जीव विज्ञान : उत्सर्जन | Class 10Th Biology Chapter – 4 Notes | Model Question Paper | उत्सर्जन Solutions

जीव विज्ञान : उत्सर्जन | Class 10Th Biology Chapter – 4 Notes | Model Question Paper | उत्सर्जन Solutions

जीव विज्ञान : उत्सर्जन

स्मरणीय तथ्य : एक दृष्टिकोण (MEMORABLE FACTS: AT A GLANCE)
> जीवों के शरीर से उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन उत्सर्जन कहलाता है।
> उपापचयी याओं फलस्वरूप कुछ ऐसे पदार्थों का निर्माण होता है, जो शरीर के लिए अनावश्यक एवं विषाक्त होते हैं। ऐसे पदार्थों को उत्सर्जी पदार्थ कहते हैं।
> कार्बनिक अणुओं के विखंडन से उत्पन्न एक प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड है।
> उत्सर्जी पदार्थों के ऊतकों में संचय के फलस्वरूप ऊतक का विषाक्तन होता है।
> अमीबा में उत्सर्जन के लिए कोई विशेष अंगक नहीं पाए जाते हैं।
> प्रोटीन तथा एमीनो अम्लों के विखण्डन के फलस्वरूप नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ अमोनिया, यूरिया तथा यूरिक अम्ल बनाते हैं।
> अमीबा में उत्सर्जी पदार्थ शरीर की सतह (प्लाज्मालेमा) से विसरण के द्वारा बाहर निकलते हैं।
> यूरिया अमोनिया की अपेक्षा ज्यादा जटिल, परंतु कम विषैला यौगिक है।
> मनुष्य एवं समस्त वर्टिब्रेटा उपसंघ में का सबसे प्रमुख अंग एक जोड़ा वृक्क है।
> वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन वृक्क की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।
> वृक्क से संबद्ध उत्सर्जन में भाग लेनेवाली अन्य रचनाएँ मूत्रवाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग है।
> स्थलीय पौधे कुछ उत्सर्जी पदार्थों को अपने आसपास की मृदा में निष्कासित करते हैं।
> वृक्क द्वारा उत्सर्जन तीन चरणों (i) ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन, (ii) टयूबुलर पुनरवशोषण तथा (iii) ट्यूबुलर स्रवण में पूर्ण होता है।
> मनुष्य में प्रत्येक वृक्क में करीब 10,00,000 नेफ्रॉन होते हैं।
> पौधे गैसीय उत्सर्जी पदार्थों (कार्बन डाइऑक्साइड एवं ऑक्सीजन) को रंध्रों एवं वातरंध्रों द्वारा निष्कासित करते हैं।
> पौधों में पाए जाने वाले मुख्य उत्सर्जी पदार्थों में टैनिन, रेजिन एवं गोंद हैं।
> उत्सर्जी पदार्थों का निष्कासन पत्तियों के गिरने, छाल के बिलगाव, जल एवं मृदा से होता है।
> पौधे अपने ठोस अपशिष्टों या उत्सर्जी पदार्थों को पत्तियों या छाल से संचित करते हैं। कुछ उत्सर्जी पदार्थों का संचयन कोशिकीय रिक्तिकाओं में होता है।
> डायलिसिस मशीन से रक्त के शुद्धिकरण की प्रक्रिया हिमोडायलिसिस कहलाती है।
> जलीय पौधे उत्सर्जी पदार्थों को विसरण द्वारा सीधे जल में निष्कासित करते हैं।
> अभ्यासार्थ प्रश्न
> वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. सही उत्तर का संकेताक्षर ( क, ख, ग या घ) लिखें।
1.  निम्नलिखित में कौन एमीनो अम्ल के विखंडन से बनता है – 
(क) CO2
(ख) CO
(ग) NH3
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (ग)
2. अगर किसी कारण से किसी मनुष्य का एक वृक्क कार्य करना बंद कर दे तो उसका परिणाम क्या होगा ?
(क) उत्सर्जन बंद हो जाएगा
(ख) दूसरे वृक्क से उत्सर्जन होगा
(ग) मनुष्य की तुरंत मृत्यु हो जाएगी
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (ख)
3. वृक्क किस जैव प्रक्रम का हिस्सा है ? 
(क) उत्सर्जन
(ख) श्वसन
(ग) पोषण
(घ) परिवहन
उत्तर – (क)
4. रेजिन किस पौधे का उत्सर्जी पदार्थ है ?
(क) बबूल
(ख) कनेर
(ग) पीपल
(घ) चीड़
उत्तर – (घ)
5.  पादप अपशिष्ट संचित रहते हैं —
(क) पत्तियों में
(ख) छाल में
(ग) कोशिकीय रिक्तिकाओं में
(घ) सभी में
उत्तर – (घ)
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
1. एमीनो अम्लों के विखंडन से होनेवाली उत्सर्जी पदार्थ अमोनिया, यूरिया तथा ……..है।
उत्तर – यूरिक अम्ल
2. नेफ्रॉन वृक्क की रचनात्मक तथा ……….. इकाई है।
उत्तर – क्रियात्मक
3.  गोंद एवं रेजिन विशेष रूप से पुराने ……..में संचित रहते हैं। 
उत्तर – जाइलम
4. पौधों में जल का निष्कासन ……… द्वारा होता है।
उत्तर – वाष्पोत्सर्जन
> अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. कार्बनिक अणुओं के विखण्डन से उत्पन्न सबसे प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ क्या है ? 
उत्तर – कार्बनिक अणुओं के विखण्डन से उत्पन्न सबसे प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड है।
2. एमीनो अम्लों के विखण्डन से उत्पन्न उत्सर्जी पदार्थों के नाम लिखें।
उत्तर – एमीनो अम्लों के विखंडन से यूरिया उत्पन्न होता है।
3.  यूरिया और अमोनिया में अपेक्षाकृत कम जटिल और ज्यादा विषैला कौन है ?
उत्तर – अमोनिया यूरिया से कम जटिल एवं ज्यादा विषैला है।
4. अमीबा में उत्सर्जी पदार्थ शरीर की सतह से किस विधि से बाहर निकलता है ?
उत्तर – अमीबा में उत्सर्जी पदार्थ शरीर की सतह प्लाज्मालेमा से विसरण द्वारा बाहर निकलता है।
5. मूत्रमार्ग क्या है ?
उत्तर – मूत्रमार्ग मनुष्य के शरीर का एक महत्वपूर्ण उत्सर्जी अंग है।
6. मनुष्य के वृक्क के दो महत्वपूर्ण कार्यों के नाम लिखें। 
उत्तर – (i) रक्त को छानना, (ii) दूषित पदार्थों का उत्सर्जन।
7. वृक्क से संबद्ध उत्सर्जन में भाग लेनेवाली अन्य रचनाओं के नाम लिखें।
उत्तर – वृक्क से संबद्ध उत्सर्जन में भाग लेने वाली अन्य रचनाएँ मूत्रवाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्रमार्ग हैं।
8. वृक्क की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई क्या है ? 
उत्तर – नेफ्रॉन, वृक्क की रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है।
9.  मनुष्य के प्रत्येक वृक्क में नेफ्रॉन की संख्या कितनी है ?
उत्तर – मनुष्य के प्रत्येक वृक्क में करीब 10,00,000 नेफ्रॉन होते हैं।
10. पौधों में गैसीय अपशिष्टों का उत्सर्जन कहाँ से होता है ? 
उत्तर – पत्तियों के रन्ध्रों तथा अन्य भागों में अवस्थित वातरन्ध्रों द्वारा होता है।
11. जीवों के एवं विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालनेवाली क्रिया क्या कहलाती है ?
