झारखण्ड के प्रमुख व्यक्तित्व

झारखण्ड के प्रमुख व्यक्तित्व

‘झारखण्ड के प्रमुख व्यक्तित्व’ शीर्षक के तहत् उन सभी व्यक्तियों की चर्चा की गई जिनके सद्प्रयास से झारखण्ड भारतीय नक्शा पर एक पृथक् पहचान बना सका है. इस अध्याय में राजनीतिक धार्मिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि के प्रमुख व्यक्तित्वों के जीवनवृत्त की संक्षिप्त चर्चा की गई है. यहाँ जीवनवृत्त के चर्चा के समय लेखकद्वय द्वारा इस बात का ध्यान रखा गया कि पाठकों के समक्ष किसी व्यक्तित्व के जीवन के अति महत्वपूर्ण पहलू को प्रस्तुत किया जाए.
इस अध्याय में झारखण्ड आन्दोलन के वर्तमान नेताओं का उल्लेख नहीं किया गया है जिनके अथक प्रयास से झारखण्ड आन्दोलन को एक नयी दिशा मिली. लेखकद्वय ने ऐसे आधुनिक व्यक्तियों का उल्लेख झारखण्ड शीर्षक अध्याय के अन्तर्गत किया है.

> इग्नेस वेक

ये एक रोमन कैथोलिक आदिवासी थे, जिनके प्रयास से 1935 में छोटा नागपुर कैथोलिक सभा का गठन किया गया. ये छोटा नागपुर कैथोलिक महासभा के सचिव थे और इनके प्रयास से 1936 में छोटा नागपुर उन्नति समाज किसान सभा तथा छोटा नागपुर कैथोलिक महासभा को मिलाकर आदिवासी महासभा का गठन किया गया, जिससे झारखण्ड आन्दोलन को नयी स्फूर्ति एवं दिशा मिली.

> कान्हु

संथाल परगना के भगना डीही नामक छोटे से गाँव में जन्मे अमर शहीद कान्हु 1855 के हुल आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण नेता था. इनका जन्म संथाल जनजाति के अति- साधारण परिवार में हुआ था. 1855 के ‘संथाल आन्दोलन’ या ‘हुल आन्दोलन’ के अमर नायक सिद्ध के अनुज थे जो सिद्धू की मृत्यु के बाद भी ब्रिटिश शासन के लिए सरदर्द बना रहा. अन्ततः फरवरी 1886 में ये अंग्रेजों के गिरफ्त में आये.

> कोन्ता मुण्डा

कोन्ता मुण्डा जमाड़ के कोल जनजाति सम्प्रदाय के थे. इन्होंने रुगुदेव के साथ मिलकर 1820 में अंग्रेजों एवं दिकुओं के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई जिसने बाद में जनजातीय विद्रोह का रूप ले लिया.

> गंगा नारायण सिंह

गंगा नारायण सिंह बड़ाभूम (मानभूम-सिंहभूम) राज-परिवार के थे, किन्तु इनमें अपने कोल भाइयों के प्रति स्नेह एवं सद्भावना थी. अतः अंग्रेजों एवं साहूकार महाजनों के घोषणा के विरुद्ध थे भूमिज जनजातियों के 1833-34 में आहुत भूमिज आन्दोलन में नेतृत्व प्रदान किया. इस आन्दोलन की उग्रता से अंग्रेज प्रशासन भयभीत था, किन्तु शासक वर्ग ने ‘कैप्टन थॉमस विल्किंसन के नेतृत्व में सेना भेजकर कठोरतापूर्वक दबा दिया.

> गया मुण्डा

गया मुण्डा 1899 के बिरसा आन्दोलन के अमरनायक बिरसा मुण्डा के अतिप्रिय अनुयायी थे. गया मुण्डा खूँटी जिले के एरकेडीह गाँव के रहने वाले थे. ये एक सरदार थे जिन्होंने बिरसा आन्दोलन के दौरान अपना सर्वस्व, पत्नी, परिवार, सम्पत्ति न्यौछावर कर जनवरी 1900 को स्वयं भी अपने गुरु एवं मातृभूमि के लिए शहीद हो गये.

