झारखण्ड : एक नजर में

झारखण्ड : एक नजर में

15 नवम्बर, 2000 को बिहार पुनर्गठन विधेयक भारतीय संसद द्वारा पारित हुआ और राष्ट्रपति की स्वीकृति पाते ही झारखण्ड भारत का, 14 28वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया.
> झारखण्ड क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत का 15वाँ बड़ा राज्य है.
> झारखण्ड जनसंख्या के दृष्टिकोण से भारत का 13वाँ बड़ा राज्य है.
> झारखण्ड का निर्माण छोटा नागपुर पठार एवं राजमहल ट्रैप के सम्मिलन से हुआ है.
> झारखण्ड 21°58’10” उत्तर से 25°18′ उत्तरी अक्षांश तथा 83°22′ पूरब से 87°57′ पूर्व देशान्तर के मध्य भारत के उ. पू. में स्थित है.
> झारखण्ड के उत्तर में बिहार पूर्व में पश्चिम बंगाल, दक्षिण में ओडिशा तथा पश्चिम में छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश स्थित है.
> झारखण्ड भारत का एक खनिज प्रधान प्रदेश है, इसलिए इसे भारत का रूर – प्रदेश भी कहते हैं.
> खनिज उत्पादन के दृष्टिकोण से भारत में झारखण्ड का प्रथम स्थान है.
> अविभाजित बिहार का कुल क्षेत्रफल 173377 वर्ग किमी था.
> झारखण्ड का कुल क्षेत्रफल 79714 वर्ग किमी है.
> भारत के कुल लौह अयस्क उत्पादन का 17-2 प्रतिशत अकेले झारखण्ड राज्य से प्राप्त होता है.
> लौह अयस्क के उत्पादन के दृष्टिकोण से झारखण्ड का मध्य प्रदेश एवं ओडिशा के बाद तीसरा स्थान है.
> एशिया का प्रथम आधुनिक तकनीक पर आधारित प्रथम लौह इस्पात का कारखाना झारखण्ड के औद्योगिक नगर जमशेदपुर में 1907 में स्थापित हुआ.
 > बिहार 1 अप्रैल, 1912 को बंगाल से अलग हुआ.
> 1 अप्रैल, 1936 को बिहार से उड़ीसा (ओडिशा) पृथक् हुआ.
> वर्ष 1956 के राज्य पुनर्गठन विधेयक के द्वारा बिहार राज्य की सीमा पुनः परिवर्तित हुई.
>  झारखण्ड का उत्तर से दक्षिण में अधिकतम विस्तार 380 किलोमीटर है तथा पूर्व से पश्चिम विस्तार 463 किलोमीटर है.
> झारखण्ड एक भूमिबन्द (Land Locked) राज्य है अर्थात् इसका कोई भी हिस्सा समुद्र से स्पर्श नहीं करता है.
> झारखण्ड बंगाल की खाड़ी से मात्र 200 किलोमीटर दूर है.
> झारखण्ड की उत्तर पूर्वी सीमा राजमहल की पहाड़ियों से बनती है.
> झारखण्ड के उत्तर में हजारीबाग का पठार है तथा दक्षिण में राँची का पठार स्थित है.
> झारखण्ड की औसत ऊँचाई 300 मीटर से 600 मीटर के बीच है.
> झारखण्ड में कोयला मुख्यतः दामोदर भ्रंश घाटी से मिलता है.
> राँची के पठार की औसत ऊँचाई 700 मीटर है तथा यह ग्रेनाइट एवं नीस चट्टानों से निर्मित है.
> दामोदर घाटी एक भ्रंश घाटी है जिसमें गोण्डवाना काल के भारी निक्षेप हैं.
> छोटा नागपुर का पठार महानदी, सोन, स्वर्ण रेखा, दामोदर तथा उत्तरी एवं दक्षिणी कोयल नदियों से आवृत्त है.
> छोटा नागपुर का पठार भारत के पठार का उत्तर-पूर्वी भाग है.
> छोटा नागपुर का पठार रिहन्द नदी के पूर्व में स्थित है.
> झारखण्ड को भौगोलिक दृष्टि से तीन भागों में बाँटते हैं.
> झारखण्ड का दक्षिणी हिस्सा राँची का पठार है, इसके उत्तर में हजारीबाग का पठार है तथा झारखण्ड के उत्तर पूर्व में राजमहल की पहाड़ियाँ हैं.
> राँची के पठार का सबसे ऊँचा भाग उसके पश्चिमी भाग में मिलता है, जिसे पाट (PAT) कहते हैं.
> पाट (PAT) लैटेराइट से ढँके मेसाओं को कहते हैं.
> इसकी ऊँचाई लगभग 1100 मीटर है.
> झारखण्ड में नेतरहाट का पाट (PAT) समुद्र तल से 1119 मीटर ऊँचा है.
> झारखण्ड की राजधानी राँची समुद्रतल से 661 मीटर की ऊँचाई पर अवस्थित है.
> राँची के पठार का पश्चिमी पाट प्रदेश उत्थित समप्राय मैदान का उदाहरण है.
> पाट प्रदेश का निर्माण क्रिटैशियस भूगीन लावा के जमाव से हुआ है.
> झारखण्ड में राँची के पठार के मुख्य पाट (PAT) प्रदेश हैं—
– नेतरहाट पाट
– खमार पाट
– जमीरा पाट
– रुल्हामी पाट तथा
– बंगारू पाट
> हजारीबाग के पठार की औसत ऊँचाई 600 मीटर है.
> हजारीबाग का पठार अनेक विलग पहाड़ियों से निर्मित है.
> सर्वोच्च शिखर पारसनाथ गिरीडीह पठार पर अवस्थित है, जिसकी समुद्र तल से ऊँचाई 1365 मीटर हैं.
> पारसनाथ का पहाड़ झारखण्ड की सर्वोच्च चोटी है.
> झारखण्ड का एक अन्य भौगोलिक प्रदेश राजमहल का पठार है, जो प्रदेश के उत्तर पूरब में अवस्थित है.
> राजमहल पहाड़ी की समुद्र तल से औसत ऊँचाई लगभग 400 मीटर है.
> राजमहल पहाड़ी के सर्वोच्च शिखर की ऊँचाई 567 मीटर है.
> इस पहाड़ी का निर्माण वेसाल्ट चट्टाने से हुआ है.
> सामान्य तौर पर छोटा नागपुर का पठार, झारखण्ड का प्रतीक शब्द है.
> छोटा नागपुर भारतीय प्रायद्वीप का उत्तर पूर्वी हिस्सा है, जो क्रिस्टली एवं कायांतरित चट्टानों से बना है.
> यह गोण्डवाना लैण्ड का एक भाग रहा है जो मध्य जीव युग ( लगभग 20-22 करोड़ वर्ष पूर्व ) गोण्डवाना लैण्ड से पृथक् हो गया.
> इयोसीन युग में छोटा नागपुर पठार की उत्पत्ति हुई.
> क्रिस्टैशियस युग ( 13.5 करोड़ वर्ष पूर्व) में बैसाल्टिक लावा के निःसरण से राजमहल ट्रैप की उत्पत्ति हुई.
> दालमा श्रेणी की उत्पत्ति एक अरब पूर्व धारवार काल में हुई थी. में
> उत्तर में राँची का पठार तथा दक्षिण में हजारीबाग पठार के मध्य में दामोदर भ्रंश घाटी अवस्थित है.
> दामोदर भ्रंश घाटी की उत्पत्ति राँची पठार एवं हजारीबाग पठार के स्थित रहने एवं मध्य भाग धँस जाने के कारण 27 करोड़ वर्ष पूर्व हुई.
> झारखण्ड को भौगोलिक संरचना की दृष्टि से पाँच इकाइयों में विभक्त किया जाता है. आर्कियन काल, विंध्यनकाल, राजमहल ट्रैप गोण्डवाना काल तथा ‘तृतीय कल्प’.
> आर्कियनकालीन चट्टानों का विस्तार सर्वाधिक है. एक अनुमान के तहत् झारखण्ड का 90 प्रतिशत भाग आर्कियन शैल समूहों से निर्मित है. आर्कियन शैल को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है
– धारवारकालीन एवं अवसादी-आग्नेय, शैल वर्ग समूह.
> धारवारकालीन शैल समूह के अन्तर्गत कायांन्तरित शिष्ट क्वार्ट्जाइट नीस तथा ग्रेनाइट शैल जो मुख्यतः सिंहभूम तथा कोडरमा में पायी जाती है.
> अवसादी – आग्नेय वर्ग शैल समूह के अन्तर्गत शिष्ट फिलाइट-लौह अयस्क क्रम, स्लेट आदि शैली की प्रधानता है. ये शैल राँची एवं सिंहभूम के इलाके में बहुलता से पाये जाते हैं.
> छोटा नागपुर का पठार मुख्य तौर पर ग्रेनाइट एवं नीश चट्टानों से बना है.
> दक्षिणी सिंहभूम के कोलहनक्रम के शैलों में चूना पत्थर तथा कांग्लोमेरेट शैलों की प्रधानता है.
> झारखण्ड खनिज की दृष्टि से काफी सम्पन्न राज्य है. यहाँ खनिज मुख्यतः आर्कियन शैल समूह में पाये जाते हैं.
> झारखण्ड के पलामू जिले के उत्तरी भाग की शैल विंध्यन अवसादी हैं.
> आक्रियन शैल प्राप्त होने वाले मुख्य खनिज लौह अयस्क, क्रोमियम, मैंगनीज, ताँबा एस्बेस्टस, टिटैनियम आदि.
> राजमहल ट्रैप – का निर्माण जुरैसिक कल्प में लावा के प्रवाह से निर्मित हुआ है.
> झारखण्ड की धरती अनेक नदियों से आवृत्त है, किन्तु ये सदानीरा नहीं है.
> झारखण्ड की नदियों के दो उद्गम स्रोत हैं
अमरकंटक के पहाड़ी तथा झारखण्ड स्थित छोटा नागपुर का पठार.
> झारखण्ड की एक भी नदी अनुवर्ती नहीं है अर्थात् भौगोलिक संरचना के विपरीत बहने वाली एक भी नदी नहीं है.
> झारखण्ड की नदियाँ झारखण्ड के औद्योगिक विकास में सहायक रही हैं, क्योंकि सभी प्रमुख उद्योग-धन्धे नदी पर आधारित हैं, जैसे- जमशेदपुर, स्वर्णरेखा एवं खरकई नदी के संगम पर अवस्थित है.
> झारखण्ड की अधिकांश नदियाँ उत्तर की ओर प्रवाहित होकर गंगा में मिल जाती हैं, जबकि कुछ नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं.
> सोन नदी 100-120 किलोमीटर (झारखण्ड) में बहती है.
> सोन नदी झारखण्ड एवं बिहार के उत्तर-पश्चिम हिस्से में सीमा निर्धारित करती है.
> दामोदर नदी पलामू जिले से निकलकर पश्चिम बंगाल होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है.
> दामोदर की सहायक नदियाँ हैं- बराकर, बोकारो, कोनार और भेड़ा.
> दामोदर झारखण्ड की सबसे लम्बी नदी है. यह झारखण्ड में लगभग 290 किलोमीटर है.
> झारखण्ड की एक अन्य प्रमुख नदी स्वर्ण रेखा नदी है जो राँची के निकट पिस्का नगड़ी से निकलता है. यह झारखण्ड पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा से होकर गुजरती है और अन्त में बंगाल की खाड़ी में गिरती है.
> स्वर्ण रेखा नदी से हँडरू आदि जलप्रपात का निर्माण होता है.
> स्वर्ण रेखा नदी की सहायक नदियाँ जुमार, राए, कांची, खरकई तथा संजय हैं. बराकर दामोदर की सहायक नदी जो बरकट्टा के निकट से निकलती है.
> मैथान (झारखण्ड) के समीप दामोदर नदी में मिलती है.
> झारखण्ड से निकलने वाली अन्य नदी पुनपुन है, जो ‘पलामू की चोरहा पहाड़ी से निकलती है तथा फतुहा (बिहार) के समीप गंगा नदी में मिलती है.
> किऊल नदी-झारखण्ड से निकलने वाली एक अन्य नदी है. इसका उद्गम केन्द्र हजारीबाग जिले के निकट खगड़ीहा है.
> लोहरदगा के निकट से उत्तरी कोयल निकलकर पलामू के निकट सोन नदी में मिल जाता है.