उत्तर – उत्सर्जन।
12. जंतुओं के शरीर में जल की मात्रा का संतुलन जिस क्रिया के द्वारा होता है, वह क्रिया क्या कहलाती है ?
उत्तर – जल संतुलन।
13.  मानव मूत्र में जल की प्रतिशत मात्रा सामान्यतः कितनी होती है ?
उत्तर – 96%
14. वृक्क के क्षतिग्रस्त हो जाने पर उसका कार्य जिस अतिविकसित मशीन से संपादित कराया जाता है, वह क्या कहलाता है ?
उत्तर – डायलिसिस मशीन।
15.  पौधों के उत्सर्जी पदार्थ रेजिन तथा गोंद पौधे के किस उत्तक में संचित होते हैं ? 
उत्तर – जाइलम।
16.  पौधों में गैसीय अपशिष्टों का उत्सर्जन रंध्रों के अतिरिक्त अन्य किन छिद्रों द्वारा होता है।
उत्तर – वातरंध्रों के द्वारा।
17.  बबूल के पौधों से निकलनेवाला गोंद पौधों में होनेवाली किस प्रकार के क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होता है ?
उत्तर – उत्सर्जी पदार्थों के विसरण द्वारा।
> लघु उत्तरीय प्रश्न
1.  उत्सर्जी पदार्थ से आप क्या समझते हैं
उत्तर – सजीवों में उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप पचे हुए भोज्य पदार्थ अवशोषित कर लिए जाते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप कुछ ऐसे पदार्थों का निर्माण होता है जो शरीर के लिए अनावश्यक एवं विषाक्त होते हैं जिन्हें बाहर निकालना आवश्यक है। ऐसे पदार्थ को उत्सर्जी पदार्थ कहते हैं। CO2, पसीना, मल-मूत्र इत्यादि उत्सर्जी पदार्थ है।
2.  उत्सर्जन की परिभाषा लिखें।
उत्तर – सजीवों के शरीर से उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों का शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा बाहर निकालने की प्रक्रिया उत्सर्जन कहलाता है। मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण उत्सर्जी अंग वृक्क है।
3.  मानव मूत्र के अवयवों की प्रतिशत मात्रा क्या है ?
उत्तर – मानव मूत्र में साधारणत: जल, यूरिया तथा सोडियम क्लोराइड विद्यमान रहते हैं। मनुष्य के 24 घंटे के 80 से 100 ग्राम प्रोटीन आहार में जल 96% एवं ठोस 4% (जिसमें यूरिया 2% तथा अन्य पदार्थ 2%) होता है। यूरिया की सामान्य मात्रा 100 मि.ली० रक्त में 30 मि० ग्रा० माना जाता है। प्रतिदिन करीबन 1.5 से 2 ग्राम यूरिक अम्ल मूत्र के साथ उत्सर्जित होता है। मूत्र का पीला रंग इसमें उपस्थित यूरोक्रोम रंजक के कारण होता है।
4. ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन क्या है ?
उत्तर – ग्लोमेरूलस एक छन्ना की तरह कार्य करता है। अभिवाही धमनिका जिसका व्यास अपवाही धमनिका से अधिक होता है, रक्त के साथ यूरिया, यूरिक अम्ल, जल, ग्लूकोज, लवण, प्रोटीन इत्यादि ग्लोमेरूलस में लाती है। ये पदार्थ बोमैन-संपुट की पतली दीवार से छनकर वृक्क-नलिका में चले जाते हैं। अपवाही धमनिका का व्यास कम होने के कारण ग्लोमेरूलस में रक्त पर दबाव बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप छनने की क्रिया उच्च दाब पर होती है। उच्च दाब
में फिल्ट्रेशन को अल्ट्राफिल्ट्रेशन कहते हैं। प्लाज्मा के साथ सभी लवण, ग्लूकोज और अन्य पदार्थ भी छनते हैं। कोशिकाएँ एवं प्लाज्माप्रोटीन बोमैन-संपुट की भित्ति के लिए अपारगम्य होते हैं। इस फिल्ट्रेट को ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेट कहते हैं।
5.  वृक्क के महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर – वृक्क द्वारा मूत्रे निर्गम या उत्सर्जन की क्रिया तीन प्रमुख चरणों में पूर्ण होती है
(i) ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन
(ii) ट्यूबुलर पुनरुशोषण
(iii) ट्यूबुलर स्रवण।
6.  पौधे अपना उत्सर्जी पदार्थ किस रूप में निष्कासित करते हैं ? 
उत्तर – पौधों में उत्सर्जन के लिए विशिष्ट अंग नहीं होते हैं। इसमें उत्सर्जन के लिए कई तरीके अपनाये जाते हैं। श्वसन क्रिया से CO, गैस एवं प्रकाश संश्लेषण क्रिया से ऑक्सीजन गैस विसरण क्रिया द्वारा पत्तियों से निष्कासित होते हैं। बहुत से पौधे कार्बनिक उपशिष्टों या उत्सर्जी पदार्थों को उत्पन्न करते हैं जो उनकी मृत कोशिकाओं में संचयित रहते हैं। पौधे छाल के रूप में भी उत्सर्जी पदार्थ बाहर निकालते हैं। पौधे में उपापचयी क्रियाओं के दौरान टैनिन, रेजिन, गोंद आदि उत्सर्जी पदार्थों का निर्माण होता है। कुछ पौधे में उत्सर्जी पदार्थ गाढ़े दूधिया तरल लैटेक्स के रूप में संचित रहता है।
> दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.  कृत्रिम वृक्क क्या है ? यह कैसे कार्य करता है ?