> जतरा उरांव

जतरा उरांव का जन्म वर्तमान गुमला जिले के विशुनपुर प्रखण्ड के चिंगारी गाँव में 1888 ई. को हुआ था. जतरा उराँव उराँवों के भगत आन्दोलन के जनक थे. इन्होंने उरांवों के मध्य 1912-14 में मध्य वैष्णव धर्म का प्रचारक, गांधीजी का अनुयायी तथा ताना ताना भगत आन्दोलन की शुरूआत की. इस आन्दोलन का उद्देश्य, सत्य, अहिंसा एवं सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना तथा स्वायत्तता के लिए आन्दोलनरत् गांधीजी का अनुसरण करना था. अंग्रेज सरकार इस आन्दोलन से घबराकर 1914 में जतरा उरांव को गिरफ्तार कर 1 ½ वर्ष की सजा दी. जेल से छूटने के 2 माह बाद इनका निधन हो गया.

> जयपाल सिंह मुण्डा

इनका जन्म 3 जनवरी, 1903 को खूँटी जिले के टकरा गाँव में हुआ था. इन्हें आदिवासीगण बिरसा मुण्डा का पुनर्जन्म मानते हैं. इनके पिता अमरु पाहन मुण्डाओं के धार्मिक नेता थे. ये बचपन से अति कुशाग्र बुद्धि के थे, जिससे प्रभावित होकर संत पॉल स्कूल के प्राचार्य केनन कोस ग्रोम इन्हें इंगलैण्ड ले गए और पढ़ाया. 1919 से 1938 तक श्री मुण्डा ने इंगलैण्ड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की. यहाँ के बाद यूरोप, अफ्रीका, अमरीका आदि का भ्रमण किया. इन्होंने अभिनय भी किया. यह हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी थे और भारत सर्वप्रथम 1928 में अमस्टरडम ओलम्पिक में इनकी कप्तानी में विजयी हुआ. श्री मुण्डा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. 1937 में ये रायपुर (छत्तीसगढ़) के राजकुमार कॉलेज में प्राध्यापक रहे और बाद में उप प्राचार्य भी बने. 1931 में इन्होंने कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष वोमेश चन्द्र बनर्जी की भाँजी माया मजूमदार से गन्धर्व विवाह किया. अपने गुरु कनोन कोस ग्रोम के आदेश पर 1935 में झारखण्ड आन्दोलन में शामिल हो गये और 1939 के आदिवासी महासभा का इन्हें अध्यक्ष बनाया गया. राँची के इस महाधिवेशन में इन्हें मरड गोमके की उपाधि दी गई. 1946 में भारतीय संविधान सभा के सदस्य के रूप में इनका चयन किया गया. जयपाल सिंह चाहते थे कि आजादी के पहले ही छोटा नागपुर को बिहार से जिसके लिए ये जीवनभर संघर्षरत् रहे. कर दिया जाए,

> जोएल लकड़ा

छोटा नागपुर में राष्ट्रीय आन्दोलन को गति एवं पृथक् झारखण्ड राज्य को जोएल लकड़ा ने एक स्वरूप प्रदान किया था. जोएल लकड़ा एवं अन्य आदिवासी नेताओं के सहयोग से 1915 में छोटा नागपुर उन्नति समाज का गठन किया. उन्नति समाज की ओर से जोएल लकड़ा एवं विशप वान ह्यूक के नेतृत्व में साइमन कमीशन को पृथक् आदिवासी राज्य हेतु एक ज्ञापन सौंपा.

> जे. बार्शीलमेन

एक आगिक्तकन थे, जिन्होंने सर्वप्रथम 1910 में हजारीबाग में एक स्टूडेन्ट नियन का गठन किया. कालान्तर में इनके प्रयास से आदिवासी उन्नति समाज में आंगलिक एवं लुथेरन मिशन के लोगों ने सक्रिय रूप से भाग लिया.

> टिकैत उमराव सिंह

1857 के स्वतन्त्रता संग्राम का एक सेनानी एवं अमर शहीद जिन्होंने 1857 के संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ ओरमांझी एवं चूटुपालु घाटी में शेख भिखारी के साथ अन्तिम समय तक युद्धरत रहा. इनका जन्म हजारीबाग जिले के खंटगां गाँव में हुआ था और इनकी मृत्यु 8 जनवरी, 1858 को चूटुपालु घाटी में अंग्रेज शासन द्वारा फाँसी देने से हुई.

