जेम्स द्वितीय तथा गौरवपूर्ण क्रांति सन् 1688 ई. की – Jemes II and Glorious Revolution of 1688 A.D.
जेम्स द्वितीय तथा गौरवपूर्ण क्रांति सन् 1688 ई. की – Jemes II and Glorious Revolution of 1688 A.D.
सन् 1668 ई. को इंग्लैंड की क्रांति की गौरवपूर्ण क्रांति इस वजह से कहा गया है कि विश्व इतिहास में यही एक ऐसी क्रांति है, जिसमें किसी प्रकार का खून-खराबा नहीं हुआ। गौरवपूर्ण क्रांति का उल्लेख ट्यूडर काल में ही मिलता है।
मध्यकालीन सम्राट सामन्तों के सहयोग से राज्य का संचालन होता रहा था, परन्तु Peasants, Revolt, Black Death, Hundred year war e War of the Roses सामन्तशाही को बलहीन कर दिया गया था। ट्यूडर शासकों ने उसे शक्तिहीन कर दिया था। अब ट्यूडर शासकों ने मध्य वर्ग से मिलकर राज्य का कार्य – भार सम्भाला। किन्तु जेम्स के सिंहासनरूढ़ होते ही झगड़े में उम्र रूप धारण कर दिया। स्टुअर्ट काल में पार्लियामेंट अपना अधिकार मांग रही थी और शासक अपने को निरंकुश समझते थे। इस संघर्ष का निर्णय इस गौरवपूर्ण क्रांति द्वारा ही किया जा सका।
जेम्स द्वितीय का कैथोलिक मत ही गौरवपूर्ण क्रांति का आधारभूत कारण बना। सम्राट कैथोलिक धर्म पर लगे नियन्त्रणों को समाप्त करना चाहते थे, परन्तु पार्लियामेंट की यह नीति कदापि मान्य नहीं थी। इस प्रकार उसने बिना पार्लियामेंट की स्वीकृति के मनमाना शासन प्रारम्भ किया। यह जनता और पार्लियामेंट पर नागवार गुजरा। उनहोंने क्रोधित होकर सम्राट को सिंहासन से उतार दिया। इस क्रांति की शुरुआत जिन प्रमुख कारणों से हुई वे निम्न थे—
1. टेस्ट ऐक्ट को रद्द करना— क्रांतिकारी इंग्लैंड में टेस्ट ऐक्ट की शुरूआत हो चुकी थी। इसके तहत वही लोग उच्च सरकारी नौकरियाँ प्राप्त कर सकते थे जो कि ऍग्निकन चर्च में सम्मिलित थे, किन्तु कैथोलिक को यह सुविधायें प्राप्त नहीं थीं। सम्राट कैथोलिक लोगों को अधिक महत्व प्रदान करता था अतः उसने टेस्ट ऐक्ट को समाप्त करने का भरसक प्रयत्न किया।
उसके द्वारा यह भी निर्देश दिया गया कि, सम्राट द्वारा जरूरत पड़ने पर किसी भी कानून को निरस्त किया जा सकता है तथा एक ही नियम को वह इच्छापूर्वक कहीं भी लागू कर सकता है। इन सभी बदलावों की प्रमुख वजह यह थी कि वह कैथोलिक को देश तथा चर्च में महत्वपूर्ण स्थानों पर देखने को इच्छुक था। पार्लियामेंट को सम्राट का यह कार्य असहनीय था। इतना ही नहीं जेम्स ने यह भी कहा कि राजा चाहे तो कानून को अधिकार का भी रूप दे सकता है। इस प्रकार उसने Dispensing तथा Suspending Power का प्रयोग करके प्यूरिटन तथा कैथोलिक के विरुद्ध जितने कानून थे हटा लिये । पार्लियामेंट एवं प्रजा इसके विरुद्ध थी एवं क्रांति के सम्मुख खड़ा कर दिया।
2. आयरलैंड तथा स्कॉटलैंट के प्रति उसकी नीति— जेम्स प्रथम ने आयरलैंड तथा स्कॉटलैंड में भी कैथोलिक लोगों को धार्मिक छूट दे दी थी। उसके द्वारा वहाँ एक कैथोलिक लेफ्टीनेन्ट की नियुक्ति कर दी गई थी, जिसका नामकरण टायर कोनल के रूप में किया गया था, जो कि कुख्यात अत्याचारी था। उसने अनेक अत्याचार प्रोटेस्टेन्ट लोगों पर किये। अतः वे उसके प्रबल विरोधी हो गये। उसने लागों को अपनी धार्मिक नीति पर चलाने के लिए Court of High Commission को एक नये नाम से पुनः स्थापित कर दिया। इसका नामकरण धर्म न्यायालय के रूप में किया गया एवं उसका मुख्य न्यायाधीश जैफ्ररा ने नियुक्त किया। इस न्यायालय बलात जेम्स की धार्मिक नीति पर लोगों को लाने का साध न था। प्रेसविटेरियन लोग भी उसके अन्याय से न बच सके। इस प्रकार स्कॉटलैंड तथा आयरलैंड के लोग भी जेम्स द्वितीय के खिलाफ हो गये और क्रांति में उसके सम्मुख आये।