उत्तर – विशेष परिस्थिति जैसे— संक्रमण, मधुमेह, सामान्य से अधिक उच्च रक्तचाप या किसी प्रकार के चोट के कारण वृक्क क्षतिग्रस्त होकर अपना कार्य करना बन्द कर देते हैं। क्षतिग्रस्त वृक्क के कार्य न करने की स्थिति में शरीर में आवश्यकता से अधिक मात्रा में जल, खनिज या यूरिया जैसे जहरीले विकार एकत्रित होने लगते हैं जिससे रोगी की मृत्यु हो सकती है। ऐसी स्थिति में वृक्क का कार्य अतिविकसित मशीन के इस्तेमाल से सम्पादित कराया जाता है। इसे डायलिसिस मशीन या कृत्रिम वृक्क कहते हैं। यह मशीन वृक्क की तरह ही कार्य करता है। इस मशीन में एक टंकी होता है जो डायलाइज़र कहलाता है। इसमें डायलिसिस फ्लूयूइड नामक तरल पदार्थ भरा होता है। इस तरल पदार्थ में सेलोफेन से बनी एक बेलनाकार रचना लटकती रहती है। यह आशिक रूप से पारगम्य होता है। यह केवल विलय का ही विसरण होने देता है। डायलिसिस फ्लूइड की सान्द्रुता सामान्य ऊतक द्रव जैसी होती है। परंतु, इसमें नाइट्रोजनी विकार तथा लवण की अत्यधिक मात्रा नहीं होती है। डायलिसिस के समय रोगी के शरीर का रक्त एक धमनी के द्वारा निकालकर उसे 0°C तक ठंडा किया जाता है। इस रक्त को विशिष्ट प्रतिस्पंदक से उपचारित कर तरल अवस्था में ही रखा जाता है। इस रक्त को एक पम्प की सहायता से डायलाइजर में भेजा जाता है। यहाँ रक्त से नाइट्रोजनी विकार विसरित होकर डायलिसिस फ्लूइड में चला जाता है। इस तरह शुद्ध किये गये रक्त के पुनः शरीर के तापक्रम पर लाया जाता है। पुनः इस रक्त को पम्प की मदद से एक शिरा के द्वारा रोगी के शरीर में वापस पहुँचा दिया जाता है। रक्त के शुद्धिकरण की यह क्रिया हिमोडायलिसिस कहलाता है। रक्त के शुद्धिकरण का यह एक विकसित तकनीक है।
2.  मनुष्य में वृक्क तथा उससे संबद्ध उत्सर्जी अंगों का वर्णन करें।
उत्तर – मनुष्य में वृक्क प्रमुख उत्सर्जी अंग है। उससे संबद्ध उत्सर्जी अंग मूत्र वाहिनी, मूत्राशय तथा मूत्र मार्ग है। मनुष्य में एक जोड़ा वृक्क होता है। प्रत्येक वृक्क उदर गुहा की पृष्ठीय देहभित्ति से सटे हुए कशेरुकदण्ड के दोनों ओर स्थित होते हैं। बायाँ वृक्क दायें वृक्क की अपेक्षा कुछ ऊपर स्थित होता है। प्रत्येक वृक्क ठोस, गहरे भूरे-लाल रंग का होता है तथा इसका आकार सेम के बीज के समान होता है। यह लगभग 10 सेमी० लम्बा, 5-6 सेमी० चौड़ा तथा 2.5 से 4 सेमी. मोटा होता है। वृक्क की बाहरी सतह उन्नतोदर तथा भीतरी सतह नतोदर होती है।
प्रत्येक वृक्क की भीतरी नतोदर सतह जाइलम कहलाती है। इसी जगह से वृक्क धमनी वृक्क में प्रवेश करती है तथा वृक्क शिरा बाह्य निकलती है। वृक्क के जाइलम से एक मूत्रवाहिनी निकलती है। मूत्रवाहिनी का शीर्ष भाग मोटा होता है। प्रत्येक मूत्रवाहिनी पीछे की ओर मूत्राशय में खुलती है। मूत्राशय नाशपाती की आकार की पतली दीवार वाली एक थैलोनुमा रचना है। जो उदर गुहा के पिछले भाग में रेक्टम के नीचे स्थित होता है। मूत्राशय के पिछले भाग से नली निकलती है जिसे मूत्र मार्ग कहते हैं। निकलती हुई मूत्र मार्ग मूत्रद्वार के द्वारा शरीर से बाहर खुलता है। इस तरह मानव के विभिन्न उत्सर्जी अंग की संरचना होती है।
3. वृक्क की आंतरिक संरचना का वर्णन करें।
उत्तर – वृक्क की संरचना प्रत्येक वृक्क बाहर से संयोजी ऊतक तथा अरेखित पेशियों (unstriped muscles) से बना एक पतले कैप्सूल (capsule) से ढँका होता है। प्रत्येक वृक्क में एक बाहरी प्रान्तस्थ भाग (cortex) तथा एक भीतरी अंतस्थ भाग (medulla) होता है। यह 15-16 पिरामिड (pyramid) जैसी रचनाओं का बना होता है जिसे वृक्क – शंकु (pyramid of the kidney) कहते हैं। प्रत्येक वृक्क में सूक्ष्म, लम्बी, कुंडलित नलिकाएँ पाई जाती हैं, जो नेफॉन या वृक्क नलिकाएँ (nephron or uriniferous tubules) कहलाती है। नेफ्रॉन वक्क की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई ( structural and functional unit) है।
4.  वृक्क के द्वारा उत्सर्जन क्रिया कैसे होती है ? समझाएँ । 
उत्तर – उत्सर्जन –  उपापचय के समय शरीर में बने हुए अनावश्यक वर्ज्य पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने अथवा उनसे छुटकारा पाने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं।
 गुर्दे द्वारा उत्सर्जन – मानव शरीर में दो गुर्दे पाये जाते हैं जो शरीर के अतिरिक्त जल एवं उत्सर्जी पदार्थों जैसे यूरिया, अनावश्यक लवण, लैक्टिक अम्ल, प्रतिजैविक औषधियों के शेषांश आदि को छानकर मूत्राशय में भेजते हैं।
> गुर्दे की सम्पूर्ण कार्य प्रणाली निम्नांकित चरणों में पूरी होती है —
(i) ग्लोमेरुलस में छनन क्रिया (Glomerular Filteration)
(ii) चयनात्मक पुनरावशोषण (Selective Reabsorption)
(iii) नलिका स्रवण ( Tubular Secretion)।
(i) ग्लोमेरूलस में छनन क्रिया (Ultra Filteration in Glomerulus) ग्लोमेरूलस को ) – कोशिका गुच्छा भी कहते हैं। वास्तव में जो अभिवाही धमनी (Afferent Artery) गुर्दे में रक्त लाती है वह बार-बार विभाजित होकर बहुत-सी पतली-पतली केशिकाओं का गुच्छा बनाती है। इसी गुच्छे को केशिका गुच्छ या ग्लोमेरूलस कहा जाता है। केशिका गुच्छ की कोशिकाएँ पुनः आपस में जुड़ती हैं और एक मोटी बॉमन्स कैप्सूल अपवाही (Efferent) धमनी की रचना करती है। वह अपवाही धमनी रक्त को बोमैन कैप्सूल से बाहर ले जाती है।
ग्लोमेरूलस में पहुँचते ही रक्त पर अचानक बहुत अधिक दबाव पड़ता है क्योंकि अभिवाही धमनी मोटी अभिवाही धमनी से आने के बाद उसे अचानक पतली-पतली कोशिकाओं से होकर गुजरना पड़ता है। इस उच्च रक्तचाप के कारण उत्सर्जी पदार्थों के. एपीथोलियम स्तर साथ-साथ कई महत्वपूर्ण पदार्थ भी जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल आदि कोशिकाओं की पतली दीवारों से होकर बाहर निकल जाते हैं। इस छनन अभिक्रिया को सूक्ष्म छनन या ‘अल्ट्रा फिल्ट्रेशन’ (Ultra filteration) कहते हैं। ग्लोमेरूलस द्वारा छने हुए पदार्थों को ग्लोमेरूलस-निस्पंद (glomeruler filterate) कहते हैं।
(ii) चयनात्मक पुनरावशोषण (Selective Reabsorption) – ग्लोमेरूलस द्वारा छने हुए पदार्थ बोमैन्स कैप्सूल में आ जाते हैं और मूत्र संग्राहक नली में आगे बढ़ते हैं। मूत्र संग्राहक नलिका की दीवारों पर एपीथिलियम ऊतक के स्तर पाये जाते हैं। ग्लोमेरूलस निस्पंद में उत्सर्जन योग्य पदार्थों के साथ सम्मिलित उपयोगी पदार्थ विसरण क्रिया द्वारा एपीथीलियम ऊतकों में अवशोषित हो जाते हैं परन्तु उत्सर्जन योग्य पदार्थ हेनेल्स लूप से आगे बढ़ते हैं। मूत्र संग्राहक नलिका एवं एपीथीलियम स्तरों में रक्त केशिकाओं का जाल पाया जाता है जो सम्पूर्ण हेनेल्स लूप तक फैला होता है। एपीथीलियम ऊतकों में विसरित पदार्थ इनके केशिकाओं के रक्त में चले जाते हैं। इस सम्पूर्ण क्रिया को चयनात्मक पुनरावशोषण कहते हैं।
(iii) नलिका प्रवण ( Tubular Secretion) – ग्लोमेरूलस की सूक्ष्म छनन क्रिया के बाद भी बहुत से अनावश्यक पदार्थ रक्त में पड़े रह जाते हैं। ये पदार्थ हैं— केरेटिनीन, अमोनिया, हाइड्रोजन और पोटैशियम के आयन तथा प्रतिजैविक (antibiotics) औषधियों के शेषांश। ये पदार्थ पश्च कुंडलित नाल या डिस्टल कनवोल्यूटेड ट्यूब्यूल द्वारा छानकर मूत्राशय में भेज दिये जाते हैं। इस प्रकार विभिन्न उत्सर्जी पदार्थ जलीय विलयन के रूप में मूत्राशय में जमा होते हैं में जिन्हें सम्मिलित रूप में मूत्र (Urine) कहा जाता है। मूत्र त्याग के साथ ही तरल अपशिष्टों से छुटकारा मिल जाता है।
5.  पौधों में उत्सर्जन कैसे होता है ?