> जयमंगल पाण्डे

जगदीशपुर में बाबू कुँवर सिंह की पराजय की सूचना पाकर राँची एवं डोरंड से 300 सैनिकों का एक दस्ता रोहतास ( जगदीशपुर ) के लिए प्रस्थान किया. ये दस्ता चन्दवा एवं बालूमाथ होते हुए चतरा पहुँचा. इस क्रांतिकारी दस्ते का नेतृत्व जयमंगल पाण्डे कर रहे थे. जयमंगल पाण्डे के नेतृत्व में अंग्रेजों से युद्ध 2 अक्टूबर 1857 को हुआ था. क्रान्तिकारियों की पराजय हुई एवं 4 अक्टूबर, 1857 को जयमंगल पाण्डे को फाँसी दे दी गई.

> ठाकुर भोलानाथ सिंह

लगभग 1782 में ठाकुर भोलानाथ सिंह ने तामड़ के आस-पास परगनों में फैले जनजातियों के आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया.

> ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

झारखण्ड में 1857 के संग्राम को हवा देने वाले एवं विद्रोहियों के प्रेरणा स्रोत बड़कागढ़ के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव थे. इन्होंने 1857 के विद्रोहियों को अभिप्रेरित करने एवं नेतृत्व प्रदान करने हेतु 1857 में मुक्तिवाहिनी सेना का गठन किया था, जिसमें 1857 के विद्रोह में अमर नायक जयमंगल पाण्डे, बृजभूषण सिंह, भाई घांसी सिंह, टिकैत उमराव सिंह तथा शेख भिखारी शामिल थे.

> तिलका मांझी

इनका उपनाम जाबरा पहाड़िया था. भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का सम्भवतः यह प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी था, जिन्होंने अकेले दम पर 1783 के दशक में अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिये थे. 1783 में संथाल परगना के सुल्तानगंज के जंगलों से अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध किया. 1784 में इन्होंने भागलपुर पर आक्रमण कर अंग्रेजों, साहूकारों एवं महाजनों को अपना शिकार बनाया तथा सरकारी खजानों को लूटने लगा. जब तिलका मांझी के सेनानी विजयी जश्न मनाने लगे तो अंग्रेजों ने उन पर पुनः आक्रमण कर तिलका मांझी को गिरफ्तार कर भागलपुर के एक चौराहे पर पेड़ से लटकाकर फाँसी दे दी. भागलपुर (बिहार) स्थित इस चौक को अब तिलका मांझी चौक कहते हैं.

> थेवले उरांव

थेवले उरांव 1915 में स्थापित छोटा नागपुर उन्नति समाज के गठन में जोएल लकड़ा का सहयोगी था, किन्तु बाद में दोनों के बीच वैचारिक मतभेद हो गया. अतः थेवले उरांव ने 1928 में किसान सभा का गठन किया, जिसके प्रथम अध्यक्ष ये स्वयं थे तथा पॉल दयाल प्रथम सचिव बने.

> देवमानी ( बंधनी)

जतरा ताना भगत की मृत्यु के बाद ताना भगत आन्दोलन को एक नई दिशा एवं गुमला के बाहर हजारीबाग- राँची में इस आन्दोलन को प्रसारित करने वाली यह (देवमनी) महिला जतरा उरांव की महत्वपूर्ण शिष्या थीं. ये गुमला जिले की बटकूरी गाँव की एक साधारण महिला थी, किन्तु अपनी योग्यता एवं कर्मनिष्ठा से ताना भगतों को राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने हेतु अभिप्रेरित की.

> नादिर अली खाँ

31 जुलाई को डोरंडा में सेना ने विद्रोह कर दिया था इस विद्रोह में सूबेदार नादिर अली खाँ एवं जमादार माधव सिंह ने नेतृत्व किया था.

> नीलाम्बर एवं पीताम्बर

पलामू जिले में 1857 के विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया. पलामू के चेरों एवं खरवारों द्वारा कम्पनी शासन के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व नीलाम्बर एवं पीताम्बर शाही ने किया. अन्त में दोनों भाई पकड़े गये एवं दोनों भाइयों को निर्दयतापूर्वक खुलेआम एक पेड़ के नीचे फाँसी पर लटका दिया गया.

> पॉल दयाल

छोटा नागपुर उन्नति समाज के संस्थापक सदस्य एवं 1928 में गठित किसान सभा के प्रथम सचिव बने.

