गौरवपूर्ण क्रांति के प्रमुख कारण के – Major Cause of Glorious Revolution
गौरवपूर्ण क्रांति के प्रमुख कारण के – Major Cause of Glorious Revolution
सन् 1688 ई. की गौरवपूर्ण क्रांति के विभिन्न कारण थे जिसमें से कुछ प्रमुख कारणों को निम्न बिन्दुओं के तहत स्पष्ट किया गया है—
(1) जेम्स की स्कॉटलैंड व आयरलैंड के प्रति नीति—स्कॉटलैंड तथा आयरलैंड में भी जेम्स ने अपनी निरंकुशता का परिचय दिया। उसने वहाँ भी कैथोलिकों को धार्मिक स्वतंत्रता दी एवं उन्हें उच्च पदों पर नियुक्त किया। कैथोलिक के कट्टर अनुयायी को आयरलैंड का वाईसराय बनाया गया। टिरकोनरेल के ने प्रोटेस्टेंडों पर दिल दहला देने वाले अत्याचार किये। स्कॉटलैंड की जनता को बलपूर्वक जेम्स की धार्मिक नीति पर चलाने हेतु विवश किया गया। इन भीषण अत्याचारों के बाद जनता के सम्मुख क्रांति के अतिरिक्त और कोई विकल्प ही नहीं था।
(2) कट्टर कैथोलिकवादी नीति— जेम्स द्वितीय एक कट्टर कैथोलिक था और वह चाहता था कि समूचे इंग्लैण्ड में कैथोलिक मत का प्रसार हो। इस नीति को जबरदस्ती लागू करना उसके पतन का मुख्य कारण बना। जेम्स ने प्रोटेस्टेन्टों पर अनेक अत्याचार किये वह “परीक्षा अधिनियम” समाप्त करना चाहता था, जिसके द्वारा प्रोटेस्टेंट सरकारी सेवाओं व संसद की सदस्यता से वंचित कर दिये गये थे, किन्तु संसद इससे असहमत थी। अब जेम्स ने संसद की बैठकें नहीं बुलाई और स्वयं एक निरंकुश शासक बन गया। इंग्लैण्ड की जनता अब और नहीं सह सकती थी, इसलिए राज्य विरोध और बढ़ गया । इस समय जेम्स द्वितीय ने यह घोषणा भी कर दी कि वह कोई भी नया कानून बना सकता है और यदि वह चाहे, तो किसी कानून को रद्द भी कर सकता है। उसकी इस घोषणा से कानूनों में “परीक्षा अधिनियम” भी सम्मिलित था। जेम्स ने परीक्षा अधिनियम समाप्त करके संसद की अवहेलना की।
(3) परीक्षा अधिनियम का उन्मूलन— जेम्स द्वितीय इस अधिनियम को समाप्त करना चाहता था। इसके लिए उसने संसद को आदेश भी जारी किया, परन्तु
उसने इस आदेश को स्वीकार नहीं किया। इससे क्रुद्ध होकर जेम्स ने अपने शासन काल में कभी भी संसद की बैठक नहीं बुलायी। जेम्स द्वितीय का मानना था कि राजा के पास निलम्बन एवं विमोचन का अधिकार होता है, जिसके द्वारा वह किन्हीं विशेष मामलों पर किसी विशेष परिस्थिति में किसी कानून को स्थगित कर सकता है एवं व्यक्ति विशेष को उससे मुक्त कर सकता है। इस दौरान कई विरोधी न्यायाधीश को पद से हटा दिया गया। इसके पश्चात् उसने राज्य सेवा एवं सेना में अधिकाधिक संख्या में कैथोलिकों को नियुक्त करना प्रारंभ कर दिया। उसने विश्वविद्यालयों व चर्चों में भी कैथोलिकों को नियुक्त किया। जेम्स की नौ सेना का सेना स्ट्रिकलैंड भी कैथोलिक ही था। जनता के लिये यह सब असहनीय था। जेम्स के समर्थक टोरी को भी उसमें विश्वास नहीं रहा ।
(4) फ्रांस के प्रति झुकाव— जेम्स द्वितीय धन और सेना प्राप्त करना चाहता था, इसलिये उसका झुकाव फ्रांस की तरफ बढ़ा । फ्रांसीसी, सम्राट लुई चौहदवां एक निरंकुश शासक था । वह दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था । फ्रांस के लोगों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी। ब्रिटिश जनता में लुई चौदहवें के प्रति घृणा व्याप्त थी, अतः जेम्स द्वितीय को लुई चौदहवें के प्रति झुकाव पसंद नहीं आया । लुई चौदहवें ने “नान्तेज के नियमों” को रद्द कर दिया, जिसके द्वारा फ्रांस में प्रोटेस्टेन्टों को कुछ स्वतंत्रता प्रदान की गई थी । फलस्वरूप फ्रांसीसी सरकार ने प्रोटेस्टेन्टों का दमन करना प्रारंभ कर दिया। प्रोटेस्टेंट से भयभीत होकर हजारों लोग फ्रांस से भाग गये जनता में यह भय उत्पन्न हो गया कि जेम्स लुई चौदहवें के सहयोग से इंग्लैंड में कैथोलिक प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है। अतः ऐसी परिस्थितियों में जनता द्वारा क्रांति का बिगुल बजाना स्वाभाविक था।