उत्तर – जंतुओं की तुलना में पौधों में उत्सर्जन के लिए विशिष्ट अंग नहीं पाए जाते हैं। इनमें उत्सर्जन के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं। श्वसन क्रिया से निष्कासित कार्बन डाइऑक्साइड गैस एवं प्रकाशसंश्लेषण से निष्कासित ऑक्सीजन गैस विसरण क्रिया द्वारा पत्तियों के रंध्रों एवं अन्य भागों में अवस्थित वातरंध्रों के द्वारा उत्सर्जित होती हैं। वाष्पोत्सर्जन से निकलनेवाला जल मुख्यतः रंध्रों द्वारा तथा पौधों के अन्य भागों से निष्कासित होता रहता है।
बहुत-से पौधे कार्बनिक अपशिष्टों या उत्सर्जी पदार्थों को उत्पन्न करते हैं जो उनकी मृत कोशिकाओं, जैसे अंतःकाष्ठ में संचयित रहते हैं। पौधे उत्सर्जी पदार्थों को अपनी पत्तियों एवं छाल में भी संचित करते हैं। पत्तियों के गिरने एवं छाल के बिलगाव से इन उत्सर्जी पदार्थों का शरीर
से निष्कासन होता है। कुछ उत्सर्जी पदार्थ कोशिकीय रिक्तिकाओं में जमा रहते हैं। विभिन्न चयापचयी क्रियाओं के दौरान टैनिन (tannin), रेजिन (resin), गोंद ( gums) आदि उत्सर्जी पदार्थों का निर्माण होता है। टैनिन वृक्षों के छाल में, रेजिन एवं गोंद पुराने जाइलम में संचित रहता है।
कुछ पौधों में उत्सर्जी पदार्थ गाढ़े, दुधिया तरल के रूप में संचित रहता है जिसे लैटेक्स कहते हैं। अगर आप पीपल, बरगद या पीला कनेर की एक ताजी पत्ती को तोड़ें तो आपको उजला, दूधिया एवं गाढ़ा लैटेक्स निकलता दिखाई पड़ेगा।
बबूल के पौधों में गोंद उत्सर्जी पदार्थ के रूप में पाया जाता है। इसी प्रकार, चीड़ (Pines)  में रेजिन एक सामान्य उत्सर्जी पदार्थ है।
जलीय पौधे उत्सर्जी पदार्थों को विसरण द्वारा सीधे जल में निष्कासित करते हैं जबकि स्थलीय पौधे कुछ उत्सर्जी पदार्थों को अपने आसपास की मृदा में निष्कासित करते हैं।
> अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
> वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.  प्रत्येक प्रश्न में दिये गये बहुविकल्पों में सही उत्तर चुनें।
1. जीवों के शरीर से उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन क्या कहलाता है ?
(क) वाष्पोत्सर्जन
(ख) उत्सर्जन
(ग) परिवहन
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (ख)
2. मनुष्य के प्रत्येक वृक्क में कितने नेफ्रॉन होते हैं
(क) 10,00,000
(ख) 50,00,000
(ग) 25,00,000
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (क)
3. डायलिसिस मशीन से रक्त के शुद्धिकरण की प्रक्रिया क्या कहलाती है ?
(क) डेमोडायलिसिस
(ख) डायलिसिस
(ग) हिमोडायलिसिस
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (ग)
4. मनुष्य में कितना जोड़ा वृक्क होता है
(क) दो जोड़ा
(ख) एक जोड़ा
(ग) तीन जोड़ा
(घ) चार जोड़ा
उत्तर – (ख)
5. मनुष्य के मूत्र में कितना प्रतिशत जल पाया जाता है ?
(क) 96%
(ख) 4%
(ग) 50%
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (क)
6. नेफ्रॉन नालिका कहाँ पायी जाती है ?
(क) कोशिका गुच्छा में
(ख) यकृत के अन्दर
(ग) वृक्क के अन्दर
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (ग)
7.  मालपोधियन ट्युब्यूल किस प्राणी के उत्सर्जन अंग का नाम है ? 
(क) टिड्डा
(ख) केंचुआ
(ग) अमीबा
(घ) झींगा
उत्तर – (क)
8. पौधों में जल का निष्कासन किसके द्वारा होता है ?
(क) उत्सर्जन
(ख) वाष्पोत्सर्जन
(ग) परिवहन
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (ख)
9.  गोंद एवं रेजिन विशेष रूप से किसमें संचित रहते हैं ? 
(क) जाइलम
 (ख) फ्लोएम
(ग) वाष्पोत्सर्जन
(घ) कोई नहीं
उत्तर – (क)
10. मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबंधित है –
(क) पोषण
 (ख) श्वसन
(ग) उत्सर्जन
(घ) परिवहन
उत्तर – (ग)
II. रिक्त स्थानों को उपयुक्त शब्दों या अंकों से भरें।
1. यूरिया अमोनिया की अपेक्षा ज्यादा जटिल, परंतु कम ……….. यौगिक है।
उत्तर – विषैला
2.  कार्बनिक अणुओं के विखण्डन से उत्पन्न एक प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ ……… है ।
उत्तर – कार्बन डाइऑक्साइड
3. उत्सर्जी पदार्थों के ऊतकों में संचय के फलस्वरूप ऊतक का ……… हो जाता है।
उत्तर – विषाक्त
4. बबूल के पेड़ में …….. उत्सर्जी पदार्थ के रूप में पाया जाता है।
उत्तर – गोंद
5.  प्रत्येक वृक्क के जाइलम से एक ………निकलती है।
उत्तर – मूत्रवाहिनी
6.  यूरिया की सामान्य मात्रा ……… रक्त में 30mg मानी जाती है।
उत्तर – 100 mL
7. अमीबा में उत्सर्जी पदार्थ शरीर की सतह से …….. के द्वारा बाहर निकलते हैं।
उत्तर – विसरण
8. रेजिन और गोंद को पादप पुराने ……… में संचित करते हैं।
 उत्तर – जाइलम
9. नेफ्रॉन ……… नालिका में पाया जाता है। 
 उत्तर- वृक्क
10. रक्त के उत्सर्जी पदार्थों का छनन वृक्क नालिका के ………भाग में होता है।
उत्तर – ग्लोमेरूलस
> अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. उत्सर्जन की परिभाषा लिखिए।
उत्तर – उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप बनने वाले वर्ज्य पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया को उत्सर्जन कहते हैं।
2. अमीबा की संकचनशील रिक्तिका में उत्सर्जी पदार्थ किस भाग से आते हैं ?
उत्तर – प्लाज्मा झिल्ली।
3. केचुएँ में वृक्क कहाँ मिलते हैं ? 
उत्तर – वृक्क केंचुएँ की देह गुहा के भीतर कुंडलित, उत्सर्जी नलिकाओं के रूप में स्थित होता है।
 4. उत्सर्जी पदार्थों के साथ वृक्क में प्रवाहित होने वाले उपयोगी पदार्थों का क्या होता है ? 