> शंख और दक्षिणी कोयल नदी उड़ीसा में ब्राह्मणी नाम से प्रवाहित होती है.
> झारखण्ड की 75 प्रतिशत जनता कृषि पर आधारित है.
> झारखण्ड के कुल कृषि भूमि का मात्र 10 प्रतिशत भू-भाग ही सिंचित है.
> झारखण्ड में सिंचाई का सर्वाधिक मुख्य साधन नहर एवं आहर है.
> झारखण्ड के कुल सिंचित भूमि का 21-45 प्रतिशत भाग नहर द्वारा सिंचित है.
> संथाल परगना में मयूराक्षी नदी पर मैसनजोर नामक स्थान पर कनाडा बाँध बनाया गया है. यह बाँध 1095 मीटर लम्बा और 46 मीटर ऊँचा है.
> झारखण्ड में तालाब द्वारा सिंचित क्षेत्र कुल सिंचित क्षेत्र का मात्र 18-9 प्रतिशत है.
> झारखण्ड में कुआँ द्वारा कुल सिंचित भूमि का 12-75 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है अर्थात् कुआँ से कुल सिंचित क्षेत्र 27450 हेक्टेयर है.
> सिंचाई के एक अन्य साधन नलकूप हैं जिसे झारखण्ड का मात्र 6-3 प्रतिशत भूमि सिंचित होता है.
> नलकूप द्वारा मुख्य सिंचित जिले पलामू, राँची, संथाल परगना तथा गिरिडीह हैं. झारखण्ड में सिंचाई के मुख्य साधन के रूप में आहर एवं पाइन का मुख्य स्थान है. इनके द्वारा झारखण्ड के कुल सिंचित क्षेत्र का 40-58 प्रतिशत भू-भाग सिंचित होता है. इन दोनों साधनों द्वारा सर्वाधिक पलामू तथा संथाल परगना में सिंचाई की जाती है.
> झारखण्ड में सिंचाई हेतु दो बहुउद्देशीय परियोजनाएँ स्थापित की गईं दामोदर घाटी तथा स्वर्ण रेखा परियोजना.
> दामोदर घाटी परियोजना संयुक्त राज्य अमरीका के टैनेसी घाटी परियोजना के आधार पर 1948 ई. में शुरू की गई यह परियोजना दामोदर नदी पर आधारित है और इसका विस्तार झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल में है.
> दामोदर घाटी परियोजना के तहत् दामोदर नदी पर आठ बाँध होंगे. ये बाँध क्रमशः मैथन, बाल पहाड़ी, तिलैया, पंचेत, ऐचर, परमो, बोकारो तथा कोनार में बनाये जाएंगे.
> इस परियोजना के तहत् दामोदर नदी पर दुर्गापुर में एक अवरोधक बनाया गया.
> तिलैया बाँध बराकर नदी पर स्थित है जो 350 मीटर ऊँचा है. इस बाँध पर एक भूमिगत विद्युतशक्तिगृह बनाया गया है.
> हजारीबाग जिले में कोनार नामक स्थान पर कोनार नदी पर 885 मीटर लम्बा और 48 मीटर ऊँचा एक बाँध बनाया गया है.
> मैथान नामक स्थल पर दामोदर नदी के सहायक नदी बराकर पर 435-7 मीटर लम्बा एवं 56 मीटर ऊँचा है.
> पंचेत स्थित बाँध 2550 मीटर लम्बा तथा 45 मीटर ऊँचा है, जो 1959 ई. में बनाया गया था.
> दुर्गापुर स्थित अवरोधक 693 मीटर लम्बा तथा 12 मीटर ऊँचा है. इस अवरोधक बाँध से दोनों ओर नहर निकाली गयी है. दाहिने ओर की नहर 64 किलोमीटर और बायीं ओर की नहर 137 किलोमीटर लम्बी हैं.
> दामोदर घाटी परियोजना के प्रमुख उद्देश्य बिजली निर्माण एवं सिंचाई हैं.
> स्वर्ण रेखा बहुउद्देशीय परियोजना स्वर्ण रेखा नदी पर आधारित है.
> यह परियोजना झारखण्ड, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल की संयुक्त परियोजना है.
> इस परियोजना के तहत् हुँडरू जलप्रपात के जल से 120 मेगावाट क्षमता पनबिजली पैदा की जाती है.
> झारखण्ड में कुल 7 रिभर बेसिन हैं जो इस प्रकार हैं- उत्तरी कोयल बेसिन, दक्षिण कोयल बेसिन, दामोदर बेसिन, बराकर बेसिन, स्वर्ण रेखा बेसिन, खरकई बेसिन, अजय बेसिन तथा मयुराक्षी बेसिन दामोदर नदी के बेसिन के जल का लगभग पूर्णतः प्रयोग हो गया है। यह अति प्रदूषित नदी है.
> स्वर्ण रेखा नदी के जल का भी अधिकतम प्रयोग हुआ है. इस नदी के जल के प्रयोग हेतु चान्डीलडैम का निर्माण किया गया है.
> झारखण्ड के निम्नलिखित शहरों से कर्क रेखा होकर गुजरती नेतरहाट, लोहरदगा एवं राँची झारखण्ड के पूर्वी भाग के जलवायु पर बंगाल की खाड़ी का प्रभाव पड़ता. अतः इस प्रदेश का जलवायु उष्णार्द्र है, जबकि झारखण्ड के पश्चिमी भाग का जलवायु उपोष्ण है.
> झारखण्ड की जलवायु को स्थानीय उच्चावच भी प्रभावित करती है.
> झारखण्ड में मानसून का आगमन 10 जून के करीब होता है तथा इसकी वापसी अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में होती है.
> सामान्य तौर पर झारखण्ड में तीन ऋतुएँ होती हैं
– मार्च के प्रथम सप्ताह से 15 जून तक – ग्रीष्म ऋतु ऋतु
– 16 जून से अन्तिम सितम्बर तक – वर्षा ऋतु
– अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से फरवरी के अन्त तक- शीत ऋतु
> भारत के अन्य प्रदेशों की तरह झारखण्ड में भी दो प्रकार का मानसूनी पवन बहता है.
– उत्तर-पूर्वी मानसूनी पवन
– दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी पवन
> उत्तर-पूर्वी मानसून का काल 15 दिसम्बर से 15 मार्च तक रहता है.
> दक्षिणी-पश्चिमी मानसून का काल 15 जून से 15 सितम्बर तक रहता है.
> शीत ऋतु बादलविहीन एवं स्वच्छ आकाश वाला होता है. मौसम शुष्क रहता है, किन्तु लौटती मानसून से कभी-कभी वर्षा होती है.
> झारखण्ड में शीत ऋतु में (दिसम्बर के दूसरे पखवाड़े में) होने वाली वर्षा वैश्विक मौसम सम्बन्धी परिघटना का प्रतिफल होता है. इस समय एशिया में उच्च वायुदाब क्षेत्र होने के कारण पछुआ पवन दक्षिण की ओर मुड़ जाती हैं और जो भारत की ओर बढ़ती हैं (निम्न दाब का क्षेत्र ). इस चक्रवात से ही झारखण्ड में वर्षा होती है.
> कर्क रेखा के प्रभाव में आने के कारण झारखण्ड ग्रीष्म ऋतु में तापमान उच्च बना रहता है.
> राजस्थान से उठा ‘लू’ का प्रभाव छोटा नागपुर में भी अनुभव किया जाता है.
> शुष्कं हवा एवं आर्द्र हवा के मिलने से नारवेस्टर की उत्पत्ति होती है जिससे तीव्र आँधियाँ चलती हैं एवं संध्याकालीन वर्षा होती है.
> नारवेस्टर को काल वैशाखी भी कहते हैं जो प्रायः अप्रैल माह में बहता है.
> झारखण्ड में मानसून का प्रवेश ‘बंगाल की खाड़ी’ की ओर से लगभग 10 जून के आसपास होता है.
> झारखण्ड औसत वार्षिक वर्षा 120-160 सेमी के मध्य होती है.
> झारखण्ड में वर्षा प्रायः दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से होती है..
> झारखण्ड में वर्षा के वितरण में काफी असमानता है.
> छोटा नागपुर के पाट प्रदेश और राँची-हजारीबाग के उच्च प्रदेशों में 1600 से 1800 मिलीमीटर तक वर्षा होती है.
> झारखण्ड में ग्रीष्मकाल में पूर्व में पश्चिमी हिस्से से ज्यादा वर्षा होती है.
> झारखण्ड में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से ( जून से सितम्बर ) 80 प्रतिशत से अधिक वर्षा होती है.
> झारखण्ड में सर्वाधिक गर्मी पूर्वी सिंहभूम जिले में पड़ती है.
> झारखण्ड को 5 जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया जाता है
– पूर्वी सीमांत प्रदेश
– झारखण्ड का मुख्य पठारी प्रदेश
– दक्षिण-पूर्वी सागरीय प्रभाव के प्रदेश (दक्षिणी-पूर्वी सिंहभूम तथा दक्षिणी राँची का क्षेत्र)
– पलामू का निम्न पठारी प्रदेश
– उत्तरी पूर्वी छोटा नागपुर प्रदेश
> झारखण्ड की कृषि यहाँ के मृदा पर आधारित है और मृदा की प्रकृति झारखण्ड की जलवायु वनस्पति उच्चावच आदि कारकों द्वारा निर्धारित होती है.
> झारखण्ड की मृदा को उच्चावच के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जाता है – टॉड तथा दोन.
> टॉड अधिक ऊँचाई की मृदा है, जबकि दोन निम्न उच्चावच की मृदा है.
> दोन मृदा उर्वर मृदा होती है. इसमें नाइट्रोजन तथा कार्बनिक तत्वों की प्रधानता होती है.
> दोन किस्म की मृदा चावल की खेती के लिए उत्तम होती है.
> झारखण्ड में सामान्य तौर पर 7 (सात) किस्म की मृदा पाई जाती है
— कंकरीली तथा पथरीली बलुआरी मिट्टी
– लाल मिट्टी
– नीली मिट्टी
– अभ्रक मूल की लाल मिट्टी
– कत्थई मिट्टी
– लैटेराइट मिट्टी
– काली मिट्टी
> कंकरीली तथा पथरीली मिट्टी छिछली मिट्टी होती है जो तीव्र ढालों पर होती है.
> लाल मृदा झारखण्ड की मुख्य मृदा है. इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और ह्यूमस की कमी होती है.
> पीली मिट्टी पलामू जिले में है.
> अभ्रक मूल की लाल मिट्टी अभ्रक प्रधान क्षेत्रों में, दक्षिणी हजारीबाग एवं कोडरमा जिले में पायी जाती है.
> यह मिट्टी क्षारीय होती है. अतः सिंचाई के द्वारा इसकी उर्वरता बढ़ाई जा सकती है.
> कत्थई मिट्टी में नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की कमी पाई जाती है.
> ऐसी मिट्टी सिंहभूम के दक्षिणी क्षेत्रों में अर्थात् लौह अयस्क प्रधान क्षेत्रों में पाई जाती है.
> झारखण्ड के दक्षिणी भाग में लाल मिट्टी तथा कत्थई मिट्टी के मध्य का क्षेत्र इन दोनों मिट्टियों के मिश्रण से बना है. यह आर्द्र काले रंग की होती है.
> लैटेराइट मिट्टी का रंग गहरा लाल होता है, क्योंकि इस प्रकार मृदा एल्यूमिनियम तथा लौह यौगिक उपस्थित रहते हैं. इस प्रकार की मिट्टी दक्षिणी-पूर्वी सिंहभूम तथा झारखण्ड के पाट क्षेत्र में मिलती है.
> काली मिट्टी – राजमहल के ट्रेप क्षेत्र में मिलती है. इसमें लोहा, चूना, मैग्नीशियम एवं एल्यूमिनियम की बहुलता होती है.
> झारखण्ड को वनों का प्रदेश माना जाता है यहाँ 23,605 वर्ग किमी क्षेत्र में वनों का विस्तार है जो राज्य के कुल क्षेत्र का लगभग 29.63 प्रतिशत है.
> झारखण्ड के चतरा जिले में वनों का विस्तार जिले का कुल क्षेत्रफल का 52-9 प्रतिशत है.
> वन विस्तार के दृष्टिकोण से झारखण्ड के चतरा जिला में सर्वाधिक वन हैं, जबकि साहेबगंज में वनों का विस्तार सबसे कम है. जिले के कुल क्षेत्र का 2-4 प्रतिशत है.