> पण्डित गणपत राय

पण्डित गणपत राय बड़कागढ़ के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के सेनापति थे जिन्होंने मुक्तिवाहिनी सेना का सेनापति पद को भी सुशोभित किया. 1857 के विद्रोह के ये एक प्रमुख सेनानी थे.

> पण्डित आनन्द

बिरसा मुण्डा के धार्मिक गुरु.

> भुखन सिंह

1800-1802 के चेरों आन्दोलन (पलामू) का नेतृत्व किया.

> भगीरथी मांझी

इन्होंने 1874 के खेरवार आन्दोलन का नेतृत्व किया. भगीरथी मांझी गोड्डा जिले के तरडीटा गाँव का रहने वाला था. उसने 1855 के हुल आन्दोलन में भी भाग लिया था. मांझी ने सबको बौंसी नामक स्थान पर बुलाया जहाँ उन्हें जनता ने राजा मनोनीत किया. अब ये खुद लगान प्राप्त करते एवं रसीद निर्गत करते तथा सरकार एवं जमींदार को कर एवं लगान नहीं देने का ऐलान किया. तालडीहा नामक स्थान पर इन्होंने एक पीठ की स्थापना की और इस पीठ में एक संथाल पण्डित मनोनीत किया. अब उन्हें आदिवासी ‘बाबाजी’ के नाम से पुकारने लगे. भगीरथी मांझी की मृत्यु 1879 में हुई.

> बिंदराय

बिंदराय मानकी ‘हो’ जनजाति के थे, जो 1820-36 के दौरान सिंहभूम के हो एवं ‘कोल’ जनजातियों द्वारा अंग्रेज शासक एवं जमींदारों के शोषण के खिलाफ अपने भाई सिंदराय के साथ विद्रोह का नेतृत्व प्रदान किया. बाद में 1933-34 के भूमिज विद्रोह में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.

> बिरसा मुण्डा

बिरसा मुण्डा का जन्म 15 नवम्बर, 1872 को खुट्टी के चकलेद गाँव में हुआ था. इनकी शिक्षा दीक्षा मिहानरी विद्यालय में हुई थी. 1899 में इन्होंने अलगुलान आन्दोलन छेड़ा जिसे अंग्रेजों ने दबा दिया और 3 फरवरी, 1900 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. अन्ततः 3 जून, 1900 राँची के कारागार में ही हैजे से उनकी मृत्यु हो गई.

> माकी

बिरसा मुण्डा के परम अनुयायी गया मुण्डा की वीरांगना पत्नी माकी जो अकेले दम पर अंग्रेजों से लड़ीं एवं उलगुलान हेतु शहीद हो गईं.

> राम नारायण सिंह

इनका जन्म 18 दिसम्बर, 1885 को हजारीबाग जिले (जो अब चतरा जिले में है) के तेतरिया नामक गाँव में हुआ था. 1908 में ये हजारीबाग के सन्त कोलम्बा महाविद्यालय में नामांकन लिया और 1911 में कलकत्ता (कोलकाता) के रिपन कॉलेज से बी. ए. की डिग्री प्राप्त की. 1920 में पटना लॉ कॉलेज से बी. एल. की डिग्री प्राप्त कर पटना में प्रैक्टिस करने लगे. इन्होंने 1921 में असिस्टैण्ट सेंटलमैंट ऑफीसर के पद से इस्तीफा देकर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े. 1925 से 1947 तक हजारीबाग जिले के कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे. 1927 में ये भारतीय विधान सभा के सदस्य चुने गये और 1946 में संविधान सभा के सदस्य चुने गये. राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान इन्हें अनेक बार जेल भी जाना पड़ा. 1940 के रामगढ़ कांग्रेस सम्मेलन के दौरान डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इन्हें ‘छोटा नागपुर’ केसरी की उपाधि से अलंकृत किया. ये कई बार सांसद रहे. 1952 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली के गुरुदीक्षा समारोह की अध्यक्षता भी की.
पृथक् राज्य आन्दोलन में इनकी भूमिका अविस्मरणीय है. ये संसद ‘समय-समय पर इस मुद्दे पर अपना विचार प्रस्तुत करते थे.

> राजा मेदिनीराय

पलामू में चेरों का साम्राज्य था और इस साम्राज्य के सबसे प्रतापी राजा मेदिनीराय थे, जिनके कार्यकाल (1662-75) में पलामू जिले में काफी समृद्धि आई.