उत्तर – ये देह तरल में से नाइट्रोजनी अपशिष्टों को एकत्रित कर लेती है जो (Nephridiopores) नामक छोटे सुराखों द्वारा बाहर निकाल दिए जाते हैं।
 5. वृक्क की उत्सर्जन इकाई का नाम लिखिए।
उत्तर – नेफ्रॉन।
6. मूत्र नलिकाओं द्वारा मूत्र कहाँ ले जाया जाता है ?
उत्तर – मूत्राशय तक।
7. मूत्रमार्ग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – दोनों शुक्रवाहक मिलकर एक सामान्य वाहिका बनाते हैं, जिसे मूत्र मार्ग कहते हैं। मूत्रमार्ग शिश्न में से होकर गुजरता हुआ बाहर की तरफ खुलता है।
8. मानव शरीर में कितने गुर्दे होते हैं ?
उत्तर – दो गुर्दे ।
9. गुर्दे क्या काम करते हैं ?
उत्तर – गुर्दे शरीर से अनावश्यक पदार्थों को बाहर निकालते हैं तथा पानी, लवण, अम्ल-क्षार का संतुलन बनाए रखते हैं।
10. गुर्दों में रक्त प्रवाह की कमी से क्या होगा ?
उत्तर – गुर्दों का क्षय हो जाएगा।
11. सीरम का क्या महत्व है ?
उत्तर – चोट लगने के कुछ देर बाद रक्त का जो थक्का बना होता है वह थक्का सिकुड़ने लगता है और उसमें हल्के पीले रंग का द्रव सीरम बाहर निकल आता है। सीरम में रुधिराणुओं रहित प्लाज्मा होता है। सीरम के सूखने पर रुधिर का पूर्ण थक्का बन जाता है।
 12. रेजिन और गोंद को पादप कहाँ संचित करते हैं ? 
उत्तर – पुराने जाइलम में।
13.  वृक्क की उत्सर्जन इकाई क्या है ?
उत्तर – वृक्काणु (नेफ्रॉन) ।
14.  मानव के उत्सर्जन- तंत्र में कौन-कौन से अंग विद्यमान रहते हैं ? 
उत्तर – एक जोड़ा वृक्क, एक मूत्रवाहिनी, एक मूत्राशय तथा एक मूत्रमार्ग ।
15.  मनुष्य में वृक्क कहाँ अवस्थित रहता है ? 
उत्तर – उदर में रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर।
16. मूत्र बनने का क्या उद्देश्य है ? 
उत्तर – रुधिर से वर्ज्य पदार्थ छनकर मूत्र द्वारा बाहर निकलता है।
17.  एक नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर – यूरिया या यूरिक अम्ल ।
18.  सूत्र का भंडारण कहाँ होता है ?
उत्तर – मूत्राशय में।
19.  मूत्रमार्ग क्या है ?
उत्तर – मूत्राशय के पिछले भाग से निकलनेवाली नली ।
20.  प्रत्येक वृक्क में पाई जानेवाली लंबी, कुंडलित नलिकाओं को क्या कहते हैं ? 
उत्तर – वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन ।
21. अपोहन या डायलिसिस क्या है ?
उत्तर – कृत्रिम रूप से नाइट्रोजनी अपशिष्ट उत्पादों को रुधिर से निकालने की युक्ति को अपोहन (dialysis) कहते हैं।
22. सरल एककोशिकीय जीवों में उत्सर्जन किस विधि से होता है ?
उत्तर – विसरण द्वारा।
23.  पौधों में पाए जानेवाले कोई दो अपशिष्ट उत्पादों के नाम लिखें।
उत्तर – रेजिन तथा गोंद
24.  पादप अपशिष्ट उत्पाद कहाँ संचित रहते हैं ?
उत्तर – कोशिकीय रिक्तिका, पत्तियों एवं पुराने जाइलम मे
25.  एक कृत्रिम गुर्दे की कार्यप्रणाली में प्रयुक्त होनेवाले प्रक्रम का नाम लिखें। 
उत्तर – डायलिसिस ।
26.  निम्नांकित जन्तुओं में उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी अंगों के नाम लिखें –
उत्तर –  (i) अमीबा
(ii) केंचुआ
 (iii) टिड्डा
 (iv) फीता कृमि
 (v) झींगा
उत्तर – 
(i) अमीबा – संकुचनशील धानी
(ii) केंचुआ – नेफ्रीडिया
(iii) टिड्डा-मालपीघी नलिका
(iv) फीता कृष्मि-फ्लेम सेल (ज्वाला कोशिका)
(v) झींगा-ग्रीन ग्लैंड्स।
 27.  नेफ्रोस्टोम किसे कहते हैं ?
उत्तर – नेफ्रीडिया के एक सिरे पर स्थित कीप जैसी रचना।
28. अमीबा के उत्सर्जन अंग में अपशिष्ट पदार्थ कहाँ से आकर जमा होते हैं ?
उत्तर- कोशिकाद्रव्य से आकर
29.  उत्सर्जी पदार्थों के साथ जो उपयोगी पदार्थ नेफ्रीडिया में पहुँच जाते हैं उनका क्या होता है ?
उत्तर – वे पदार्थ नेफ्रीडिया की दीवार पर पायी जानेवाली कोशिकाओं में फिर से सोख लिये जाते हैं।
30. किसी एक नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जी पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर – यूरिया ।
31. कशेरुकी प्राणियों के प्रमुख उत्सर्जी अंग का नाम लिखें।
उत्तर – गुर्दा (वृक्क ) |
32.  नेफ्रॉन या वृक्क नलिका कहाँ पायी जाती है ?
उत्तर – वृक्क या गुर्दा के अन्दर ।
33. वृक्क द्वारा रक्त से उत्सर्जी पदार्थों के छानने की क्रिया नलिका के किस भाग में होती है ?
उत्तर – कोशिका गुच्छा (ग्लोमेरूलस) ।
34.  केंचुए के उत्सर्जी अंग का नाम लिखें।
उत्तर – नेफ्रीडिया |
35.  ज्वाला कोशिकाएँ या फ्लेम सेल्स किस जन्तु में पायी जाती हैं ? 
उत्तर – फीता कृमि ।
 36. मालपीघियन ट्युब्यूल किस प्राणी के उत्सर्जन अंग का नाम है ?
उत्तर – टिड्डा ।
37.  बरगदे की पत्ती में किस उत्सर्जी पदार्थ के रवे पाये जाते हैं ?
उत्तर – कैल्सियम ऑक्जैलेट |
38.  मनुष्य में मुख्य नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ क्या हैं ?
उत्तर – यूरिया।
39.  किस अंग में अमोनिया को यूरिया में बदला जाता है ? 
उत्तर – यकृत में।
40.  एककोशीय जन्तुओं और पौधों में प्रायः किस प्रक्रम द्वारा उत्सर्जन होता है ?
उत्तर – विसर्जन द्वारा ।
 41.  जिस नलिका से होकर मूत्राशय से मूत्र बाहर आता है उसका नाम लिखें।
उत्तर – यूरेथ्रा (मूत्रमार्ग ) ।
 42. रक्त के उत्सर्जी पदार्थों का छनन वृक्क नलिका के किस भाग में होता है ?
उत्तर – कोशिका गुच्छ (ग्लोमेरूलस) ।
43.  पुनरावशोषण प्रायः वृक्क नलिका के किस भाग में होता है ? 
उत्तर – हेनेल्स लूप ।
44.  नेफ्रॉन कहाँ पाया जाता है ?