> झारखण्ड के वनों का विभाजन 1200 मिमी औसत सालाना समवृष्टि रेखा से कम या अधिक के आधार पर दो वर्गों में किया गया है.
– आर्द्र पतझड़ वन एवं
– शुष्क पतझड़ वन
> आर्द्र पतझड़ वन का विकास 1200 मि. मीटर औसत वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र में हुआ है.
> ऐसे वन पतझड़ प्रकृति के होते हैं.
> आर्द्र पतझड़ वन का सबसे प्रमुख वृक्ष सखुआ है.
> सिंहभूम के क्षेत्र में सारडा जैसे वनों में साल वृक्षों की बहुलता पाई जाती है.
> इस प्रकार के वनों में साल वृक्ष के अलावा गम्हार, अंजन, करेंज, केन्दू, कुसुम, गूलर, पीपल आदि वृक्ष पाये जाते हैं.
> आर्द पतझड़ी वन पूर्वी संथाल परगना, सिंहभूम, नेतरहाट समवर्ती भाग, राँची का पूर्वी भाग तथा लोहरदगा एवं गुमला के कुछ भाग में ये वन पाये जाते हैं.
> झारखण्ड के जिन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा 1200 मिमी से कम होती है वहाँ शुष्क पतझड़ वन पाये जाते हैं.
> इस प्रकार के वनों में भी साल वृक्ष की प्रधानता होती है.
> शुष्क पतझड़ वन का पतझड़ काल लम्बा होता है.
> शुष्क पतझड़ वन का प्रमुख विस्तार क्षेत्र पलामू तथा गढ़वा जिला है.
> झारखण्ड में वनों की जिलेवार स्थिति के अनुसार सर्वाधिक वन चतरा (52-9 प्रतिशत) जिले में द्वितीय स्थान पर गिरिडीह ( 47 प्रतिशत) तथा राँची एवं साहेबगंज जिले में वनों का विस्तार सबसे कम है.
> झारखण्ड के वनों की प्रकृति झाड़ियों के समरूप है.
> झारखण्ड में उत्तम प्रकार के वनों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने वृक्षारोपण एवं वन संरक्षण सम्बन्धी कार्यक्रम चलाया है. वन प्रोत्साहन एवं संरक्षण हेतु वनों को तीन वर्गों में बाँटा गया है
– सुरक्षित वन
– संरक्षित वन
– अवर्गीकृत वन
> झारखण्ड की तीन-चौथाई से अधिक आबादी कृषि पर आधारित है.
> झारखण्ड की कृषि स्थायी निर्वाहक हैं.
> यहाँ की कुल कृषि क्षेत्र का 29-8 प्रतिशत शुद्ध कृषि क्षेत्र है.
> झारखण्ड के पलामू एवं हजारीबाग जिले में शुद्ध कृषि क्षेत्र का विस्तार क्रमशः 17 एवं 15 प्रतिशत है.
> झारखण्ड में कुल क्षेत्र की 13-1 प्रतिशत भूमि परती है, अगर सीमान्त भूमि को प्रति भूमि के अन्तर्गत रखा जाये, तो यह प्रतिशतता बढ़कर 32-2 प्रतिशत हो जायेगी.
> झारखण्ड की भूमि उपयोग प्रतिरूप के अन्तर्गत गैर कृषिगत भूमि में 7-2 प्रतिशत भूमि है.
> गैर-कृषिगत भूमि के अन्तर्गत खनन एवं परिवहन जैसे कार्यों में काफी भूमि लगी हुई है.
> झारखण्ड के कुल कृषि योग्य भूमि के 61 प्रतिशत भू-भाग पर धान खेती की जाती है.
> झारखण्ड में धान की खेती की तीन फसल उगाई जाती हैं
– अघहनी
– गरमा एवं
– भदई.
> अगहनी धान सर्वाधिक क्षेत्र में उगाया जाता है.
> भदई धान की खेती मुख्यतः राँची, सिंहभूम एवं पलामू जिले में होती है.
> झारखण्ड की दूसरी मुख्य फसल मकई है. यह राज्य के कुल बोए गए क्षेत्र के 5-97 प्रतिशत भू-भाग पर मक्का की खेती की जाती है.
> मक्का के मुख्य उत्पादक जिले- हजारीबाग, राँची, पलामू, एवं संथाल परगना हैं.
> झारखण्ड में गेहूँ का उत्पादन ज्यादा नहीं होने का कारण सिंचाई की उत्तम व्यवस्था का नहीं होना है.
> कुल बोये गए भूमि के लगभग 3 प्रतिशत भूमि पर गेहूँ की खेती की जाती है.
> झारखण्ड में उत्पादित होने वाले अन्य मुख्य फसलों में रागी, चना, ज्वार, बाजरा एवं दलहन तथा तिलहन की फसलें हैं.
> झारखण्ड की अधिकांश जनजातीय, आबादी कृषि पर आधारित है.
> झारखण्ड में कृषि की स्थिति दयनीय होने के कारण जन- जा आबादी गरीब है. इनकी गरीबी निवारण हेतु कृषि विशेषज्ञों ने कुछेक सलाह दी थी जैसे –
– बंजर भूमि को उपजाऊ बनाना.
– सूखे कृषि को प्रोत्साहित करना
–  परती भूमि पर दलहन एवं तिलहन फसलों की खेती को प्रोत्साहन देना.
> गरीब किसान को कृषि हेतु आर्थिक सहायता देना.
> उपर्युक्त सलाहों पर तत्कालीन सरकार ने विशेष ध्यान नहीं दिया.
> कृषि उत्पादकता बढ़ाने हेतु तथा आदिवासी एवं दलित कृषकों के लिए विश्व बैंक ने पठारी विकास परियोजना शुरू की.
> झारखण्ड को रत्नगर्भाभूमि भी कहा जाता है.
> झारखण्ड के दामोदर घाटी क्षेत्रों को ‘खनिज का गोदाम घर’ भी कहा जाता है..
> झारखण्ड कोयला एवं अभ्रक उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है.
> झारखण्ड में देश के कुल खनिज उत्पादन का 36 प्रतिशत उत्पादन होता है.
> झारखण्ड के दक्षिणी भाग में लौह अयस्क की प्रधानता है. मध्य झारखण्ड क्षेत्र में कोयला बहुलता से प्राप्त होता है. तथा उत्तरी क्षेत्र अभ्रक प्रधान क्षेत्र है.
> उत्तरी झारखण्ड में धारवार क्रम की चट्टानें मिलती हैं.
> मध्य झारखण्ड क्षेत्र की चट्टानें गोण्डवाना क्रम की हैं तथा दक्षिणी झारखण्ड में भी धारवार क्रम की चट्टानें पायी जाती हैं
> झारखण्ड में अधिकतर हैमेटाइट अयस्क से लोहा प्राप्त किया जाता है.
> झारखण्ड में लौह अयस्क मुख्यतः बरमजादा समूह से प्राप्त होता है.
> बरमजादा समूह मुख्यतौर पर झारखण्ड के सिंहभूम जिले में स्थित है.
> मैग्नेटाइट किस्म का अयस्क सिंहभूम जिले में पाये जाते हैं.
> लौह अयस्क के मामले में लगभग एकाधिकार है.
> हैमेटाइट अयस्क सिंहभूम स्थित कोल्हन श्रेणी में पाया जाता है.
> लौह अयस्क के उत्पादन की दृष्टिकोण से मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा के बाद झारखण्ड का तीसरा स्थान है.
> मैंगनीज लौह अयस्क के साथ प्राप्त होता है.
> इसका मुख्य अयस्क साइलोमैलीन और ग्रेनाइट है.
> मैंगनीज का अयस्क पूर्व कैम्ब्रियन युग की क्वार्ट्ज एवं गारनेट चट्टानों में मिलती है.
> क्रोमियम-क्रोमाइट खनिज का मुख्य अयस्क हैं.
> क्रोमाइट मुख्यतौर पर पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित रोरोबुरू, किताबुररू किन्सीबुरू और चिंतागबुरू नामक पहाड़ियों से प्राप्त किया जाता है:
> टंग्स्टन का मुख्य उत्पादक राज्य राजस्थान एवं पश्चिम बंगाल है.
> टंग्स्टन का मुख्य अयस्क बुलफ्राम है.
> झारखण्ड में, टंग्स्टन सिंहभूम एवं हजारीबाग जिले में मिलती है.
> ताँबा कडप्पा क्रम के शैलों में मिलते हैं.
> ताँबे का मुख्य अयस्क क्यूप्राइट एवं चेल्की पाइकाइट है.
> झारखण्ड में देश के कुल उत्पादन का करीब 26 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न होता है.
> झारखण्ड में ताँबे का मुख्य क्षेत्र सरायकेला, खरसाँवा, राखा, मोसावनी तथा बहरागोड़ा है.
> झारखण्ड में ताँबा अयस्क शुद्ध करने हेतु भौम भण्डार में एक शोधनशाला की स्थापना 1930 ई. में की गई.
> झारखण्ड में ताँबा निष्कासन का कार्य सन् 1924 से इण्डियन कॉपर कॉम्पलैक्स कर रही है.
> सीसा मुख्यतौर पर पलामू, हजारीबाग एवं दुमका से प्राप्त किया है.
> टिन आग्नेय चट्टानों से प्राप्त होता है.
> टिन कैसीटराइट नामक खनिज संस्तर से प्राप्त होता है.
> झारखण्ड में टिन राँची तथा हजारीबाग जिले में मिलता है.
> बॉक्साइट अल्यूमिनियम धातु का अयस्क है जो झारखण्ड में राँची, पलामू तथा लोहरदगा जिले से प्राप्त होता है.
> झारखण्ड बॉक्साइट के उत्पादन की दृष्टिकोण से पूरे देश में प्रथम स्थान रखता है, जबकि भण्डार के टकोण से इसका स्थान दूसरा है.
> अभ्रक पैग्नेटाइट नामक आग्नेय चट्टानों में मिलते हैं.
> भारत अभ्रक उत्पादन में पूरे विश्व में प्रथम स्थान रखता है.
> भारत में विश्व का 35 प्रतिशत अभ्रक उत्पादन होता है.
> भारत में झारखण्ड अभ्रक उत्पादन में अग्रणी राज्य है.
> यहाँ पूरे देश का 40 प्रतिशत अभ्रक उत्पादन होता है.
> झारखण्ड में अभ्रक उत्पादन मुख्यतः कोडरमा, हजारीबाग एवं गिरिडीह जिले में होता है.
> चूना पत्थर विंध्यन युग की चट्टानों से प्राप्त होता है.
> झारखण्ड में उत्तम कोटि का चूना पत्थर संथाल परगना में मिलता है.
> डोलोमाइट चूना पत्थर से प्राप्त होता है.
> झारखण्ड में डोलोमाइट का मुख्य उत्पादक जिला पलामू है.
> फेल्सपार का मुख्य उत्पादक जिला गिरिडीह जो पेगमाटाइट में क्वार्ट्ज के साथ पाया जाता है.
> एस्बेस्टस-आग्नेय शैल से प्राप्त होता है.
> यह मुख्य तौर पर क्राइसोलाइट एवं एम्फीबोल प्रकार में पाया जाता है.
> झारखण्ड में एस्बेस्टस मुख्य तौर पर सिंहभूम, राँची एवं दुमका के क्षेत्र में मिलते हैं.
> कायोनाइट अल्यूमिनियम एवं सिलीका का मिश्रण होता है.
> झारखण्ड-कायोनाइट के भण्डारण में पूरे विश्व में प्रथम स्थान रखता है.
> झारखण्ड में कायोनाइट का उत्पादन मुख्यतः सिंहभूम जिले में होता है
> स्टेटाइट आर्कियन और धारवार क्रम चट्टानों में मिलता है.
> झारखण्ड में स्टेटाइट मुख्यतः सिंहभूम तथा हजारीबाग, जिले से प्राप्त होता है.
> ग्रेफाइट पलामू जिले में प्राप्त होता है. इसे काला सीसा या प्लम्बगो भी कहते हैं.
> एपेटाइट की प्राप्ति सिंहभूम जिले में होती है.
> इसका प्रयोग सुपर फॉस्फेट युक्त पिग आयरन बनाने में होता है.
> एपेटाइट के उत्पादन झारखण्ड का भारत में प्रथम स्थान है.
> चीनी मिट्टी- पलामू राँची एवं सिंहभूम जिले में मिलती है.