> राजा अर्जुन सिंह

ये सिंहभूम के पोडाहाट के राजा थे. इन्होंने चाईबासा स्थित रामगढ़ बटालियन द्वारा 1857 में विद्रोह कर भागने वाले विद्रोही सैनिकों को अपने यहाँ शरण दी. बाद में स्वयं इन विद्रोहियों के साथ 1857 के विद्रोह में अंग्रेजी शासन के खिलाफ उठ खड़े हुए.

> रूदुदेव

कोन्ता मुण्डा के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ रूदुदेव ने विद्रोह कर दिया.

> बुद्धो भगत

1832 में अंग्रेजों की खिलाफत की. एक जनजातीय धार्मिक नेता थे.

> सिद्धू

संथाल परगना के छोटे से गाँव भगनाडीही में सिद्धू ने जन्म लेकर 1855 में संथालों को अंग्रेजों एवं शोषकों के खिलाफत करने हेतु अभिप्रेरित किया एवं अपने भाई कान्हु चांद तथा भैरव एवं दो बहनों फूलो और झानो की मदद से दस हजार संथालों को नेतृत्व प्रदान किया. इनके विद्रोह से अंग्रेज व्याकुल हो गये थे. अतः सिद्धू एवं कान्हु को गिरफ्तारी हेतु ₹ 10 हजार इनाम की घोषणा की गयी. अगस्त 1855 में सिद्धू गिरफ्तार कर लिए गए एवं 1856 में इन्हें फाँसी दे दी गयी.

> सिंदराय

सिंदराय मानकी तत्कालीन इथागुटु परगना ( तमाड) के हो जनजाति सम्प्रदाय के थे. अंग्रेजों एवं दिकु शोषकों द्वारा उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया, जिससे ऊबकर उन्होंने 11 दिसम्बर, 1831 को विद्रोह की घोषणा कर दी. अन्ततः अंग्रेजों को झुकना पड़ा एवं उनके छीने गये गाँव वापस करने पड़े तथा मुण्डा मानकी पद्धति को मान्यता दी गई.

> शेख भिखारी

इनका जन्म 1819 में ओरमांझी में हुआ था. इनके पिता शेख बिलंदु अनगढ़ा के समीप स्थित औरागढ़ स्टेट के जमींदार थे, जो उन्हें उनकी बहादुरी के कारण मिला था. शेख भिखारी भी अपने पिता की तरह बहादुर थे. इन्होंने ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के मुक्तिवाहनी में शामिल होकर 1857 के भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेज सेना के खिलाफ चुटुपालु घाटी, ओरमांझी एवं चतरा के युद्ध में भाग लिया. अन्ततः ये 6 जनवरी, 1858 को गिरफ्तार हुए एवं 8 जनवरी को इन्हें टिकैत उमरांव सिंह के साथ फाँसी दे दी गई.

> बाबू राम नारायण सिंह

अमर स्वतन्त्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता बाबू राम नारायण सिंह का जन्म चतरा जिले के हंटरगंज प्रखण्ड के अन्तर्गत तेतरिया ग्राम में 19 दिसम्बर, 1884 को हुआ था. 1920 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन का आह्वान किया था, जिसमें विशेष रूप से वकीलों और विद्यार्थियों से सक्रिय सहयोग की अपील की गई थी. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर आपने वकालत छोड़कर देश सेवा का व्रत लिया और आजीवन अर्थात् जून 1964 तक लगातार मातृभूमि की सेवा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया.
1931 से 1947 तक इन्हें आट बार अंग्रेजों द्वारा दी गई जैल यातना सहनी पड़ी, जेल में इन्हें बेड़ी की सजा भी दी गई थी. अंग्रेजों ने उनके साथ बड़ी बेरहमी और सख्ती का बर्ताव किया. अंग्रेज सरकार की इन पर कड़ी नजर रहती थी. इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि 1934 में भूकम्प के समय देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से लेकर सभी अन्य स्वयंसेवक तथा राजनीतिक बंदियों को छोड़ दिया गया था, किन्तु बाबू राम नारायण सिंह को जेल में ही रखा गया था.
1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय वे हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में भेज दिए गए थे, जहाँ दीपावली की रात 9 नवम्बर, 1942 को अन्य क्रान्तिकारियों के साथ वे भी भागने में सफल रहे. राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी के सदस्य के रूप में चतरा लोक सभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए और एक निर्वाचित सदस्य के रूप में आपने प्रशंसनीय कार्य किए. आपने ‘स्वराज्य लुट गया’ नामक पुस्तक की रचना की, जो आपकी निर्भीकता एवं जागरूकता की साक्ष्य है.