3. हाई कमीशन कोर्ट की पुनः स्थापना— धार्मिक विचारों को बदलने एवं राजकीय अधिकारी को बनवाने के लिये जेम्स द्वितीय ने कोर्ट ऑफ हाई कमीशन की नये सिरे से स्थापना की। इस न्यायालय का नाम ऐक्लैसाऐस्टीकल कोर्ट रखा। इसे सन् 1641 ई. में ही लौंग पार्लियामेंट ने अनुचित घोषित कर दिया था। इसे पुनः जीवन प्रदान करना अवैधानिक था। उसने राजकीय न्यायालयों को विद्रोहियों के लिए कठिन दण्ड देने हेतु उकसाया। जैफ्रीज ने जो कि प्रधान न्यायाधीस था, लोगों को कई प्रकार से प्रताड़ित किया। उसने 315 व्यक्तियों को मृत्यु-दण्ड तथा 850 व्यक्तियों को आजीवन देश निकालने का आदेश दे दिया। इस प्रकार खूनी न्यायालय के इन न्यायाधीशों ने जनता के हृदय में राजा के प्रति घृणा के बीज बो दिये।
4. जेम्स का शक्तिशाली सेना रखने का प्रयत्न— लंदन में भीषण संघर्ष की शुरूआत जेम्स द्वितीय के एक नये गिरजाघर को स्थापित करने के पश्चात हुआ था। जेम्स के लिये वह उपर्युक्त अवसर था अतः उसने लाभ उठाकर एक कैथोलिक सेना का गठन किया, इतिहासकारों द्वारा इसकी संख्या 30,000 के लगभग बतायी जाती है। इस सेना का डेरा लन्दन नगर के बाहर पड़ा जाता था, जिसके कारण लन्दन निवासियों को बड़ा डर होने लगा। इस घटना के नवीन होने की वजह से इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न हुई थी। इस वजह से लन्दन के निवासी इसके विरुद्ध हो गये। उन लोनों ने कहा कि फौज रखने का तात्पर्य है फौजी शासन की स्थापना और फौजी शासन की स्थापना कभी कैथोलिक सिपाहियों द्वारा स्वीकार नहीं की गई अतः लोग रूष्ट हो गये। लोगों को भय सताने लगा था कि कहीं जेम्स इस सेना का अनुचित उपयोग न करें। लोगों में डर व्याप्त हो गया कि कहीं पुनः गृह-युद्ध न छिड़ जाये।
5. जेम्स द्वारा शत्रुओं के प्रति व्यवहार— जो सरदार सम्राट के विरुद्ध विद्रोह में हिस्सा ले रहे थे, उनमें ड्यूक ऑ गनमथ तथा ड्यूक ऑफ जंगल भी सम्मिलित थे। उन्हें तथा उनके साथियों को काफी प्रताड़ित भी किया गया था। 300 लोगों को मृत्यु दण्ड दिया गया और एक हजार लोगों को देश से निकाल दिया गया। प्रजा इन अत्याचारपूर्ण कार्यवाहियों से क्षुब्ध हो उठी और राजा के विरुद्ध हो गई।
6. जेम्स की प्रथम घोषणा डिक्लेरेशन— ऑफ इन्डलजेन्स-जेम्स द्वितीय द्वारा रोमन कैथोलिक धर्म से जुड़े लोगों को वे पद सौंप दिये। इतना ही नहीं उसने
रोम के पोप को इंग्लैंड बुलाकर राजकीय स्वागत भी किया। सन् 1687 ई. में अपनी एक घोषणा First Declaration of Indulgence जारी किया। इसके तहत सभी व्यक्ति को कोई भी धर्म चुनने की छूट दे दी गई थी। इस कार्य से प्रोटेस्टेन्ट तथा अन्य धर्म के लोग प्रसन्न नहीं थे।
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