> अग्निसह मृतिका अवसादी शैलों में पाया जाता है. यह दामोदर घाटी क्षेत्र एवं दुमका जिले में पाया जाता है.
> कोयला – अवसादी एवं गोण्डवाना शैलक्रम से प्राप्त होता है.
> झारखण्ड – कोयले के उत्पादन एवं भण्डारण में भारत का अग्रणी राज्य है.
> झारखण्ड में कोयले का भंडार 71864 मिलियन टन है.
> झारखण्ड में देश के कुल कोयला उत्पादन का 34 प्रतिशत कोयला उत्पादित होता है.
> झारखण्ड के मुख्य कोयला उत्पादक क्षेत्र दामोदर घाटी, अजय घाटी, राजमहल कोयला क्षेत्र एवं उत्तरी कोयला क्षेत्र हैं.
> झारखण्ड का मुख्य कोयला उत्पादित क्षेत्र दामोदर घाटी कोयला क्षेत्र है.
> दामोदर घाटी क्षेत्र को भारत का रूर प्रदेश माना जाता है.
> झारखण्ड कोकयुक्त कोयला का तीन-चौथाई से अधिक का उत्पादन करता है.
> यूरेनियम का मुख्य अयस्क पिच ब्लैण्ड है जो झारखण्ड के सिंहभूम जिले से प्राप्त होता है.
> यूरेनियम का एक करखाना जादूगोड़ा में स्थापित किया गया है.
> झारखण्ड के हजारीबाग एवं राँची जिले से थोरियम एवं जिर्कोनियम जैसे रेडियो सक्रिय खनिज प्राप्त होते हैं.
> बेरोलियम – कोडरमा एवं गिरिडीह के क्षेत्र में पाया जाता है.
> बेनोडियम का मुख्य उत्पादक जिला सिंहभूम है.
> मॉलिब्डेनम – का मुख्य उत्पादक जिला हजारीबाग है.
> धनबाद के निकट टुण्डू में सीसा शोधन का कारखाना स्थापित किया गया है.
> झारखण्ड में खनिजों की बहुलता होने के कारण उद्योग-धन्धों की स्थापना में विशेष सहूलियत प्राप्त हुआ.
> 1907 ई. में पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित ‘साकची’ नामक स्थान पर तत्कालीन उद्योगपति जमशेदजी नसवरजी टाटा द्वारा एक आयरन एवं स्टील उद्योग की स्थापना की गई.
> 1980 ई. की औद्योगिक नीति के तहत् जमशेदपुर (साकची) औद्योगिक संकुल की स्थापना की गई.
> झारखण्ड में औद्योगीकरण की प्रक्रिया से पर्यावरण प्रदूषण एवं विस्थापन जैसी अनसुलझी समस्याएँ पैदा हुई हैं.
> झारखण्ड में लोहा इस्पात के दो मुख्य कारखाने बोकारो और जमशेदपुर में स्थित हैं.
> इन दो कारखानों में लौह इस्पात उद्योग में कार्यरत् कुल श्रमिकों का 50 प्रतिशत है.
> जमशेदपुर स्थित टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी लिमिटेड (TISCO) एशिया का प्रथम लौह इस्पात उद्योग केन्द्र है.
> जमशेदपुर स्थित लौह इस्पात के कारखाने को स्वर्ण रेखा एवं सरकई नदी से जलापूर्ति होती है.
> निजी क्षेत्र का यह उद्योग पिछले 75 वर्षों से उत्पादन कार्य में लगा हुआ है, क्योंकि इसके 300 किलोमीटर के व्यास में सभी आवश्यक कच्चे माल प्राप्त हो जाते हैं.
> जमशेदपुर के कारखाने की लौह अयस्क सिंहभूम एवं क्योंझर से प्राप्त होता है.
> चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के काल में तत्कालीन धनबाद जिला स्थित बोकरो में रूस के सहयोग से लोहे एवं इस्पात उद्योग की नींव रखी गई.
> इस उद्योग को अपने नजदीकी कोयला क्षेत्रों से कोयला मिल जाता है तथा लौह अयस्क किरिबुरू खान से आता है.
> इस उद्योग के लिए आवश्यक चूना पत्थर, बीरमित्रापुर एवं भवनाथपुर से प्राप्त होता है.
> बोकारो में लौह कारखाना स्थापित करने के लिए शुरू में संयुक्त राज्य अमरीका से भारत का समझौता हुआ था जो बाद में किसी कारण वश यह समझौता टूट गया.
> 1928 ई. में इण्डियन अल्यूमीनियम लिमिटेड की स्थापना की गई जिसके अन्तर्गत झारखण्ड मुरी नामक स्थान पर एक अल्यूमीनियम उद्योग की स्थापना की गई.
> अल्यूमीनियम का मुख्य अयस्क बॉक्साइट लोहरदगा से प्राप्त होता है. 1924 ई. में इण्डियन कॉपर कॉर्पोरेशन की स्थापना घाटशिला (पं. सिंहभूम) में की गई.
> 1930 ई. में मऊ मण्डार में ताम्रशोधन का एक कारखाने की स्थापना की गई.
> ताँबा अयस्क शुद्ध करने हेतु राखा में एक ताँबा परियोजना की स्थापना की गई.
> 1958 ई. में हटिया में भारी अभियन्त्रण उद्योग की स्थापना की गई.
> इस उद्योग में भारी मशीन बनाने का कारखाना रूस के सहयोग से स्थापित किया गया.
> भारी उद्योग में स्थापित फाउण्ड्री फोर्ज का कारखाना पूर्व चेकोस्लोवाकिया के सहयोग से स्थापित किया गया.
> भारी अभियन्त्रण उद्योग को कच्चा माल अपने आस-पास स्थापित लौह इस्पात उद्योग से प्राप्त होता है.
> झारखण्ड में कुल 6 सीमेण्ट के कारखाने हैं.
> प्रथम सीमेण्ट कारखाना धनबाद जिले के सिन्दरी नामक स्थान पर स्थापित किया गया.
> झारखण्ड में अन्य सीमेण्ट कारखाने कुमारधुबी, चाईबासा, खेलारी, जपला एवं बनजारी में है.
> झारखण्ड मुख्य कोयला उत्पादक राज्य है. अतः यहाँ कोयला धोवन के आठ केन्द्र हैं.
> झारखण्ड में सीसा उद्योग के 12 केन्द्र हैं जिनमें 6 रामगढ़ के इर्द-गिर्द हैं.
> भुरकुण्डा स्थित सीसा उद्योग जापान के सहयोग से स्थापित किया गया है.
> धमनी भट्टी के निर्माण हेतु – मोग्मा, कुमारधुबी, चिरकुंडा, धनबाद, झरिया, भंडारीदह, राँची रोड में रिफ्रेक्ट्री उद्योग की स्थापना की गई.
> झारखण्ड पूरे देश का 50 प्रतिशत से अधिक कच्चे तस्सर रेशम का उत्पादक है.
> झारखण्ड में कच्चे रेशम का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र सिंहभूम का है.
> तम्बाकू उत्पादन में भी सिंहभूम का क्षेत्र अग्रणी है.
> झारखण्ड में प्रथम उर्वरक कारखाना 1951 ई. में धनबाद जिले में स्थित सिंदरी में स्थापित किया गया.
> सिन्दरी उर्वरक कारखाना एशिया का सबसे बड़ा कारखाना है.
> बोकारो जिला स्थित गोमिया नामक स्थल पर एक विस्फोट उद्योग है.
> 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या के दृष्टिकोण से झारखण्ड तेरहवें (13) स्थान पर है.
> भारत की कुल आबादी का 2-72 प्रतिशत आबादी झारखण्ड में है.
> झारखण्ड में सर्वाधिक संथाल जनजातियों की संख्या है.
> जनजातियाँ जनसंख्या के प्रतिशतता के दृष्टिकोण से गुमला जिला प्रथम स्थान पर आता है.
> इस राज्य की दूसरी महत्वपूर्ण जनजाति उराँव एवं मुण्डा
> झारखण्ड की जनजातियों की लगभग 77 प्रतिशत आबादी हिन्दू मान्यताओं को स्वीकारती है.
> झारखण्ड की जनजातियों में जनजातीय धर्म के अलावा विश्व के महत्वपूर्ण धर्म जैसे – मुस्लिम, ईसाई आदि धर्मों की भी जनजातियाँ स्वीकारती हैं.
> झारखण्ड की कुल आबादी का लगभग 12 प्रतिशत मुस्लिम धर्म को मानती है तथा लगभग 4 प्रतिशत आबादी मुस्लिम मतावलम्बी हैं.
> झारखण्ड में सबसे ज्यादा हिन्दी भाषा बोली जाती है.
>  झारखण्ड में अन्य मुख्य भाषा संथाली, मगही एवं नागपुरिया है.
> झारखण्ड की कुल आबादी का लगभग 32 प्रतिशत हिन्दी भाषी बोलने वालों की है.
> झारखण्ड में जनसंख्या में वृद्धि में तीव्रता स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद आयी.
> 2001-11 के दशक में झारखण्ड की जनसंख्या में 22.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
> 1991-2001 की जनसंख्या दशकीय वृद्धि दर 23.36 प्रतिशत थी, जबकि 2001-2011 में दशकीय वृद्धि दर 22-4 प्रतिशत थी.
> 2011 की जनगणना से यह संकेत मिलता है कि झारखण्ड की जनसंख्या वृद्धि दर में उत्तरोत्तर कमी आ रही है.
> 2001-2011 के दशक में सर्वाधिक दशकीय वृद्धि कोडरमा जिले (32-59 प्रतिशत) में हुई है.
> इस राज्य की जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर 2.3 प्रतिशत, जबकि 2001 की जनगणना के अनुसार राष्ट्रीय वार्षिक वृद्धि दर 2.13 प्रतिशत हो गई है.
> झारखण्ड का जनसंख्या घनत्व 414 व्यक्ति प्रतिवर्ग किलोमीटर है (2011 के जनगणना के अनुसार ).
> झारखण्ड का क्षेत्रफल तथा जनसंख्या राष्ट्रीय क्षेत्रफल तथा जनसंख्या का क्रमशः 2.4 प्रतिशत तथा 2.72 प्रतिशत है.
> झारखण्ड में गुमला, पश्चिमी सिंहभूम, पलामू, लोहरदगा एवं दुमका जिले झारखण्ड के निम्न जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र हैं.
> झारखण्ड की उच्च जनसंख्या घनत्व वाले जिले पूर्वी सिंहभूम, देवघर, साहेबगंज, गोड्डा एवं धनबाद हैं.
> 2011 की जनगणना के अनुसार 1,60,57,819 महिलाएँ तथा 1,69,30,315 पुरुष हैं अर्थात् प्रत्येक 1000 पुरुष पर 949 महिलाएँ हैं.
> 2011 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड के कुल आबादी का 51.4 के प्रतिशत पुरुष तथा 48.6 प्रतिशत महिलाएँ हैं.
> लिंगानुपात के दृष्टिकोण से पश्चिमी सिंहभूम जिला सबसे बेहतर स्थिति में है. यहाँ प्रति 1000 पुरुष पर 1005 महिलाएँ हैं.
> 2011 की जनगणना के अनुसार लिंगानुपात के दृष्टिकोण से सबसे खराब स्थिति धनबाद की है. यहाँ प्रत्येक 1000 पुरुष 909 महिलाएँ हैं.
> झारखण्ड में लगभग 75 प्रतिशत आबादी प्राथमिक कार्य में (कृषि एवं कृषि से सम्बन्धित कार्य) में कार्यरत है. 7.5 प्रतिशत आबादी द्वितीय कार्य में लगे हैं शेष तृतीयक कार्य में लगे हैं.
>  झारखण्ड के कुल आबादी का लगभग 45 प्रतिशत आबादी आश्रितों की है अर्थात् 0-14 वर्ष आयु समूह एवं 60 से अधिक आयु वर्ग के लोग हैं.
> 2011 में झारखण्ड की औसत साक्षरता दर 66.4 प्रतिशत है.
> 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष साक्षरता दर 76-8 प्रतिशत महिला साक्षरता दर 55-4 प्रतिशत है.
> झारखण्ड का सबसे अधिक आबादी वाला शहर जमशेदपुर है.
>  दशम जल प्रपात राँची के पाट प्रदेश पर अपरदन क्रिया से निर्मित 40 मीटर ऊँची जलप्रपात है.
> हुंडरू जलप्रपात झारखण्ड का सबसे ऊँचा जलप्रपात है.