(5) जेम्स का विश्वविद्यालयों में हस्तक्षेप —विश्वविद्यालयों पर ऍग्लिकन चर्च का विशेष रूप से प्रभाव था । जेम्स विश्वविद्यालयों को भी कैथोलिक मत के लिए प्रचार-प्रसार का साधन बनाना चाहता था | मैग्डेलन के प्रोटेस्टेंट उच्चाधिकारी को पद से निष्कासित करके कैथोलिक को नियुक्त किया गया। जेम्स ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के उपकुलपति को इसलिये पदविमुक्त कर दिया, क्योंकि उसने एक कैथोलिक पादरी को अनुत्तीर्ण होने पर एम.ए. की उपाधि नहीं दी। क्राइस्ट धर्म का डीन मैसी भी एक कैथोलिक ही था । जेम्स के ये कार्य संसद के लिए असहनीय थे, क्योंकि विश्वविद्यालय विद्या के पवित्र केन्द्र माने जाते थे। यदि विश्वविद्यालय के अधिकार एवं अध्यापक कैथोलिक होंगे तो विद्यार्थियों पर कैथोलिक सम्प्रदाय का प्रभाव अवश्य पड़ेगा। इस कार्य से इंग्लैण्ड की जनता बहुत निराश हुई और जनता उसकी कटु विरोधी बन गई । अतः उसने जनता के विरोध की कोई परवाह नहीं की। अंत में उसकी इसी नीति ने उसको पतल की ओर धकेल दिया।
(6) स्थायी सेना में वृद्धि— जिस समय जेम्स द्वितीय शासक बना उस समय वातावरण काफी अनुकूल था। प्रेसबिटेरियनों के नेता आजिल द्वारा विद्रोह करने पर उसे बड़ी आसानी से पकड़ लिया गया और उसे देशद्रोही घोषित कर मृत्युदण्ड दिया गया। मनमथ ने खुद को चार्ल्स द्वितीय का वास्तविक पुत्र एवं सिंहासन का असली उत्तराधिकारी बताया। उसने कुछ लोगों के सहयोग से सेजमूर में सम्राट की सेना पर आकस्मिक हमला कर दिया, परन्तु वह पकड़ा गया और मौत के घाट उतार दिया गया। इन सफलताओं से उत्वाहित सम्राट जेम्स द्वितीय अपने दो उद्देश्य की पूर्ति में लग गया, जो निम्न थे- अपने आपको निरंकुश शासक घोषित करना एवं कैथोलिक मत का प्रचार-प्रसार करना। अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उसने अपनी स्थायी सेना में वृद्धि करना शुरू कर दिया। ब्रिटिश सेनास्थायी सेना रखने की कटु विरोधी थी, किन्तु जेम्स द्वितीय ने जनता की भावनाओं की कोई परवाह नहीं की और अपनी न्याय सेना की संख्या को 30,000 तक पहुंचा दिया। इस स्थायी सेना में कैथोलिकों की संख्या अधिक थी। यह सेना लंदन के पास रखी गयी। जिससे लंदन के लोग काफी भयभीत हो गये थे। जनता का मानता था कि सम्राट द्वारा स्थायी सेना रखने का अर्थ है- निरंकुश राज्य की स्थापना और कैथोलिकों का प्रभुत्व। इससे जनता में गृह युद्ध की आशंका प्रबल होने लगी। ब्रिटिश जनता ने सेना का विरोध किया पर उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अतः ऐसी स्थिति में लोगों का सम्राट के विरुद्ध विद्रोह करना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं थी।
(7) अमानवीय न्यायालय की स्थापना— मनमथ के विद्रोह का दमन करने के पश्चात् जेम्स द्वितीय ने विद्रोहियों को दंडित करने हेतु एक अमानवीय न्यायालय की स्थापना की, जिसे धार्मिक न्यायालय कहा जाता था। ब्रिटिश संसद ने सन् 1641 ई. में एक अधिनियम पारित कर कोर्ट ऑफ स्टार चेम्बर, कौंसिल ऑफ द नार्थ, हाई कमीशन आदि विशेषाधिकार वाले न्यायालयों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस दृष्टिकोण से जेम्स का यह न्यायालय असंवैधानिक था। क्रूर जेफ्रे इस अमानवीय न्यायालय का न्यायधीश बना उसे चापलूसी बहुत पसंद थी । वह अपने अमानवीय व्यवहार से सम्पूर्ण इंग्लैण्ड में कुप्रतिष्ठित हो गया। उसने स्त्रियों के साथ अमानवीय व्यवहार 315 लोगों को मृत्युदंड व 350 को देश से निकाल दिया। इसके अलावा उसने अनेक व्यक्तियों को गुलाम बनाकर बेच डाला। इन अमानवीय अत्याचारों के कारण यह न्यायालय “खूनी न्यायालय” के नाम से कुख्यात हो गया। इसके अलावा जेम्स द्वितीय ने स्वतंत्र प्रकृति के न्यायाधीशों को पदच्युत कर कैथोलिक न्यायाधीशों को नियुक्त किया एवं उन्हें जनता के साथ कठोर नीति अपनाने के लिए प्रेरित किया। अतः जनता में जेम्स के प्रति घृणा उत्पन्न होना स्वाभाविक था। “