उत्तर – वृक्क नलिका में।
> लघु उत्तरीय प्रश्न
1.  मनुष्य के उत्सर्जन तंत्र के विषय में संक्षेप में लिखें।
उत्तर – मनुष्य में एक जोड़ा वृक्क होता है जो महत्त्वपूर्ण उत्सर्जी अंग है। प्रत्येक वृक्क के हाइलम से एक मूत्रवाहिनी निकलती है। प्रत्येक मूत्रवाहिनी पीछे की ओर मूत्राशय में खुलती है। मूत्राशय नाशपाती के आकार की पतली दीवारवाली एक थैलीनुमा रचना है, जो उदरगुहा के पिछले भाग में रेक्टम के नीचे स्थित होती है। मूत्राशय के पिछले भाग से एक नली जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं, निकलती है। मूत्रमार्ग मूत्रद्वार के द्वारा शरीर से बाहर खुलता है।
2.  वृक्क में असंख्य छोटी-छोटी नलिकाएँ होती हैं। ये क्या हैं ? इनकी रचना क्या है ?
उत्तर – वृक्क में अनेक छोटी-छोटी कुंडलित नलिकाएँ होती हैं जिनको वृक्काणु या नेफ्रॉन कहते हैं ये ही वे सूक्ष्म उत्सर्जन इकाइयाँ हैं जिनमें मूत्र निर्माण होता है। नेफ्रॉन का अग्र सिरा प्यालानुमा होता है जिससे बोमैन- संपुट (Bowman’s capsule) कहते हैं और इसमें केशिकागुच्छ स्थित होता है। नेफ्रॉन का दूसरा सिरा मूत्रवाहिनी में खुलता है। दोनों सिरों के बीच की नलिका कुंडलित होती है और रुधिर केशिकाओं के घने जाल से आच्छादित रहती है।
3. डायलिसिस सिद्धांत क्या है ? 
उत्तर – कभी-कभी संक्रमण या उचित रुधिर आपूर्ति न होने या अन्य कारणों से वृक्क क्षतिग्रस्त होकर कार्य करना बंद कर देता है। ऐसी स्थिति में रुधिर से उत्सर्जी पदार्थों को छानने तथा जल एवं लवणों के उचित मात्रा के संतुलन के लिए कृत्रिम वृक्क का व्यवहार करना पड़ता है। यह विधि डायलिसिस (dialysis) कहलाता है। इस विधि में मरीज के रुधिर को क्षतिग्रस्त वृक्क के बजाय डायलिसिस मशीन में प्रवाहित किया जाता है। इस मशीन में रुधिर से उत्सर्जी पदार्थों को अलग करके फिर उसे शरीर में वापस पंप कर दिया जाता है।
4. अपोहन (डायलिसिस) किसे कहते हैं ?
उत्तर – वह प्रक्रिया जिसके द्वारा रक्त में उपस्थित पदार्थों के छोटे अणु छान लिये जाते हैं परन्तु प्रोटीन जैसे बड़े अणु नहीं छन पाते, अपोहन (डायलिसिस) कहलाती है।
5.  डायलिसिस का नियम क्या है ?
उत्तर – अपोहन (डायलिसिस) में सेल्युलोज की नलिका विलयन के टंकी से जुड़ी रहती है। जब रुधिर प्रवाहित होता है तो अशुद्धि टंकी में आ जाती है। स्वच्छ रुधिर रोगी के शरीर में पुनः प्रविष्ट करा दिया जाता है।
6.  मूत्र बनने की मात्रा किस प्रकार नियंत्रित की जाती है ? 
उत्तर – मूत्र बनने की मात्रा इस प्रकार नियंत्रित की जाती है कि जल की मात्रा का शरीर में संतुलन बना रहे। जल की बाहर निकलने वाली मात्रा इस आधार पर निर्भर करती है कि उसे कितना विलंय वर्ज्य पदार्थ उत्सर्जित करना है। अतिरिक्त जल का वृक्क में पुनरावशोषण कर लिया जाता है और उसका पुन: उपयोग हो जाता है ।
 7.  उत्सर्जन और स्राव में अंतर लिखें।
उत्तर – उत्सर्जन और स्राव में अंतर निम्नलिखित हैं –
8.  नर तथा मादा जनन हार्मोनों के नाम तथा कार्य लिखे।
उत्तर – नर हार्मोन— टेस्टोस्टेरॉन; कार्य शुक्राणुओं का निर्माण।
> मादा हार्मोन – एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्टरॉन।
> एस्ट्रोजन के कार्य – द्वितीय लैंगिक लक्षणों का विकास एवं जनन शक्ति का विकास।
> प्रोजेस्टरॉन के कार्य – भ्रूण के विकास में सहायक, भ्रूण के पोषण में सहायक।
9.  फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए।
उत्तर – फुफ्फुस में कूपिकाओं तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) में रक्त कोशिकाओं की अधिकता होती है। फुफ्फुस में गैसों का आदान-प्रदान होता है। अशुद्ध रक्त ऑक्सीजन को प्राप्त कर शुद्ध हो जाता है। इसी प्रकार वृक्क वृक्काणु रक्त को छानकर अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र रूप में बाहर निकाल देते हैं।
10.  उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं। 
उत्तर – उत्सर्जक पदार्थों से मुक्ति पाने के लिए पादप निम्नलिखित तरीकों का प्रयोग करते हैं –
(i) अनेकों उत्सर्जक उत्पाद कोशिकाओं के धानियों में भण्डारित रहते हैं। पादप कोशिकाओं तुलनात्मक रूप से बड़ी धानियाँ होती हैं। में
(ii) कुछ उत्सर्जक उत्पाद पत्तियों में भण्डारित रहते हैं। पत्तियों के गिरने के साथ ये हट जाते हैं।
(iii) कुछ उत्सर्जक उत्पाद, जैसे रेजिन या गम, विशेष रूप से निष्क्रिय पुराने जाइलम में भंडारित रहते हैं।
(iv) कुछ उत्सर्जक उत्पाद जैसे टैनिन, रेजिन, गम छाल में भण्डारित रहते हैं। छाल के उतरने के साथ हट जाते हैं।
(v) पादप कुछ उत्सर्जक पदार्थों का उत्सर्जन जड़ों के द्वारा मृदा में भी करते हैं।
11.  मूत्र बनने की मात्रा का नियम किस प्रकार होता है ?
उत्तर – मूत्र की मात्रा पानी के पुनःअवशोषण पर प्रमुख रूप से निर्भर करता है। वृक्काणु नलिका द्वारा पानी की मात्रा का पुन:अवशोषण निम्नलिखित पर निर्भर करता है –
(i) शरीर में अतिरिक्त पानी की कितनी मात्रा है जिसको निकालना है।
जब शरीर के ऊतकों में पर्याप्त जल है, तब एक बड़ी मात्रा में तनु मूत्र का उत्सर्जन होता है। जब शरीर के ऊतकों में जल की मात्रा कम है, तब सांद्र मूत्र की थोड़ी-सी मात्रा उत्सर्जित होती है।
(ii) कितने घुलनशील उत्सर्जक, विशेषकर नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जक जैसे यूरिया तथा यूरिक अम्ल तथा लवण आदि का शरीर से उत्सर्जन होना है।
जब शरीर में घुलनशील उत्सर्जन की अधिक मात्रा हो, तब उनके उत्सर्जन के लिए जल की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। अतः मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।
12.  परासरण नियमन किसे कहते हैं? मनुष्य में यह किस प्रकार संपन्न होता है ? 