> हुंडरू जलप्रपात 74 मीटर ऊँचा है जो स्वर्ण रेखा नदी पर स्थित है.
> अइनी घाघ प्रपात शंख नदी पर ( गुमला) है.
> जोन्हा एवं रारू नदी के संगम पर जोन्हा जलप्रपात है.
> रजरप्पा जलप्रपात दामोदर एवं भेड़ा नदी से निर्मित लटकती जलप्रपात है.
> पलामू जिले के मुख्य जलप्रपात – सुगा, मिरिचय्या, गौतम घाघ तथा घघरी जलप्रपात.
> कारो नदी पर पेरू अघाघ जलप्रपात है.
> राजमहल ( दुमका) में मोती झरना प्रपात है.
> झारखण्ड का सर्वाधिक गर्म जलकुण्ड बरकट्टा के निकट बेलकध नामक स्थान पर है.
> बलकप्पी सूर्यकुण्ड के जल का तापमान 88 डिग्री सेन्टीग्रेड है.
> झारखण्ड के अन्य गर्म जलकुण्ड तेतुलिया एवं ततहा नामक स्थान पर हैं.
> झारखण्ड में शेर संरक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत बेतला नेशनल पार्क शामिल है.
> हजारीबाग नेशनल पार्क की स्थापना 1976 ई. में वन्यप्राणी उद्यान के रूप में किया गया था.
> हजारीबाग, स्थित पार्क, एक वन्य प्राणी उद्यान है.
> पलामू अभ्यारण्य झारखण्ड का सबसे बड़ा उद्यान है.
> पलामू जिले में भेड़ियों के लिए 1976 ई. में महुआ डाड़ वोल्फ अभयारण्य बनाया गया है.
> जमशेदपुर के निकट हाथी बहुल क्षेत्र में दलमा अभयारण्य बनाया गया है.
> तोपचांची अभयारण्य धनबाद जिले में स्थित है.
> चतरा जिले में लावालौंग अभयारण्य है.
> हजारीबाग में कोडरमा अभयारण्य है.
> पारसनाथ अभ्यारण्य गिरिडीह जिले में स्थित है.
> गुमला जिले में पालको अभयारण्य है.
> राजमहल फॉसिल अभयारण्य साहेबगंज जिला में स्थित है.
> साहेबगंज में झारखण्ड का एकमात्र पक्षी विहार है.
> देवघर में भारत के कुल 12 ज्योर्तिर्लिंगियों में से एक ज्योतिर्लिंग है. अतः यह झारखण्ड का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है.
> देवघर दुमका सड़क मार्ग पर वासुकीनाथ एक पवित्र स्थल है.
> जैन मतावलम्बियों का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल गिरिडीह जिले में ‘पारसनाथ नामक स्थल पर स्थित है.
> झारखण्ड में जैनियों का एक अन्य मुख्य तीर्थस्थल मधुबन है.
> शक्ति की देवी छिनमस्तिके का मन्दिर हजारीबाग जिले में रजरप्पा में स्थित है.
> गढ़वा जिले में स्थित नगर उंटारी एक शिव मन्दिर एवं एक श्रीकृष्ण तथा राधिका का मन्दिर है.
> चतरा जिले का भद्रकाली मन्दिर स्थानीय लोगों का एक मुख्य तीर्थस्थल है.
> गिरिडीह के निकट झारखण्ड धाम में एक शिव मन्दिर है. पुरातात्विक अवशेष से यह पता चलता है कि यह मौर्य- कालीन मन्दिर है.
> बुंडु (राँची) का सूर्य मन्दिर झारखण्ड का एकमात्र दर्शनीय सूर्य मन्दिर है.
> नेतरहाट को छोटा नागपुर की रानी कहते हैं.
> जमशेदपुर झारखण्ड का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर के साथ जुबली पार्क, डिमना डैम, दलमा अभयारण्य आदि के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है.
> राँची ब्रिटिशकालीन हिल स्टेशन है, वर्तमान में झारखण्ड की राजधानी है बिरसा भगवान पार्क, रॉक गार्डन, जैसे दर्शनीय स्थल के कारण यह एक मुख्य पर्यटन स्थल है.
> झारखण्ड प्रकृति प्रदत्त सुरम्यता से पूर्ण है, किन्तु कुछेक समस्याएँ यहाँ के पर्यटन उद्योग के प्रगति में बाधक है.
> झारखण्ड में औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने पर्यावरण को प्रदूषित किया है.
> झारखण्ड की मुख्य नदी दामोदर नदी अति प्रदूषित नदी है.
> झारखण्ड की वायु, जल एवं भूमि तीनों प्रदूषित हैं.
> झारखण्ड की कुल कृषि योग्य भूमि का 1/4 भाग मृदाक्षरण से प्रभावित है.
> वनोन्मूलन की तीव्र प्रकिया ने मृदाक्षरण को प्रभावित किया है.
> परिवहन एवं संचार प्रगति का सूचक है.
> झारखण्ड एक खनिज प्रधान राज्य होने के कारण परिवहन के विकास की सम्भावना अधिक रही है.
> 1540-42 ई. में शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित ग्राण्ड ट्रंक रोड झारखण्ड से होकर गुजरती है.
> झारखण्ड में राष्ट्रीय राजमार्ग की कुल लम्बाई 1176 किलोमीटर है.
> झारखण्ड से गुजरने वाला मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 2, 5, 6, 23, 32 एवं 33 है.
> झारखण्ड से होकर गुजरने वाले छः राजमार्गों में सबसे लम्बा राजमार्ग संख्या नं. 33 है.
> झारखण्ड राज्य से सम्भावित अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग भी गुजरेगा.
> झारखण्ड में सभी प्रकार की सड़कें मिलाकर कुल 35000 किलोमीटर लम्बी हैं.
> झारखण्ड में प्रति एक लाख आबादी पर 137 किलोमीटर लम्बी सड़क है.
> 31 मार्च, 2017 तक झारखण्ड में रेलवे लाइनों की कुल लम्बाई 2,455 किमी थी.
> सिंहभूम क्षेत्र में सर्वाधिक घनी रेल लाइन बिछी थी.
> सर्वप्रथम ईस्ट इण्डियन रेलवे एवं बंगाल नागपुर रेलवे ने झारखण्ड में रेलवे लाइन बिछाने का काम किया था.
> झारखण्ड में पहाड़ी नदी होने के कारण जल परिवहन की कोई सम्भावना नहीं है.
> झारखण्ड की राजधानी में बिरसा मुण्डा हवाई अड्डा मध्यम श्रेणी का है.
> एक अन्य हवाई अड्डा चिकूलिमा में है.
> जमशेदपुर में एक उड्डयन क्लब है
> झारखण्ड में प्रति एक लाख जनसंख्या पर 4-5 डाकघर  हैं.
> देवघर में प्रतिएक लाख आबादी पर एक से भी कम डाकघर हैं.
> 2 फरवरी, 2001 को झारखण्ड डाक सर्कल का निर्माण किया गया है.
> झारखण्ड कुल चार रेडियो स्टेशन- राँची, जमशेदपुर, डाल्टेनगंज एवं हजारीबाग में स्थित हैं.
> झारखण्ड में राँची, जमशेदपुर तथा डाल्टेनगंज में एक-एक दूरदर्शन रिले केन्द्र है.
> झारखण्ड में सबसे ज्यादा बिकने वाली हिन्दी दैनिक समाचार पत्र प्रभात खबर है.
> केन्द्र सरकार झारखण्ड राज्य के चार पथों, एन. एच. 75, एन. एच. 98, तथा एन. एच. 100 को राष्ट्रीय उच्च मार्ग में परिवर्तित करने की योजना है.
> झारखण्ड में व्यावसायिक तौर पर ऊर्जा प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम 7 जुलाई 1948 ई. को दामोदर घाटी परियोजना की नींव रखी गई.
> दामोदर घाटी परियोजना भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद की प्रथम बहुउद्देशीय योजना है.
> झारखण्ड में चार ताप विद्युत् केन्द्र हैं.
> बोकारो थर्मल एवं चन्द्रपुरा थर्मल स्थित तापविद्युत् केन्द्र दामोदर घाटी निगम की इकाई है.
> बोकारो एवं चन्द्रपुरा में दो-दो संयन्त्र हैं, जिसकी क्षमता क्रमशः 3 × 57-5 मेगावाट, 1 x 75 मेगावाट तथा 3 x 210 मेगावाट और 3 x 140 मेगावाट एवं 3 x 120 मेगावाट है.
> पतरातु तेनुघाट स्थित ताप विद्युत् केन्द्र सरकार की इकाई है.
> इन दोनों ताप विद्युत् गृह की क्षमता क्रमश: 620 मेगावाट एवं 220 मेगावाट है.
> झारखण्ड में चार जलशक्ति गृह हैं जो तिलैया, मैथान, पंचेत, तथा सिकीदरी स्वर्ण रेखा परियोजना में स्थित हैं.
> झारखण्ड में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत 30 जुलाई, 1857 को सुरेन्द्र शाहदेव द्वारा हजारीबाग केन्द्रीय कारागार को तोड़ने से हुई.
> डोरंडा सैनिक छावनी के विद्रोह का नेतृत्व जमदार माधव सिंह एवं सूबेदार नादिर अली खाँ ने किया.
> ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव एवं पाण्डेय गणपत राय ने मुक्तिवाहिनी का गठन किया.
> शेख भिखारी मुक्तिवाहिनी का सदस्य था.
> मुक्तिवाहिनी के सदस्यों ने बाबू कुँवर सिंह की मित्रवाहिनी की सहायता हेतु कूच किया.
> मित्रवाहिनी की सहायता में आगे बढ़े मुक्तिवाहिनी के जयमंगल पाण्डे को 4 अक्टूबर, 1857 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया.
> अमर शहीद भिखारी टिकैत उमरांव सिंह को जनवरी 1858 ई. में फाँसी दी गयी.
> 3 सितम्बर, 1857 ई. को चाईंवासा स्थित रामगढ़ बटालियन के सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया.
> चक्रधरपुर के राजा अर्जुन सिंह ने इस विप्लव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अंग्रेजों को नाकोचने चबवा दिये.
> पलामू जिले में 1857 के विद्रोह की कमान नीलाम्बर एवं पीताम्बर ने सँभाली. अन्ततः इन दोनों भाइयों को भी फाँसी पर चढ़ा दिया गया.
> झारखण्ड का प्रथम जनजातीय आन्दोलन 1772 ई. में पहाड़िया विद्रोह के रूप में हुआ.
> पहाड़िया विद्रोह संथाल परगना क्षेत्र में हुआ था.
> झारखण्ड का प्रथम प्रभावी जनान्दोलन 1783-85 ई. में तिलका माँझी के नेतृत्व में राजमहल एवं संथाल परगना के क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा गया.
> झारखण्ड ही नहीं पूरे जनजातीय आन्दोलन का मिलका आन्दोलन प्रेरणा स्रोत था.
> तिलका माँझी ने अपने नेतृत्व गुण के आधार पर अंग्रेजों को पराजित किया.
> अन्ततः तिलका माँझी पकड़ा गया और फाँसी पर चढ़कर शहीद हो गया.
> पलामू जिले में 1880-1818 ई. के लम्बे काल तक चेरों ने अंग्रेजों की खिलाफत की.
> चेरो आन्दोलन का नेतृत्व पलामू के भूखनसिंह ने किया.
> अंग्रेज शासन का इस समय, पलामू में भारदेव के राजा घनश्याम सिंह ने सहयोग किया.
> वीरभूम एवं बाँकुडा जिले में अंग्रेजों की लगान नीति के विरोध में 1798 ई. में चुआर ने विद्रोह कर दिया.
> 1782 ई. में अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति तथा भू-राजस्व नीति की खिलाफत में ठाकुर भोलानाथ सिंह के नेतृत्व में तमाड़ के आदिवासियों ने विद्रोह कर दिया.
> 1807 ई. में एक बार पुनः दुखमानकी के नेतृत्व में तमाड़ में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह हुआ.
> तमाड़ में अगला विद्रोह 1819-20 ई. में रद्धु एवं कोन्ता मुण्डा के नेतृत्व में हुआ.
> बुधो भगत के नेतृत्व में 1832 ई. में अंग्रेजों के खिलाफ एक अन्य विद्रोह हुआ.
> तमाड़ विद्रोह के नायक सिद्ध एवं कोन्ता मुण्डा ने 1820 ई. में अंग्रेजों के खिलाफ कालों को भी नेतृत्व प्रदान किया.