> डॉ. गाब्रियल हेमरोम

राँची से 170 किमी दूर गुमला जिले के ‘हाटिंग होड़े’ गाँव में रहने वाले डॉ. गाब्रियल हेमरोम, जड़ी-बूटी विशेषज्ञ हैं और अपने पूर्वजों से विद्या और प्रेरणा लेकर इसकी महत्ता को पहचानते हुए विभिन्न बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज कर रहे हैं, जिसमें कैंसर महत्वपूर्ण है. डॉ. हेमरोम के पास देश के कोने-कोने से कैंसर पीड़ित मरीज तो आते ही हैं, साथ ही विदेशों से भी लोग यहाँ इलाज कराने आते हैं और जड़ी-बूटी से निर्मित दवा का उपयोग करते हैं. कइयों ने इस बीमारी से निजात भी पाया है.

> अल्बर्ट एक्का

लांस नायक अल्बर्ट एक्का राँची के निवासी थे. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मनों के दाँत खट्टे करते हुए शहीद हो गए. उन्हें मरणोपरान्त सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र प्रदान किया गया. वे एकमात्र झारखण्डी सैनिक हैं, जिन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया है.

> जात्रा भगत

ये छोटा नागपुर में 1913-14 में ‘ताना भगत आन्दोलन’ के मुख्य सूत्रधार थे.

> सखाराम गणेश देवस्कर

देवघर जिले के ‘कैरों’, ग्राम में जन्मे इस साहित्यकार ने क्रान्ति साहित्य साधना करके ‘क्रान्ति इतिहास’ में अपना नाम अमर कर लिया. उनकी पुस्तक ‘देशेरकथा’ को अंग्रेज सरकार ने प्रतिबन्धित किया, फिर भी वह 5 बार प्रकाशित हुई. यही कीर्तिमान उनकी एक अन्य पुस्तक ‘तिलकेर मुकदमा ने भी स्थापित किया. उन्होंने लगभग 25 पुस्तकें, एक हजार से अधिक निबन्ध लेखन के साथ ही दैनिक ‘हितवाद’ का भी सम्पादन किया.

> ललित मोहन रॉय

दुमका निवासी श्री रॉय एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के विशिष्ट चित्रकार हैं. उनका मुख्य चित्रांकन आदिवासी जीवन पर आधारित है. वर्ष 1989 में उन्हें ‘कला श्री’ से सम्मानित किया गया.

> हरेन ठाकुर

राँची के इन विख्यात चित्रकार ने छोटा नागपुर शैली को विशिष्टता प्रदान करते हुए, उसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्रदान करवाई. उन्हें कलकत्ता की ‘आल इण्डिया फाइन आर्टस् अकादमी’, विश्वभारती, कोलकाता का ‘इन्फॉर्मेशन सेंटर’, प्रवासी बांग्ला क्लब, कनाडा तथा न्यूयॉर्क की कला संस्थाओं ने सम्मानित किया.

> भीष्म नारायण सिंह

श्री सिंह का जन्म झारखण्ड के पलामू जिले में 13 जुलाई, 1933 को हुआ था. आप बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के स्नातक हैं. छात्र जीवन में आपने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में यूथ कांग्रेस का गठन किया और 1953-54 में उसके सह-संयोजक बने. श्री सिंह ने पलामू जिले में ग्राम पंचायत और ग्राम परिषदों का गठन किया. आप 1967 से 1976 तक बिहार विधान सभा के सदस्य रहे. बाद में राज्य के शिक्षा राज्यमंत्री (1971), खान मंत्री (1972-73), खाद्य आपूर्ति मंत्री (1973-74) रहे. 1976 में आप राज्य सभा के लिए चुने गये. 1982 में पुनः राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुए.
1977 में आप कांग्रेस पार्लियामेण्टरी पार्टी के उप-सचेतक बने. 1980 में आप संसदीय मामलों के राज्यमंत्री बने और आपको 1980 से 1983 तक संचार, श्रम और गृह निर्माण विभाग का भी अतिरिक्त भार मिला. आप जनवरी-फरवरी 1982 में नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री भी रहे हैं. आप 15 वर्षों तक बिहार प्रदेश कांग्रेस समिति और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य रहे. 1967-72 तक राँची विश्वविद्यालय की सीनेट के सदस्य रहे. 1967 में BISCOMAUN के डायरेक्टर रहे. 1974-75 में बिहार राज्य कॉपरेटिव गृहनिर्माण वित्तपरिषद् के चेयरमैन रहे हैं. आप मेघालय और तमिलनाडु के राज्यपाल रहे हैं.