उत्तर – शरीर में पानी और आयनिक संतुलन के उचित स्तर को बनाए रखने की प्रक्रिया को परासरण नियमन कहते हैं। मनुष्यों में यह प्रक्रिया गुर्दों के द्वारा होती है। विभिन्न स्थानों पर रहने वाले जीव-जंतुओं में इसकी दर बदलती रहती है। पानी में रहने वाले जीव शरीर से पानी को शीघ्रता से उत्सर्जित करते हैं पर रेगिस्तानी जीव ऐसा जल्दी जल्दी नहीं करते।
13.  मनुष्य में मूत्र बनाने की क्रियाविधि का संक्षिप्त विवरण लिखिए।
उत्तर – शरीर में पाचन के द्वारा नाइट्रोजन विभिन्न लवणों में बदलती है। अमोनियम लवण यूरिया में बदलते हैं। यकृत कोशिकाओं के द्वारा जब इसे परिसंचरण तंत्र से वृक्क में पहुँचाया जाता है तो मूत्र निर्माण आरंभ होता है। मूत्र में मुख्य रूप से पानी तथा शेष अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। इसमें पानी की मात्रा 95% तथा अन्य पदार्थ 5% तथा यूरिया प्रमुख यौगिक के रूप में इसमें घुला रहता है।
14. नेफ्रॉन को डायलिसिस थैला क्यों कहते हैं ?
उत्तर – नेफ्रॉन को डायलिसिस थैला इसलिए कहा जाता है क्योंकि नेफ्रॉन की प्यालेनुमा संरचना बाऊमैन संपुट में स्थिर कोशिका गुच्छ की दीवारों से रक्त छनता है। रक्त में उपस्थित प्रोटीन के अणु बड़े होने के कारण छन नहीं पाते तथा ग्लूकोज और लवण के अणु छोटे होने से छन जाते हैं। इस प्रकार नेफ्रॉन डायलिसिस थैली के समान कार्य करती है।
15. डायलिसिस प्रक्रिया को समझाइए।
उत्तर – कई बार विपरीत परिस्थितियों के कारण गुर्दे अपना कार्य ठीक प्रकार से नहीं करते। शरीर में बनने वाला यूरिया तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थों को ये रवे छानने में असमर्थ हो जाते हैं जिस कारण रक्त में विषैले पदार्थ बढ़ने लगते हैं। तब डायलिसिस यंत्र का प्रयोग कर रक्त को साफ किया जाता है। इस यंत्र में रक्त सेलोफोन झिल्ली की बनी नलिकाओं में बहता है। इन नलिकाओं के बाहर रक्त का समपरासी लवण द्रव को बहाया जाता है। जिस कारण नलिकाओं के अंदर बहते रक्त से उत्सर्जी पदार्थ अलग होकर यंत्र के द्रव में आ जाते हैं और रक्त यूरिया तथा उत्सर्जी पदार्थों से मुक्त हो जाता है। इस क्रिया के बाद रक्त को शरीर में वापस भेज दिया जाता है।
> दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.  उत्सर्जन इकाइयाँ क्या हैं ? केशिकागुच्छ/ग्लोमेरुलस क्या है और उत्सर्जन में उसकी क्या भूमिका है ? 
उत्तर – मनुष्य एवं अन्य कशेरुकी जंतुओं के वृक्कों के भीतर असंख्य सूक्ष्म नलिकाएँ मौजूद होती हैं जिनको वृक्क या नेफ्रॉन कहते हैं। प्रत्येक नेफ्रॉन एक उत्सर्जन इकाई है जिसकी संरचना जटिल होती है।
केशिकागुच्छ वृक्क धमनी के बोमैन- संपुट में प्रवेश करनेवाली शाखा के शाखित या अत्यधिक विभाजित होने के फलस्वरूप बनी केशिकाओं की एक गाँठ की तरह का गुच्छा होता है। केशिकागुच्छ बोमैन-संपुट के भीतर स्थित होता है और वृक्क धमनी से आए हुए रुधिर को चयनात्मक रूप से छानने का कार्य करता है। वृक्क धमनी से केशिकागुच्छ में आनेवाले रुधिर में अपोहन (डायलिसिस) की क्रिया को बार-बार दुहराने से रोगी के शरीर को रुधिर से अपशिष्टों को अलग कर उसको अपशिष्ट पदार्थरहित बना दिया जाता है और साफ किए गए रुधिर को रोगी की शिराओं में फिर से वापस भेज दिया जाता है।
2.  मनुष्य के एक नेफ्रॉन का स्वच्छ, आरेखी चित्र खींचकर उसके विभिन्न भागों का स्पष्ट नामांकन करें।
(वर्णन की आवश्यकता नहीं है।)
उत्तर –
3.  हिमोडायलिसिस की प्रक्रिया का वर्णन करें। 
उत्तर – जब गुर्दे बिल्कुल नष्ट हो जाते हैं और संक्रमण या इन्जरी के कारण ठीक से कार्य नहीं करते हैं तो मरीज को कृत्रिम गुर्दे की सहायता से आराम दिया जाता है, जिसे हीमोडाइलिसिस कहते हैं।
विधि— मरीज के रक्त को पम्प की सहायता से उसके एक धमनी से सैलोफोन नलिका में निकाला जाता है जिसमें लवण का विलयन मिला होता है जो रुधिर प्लाज्मा के समान होता है। जैसे ही रुधिर सैलोफोन में बहता है नली को आयन और छाटे अणु, जैसे—अमोनिया, यूरिया आदि वर्ज्य पदार्थ को बाहर निकाल दिया जाता है और प्रोटीन के बड़े अणु विलयन में ही रह जाते हैं, जो रक्त में रह जाते हैं। कई बार फिल्टर करने के बाद रुधिर को वापस मरीज के शरीर में भेज दिया जाता है।
4.  विभिन्न प्रकार की ल्यूकोसाइटस का वर्णन करें।
उत्तर – ल्यूकोसाइटस, श्वेत रक्त कणिकायें होती हैं जिनके केंद्र में एक केंद्रक पाया जाता है। और ये अमीबीय आकार की होती हैं। ये लाल रक्त कणिकाओं से आकार में बड़ी होती हैं। इसका आकार लगभग 10 माइक्रोमीटर होता है। इनकी संख्या 5000 से 10000 तक होती है प्रति मि. मी.।
ल्यूकोसाइटस के प्रकार – ये दो प्रकार की होती हैं –
(i) कणिकीय श्वेत रुधिर कणिकायें – इनके कोशिका द्रव में कणिकायें पायी जाते हैं। ये तीन प्रकार की होती हैं ये दो प्रकार की होती हैं—
(अ) न्यूट्रोफिल्स – इनका जीव द्रव्य बहुत महीन कणिकीय होता है। ये उदासीन रंगों द्वारा रंगी होती है। केंद्रक में 3 से 5 कक्ष होते हैं। आयु बढ़ने के साथ कक्षों की संख्या भी बढ़ जाती हैं।
(ब) इयोसाइनोफिल्स – कणिकीय रचनायें बड़ी होती हैं। केन्द्रक द्विकक्षीय होता है और कणिकीय कण लाल रंग से रंगे होते हैं जो अम्लीय डाइ होती है।
(स) वैसोफिल्स – इसमें बड़ी कणिकाओं की संख्या बहुत ही कम और हिपेरिन पाये जाते हैं। केन्द्रक बड़ा होता है जो मिथाइलीन नीले रंग से रंगी जाती है।
(ii) अकणिकीय श्वेत रुधिर कणिकायें  – इनके कोशिका द्रव में कणिकीय संरचनाएँ नहीं पायी जाती हैं और ये दो प्रकार की होती हैं —
 1. लिम्फोसाइट्स, 2. मोनो साइट्स।
1. लिम्फोसाइट्स – इनमें बड़ा गोल केंद्रक होता है और एक ओर थोड़ी दबी हुई होती है।
2. मोनोसाइट्स – ये सभी श्वेत रक्त कणिकाओं में बड़ी होती हैं और गुर्दे के आकार का बड़ा केन्द्रक पाया जाता है।
5.  वृक्क (गुर्दे ) की निस्पंदन इकाई का नामांकित आरेख बनाइए।