(8) सम्राट द्वारा धार्मिक अनुग्रह की घोषणा— जेम्स रोमन कैथोलिकों को ज्यादा अधिकार देकर उनकी सहानुभूति एवं समर्थन प्राप्त करना चाहता था । अतः उसने सन् 1687 ई. में धार्मिक अनुग्रह की घोषणा की। इसके परिणामस्वरूप कैथोलिकों को भी प्रोटेस्टेंटों जैसी सुविधायें मिल गयीं और अब वे स्वतंत्र रूप से अपने धर्मानुसार आचरण करने लगे। अब उन्हें विश्वविद्यालयों एवं चर्च से भी नियुक्त किया गया। सम्राट की इस घोषणा से राजभक्त, किन्तु एंग्लिकन चर्च का समर्थक टोरी दल उससे नाराज हो गया। विग गल पहले से ही सम्राट से रूष्ट था। धार्मिक अनुग्रहों का घोषणा करने पर उसे आशंका हुई की सम्राट कैथोलिक प्रभुत्वता बढ़ाना चाहता है। अतः प्रोटेस्टेंट मतानुयायियों ने अपना प्रभुत्व बनाये रखने के लिये जेम्स के इस कदम का तीव्र विरोध किया। जेम्स ने उनके विरोध की कोई परवाह नहीं की इससे वे उसके शत्रु बन गये। उसके समर्थन करने वाले टोरी दल व हाई चर्च भी उसके विरोधी हो गये थे और उन्होंने राजा के स्थान पर एंग्लिकन चर्च को प्राथमिकता दी ।
सन् 1688 ई. में परिस्थितियां काफी खराब हो गई और ब्रिटिश प्रजा में राजा के विरुद्ध विद्रोह की आग सुलगने लगी। जेम्स ने ऐसी नाजुक स्थिति में द्वितीय धार्मिक अनुग्रह की घोषणा कर दी और पादरियों को सप्ताह में दो दिन सार्वजनिक सभा के समय इसे जनता को सुनाने की आज्ञा दी। इस घोषणा से कैथोलिक व डिसेंटरों को अपने धर्मानुसार आचरण करने के / की आजादी मिल गई । घोषणा के दूसरे भाग में बिना धार्मिक एवं जातीय भेदभाव के प्रत्येक व्यक्ति को नौकरी देने हेतु कहा गया। कैन्टरबरी के पादरी सैक्रोप्ट के नेतृत्व में छह पादरियों ने एक संयुक्त प्रार्थना-पत्र के तहत सम्राट से यह अपील की कि वह इस घोषणा को पढ़ने के कार्य से उन्हें मुक्त कर दे। इस पर जेम्स द्वितीय ने उन्हें देशद्रोही घोषित करके बन्दी बना लिया, किन्तु न्यायालय ने उन्हें निर्दोष ठहराया और बरी कर दिया। इसी दिन जनता एवं सैनिकों ने जश्न मनाकर अप्रत्यक्ष रूप से क्रांति का संदेश दिया। जेम्स इसे समझ नहीं पाया और उसने अपनी नीति को जारी रखा। उसने कैथोलिक मत की समालोचना पर प्रतिबंध लगा दिया, किन्तु लंदन के एक पादरी डॉ. शार्प ने इसका उल्लंघन किया। जेम्स ने विशप को उस पादरी को हटाने के लिए कहा था, परन्तु उसने इस आज्ञा का पालन नहीं किया। अतः जेम्स से विशप और पादरी दोनों को पद से हटा दिया।
जेम्स के दो पुत्रियां थीं, जो प्रोटेस्टेंट थीं। जब ब्रिटिश जनता पादरियों के बरी होने पर जश्न मना रही थी, उसी समय उन्हें पता चला कि जेम्स का उत्तराधिकारी पैदा हो गया है। जनता यह सोचकर अत्याचार सह रही थी, क्योंकि जेम्स पुत्रहीन था तो उसके बाद उसकी बड़ी पुत्री और उसका / उसकी पति/पत्नी राजगद्दी संभालेंगे। जेम्स द्वितीय के पुत्र उत्पन्न होने से जनता निराश हो गई, क्योंकि उसका मानना था कि कैथोलिक वातावरण में पहले वाला जेम्स का पुत्र भी उसी की भांति कट्टर कैथोलिक सिद्ध होगा। अब जनता के सम्मुख क्रांति के अतिरिक्त कैथोलिक प्रभुत्व को समाप्त करने का और कोई रास्ता नहीं रह गया था।
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