> सैयद शहाबुद्दीन

आपका जन्म 4 नवम्बर, 1935 को राँची में हुआ. आप 1956 से 1958 तक पटना विश्वविद्यालय में लेक्चरर रहे. 1958 में आप विदेश सेवा में सम्मिलित हो गये और आप विभिन्न पदों पर रहकर देश सेवा करते रहे. 1978 में आपने विदेश सेवा से इस्तीफा दे दिया. 1980 से 1985 तक जनता पार्टी में महामंत्री रहे. 1979 से 1984 तक राज्य सभा के सदस्य रहे. वर्तमान में आप अखिल भारतीय मुस्लिम मजलिस मुशावरात के कार्यकारी अध्यक्ष हैं तथा सुप्रीम कोर्ट के वकील और Muslim India मासिक पत्रिका के सम्पादक हैं.

> करिया मुण्डा,

आपका जन्म 20 अप्रैल, 1936 को झारखण्ड राज्य के राँची जिले के अनिगारा नामक स्थान पर हुआ था. आप पहले से ही जनसंघ से सम्बन्धित थे. आप-1971-72 में बिहार इकाई के संयुक्तमंत्री रहे 1977 से 1979 तक तथा 13वीं लोक सभा के सदस्य रहे हैं. आप ‘भारत सरकार’ के इस्पात एवं खान राज्यमंत्री व कोयला मंत्री (कबिनेट मंत्री) रहे हैं.

> बाबूलाल मरांडी

राज्य के वरिष्ठ ‘भाजपा’ नेता श्री मरांडी ने दुमका सुरक्षित संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित होकर अपनी पार्टी को अत्यधिक शक्तिशाली होने में उल्लेखनीय योगदान किया. श्री मरांडी झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री चुने गये. इससे पहले वे केंद्रीय मंत्रिपरिषद् ( वाजपेयी मंत्रिमंडल) में पर्यावरण और वन राज्यमंत्री के रूप में कार्यरत् थे.

> यशवन्त सिन्हा

राज्य के हजारीबाग संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से पुनः निर्वाचित श्री सिन्हा ‘भाजपा’ के एक ऐसे प्रतिभा सम्पन्न राजनेता हैं, जिन्होंने 12वीं तथा 13वीं लोक सभा के गठन के बाद बनी ‘वाजपेयी सरकार’ में केन्द्रीय वित्त मंत्री के रूप में देश की अर्थव्यवस्था को
सुधारने में अभूतपूर्व योगदान दिया है. वह एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्थशास्त्री हैं. अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमण्डल (केन्द्रीय मंत्रिमण्डल) में वित्त मंत्री व विदेश मंत्री रहे हैं.