> ‘कोल विद्रोह’ में कोल जनजातियों को ‘हो’ जनजातियों ने भी सहयोग प्रदान किया.
> 1831-32 में कोल विद्रोह का नेतृत्व सिंदराय एवं विंदराय मानकी ने किया.
> 1831-32 ई. के कोल विद्रोह को कैप्टन क्लिंकिन्सन ने दबा दिया.
> 1833-34 ई. में भूमिज विद्रोह हुआ. इसे कोल विद्रोह की एक कड़ी समझा जाता था, क्योंकि इस विद्रोह नेतृत्व गंगा नारायण सिंह ने किया था जो एक कोल था.
> कोल एवं भूमिज विद्रोह के दमन के बाद ब्रिटिश शासन द्वारा छोटा नागपुर पठार में अनेक सुधार किए.
> 1820 के दशक में सिंहभूम के ‘हो’ जनजातियों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया.
> 1855-57 ई. का ‘हुल आन्दोलन एक महत्वपूर्ण जनजातीय आन्दोलन था.
> ‘हुल आन्दोलन’ या संथाल विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू एवं कान्हु नामक दो भाइयों ने किया था.
> सिद्धू एवं कान्हु के नेतृत्व में संथालों ने हजारों की संख्या में संथाली स्त्री, पुरुष एवं बच्चों को संगठित कायम किया.
> अगस्त 1855 में सिद्धू पकड़ा गया एवं अंग्रेजों द्वारा मार डाला गया.
> फरवरी 1886 ई. में कान्हु भी पकड़ा गया.
> हुल आन्दोलन के कठोरतापूर्वक दमन के बाद इस क्षेत्र का नाम संथाल परगना रखा गया.
> 1855 ई. में भागीरथ माँझी के नेतृत्व में खेरवार आन्दोलन हुआ.
> खेरवार आन्दोलन का केन्द्र तालडीहा था, जो भागीरथ माँझी की जन्मस्थली भी था.
>  बैठ बेगारी की प्रथा एवं रुकुमत की वसूली के विरोध में 1860-85 ई. के मध्य सरदारी आन्दोलन हुआ.
> सरदारी आन्दोलन लॉर्ड कार्नवालिस के 1793 ई. के स्थायी बन्दोबस्ती के व्यवस्था के खिलाफ में था.
> उलगूलान या बिरसा मुण्डा आन्दोलन 1899-1902 के मध्य राँची के निकट खूँटी में भगवान बिरसा मुण्डा के नेतृत्व में अंग्रेजी शासन के खिलाफ में एक आन्दोलन था.
> बिरसा मुण्डा के द्वारा छेड़े गये आन्दोलन का स्वरूप राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक था.
> धार्मिक एवं सामाजिक आन्दोलन को सोमा मुण्डा ने नेतृत्व प्रदान किया.
> बिरसा मुण्डा को ‘धरती अवा’ के रूप में मान्यता थी.
> इस आन्दोलन द्वारा शोषण मुक्त समाज की स्थापना करना उद्देश्य था.
> इस आन्दोलन के राजनीतिक पहलू दोन्का मुण्डा द्वारा देखा जाता था.
> उलगुलान आन्दोलन प्रथम जनजातीय आन्दोलन था जिसने महारानी की सत्ता को चुनौती दी.
> 3 फरवरी, 1900 को बिरसा मुण्डा को राँची जेल में डाल दिया गया. जेल में ही उनकी मौत हैजे से हो गई ओर इसी प्रकार उल गुलाल आन्दोलन समाप्त हो गया.
> झारखण्ड के जनजातियों के मध्य 1912 ई. में ताना भगत आन्दोलन के रूप में एक ऐसा आन्दोलन शुरू हुआ जो भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान निरन्तर क्रियाशील रहा और राष्ट्रीय आन्दोलन के राष्ट्रीय स्वरूप के प्रणेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संघर्ष के अभिलक्षणों का पालन किया.
> ताना भगत आन्दोलन उराँव जनजातियों के मध्य एक धर्म सुधार एवं समाज सुधार के रूप में शुरू हुआ था जो कालान्तर में राजनीतिक आन्दोलन की ओर उन्मुख हो गया.
> झारखण्ड में जनजाजीय आन्दोलन जातिगत आधार पर प्रारम्भ हुआ, किन्तु हुल आन्दोलन, उराँव आन्दोलन आदि आन्दोलन जातिगत सीमा को लाँघकर सर्व जातीय एवं जनजातीय आन्दोलन बन गया था.
> इन जनजातियों ने गरीब वर्ग के बाहरी लोगों को दिक् नहीं माना और उन्हें किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाया.
> बिरसा आन्दोलन एवं ताना भगत आन्दोलन को छोड़कर किसी भी आन्दोलन में महारानी की सत्ता को चुनौती नहीं दिया गया.
> 1757 ई. को भारत में ब्रिटिश अधीनता की प्रक्रिया शुरू हुई और 1858 ई. में इस अधीनता से मुक्ति का प्रथम प्रयास किया गया.
> 11 मई, 1857 ई. को मेरठ के सिपाहियों द्वारा दिल्ली पर कब्जा कर लिया गया और इस प्रकार भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की शुरूआत हुई.
> प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का विस्तार बिहार होते हुए झारखण्ड तक पहुँच गया.
> सुरेन्द्र शाहदेव द्वारा 30 जुलाई को हजारीबाग के केन्द्रीय करागार को तोड़कर क्रान्तिकारियों को मुक्त कर झारखण्ड में प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की नींव डाली.
> 30 जुलाई, 1857 के घटना से प्रभावित होकर डोरंडा एवं राँची के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया.
> डोरंडा के सैनिक विद्रोह का नेतृत्व जमादार माधव सिंह तथा सूबेदार नादिर अली खाँ ने किया.
> ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने 1857 ई. में अंग्रेजी शासन से लड़ने हेतु मुक्तिवाहिनी सेना का गठन किया.
> चुटुपालु घाटी एवं ओरमाँझी के विद्रोह का नायक शेख भिखारी मुक्तिवाहिनी सेना का सदस्य था.
> बिहार के सेना नायक बाबू कुँवर सिंह के मित्रवाहिनी के पराजय की खबर सुनकर मुक्तिवाहिनी ने मदद हेतु बिहार के जगदीशपुर की ओर कूच किया.
> जगदीशपुर की ओर बढ़ती मुक्तिवाहिनी सेना का चतरा में 2 अक्टूबर, 1857 ई. को चतरा में संघर्ष हुआ. इस संघर्ष में मुक्तिवाहिनी के सेना के नायक जयमंगल पाण्डे अंग्रेजों द्वारा पकड़े गये एवं 2 दिनों बाद इन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया.
> मुक्तिवाहिनी की सैन्य टोली में रणबाँकुरों की कमी नहीं थी.
> इन्हीं रणबांकुरों में से शेख भिखारी एवं टिकैत उमरांव सिंह थे. जिन्हें क्रमशः 6 जनवरी, 1858 ई. एवं 8 जनवरी, 1858 ई. को फाँसी पर चढ़ा दिया गया.
> 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम का झारखण्ड में शुरूआत राँची एवं हजारीबाग में हुआ था. बाद में शीघ्रता से इसका विस्तार हुआ.
> चाईबासा स्थित रामगढ़ बटालियन के सैनिकों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया.
> पोडहार के राजा अर्जुन सिंह ने रामगढ़ बटालियन को आश्रय प्रदान कर परोक्ष रूप से समर्थन किया.
> बाद में राजा अर्जुनसिंह के प्रत्यक्ष रूप में इस स्वतन्त्रता संघर्ष में शामिल हो गये.
> राजा अर्जुन सिंह के साथ स्थानीय ‘हो’ जनजातियों भी सहयोग किया.
> अंग्रेजों ने राजा अर्जुन सिंह को गिरफ्तार करने हेतु ले. बर्च की नियुक्ति की.
> काफी प्रयत्न के बाद राजा अर्जुन सिंह को 5 जनवरी, 1858 ई. को गिरफ्तार कर 400 रुपये मासिक पेंशन देकर बनारस भेज दिया गया.
> पलामू में इस संघर्ष को नीलाम्बर एवं पीतम्बर ने नेतृत्व प्रदान किया.
> झारखण्ड का क्षेत्र भारत के प्रत्येक राजनीतिक गतिविधियों से न केवल प्रभावित हुआ वरन् बढ़-चढ़कर भाग लिया है.
> महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गये आन्दोलन में झारखण्ड के ताना भगतों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
> ताना भगत आन्दोलन विशुद्ध अहिंसात्मक आन्दोलन था.
> इस आन्दोलन का प्रणेता जतरा ताना भगत था जिसकी मृत्यु 1916 में हो गई.
> जतरा ताना भगत की मृत्यु के बाद ताना भगत आन्दोलन को उनकी पत्नी बंधनी ने नेतृत्व प्रदान किया.
> ताना भगत आन्दोलन के समर्थकों ने 20वीं सदी में होने वाले प्रायः सभी राष्ट्रीय आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
> ताना भगतों ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशनों में भी हिस्सा लिया.
> भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में हजारीबाग जिले के राम नारायण सिंह ने बढ़-चढ़कर भाग लिया.
> रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन के सफलतापूर्वक आयोजन से खुश होकर प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद ने इन्हें ‘छोटा नागपुर केसरी’ की उपाधि प्रदान की थी.
> 8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी द्वारा तत्कालीन बम्बई के ग्वालिया टेंक मैदान से ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की घोषणा के साथ ही सम्पूर्ण भारत आन्दोलन हेतु स्वयं संघर्षशील हो गया.
> राँची एवं इसके आसपास के क्षेत्र में ताना भगत भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान टेलीफोन एवं टेलीग्राफ की लाइनें, रेलवे मार्ग, रेलवे स्टेशन आदि के क्षति पहुँचाई.
> चरका ताना भगत, विमल दास गुप्त जैसे कुछ युवकों ने भूमिगत आन्दोलन का झारखण्ड की भूमि से संचालन किया.
> आन्दोलन के तहत् सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराया जाता. इसी कार्य को करने के अपराध में गणपत खण्डेलवाल को गिरफ्तार कर लिया गया.
> धनबाद में आन्दोलन का नेतृत्व अशोकनाथ चौधरी, समरेन्द्र मोहन राय तथा सुशील चन्द्र दास गुप्त हाथ के हाथ में था.
> आन्दोलनकारियों के बेकाबू होने के कारण धनबाद एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया.
> हजारीबाग में 1942 के आन्दोलन का नेतृत्व श्री रामनारायण सिंह एवं सुखपाल सिंह ने किया.
> हजारीबाग में भारत छोड़ो आन्दोलन की सबसे बड़ी विशेषता श्रीमती सरस्वती देवी जैसी महिला का आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना था.
> हजारीबाग के छात्रों ने भी इस आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
> चतरा में इस समय चौकीदारी टेक्स देना बन्द कर दिया गया.
> भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान पलामू के दौरान पलामू जिले के चटुवंश सहाय, राजकिशोर सिंह, भुवनेश्वर चौबे एवं वाचस्पति त्रिपाठी ने आन्दोलन को दिशा प्रदान की.
> पलामू जिले में कुमारी रामेश्वरी सरोज दास की भूमिका सराहनीय थी.
> सिंहभूम में टिस्को के श्रमिकों एवं श्रमिक नेताओं ने आन्दोलन में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया.
> जमशेदपुर के श्रमिक नेता त्रेतासिंह, मि. जॉन तथा वी. पी. सिन्हा ने भारत छोड़ो आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
> झारखण्ड के मूल वासी यहाँ की जनजातियाँ हैं.
> झारखण्ड के कुछ स्थलों से पुरापाषाणकालीन से नवपाषाण कालीन तक के अवशेष खुदाई में मिले हैं.
> इस प्रदेश में 100 से अधिक स्थल हैं, जहाँ पुरापाषाणकाल से नवपाषणकाल तक के प्रयुक्त औजारों के अवशेष मिलते हैं.
> झारखण्ड में प्राप्त औजारों के अवशेष – राजमहल की पहाड़ियों के क्षेत्र में, पलामू एवं दक्षिण छोटा नागपुर के क्षेत्र से मिला है,
> यहाँ की जनजातियों का जिक्र ऋग्वेद एवं पौराणिक तथा बौद्ध साहित्यों में मिलता है.
> भगवत् पुराण, हरिवंश पुराण एवं वायु पुराण में कोलों की चर्चा की गई है.
