डायनेमो क्या है? इसके क्रिया, सिद्धांत और कार्यविधि का सचित्र वर्णन करें।

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प्रश्न – डायनेमो क्या है? इसके क्रिया, सिद्धांत और कार्यविधि का सचित्र वर्णन करें।

उत्तर – यदि एक कुण्डली को एक प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान किया जाए तो कुण्डली में एक वि.वा.बल प्रेरित होता है और जब तक कुण्डली पर पड़ता चुम्बकीय क्षेत्र बदलता रहेगा उसमें वि॰वा॰ बल बरकरार रहेगा। इसी बात का प्रायोगिक स्वरूप एक विद्युत जनित्र होता है जिसमें एक प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र में एक कुण्डली को समरूप ढंग से घूर्णित करते हैं।
        सिद्धांत : जनित्र इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी चालक में प्रेरित धारा तब उत्पन्न होती है जब इससे संबंधित चुंबकीय रेखाओं में परिवर्तन होता है। उत्पन्न विद्युत धारा की दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियम के अनुसार होती है।
       बनावट : साधारण डायनेमों में एक शक्तिशाली नाल चुम्बक होता है जिसे क्षेत्र – चुम्बक कहते हैंक्षेत्र – चुम्बक के ध्रुवों के बीच क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाली एक कुंडली होती है जिसे आर्मेचर कहते हैं। आर्मेचर में कुण्डली के अनेक फेरे होते हैं जो नर्म लोहे की पहियों पर लिपटे रहते हैं। इसे आर्मेचर का क्रोड कहते हैं। आर्मेचर के तार का छोर पीतल के वलयों से ढँके रहते हैं तथा इन वलयों से कार्बन की पत्तियाँ हल्का स्पर्श करती हैं। इन पत्तियों को ब्रश कहा जाता है। परिपथ को इन्हीं ब्रश में लगे पेंचों से जोड़ दिया है।
       क्रिया : कुण्डली की धुरी को यांत्रिक ढंग से या वाष्प या उच्च-वेग युक्त पानी की धारा से घुमाया जाता है। चूँकि आर्मेचर चुम्बकीय क्षेत्र के लंबवत् स्थित अक्ष के परितः घूमती है अतः उसपर पड़ता चुम्बकीय क्षेत्र सदैव बदलता रहता है। इस कारण उसमें एक वि० वा० बल प्रेरित होता है। आर्मेचर के एक बार पूरी तरह घूमने में उसपर पड़ते चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं की संख्या महत्तम-शून्य-महत्तम शून्य – महत्तम होती है। ऐसी धारा आर्मेचर के प्रत्येक घूर्णन में अपनी दिशा बदलती है अर्थात् प्रथम अर्धघूर्णन काल (O – T / 2) में यदि इसकी दिशा धनात्मक है तो दूसरे अर्धघूर्णन काल (T / 2 – T) में वह ऋणात्मक होगी। ऐसी धारा को प्रत्यावर्ती धारा तथा वि.वा.बल को प्रत्यावर्ती वि०वा० बल कहते हैं ।

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