जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें । अथवा, भारत में मजदूर आंदोलन के विकास का वर्णन करें।

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प्रश्न – जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें । अथवा, भारत में मजदूर आंदोलन के विकास का वर्णन करें।

उत्तर – जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उसने एकीकरण के लिए ‘रक्त और तलवार’ की नीति अपनाई। डेनमार्क, आस्ट्रिया और फ्रांस के साथ युद्धों द्वारा प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण 1871 में संभव हुआ।
बिस्मार्क जर्मनी के एकीकरण के लिए सैन्य शक्ति के महत्त्व को समझता था। अतः इसके लिए उसने ‘रक्त और शस्त्र की नीति का अवलम्बन किया। अतः बिस्मार्क ने हर संभव उपाय से धन एकत्र करके प्रशा की सैन्य शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया। इस कार्य में उसे अद्भुत सफलता मिली। सैनिक सुधार की योजना पूरी करके उसने अल्प समय में ही सेना को सुसंगठित करके अत्यंत शक्तिशाली बना लिया। बिस्मार्क ने अपनी नीतियों से प्रशा का सुदृढ़ीकरण किया और इस कारण प्रशा आस्ट्रिया से किसी भी मायने में कम नहीं रह गया था। कालांतर में उसने 1830 के आस्ट्रिया-प्रशा संधि का विरोध करना शुरू किया, जिसमें प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण नहीं किया जाना था। फलस्वरूप प्रशा के नेतृत्व में जर्मन एकीकरण की भावना जोर पकड़ने लगी। अब बिस्मार्क जर्मन एकीकरण की योजना बनाने लगा। इसके लिए 1864 और 1871 के बीच उसको तीन युद्ध करने पड़े जिनके फलस्वरूप जर्मनी की एकता कायम हुई ।
अथवा,
यूरोप में औद्योगीकरण और मार्क्सवादी विचारों का प्रभाव भारत पर भी पड़ा। भारत में भी औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ मजदूर वर्ग में चेतना जागृत हुई। भारतीय मजदूरों ने भी स्वयं को एकता के सूत्र में बाँध लिया तथा वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने-मरने को तैयार हो गए। अपनी माँगों की पूर्ति के लिए वे हड़ताल करने लगे।
1917 में अहमदाबाद में प्लेग की महामारी के कारण मजदूर शहर छोड़कर पलायन करने लगे। मजदूरों के पलायन को रोकने के उद्देश्य से मिल-मालिकों ने मजदूरों के वेतन में वृद्धि कर दी और उन्हें प्लेग बोनस दिया। फलस्वरूप मजदूरों का पलायन रुक गया। परन्तु महामारी खत्म होने पर मजदूरों को पुनः कम वेतन दिया जाने लगा। इससे मजदूरों में असंतोष फैलने लगा। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण उत्पन्न महँगाई तथा वेतन और बोनस में कटौती के कारण मजदूर काफी परेशान थे। मजबूर होकर अहमदाबाद के मिल-मजदूरों ने हड़ताल का सहारा लिया।
भारत में साम्यवादी विचारों का प्रचार एवं प्रसार तेजी से हुआ। साम्यवादी विचारों की लोकप्रियता मजदूर आन्दोलन को अधिक सशक्त बनाया। मजदूरों के सशक्तीकरण से ब्रिटिश सरकार की चिंता बढ़ने लगी। सरकार ने मजदूरों के विरुद्ध दमनकारी रवैया अपनाया। इस क्रम में कुछ वामपंथी नेताओं को गिरफ्तार किया गया। इनमें दो अंग्रेज मजदूर नेता भी थे। इन्हें गिरफ्तार कर मेरठ लाया गया। इनपर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। मेरठ में ही चार वर्षों तक मुकदमे की सुनवाई होती रही। इसे ‘‘मेरठ षड्यंत्र’” या ‘‘मेरठ षड्यंत्र केस” कहा जाता है। इनमें से कुछ को सजा मिली और कुछ को रिहा कर दिया गया। इस केस (मुकदमे) के परिणामस्वरूप मजदूरों में एकता बढ़ गई।

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