> ऐसी मान्यता है कि झारखण्ड में सर्वप्रथम असुरों का प्रवेश हुआ था.
> मुण्डा झारखण्ड में छठी सदी ईसा पूर्व में प्रवेश किया था.
> मुण्डाओं के साथ-साथ संथालों ने झारखण्ड में प्रवेश किया और दोनों जनजातियाँ रोहतासगढ़ में कुछ वर्षों तक साथ-साथ रहे.
> मुण्डा असुरों के बाद झारखण्ड में आने वाली दूसरी सबसे प्राचीनतम जनजाति है. अतः ये खुद को खुंटकुट्टी (मूलवासी) एवं अपने गाँवों (हातु) को खुंटकुटी हातु (मूलवासियों का गाँव) कहते हैं.
> ऐसी मान्यता है कि मुण्डाओं का स्थानीय शासन गणतन्त्रात्मक था. इनमें मुण्डा पंचों आदि का चयन किया जाता था.
> झारखण्ड के प्रथम राजा फणीमुकुट राय थे, जो नागवंशी थे. इनका चयन मुण्डा मुखियाओं या परहो द्वारा किया गया.
> उराँव द्रविड़ प्रजाति का है. झारखण्ड में इनका प्रवेश मुण्डाओं के बाद दक्षिण की ओर से हुआ.
> उराँवों ने मुण्डाओं को पूर्व की ओर ढकेलकर राँची के निकट बस गये.
> उराँवों को कुरुख भी कहते हैं.
> कुरुख कुर्ग का अभ्रंश है जो सम्भवतः इनके मूल वास का भी सूचक है..
> उराँवों की भाषा को ‘कुरूख’ कहते हैं.
> चेर उराँवों के बाद आये और पलामू के गिर्द शासन किया.
> झारखण्ड की लगभग सभी जनजातियाँ विन्ध्य पर्वतमाला के दक्षिण से समय-समय पर झारखण्ड में प्रवेश किया.
> मुगल शासन के दौरान झारखण्ड के आदिवासियों का एकांतिक जीवन में विक्षोभ पैदा हुआ.
> मुगल शासक जहाँगीर के काल में सन् 1616 में इन जनजातियों के नागवंशी राजा दुर्जनशाल को गिरफ्तार कर 12 साल तक के लिए ग्वालियर के किले में कैद रखा.
> 2011 की भारत की जनगणना के अनुसार जनजातियों की सर्वाधिक जनसंख्या राँची (10,42,016) में है. झारखण्ड में जनजातीय जनसंख्या के दृष्टिकोण से प. सिंहभूम एवं गुमला क्रमशः द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर हैं.
> सर्वाधिक कम जनसंख्या (जनजातियों) वाला जिला कोडरमा है.
> झारखण्ड में कुल आबादी का 26.2 प्रतिशत जनजातीय जनसंख्या (2011) है.
> राज्य के जिलेवार प्रतिशतता में काफी विविधता है.
> जिले की कुल जनसंख्या की जनजातीय प्रतिशत सर्वाधिक खूँटी जिले में है. इस जिले की 73-25 प्रतिशत आबादी में जनजातियाँ हैं.
> जनजातीय प्रतिशतता के दृष्टिकोण से सबसे कम कोडरमा में कुल आबादी का मात्र 0.96 प्रतिशत जनजातीय आबादी है.
> झारखण्ड में सर्वाधिक आबादी संथालों की है जो कुल जनजातीय आबादी का 34.9 प्रतिशत है.
> झारखण्ड की कुल जनजातियों की आधी से अधिक आबादी मात्र 4 (चार) जिले पश्चिमी सिंहभूम, राँची, पलामू तथा दुमका जिले में संकेन्द्रित है.
> झारखण्ड की कुल जनजातीय आबादी की 65 प्रतिशत आबादी यहाँ की चार जनजातियों संथाल, उराँव, मुण्डा एवं हो की है.
> झारखण्ड की जनजातियों द्वारा बोली जाने वाल भाषा को चार भाषा वर्गों में विभाजित किया जाता है – आस्ट्रिक, द्रविड़, चीनी-तिब्बती एवं भारोपीय वर्ग.
> झारखण्ड की लगभग 85 प्रतिशत आबादी आस्ट्रिक वर्ग की मुण्डा शाखा की भाषा बोलती है.
> झारखण्ड की जनजाति प्रोटो- आस्ट्रोलॉयड प्रजाति वर्ग की है.
> झारखण्ड की जनजातियाँ मुख्यतः वनोत्पाद एवं शिकार स्थान्तरणी तथा स्थायी कृषि, पशुपालन, पशुचारण तथा औद्योगिक संस्थानों में श्रम कर जीविका चलाते हैं.
> यहाँ की जनजातियों के आर्थिक जीवन की एक विलक्षण विशेषता धांगर जैसी आर्थिक संस्था है जिसके अन्तर्गत बड़े भूमि द्वारा नियोजित व्यक्ति जिसे धांगर कहते हैं, अपने मालिक का पूर्णकालिक कृषि श्रमिक होता है.
> झारखण्ड की जनजातियों के आर्थिक जीवन में, मानव-शास्त्रियों एवं प्रशासनिक प्रयास से, परिवर्तन आया है. अब असुर, अपने लौहसम्बन्धी कार्य को छोड़कर स्थान्तरी कृषि एवं बिरहोर खानाबदोशी जीवन छोड़कर स्थायी निवास करने लगे हैं.
> संथाल 12 गोत्रों में विभाजित हैं, जिसे ‘परीस’ कहते हैं, ‘परीस’ पुनः उपगोत्रों में विभाजित हैं, जिसे ‘खुंट’ कहते हैं.
> झारखण्ड की अधिकांश जनजातियाँ बहिर्विवाही गोत्र में विभाजित होती हैं.
> इस बहिर्विवाही गोत्र को मुण्डा एवं हो में ‘कील’ तथा उरांव में गोतार कहते हैं.
> इनमें से प्रत्येक गोत्र अनेक वंश में विभाजित रहता है जिसे खुंट कहते हैं. ये खुंट बहिर्विवाही होते हैं.
> पलामू के परहैया में गोत्र नहीं वंश (लिनिएन) के आधार पर सामाजिक संरचना विभाजित है.
> राजमहल के मालेर (सौरिया पहाड़िया) में सामाजिक संगठन में गोत्र व्यवस्था अनुपस्थित रहती है तथा इनके सामाजिक संगठन का आधार भौगोलिक सीमा होती है.
> बिरहोर जनजाति दो उपजाति में बँटी होती हैं जिनका आधार उनका वास-प्रकृति होता है.
> झारखण्ड की जनजातियों ने अपने समाज के मध्य व्यवस्था बनाये रखने के लिए समाज को विभिन भागों में विभाजित किया है. यहाँ की अधिकांश जनजातियों में गोत्र की अवधारणा उपस्थित है तथा अधिकांश जनजाति बहिर्विवाही एवं बर्हिवंश विवाह करते हैं.
> यहाँ की जनजातियों में क्रय विवाह (मुण्डा, संथाल, हो, उरांव आदि विनिमय विवाह (कामोवेशी सभी जनजातियों में), सेवा विवाह ( उरांव एवं मुण्डा में), हरण विवाह (हो, उरांव मुण्डा, खरिया, बिरहोर), हठ या अनादर विवाह (हो), घरघुसु विवाह (बिरहोर) का खूब प्रचलन है.
> इनमें विवाह एक अटूट बन्धन नहीं है.
> झारखण्ड के उत्तर में बिहार, पश्चिम में छत्तीसगढ़ एवं उत्तर प्रदेश दक्षिण में ओडिशा तथा पूर्व में पश्चिम बंगाल अवस्थित है.
> बिहार से पृथक् झारखण्ड में कुल चार प्रमण्डल हैं, जो इस प्रकार हैं—संथाल परगना प्रमण्डल, उत्तरी छोटा नागपुर प्रमण्डल, • नागपुर प्रमण्डल, दक्षिणी छोटा नागपुर प्रमण्डल तथा पलामू प्रमण्डल.
> संथाल परगना प्रमण्डल में कुल 6 जिले हैं – दुमका, जामताड़ा, देवघर, गोड्डा, साहेबगंज एवं पाकुड़.
> उत्तरी छोटा नागपुर प्रमण्डल में कुल 7 जिले हैं. धनबाद बोकारो, गिरिडीह, कोडरमा, चतरा, हजारीबाग एवं रामगढ़.
> दक्षिणी छोटा नागपुर में कुल 8 जिले हैं- राँची, गुमला, लोहरदग्गा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला, सिमडेगा तथा खूँटी.
> पलामू प्रमण्डल में सबसे कम कुल 3 जिले हैं— गढ़वा, पलामू एवं लातेहार.
> दक्षिणी छोटा नागपुर प्रमण्डल क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से झारखण्ड का सबसे बड़ा प्रमण्डल है.
> उत्तरी छोटा नागपुर प्रमण्डल जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा प्रमण्डल है.
> पलामू प्रमण्डल जनसंख्या एवं क्षेत्रफल दोनों दृष्टि से सबसे छोटा प्रमण्डल है.
> झारखण्ड में लोक सभा के लिए अनुसूचित जाति के लिए पलामू संसदीय क्षेत्र आरक्षित है.
> झारखण्ड में एक सदनात्मक व्यवस्था है, यहाँ विधान सभा में कुल 81 + 1 = 82 सीटें (एक सदस्य एंग्लो इंडियन) हैं.
> झारखण्ड विधान सभा में कुल 29 सीटें आरक्षित हैं, जिनमें 20 (बीस) सीट अनुसूचित जनजाति हेतु, 8 (आठ) सीट अनुसूचित जाति हेतु तथा एक सीट एंग्लो इंडियन हेतु आरक्षित है.
> झारखण्ड में लोक सभा के लिए कुल 14 सांसद भारतीय संसद की निम्न सदन एवं 6 सदस्य उच्च सदन के लिए प्रतिनिधित्व करते हैं.
> झारखण्ड विधान सभा के प्रथम स्पीकर श्री इन्दर सिंह नामधारी हैं.
> झारखण्ड के राँची स्थित उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश श्री विनोद कुमार गुप्त थे.
> झारखण्ड के राज्यपाल को भारतीय संविधान के पाँचवीं अनुसूचित क्षेत्र के प्रशासन का विशेषाधिकार प्राप्त होगा.
> झारखण्ड संसाधन की दृष्टि से भारत का अति सम्पन्न प्रान्त है.
> झारखण्ड के आय का मुख्य स्रोत वाणिज्य कर एवं खनन से प्राप्त राजस्व है.
> भारत सरकार द्वारा निर्धनता रेखा निर्धारण हेतु सितम्बर 1989 में प्रो. डी. टी. लकड़वाला की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ ग्रुप नियुक्त किया गया.
> झारखण्ड में पश्चिमी सिंहभूम में सर्वाधिक निर्धन परिवार है.
> झारखण्ड के लगभग तीन-चौथाई अनुसूचित जाति एवं जनजातीय आबादी गरीबी रेखा से नीचे है.
> झारखण्ड में निर्धनता का कारण विकास की धीमी गति, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, फिजूलखर्ची की प्रवृत्ति, उच्च प्रजनन दर, परिवार नियोजन की असफलता है.
> राज्य में निर्धनता एवं बेरोजगारी निवारण हेतु केन्द्र सरकार की सारी योजनाएँ क्रियान्वयन में हैं..
> झारखण्ड के प्रथम वित्तमन्त्री मृगेन्द्र प्रताप सिंह भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं.
> श्री मृगेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा झारखण्ड का प्रथम बजट वर्ष 2001 को प्रस्तुत किया गया.
> राज्य के प्रथम बजट में लगभग 70 करोड़ का लाभ दिखाया गया.
> राज्य के प्रथम बजट की अनुमानित राशि 7174.12 करोड़ थी.
> झारखण्ड सरकार ने अपने प्रथम बजट में ग्रामीण विकास शिक्षा, कला एवं संस्कृति को प्राथमिकता दी.
> राज्य सरकार ने प्रत्येक विधायकों को अपने क्षेत्र में सामुदायिक विकास हेतु एक करोड़ रुपये का प्रावधान रखा है.
> राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के छात्र-छात्राओं के लिए निःशुल्क तकनीकी शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की गयी है.
> विलुप्त जनजातियों के लिए राज्य सरकार ने अपने प्रथम वार्षिक बजट में बीमा की व्यवस्था की है.
