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प्रश्न – निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें –
साहित्य का सृजन एक व्यक्ति करता है और उसके माध्यम से वह अपनी निजी अनुभूतियों और मान्यताओं की अभिव्यक्ति करता है। किन्तु वह व्यक्ति किसी-न-किसी समाज में रहता है, समाज की मर्यादाओं में पलता है, और उसके गुण-अवगुणों से प्रभावित होता रहता है। वह अपने समाज के प्रभावों से कभी अछूता नहीं रह सकता। जैसे वह समाज की उपज है, वैसी ही इसकी कृति भी समाज – सापेक्ष होती है। यही कारण है कि एक युग में लिखने वाले दो या तीन साहित्यकारों में समान विचार – धारा मिलती है। रीतिकाल में जो उदासीनता और विलासिता छायी हुई थी, वह हिन्दी के सब कवियों में दृष्टिगोचर होती है। भारतेन्दु युग के दौरान जो देश में नयी जागृति आ गई उसका प्रतिबिम्ब हिन्दी के तत्कालीन कभी कवियों की रचनाओं में पाया जाता है। इंग्लैण्ड में रेस्टोरेशन युग (17वीं सदी उत्तरार्द्ध) का भ्रष्टाचारपूर्ण जीवन उस युग के नाटकों में विकसित हुआ।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें –
(क) साहित्यकार अपनी अनुभूतियों और मान्यताओं की अभिव्यक्ति किस माध्यम से करता है ?
 (ख) कृतिकार की कृति पर समाज की गतिविधियों का कैसा प्रभाव पड़ता है ?
 (ग) एक ही युग में लिखने वाले दो या तीन साहित्यकारों में समान विचारधारा क्यों मिलती है?
 (घ) रीतिकाल के कवियों में कौन-से भाव छाये हुए थे ?
(ङ) रेस्टोरेशन युग के नाटकों में किस प्रकार का जीवन विकसित हुआ है?
उत्तर –
(क) साहित्यकार अपनी अनुभूतियों और मान्यताओं की अभिव्यक्ति साहित्य के माध्यम से करता है।
(ख) कृतिकार की कृति पर समाज की गतिविधियों का सापेक्ष प्रभाव पड़ता है जो उसकी कृति में प्रतिबिम्बित होती है।
(ग) वे सभी उसी समाज की उपज होते हैं इसलिए उनकी विचारधारा भी समान होती है।
(घ) रीतिकाल के कवियों में उदासीनता और विलासिता छायी हुई थी।
 (ङ) रेस्टोरेशन युग के नाटकों में भ्रष्टाचारपूर्ण जीवन विकसित हुआ है।

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