> सीमोन उरांव

बेड़ो, राँची के 60 वर्षीय सीमोन उरांव, 51 गाँवों के पड़हा राजा हैं. इन्होंने अनपढ़ होते हुए भी गाँव में आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई शुरू कराने में सफलता पाई. पाँच हजार फीट नहर काटकर, 42 फीट ऊँचा बाँध बनाकर न सिर्फ 50 एकड़ में सिंचाई की सुविधा प्रदान की जिससे तीन फसलें उपजाकर प्रखण्ड के अनेक गाँव अपना पेट ही नहीं भर रहे हैं, बल्कि बची उपज को बेचकर कमाई भी कर रहे हैं. साथ ही, इन्होंने जंगलों की सुरक्षा का भार भी अपने कंधों पर लिया, जिसमें ग्रामवासियों का पूरा सहयोग था. इनसे प्रभावित होकर छोटा नागपुर के 45 गाँव इसका अनुसरण कर रहे हैं. सारा कार्य बिना सरकारी मदद के हुआ है. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने इनके कार्य और लगन से प्रभावित होकर ‘हाउ टू प्रैक्टिकली कनजर्व द फॉरेस्ट इन झारखण्ड’ शीर्षक पर शोध कर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.
> मुख्य बातें
> इगनेस वेक के सद्प्रयास से छोटा नागपुर कैथोलिक महासभा छोटा नागपुर उन्नति समाज एवं आदिवासी महासभा का गठन हुआ और झारखण्ड आन्दोलन को एक नई दिशा मिली.
> हुल आन्दोलन के नायक कान्हु का जन्म संथाल परगना के भगनाडीही नामक स्थल पर हुआ था और 1886 ई. में अंग्रेजों की गिरफ्त में आकर अमर शहीद हो गये.
> 1820 के कोल विद्रोह के सहनायक कोन्ता मुण्डा थे.
> 1833-34 ई. के भूमिज विद्रोह के नायक गंगा नारायण सिंह बड़ाभूम राज परिवार के थे. Teste
> उलगुलान आन्दोलन के नायक बिरसा मुण्डा के मजबूत स्तम्भ गया के मुण्डा थे.
> 1912-1914 ई. के ताना भंगत आन्दोलन के प्रणेता जतरा उराँव थे, जिनका जन्म 1888 ई. को गुमला जिले के चिंगारी गाँव में हुआ था.
> जयपाल सिंह मुण्डा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. ये हॉकी के अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, एक अभिनेता, प्राध्यापक तथा राजनेता थे. इन्हें बिरसा मुण्डा का अवतार माना जाता है.
> 1915 ई. में जोएल लकड़ा ने छोटा नागपुर उन्नति समाज की स्थापना की.
> जे. वार्शिलमेन हजारीबाग में एक स्टूडेंट यूनियन का गठन किया.
> टिकैत उमरांव सिंह 1857 के स्वतन्त्रता संघर्ष का नायक तथा मुक्तिवाहिनी का एक सदस्य था.
> 1957 के राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम का एक अमर नायक जयमंगल पाण्डे था जो चतरा संघर्ष में मुक्तिवाहिनी का सेना नायक था.
> 1782 के तमाड़ विद्रोह को ठाकुर भोलनाथ सिंह ने नेतृत्व प्रदान किया.
> ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव 1857 के संग्राम के दौरान गठित मुक्तिवाहिनी सैन्य दल का संस्थापक था.
> तिलका माँझी उर्फ जाबरा पहाड़िया 1783 ई. के तिलका आन्दोलन का नायक था.
> थेवले उराँव 1915 में गठित छोटा नागपुर उन्नति समाज के सह संस्थापक एवं किसान सभा के संस्थापक थे.
> देवमनी जतरा ताना भगत की पत्नी थी जिन्होंने भगत की मृत्यु के बाद ताना भगत आन्दोलन का नेतृत्व सँभाला.
> नादिर अली खाँ, नीलाम्बर एवं पीताम्बर 1857 के भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के अमर नायक थे.
> पॉल दयाल छोटा नागपुर उन्नति समाज के संस्थापक थे.
> पण्डित गणपत राय मुक्तिवाहिनी सेना के सेनापति थे.
> भुखनसिंह चेरो आन्दोलन (1800-1802) के नेता थे.
> भगीरथी माँझी 1874 के खेरवार आन्दोलन के नेता थे जो आदिवासियों में ‘बाबाजी’ के नाम से जाने जाते थे.
> बिरसा मुण्डा, अलगुलान आन्दोलन के प्रणेता थे. इनके धार्मिक गुरु के पण्डित आनन्द थे तथा मुख्य सहयोगी गया मुण्डा एवं उनकी पत्नी भाकी थी.
> 1831-32 के कोल विद्रोह के नायक सिंदराय एवं बिंदराय थे.
> झारखण्ड के प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानी एवं ‘छोटा नागपुर केसरी’ रामनारायण सिंह ने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
> पलामू के चेरों का राजा मेदिनीराय था.
> सिंहभूम के पोड़ाहाट के राजा अर्जुन सिंह ने 1857 के संग्राम में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया.
> 1855 के संथाल विद्रोह या हुला आन्दोलन के नेता सिद्ध एवं कान्हु दो भाई थे.
> शेख भिखारी मुक्तिवाहिनी सेना के एक प्रमुख सैनिक थे जो राष्ट्र के नाम पर 1858 ई. को हँसते-हँसते फाँसी पर चढ़ गये.
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