> प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा राज्य से बाहर तकनीकी शिक्षा में सफल उम्मीदवारों के लिए व (अनुसूचित जाति एवं जनजाति के छात्रों हेतु) निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है. ।
> प्रथम वार्षिक बजट में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के छात्रों हेतु आवासीय विद्यालय की स्थापना का प्रावधान रखा गया.
> राज्य में मलेरिया का प्रकोप ज्यादा होने के कारण मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. यह कार्यक्रम विश्व ‘स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से राँची, पलामू, हजारीबाग एवं चतरा में विशेष अभियान के तहत् चलाया जा रहा है.
> ग्यारहवें वित्त आयोग अनुशंसा पर राज्य के पाँच जिले हजारीबाग, पलामू, दुमका, चाईबासा एवं गुमला में सदर अस्पताल में डायग्नोस्टिक केन्द्र स्थापित करने की योजना है.
> इस नवनिर्मित राज्य में राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना लागू कर दी गयी है.
> झारखण्ड राज्य में राजधानी राँची एवं उप राजधानी दुमका को विकसित किया जाएगा.
> संथाल परगना क्षेत्र के औद्योगिक विकास हेतु औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण का गठन किया जाएगा.
> झारखण्ड के जनजातियों एवं जंगलवासियों में सर्वप्रथम शिक्षा की लौ ईसाई मिशनरियों ने जलायी.
> स्वतन्त्रता प्राप्ति के पाँच दशक बाद भी इस राज्य में शिक्षा की स्थिति बेहतर नहीं है.
> झारखण्ड का सबसे कम साक्षर (2011) जिला पाकुड़ है.
> झारखण्ड का सर्वाधिक साक्षर (2011) जिला राँची है.
> झारखण्ड में कुल चार विश्वविद्यालय हैं; राँची विश्वविद्यालय, विनोबा भावे विश्वविद्यालय सिद्धु-कान्हु विश्वविद्यालय एवं बिरसा कृषि विश्वविद्यालय.
> इस राज्य में दो डीम्ड विश्वविद्यालय हैं- बिरला इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा; इण्डियन स्कूल ऑफ माइन्स. धनबाद.
> बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (BIT) को तीसरे डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान करने की घोषणा (22 जनवरी, 2002 को) राज्य सरकार ने की है.
> राजधानी राँची में स्थित कांके मेण्टल अस्पताल प्रसिद्ध है.
> राज्य में बारह राजकीय पोलिटेक्निक संस्थान और दो खनन संस्थान हैं.
> राज्य में तीन मेडिकल कॉलेज हैं जो धनबाद, राँची एवं जमशेदपुर में स्थित हैं.
> 1928 के एमस्टरडम ओलम्पिक में भारत प्रथम बार हॉकी का विश्व विजेता बना. इस हॉकी टीम में जयपाल सिंह मुण्डा भी थे.
> झारखण्ड राज्य से अनेक राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हुए.
> वर्तमान में झारखण्ड में कुल 11 राष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम हैं.
> राँची स्थित जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम,एस्टोडर्म
स्टेडियम है
> झारखण्ड को बिहार से उग्रवाद की समस्या विरासत के रूप में मिली है.
> झारखण्ड के लोहरदगा जिले के एस. पी. अजय सिंह उग्रवाद के शकार हुए.
> झारखण्ड में उग्रवाद के एक मुख्य कारण भूमि सुधार के क्रियान्वयन में कमी है.
> उग्रवाद की समस्या से निपटने हेतु पुलिस बल का आधुनिकीकरण एवं सड़क निर्माण पर विशेष ध्यान दिया गया है.
> झारखण्ड में क्षेत्रीयता की भावना पुनः सर उठाने लगी है और बाहरीभीतरी की भावना को पूर्ण रूप से उभारा जा रहा है.
> उग्रवाद पर नियन्त्रण हेतु अविभाजित बिहार में ऑपरेशन जॉन, ऑपरेशन टास्क फोर्स तथा भूमि सुधार कार्यक्रमों को गति प्रदान करने हेतु ऑपरेशन टोडरमल शुरू किया.
> बिहार से पृथक् होने के बाद झारखण्ड सरकार सघन एण्ट्री नक्सलाइट अभियान शुरू करने वाला है
> झारखण्ड का राजनैतिक अस्तित्व 600 ई. पू. से है.
> झारखण्ड का प्रथम शासक मदरा मुण्डा था जो मुण्डाओं का प्रधान था,
> झारखण्ड प्रसिद्ध शासक में नागवंशी फणीमुकुट राय का नाम उल्लेखनीय है.
> 12वीं शताब्दी नरसिंह देव द्वितीय स्तम्भ अभिलेख से यह पता चलता है कि राजा नरसिंह देव के क्षेत्राधिकार में झारखण्ड नहीं था.
> झारखण्ड का उल्लेख अकबरकालीन अबुल फजल कृत आइने अकबरी में भी मिलता है.
> वर्तमान झारखण्ड को मुगलकाल में खुखरा प्रदेश के रूप में जाना जाता था जो हीरे के लिए प्रसिद्ध था.
> प्रथम बार मुगल शासक अकबर ने 1585 ई. में खुखरा को अपना करदाता प्रदेश बनाया.
> मुगल शासक जहाँगीर के शासनकाल में यहाँ का राजा दुरजनशाल था जिसे मुगल शासक के बिहार प्रदेश के राज्यपाल इब्राहीम खान फतेह ने जहाँगीर के आदेश पर गिरफ्तार कर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया.
> झारखण्ड मुगल शासकों के लिए हमेशा सर दर्द बना रहा. यह हमेशा मुगल शासक की अधीनस्थता अस्वीकार कर स्वतन्त्र हो जाता.
> पृथक् झारखण्ड की माँग 1911 से ही आरम्भ हो गयी थी जब बंगाल का पुनर्विभाजन हुआ.
> 1913 ई. में छोटा नागपुर नति समाज की स्थापना के बाद से झारखण्ड आन्दोलन को एक गति मिली.
> 1929 ई. में छोटा नागपुर उन्नति समाज की प्रतिनिधि के तौर पर विशप वॉगुन ह्यूक तथा जुएल लकड़ा साइमन कमीशन को एक पृथक् प्रशासी इकाई के सृजन हेतु ज्ञापन सौंपा.
> 1935 में छोटा नागपुर कैथोलिक सभा की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य पृथक् छोटा नागपुर प्रदेश का गठन था.
> 1936 ई. में इस वेक नेतृत्व में छोटा नागपुर उन्नति समाज किसान सभा एवं छोटा नागपुर कैथोलिक सभा को मिलाकर आदिवासी महासभा का निर्माण किया गया है.
> 1939 ई. में आदिवासी महासभा का द्वितीय अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता जयपाल सिंह मुण्डा ने की.
> आदिवासी महासभा की द्वितीय अधिवेशन में जयपाल सिंह मुण्डा का मरड़ गोमके के बारे में दी गई.
> 1939 से छोटा नागपुर ने पृथक् आन्दोलन झारखण्ड आन्दोलन का रूप ले लिया.
> जयपाल सिंह मुण्डा ने अपने आन्दोलन में बाहरी और भीतरी के भेदभाव को नहीं माना,
> जयपाल सिंह मुण्डा के सामने का झारखण्ड में दक्षिण बिहार पश्चिम बंगाल, उड़ीसा एवं मध्य प्रदेश का सीमान्त भू-भाग शामिल था.
> 1948 ई. में पृथक् झारखण्ड आन्दोलन में गैर-आदिवासियों हेतु जस्टिन रिचर्ड ने यूनाइटेट झारखण्ड ब्लॉक का गठन किया.
> 1950 ई. में जयपाल सिंह मुण्डा द्वारा जमशेदपुर में झारखण्ड पार्टी का गठन किया.
> 1959 ई. में झारखण्ड पार्टी का एक प्रतिनिधिमण्डल राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष पृथकू राज्य की माँग की जिसे आयोग ने अस्वीकृत कर दिया.
1963 ई. में जयपाल सिंह मुण्डा के नेतृत्व में कांग्रेस में विलय हो गया. में झारखण्ड पार्टी का
> 1969 ई. में बागुन सुब्रुई के नेतृत्व में अखिल भारतीय झारखण्ड पार्टी का गठन किया गया.
> एन. ई. होरो द्वारा 1969 ई. में झारखण्ड पार्टी का गठन किया गया.
> संथालों के बीच झारखण्ड आन्दोलन को एक गति एवं दिशा प्रदान करने हेतु जस्टिन रिचर्ड का हुल झारखण्ड पार्टी का गठन किया.
> शिबू सोरेन एवं बिनोद बिहारी महतो के द्वारा 4 फरवरी, 1972 को झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की गई.
> झारखण्ड में शिबू सोरेन को दिशुम गुरु भी कहा जाता है.
> 1970 ई. में हुल झारखण्ड पार्टी का विभाजन कर शिबु मुरमु के नेतृत्व में ‘प्रोग्रेसिव हुल झारखण्ड पार्टी का गठन किया.
> श्री शिबू सोरेन द्वारा ‘सोनत संथाल समाज’ की स्थापना की.
> श्री ए. के. राय द्वारा 1971 में मार्क्सवादी समन्वय समिति का गठन किया.
> 13 नवम्बर, 1971 को छोटा नागपुर-संथाल परगना स्वशासी विकास का गठन किया गया.
> शिबू सोरेन के नेतृत्व वाली झारखण्ड पार्टी ने सर्वप्रथम वृहतऱ झारखण्ड राज्य की माँग की.
> वर्ष 1978 में पृथक् झारखण्ड आन्दोलन ने तीव्रगति पकड़ा और तोड़फोड़ की गयी.
> पृथक् कोल्हान राज्य हेतु एक लमारेंडम काल्हान रक्षा संघ द्वारा 1981 ई. में कॉमन वेल्थ रिलेशन ऑफीसर को सौंपा.
> ऑल इण्डिया झारखण्ड स्टूडेन्ट यूनियन का 22 जून, 1980 ई. में प्रभाकर तिर्की की अध्यक्षता में जमशेदपुर में गठित हुआ,
> झारखण्ड में एक प्रमुख नेता निर्मल महतो की हत्या जमशेदपुर में कर दी गई. यह झारखण्ड में प्रथम बड़ी राजनीतिक हत्या थी.
> 1987 ई. में डॉ. रामदयाल मुण्डा एवं वी. पी. केसरी के प्रयास से ‘झारखण्ड समन्वय समिति का गठन किया. वी. पी. केसरी इस समिति के प्रथम संयोजक थे.
> 23 अगस्त, 1989 ई. को भारत सरकार द्वारा झारखण्ड समस्या के समाधान हेतु 24 सदस्यीय कमेटी ऑन झारखण्ड मैट्स का गठन किया गया.
> कमेटी ऑन झारखण्ड मैट्रस् के अध्यक्ष श्री वी. एस. लाली थे.
> 27 सितम्बर, 1994 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिंह राव, गृहराज्य मंत्री राजेश पायलट एवं बिहार के मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने झारखण्ड क्षेत्र स्वायत्त परिषद् प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये.
> 9 जून, 1955 को झारखण्ड क्षेत्रीय स्वायत्त परिषद् का गठन किया गया. श्री शिबू सोरेन इसके प्रथम अध्यक्ष मनोनीत हुए.
> 14 जुलाई, 1996 ई. को झारखण्ड क्षेत्रीय स्वायत्त परिषद् के अध्यक्ष श्री शिबू सोरेन को उपमुख्यमंत्री तथा उपाध्यक्ष श्री सूरज मण्डल को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने सम्बन्धी एक सूचना बिहार सरकार द्वारा जारी की गयी.
> पृथक् झारखण्ड आन्दोलन की सार्थकता झारखण्ड के भारत का 28वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आने से हुई.
> झारखण्ड लोक सेवा आयोग के प्रथम अध्यक्ष फटिकचन्द्र हेम्ब्रम हैं.
> हाथी तथा कोयल को झारखण्ड राज्य में क्रमशः राजकीय पशु तथा राजकीय पक्षी घोषित किया है.
> झारखण्ड का राजकीय वृक्ष ‘साल’ तथा राजकीय पुष्प ‘पलाश’ है.
> झारखण्ड में पहली स्थायी लोक अदालत की स्थापना राँची में की गई है.
> झारखण्ड में खूँटी सौर ऊर्जा संचालित देश का पहला जिला न्यायालय है.

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