उत्तर –
 6.  लसीका वाहिकाएँ तथा लसीका ग्रंथियों का आरेख बनाइए।
उत्तर –
> चित्र : लसीका वाहिकाएँ तथा लसीका ग्रंथियाँ
7.  मनुष्य के उत्सर्जन तंत्र का चित्र बनाकर इसे नामांकित कीजिए।
उत्तर –
8.  वृक्काणु (नेफ्रॉन) की संरचना तथा क्रियाविधि का वर्णन करें। 
उत्तर – वृक्काणु की संरचना – वृक्काणु गुर्दे की संरचनात्मक इकाई है। इसमें एक नलिका होता है जो एक ओर संग्राहक वाहिनी से जुड़ा रहता है तथा एक कप की आकृति की संरचना से दूसरी ओर।
इस कप की आकृति की संरचना को बोमेन संपुट कहते हैं। प्रत्येक बोमेन संपुट में कोशिकाओं के गुच्छे कप के अन्दर होते हैं जिसे कोशिका गुच्छ (ग्लोमेरूलस) कहते हैं। कोशिका गुच्छ में रुधिर एफरेंट धमनी द्वारा प्रवेश करता है तथा इफरेंट धमनी द्वारा बाहर निकलता है।
>  नेफ्रॉन के कार्य – 
(a) छानना – रुधिर, बोमेन के अन्दर कोशिका गुच्छ की कोशिकाओं द्वारा छाना जाता है। निस्यंद वृक्काणु के नलिकाकार हिस्सों से गुजरता है। इस निस्यंद में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, यूरिया अम्ल, लवण तथा जल की अत्यधिक मात्रा होती है।
(b) पुन:अवशोषण – जैसे-जैसे निस्यंद नलिका में बहता है, वैसे-वैसे लाभप्रद पदार्थ, जैसे—ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण तथा जल विशेष रूप से नृक्काणु को घेरती हुई रुधिर कोशिकाओं द्वारा अवशोषित कर दिया जाता है। पानी की कितनी मात्रा का पुन: अवशोषण हो यह इस बात पर निर्भरता है कि शरीर को कितने पानी की आवश्यकता है तथा उस उत्सर्जक पदार्थ की मात्रा क्या है जिसका उत्सर्जन होना है।
(c) मूत्र – पुनः अवशोषण के पश्चात् जो निस्यंद बचता है उसे मूत्र कहते हैं। मूत्र में घुले. हुए नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जक जैसे— यूरिया, यूरिक अम्ल, अतिरिक्त लवण तथा पानी होता है। मूत्र कलेक्टिंग डक्टों द्वारा वृक्काणु से एकत्रित होती है और फिर यूरेटन में ले जाई जाती है।
9.  फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना करें।
उत्तर – 

फुस्फुस में कूपिकाएं

  1. मानव शरीर में विद्यमान दोनों फेफड़ों में बहुत अधिक संख्या में कूपिकाएं होती हैं।
  2. प्रत्येक कृपिका प्याले के आकार जैसी होती है।
  3. कूपिका दोहरी दीवार से निर्मित होती है।
  4. कूपिका की दोनों दीवारों के बीच रुधिर कोशिकाओं का सघन जाल बिछा रहता है।
  5. कूपिकाएं वायु भरने पर फैल जाती हैं।
  6. यहां रुधिर की लाल रुधिर कणिकाओं में हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन प्राप्त कर लेती है तथा प्लाज्मा में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड कूपिका में चली जाती है।
  7. कूपिकाओं में गैसीय आदान-प्रदान के बाद फेफडे के संकुचन से कूपिकाओं में भरी वायु शरीर के बाहर निकल जाती है।

वृक्क में वृक्काणु

  1. मानव शरीर में वृक्क संख्या में दो होते हैं। प्रत्येक वृक्क में लगभग 10 लाख वृक्काणु होते हैं।
  2. प्रत्येक वृक्काणु महीन धागे की आकृति जैसा होता है।
  3. वृक्काणु के एक सिरे पर प्याले के आकार की मैल्पीघियन सम्पुट विद्यमान होती है।
  4. बोमैन सम्पुट में रुधिर कोशिकाओं का गुच्छ उपस्थित होता है जिसे कोशिका गुच्छ कहते हैं।
  5. वृक्काणु में ऐसी क्रिया नहीं होती।
  6. कोशिका गुच्छ में रुधिर में उपस्थित वज् पदार्थ छन जाते हैं।
  7. मूत्र निवाहिका से मूत्र बहकर मूत्राशय में इकट्ठा हो जाता है और वहां से मूत्रमार्ग द्वारा शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है।
10.  यकृत एवं अग्न्याशय के क्या-क्या कार्य हैं ? 
उत्तर – यकृत के कार्य (Functions of Liver) –
(i) यकृत हमारे शरीर का ऊर्जा बैंक कहलाता है। यह पाचन क्रिया के फलस्वरूप बने अतिरिक्त ग्लूकोज को ग्लाइकोजन के रूप में संचित करता है।
(ii) यकृत के अंदर यूरिया का निर्माण होता है।
(iii) यकृत कोशिकाएँ हानिकारक जीवाणुओं का भक्षण कर उनको नष्ट कर देती हैं।
(iv) यकृत कोशिकाएँ प्रोथोबिन एवं फाइब्रिनोजन रक्त प्रोटीन का संश्लेषण करती हैं।
> अग्न्याशय (पैंक्रियाज) का कार्य (Functions of Pancreas) –
(i) अग्न्याशय, अग्न्याशय रस (Pancreatic Juice) का निर्माण करता है। इस रस में तीन प्रकार के एंजाइम होते हैं—ट्रिप्सिन, एमाइलोसिन एवं स्टीएत्सिन जो प्रोटीन को पेप्टोन, स्टार्च को ग्लूकोज तथा वसा को वसा अम्ल और ग्लिसरॉल में परिवर्तित करते हैं।
(ii) यह इंसुलिन हार्मोन को स्रावित करता है। यह शरीर में ग्लूकोज की सांद्रता को स्थिर बनाए रखता है एवं उसके उपापचय की गति को नियंत्रित करता है।
(iii) यह ग्लूकेमीन हार्मोन स्रावित करता है जो कार्बोहाइड्रेट उपापचय में भाग लेता है।
11. मनुष्य के लसीका तंत्र पर टिप्पणी लिखिए तथा लसीका के प्रमुख कार्यों को बताइए ।
उत्तर – हमारे शरीर में रक्त लगातार हृदय की ओर जाता है और वापस अंगों के पास जाता है पर इसके अतिरिक्त एक और भी परिसंचरण तंत्र है जो बंद वाहिनियों का परिसंचरण कहलाता है— इसे लसीका तंत्र कहते हैं। लसीका या लिम्फ स्वच्छ तरल है जो रक्त कोशिकाओं से बाहर आ जाता है और सभी ऊतक गुहाओं को गीला रखता है। यह हीमोग्लोबिन की अनुपस्थिति के
कारण रक्त की तरह लाल नहीं होता। इसका रंग हल्का पीला होता है। यह ऊतकों की ओर हृदय की ओर ही बहता है। यह किसी पम्प के द्वारा गति नहीं करता। इस तंत्र में अनेक वाहिनियाँग्रंथियाँ और वाहिनिकाएँ होती हैं। इनके कुछ प्रमुख कार्य हैं
(i) हानिकारक जीवाणुओं को समाप्त कर रोगों से शरीर की रक्षा करती है।
(ii) शरीर पर लगे घावों को ठीक करने में सहायता करती है।
(iii) लिंफ नोड में छानने का कार्य करती है।
(iv) छोटी आँत में वसा का अवशोषण करती है।
(v) लिंफोसाइट्स का निर्माण करती है।
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