत (Liver), पैन्क्रियाज (Pancreas), लार सम्बन्धी पिंड (Salivary glands), थायरायड पिंड (Thyroid glands) और थाइमस पिंड (Thymas gland) आदि का विकास निर्भर करता है। दूसरे महीने के अंत तक भ्रूण की लम्बाई 1.25 ईंच से 2 इंच तक हो जाता है एवं वजन 2 ग्राम हो जाता है। सम्पूर्ण अंगों में अन्य अंगों की अपेक्षा सिर का विकास सबसे अधिक होता है। इस समय आँखे, पलकें, कान, मुँह, नाक, ललाट आदि का निर्माण हो जाता है। बहुत से आंतरिक अंगों, जैसे- यकृत, आँत, यौन अंग तथा शरीर की अधिकांश मांसपेशियाँ का निर्माण हो जाता है। इसके बाद की अवस्था में अंगों का निर्माण नहीं होता, बल्कि विकास होता है।
दूसरे महीने के अंत से लेकर जन्म होने तक ही अवस्था को गर्भस्थ शिशु-काल (Fetal period) कहते हैं। भ्रूणावस्था में जिन अंगों का निर्माण होता है, उन्हीं अंगों का विकास इस अवस्था में होता है। गर्भस्थ शिशु (Fetus) इस समय 3.5 इंच लम्बा एवं वजन 3/4 औंस हो जाता है। पाँच महीने में करीब 10 इंच लंबा एवं 9-10 औंस का हो जाता है। आठवें महीने अर्थात् जन्म के समय इसकी लम्बाई बढ़कर 20 इंच हो जाती है और वजन में 7 से 7.5 पौंड बढ़ जाता है। स्पष्टतः इस अवस्था में विकास बहुत तेजी से होता है। जन्म के समय बच्चे के शरीर की लम्बाई 3 महीने की अवस्था से 7 गुनी हो जाती है। स्कैमेन्न और कॉलकीन्स (Scammon and Calkins) ने 300 से अधिक गर्भस्थ शिशुओं (fetuses) का अध्ययन तीसरे महीने से लेकर जन्म-काल तक कर पाया कि इस समय का विकास विकासात्मक दिशा के नियम (The law of developmetal direction) अर्थात् मस्तकाधोमुखी विकासक्रम (Cephalocaudal developmental sequence) का अनुसरण करता है। इस अवस्था में चेहरा चौड़ा हो जाता है किन्तु अन्य अंगों का विकास उनके आपसी अनुपात के अनुसार होता है। तीसरे से चौथे महीने में गर्भस्थ शिशु की लंबाई दोगुनी हो जाती है। तीसरे महीने के पहले बॉहों की लम्बाईं पैरों से अधिक होती है किन्तु इसके बाद ठीक इसके विपरीत होता है। इस अवस्था में आंतरिक अंगों का सिर्फ विकास ही नहीं होता बल्कि इनमें से कुछ तीसरे महीने के अंत से अपना काम भी शुरू कर देते हैं। 5वें महीने के अंत तक उनका विकास बड़ों के समान हो जाता है। 14वें सें 16वें सप्ताह के बीच स्टेथेस्कोप से उनके हृदय की गति का पता लगाया जा सकता है। जन्म के समय इनकी गति में पहले की अपेक्षा थोड़ी कमी आ जाती है। तीसरे महीने के अंत तक सभी स्नायुओं का विकास हो जाता है। माँसपेशियाँ भी स्वाभाविक गति में आ जाती हैं और हाथ-पैरों की गति स्वाभाविक हो जाती है। 7वें महीने के अंत में ये जीने योग्य व्हो जाते हैं ।
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