निर्देशन एवं परामर्श के प्रकाश एवं क्षेत्र की विवेचना करें ।
- व्यक्ति में निहित योग्यताएँ तथा क्षमताएँ ।
- किसी कार्य के सम्पन्न किए जाने के अवसर पर ली जाने वाली निर्णय क्षमता ।
- व्यक्ति का विकास तथा व्यावसायिक विकल्प ।
- व्यक्तित्व संरचना तथा वैयक्तिक अभिप्रेरणा ।
- परिष्कार तथा अनुकूलीकरण ।
- विद्यमान परिस्थितियाँ |

निर्देशन के सामान्य प्रकार – निर्देशन के कुछ सामान्य प्रकार निम्न प्रकार हैं—
1. शैक्षिक निर्देशन – ब्रीवर ने अपनी पुस्तक ‘एजूकेशन ऐज गाइडेन्स’ में निर्देशन की व्यापक व्याख्या की है, जिसमें शिक्षा तथा निर्देशन के मध्य अन्तर ही समाप्त हो जाता है ।
मायर्स के अनुसार—“शैक्षिक के विकास अथवा शिक्षा हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए छात्रों के विभिन्न गुणों एवं विकास के अवसरों के विभिन्न समूहों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने वाला उपक्रम है । ”
जोन्स के अनुसार — ” शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध छात्रों को निर्देशन द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता से है, जो इन्हें विद्यालयों, पाठ्यचर्याओं, पाठ्यक्रम के चुनाव एवं विद्यालयों के जीवन में सम्बद्ध समायोजनों के लिए अपेक्षित है । ”
रूथ स्ट्रैंग के अनुसार— ” शैक्षिक निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति को उचित कार्यक्रमों को के बनाना एवं उसमें प्रगति करने में सहायता देना है । ”
भारत की शैक्षिक परिस्थितियों में शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता निम्न प्रकार है—
- पाठ्यक्रम, उपयुक्त विषयों तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं के चयन हेतु ।
- अधिगम की प्रक्रिया में अपेक्षित रुचि एवं ध्यान बनाए रखना ।
- प्रदत्त कार्यों को भली-भाँति पूर्ण करने हेतु ।
- राष्ट्रीय एकता, नैतिक, धार्मिक एवं प्रौढ़ शिक्षा से सम्बन्धित कार्यक्रमों में इसी प्रकार से सम्मिलित होने के लिए ।
- अपव्यय तथा अवरोधन जैसी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने हेतु ।
- शिक्षार्थी की क्षमता ।
- रुचि एवं साधनों के अनुरूप शैक्षिक योजना का निर्माण |
- शिक्षार्थी की भावी सम्भावनाओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना ।
- शैक्षिक कार्यक्रम में वांछित प्रगति हेतु सहायक होना तथा विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को भली-भाँति पूर्ण करने के लिए विद्यालय के कर्मचारियों, पाठ्यचर्याओ एवं प्रशासनिक परिवर्तन विषयी सुझाव देना ।
2. व्यावसायिक निर्देशन – व्यावसायिक निर्देशन के अन्तर्गत व्यक्ति में निहित क्षमताओ, योग्यताओं तथा व्यावसायिक जगत् की परिवर्तित परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं का मूल्यांकन किया जाता है। व्यवसाय से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु निर्देशन प्रदान की जाने वाली यह इस प्रकार की सहायता है जो व्यावसायिक अवसरों के लिए अपेक्षित योग्यताओं को ध्यान में रखकर प्रदान की जाती है ।
डोनाल्ड सुपर के अनुसार–“व्यावसायिक निर्देशन का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को इस योग्य बनाना है कि वह अपने व्यवसाय से समुचित समंजन कायम कर सके, अपनी निहित मानवीय शक्ति का प्रभावी उपयोग कर सके तथा उपलब्ध सुविधाओं द्वारा समाज का आर्थिक विकास कर सकने में सक्षम हो सके।”
क्रो तथा क्रो के द्वारा व्यावसायिक निर्देशन के उद्देश्यों पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है। 1932 में संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘ह्वाइट हाउस’ में ‘बाल स्वास्थ्य एवं सुरक्षा’ विषय पर आयोजित विचारगोष्ठी में व्यावसायिक निर्देशन सम्बन्धी उपसमिति द्वारा व्यावसायिक निर्देशन का क्षेत्र निर्धारित करते हुए कहा गया कि व्यावसायिक निर्देशन व्यक्ति को व्यवसाय के चुनाव, उसके लिए तैयार होने, उसमें लगने एवं उन्नति करने में सहायता करने वाला प्रक्रम है। व्यावसायिक शब्द सभी लाभदायक व्यवसायों पर लागू होता है । व्यावसायिक निर्देशन एवं व्यावसायिक शिक्षा को लोग शिक्षा तथा निर्देशन की भाँति एक मानने की भूल कर बैठते हैं । अतः, समिति ने रिपोर्ट में इस अन्तर का स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है”व्यावसायिक शिक्षा किसी विशिष्ट व्यवसाय में कार्य करने की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को दीक्षा देने का कार्य करती है । व्यावसायिक निर्देशन किसी व्यवसाय के चुनाव एवं उसके उपरान्त होने वाली दीक्षा से सम्बन्धित सूचनाएँ एवं सहायता प्रदान करता है ।”
3. व्यक्तिगत निर्देशन – व्यक्तिगत निर्देशन का महत्त्व निर्देशन के क्षेत्र में अत्यधिक है । इसके अन्तर्गत पैटरसन ने सामाजिक, मनोवेगात्मक तथा अवकाश सम्बन्धी निर्देशन को सम्मिलित किया है । वस्तुतः व्यक्तिगत निर्देशन के क्षेत्र में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ, मनोवेगात्मक समायोजन, सामाजिक समायोजन तथा अवकाश एवं मनोरंजन की समस्याओं को ग्रहण किया जाना चाहिए ।
लेस्टर डी. क्रो एण्ड एलिस क्रो के शब्दानुसार– “व्यक्तिगत निर्देशन का तात्पर्य व्यक्ति को प्रदत्त उस सहायता से है जो उसके जीवन के समस्त क्षेत्रों तथा अभिवृत्तियों के विकास को दृष्टि में रखकर उचित समायोजन की दिशा में निर्दिष्ट होती है । ”
व्यक्तिगत निर्देशन की प्रक्रिया अधिक जटिल होती है। परिवार, यौन जीवन, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य तथा अवकाश के क्षणों इत्यादि के उपयोग तथा समस्याओं को व्यक्तिगत निर्देशन के अन्तर्गत रखा जाता है ।
विद्वानों के अनुसार निर्देशन के प्रकार – विद्वानों की दृष्टि में निर्देशन के प्रकार निम्नवत् हैं—
- प्रॉक्टर के अनुसार – विलियम मार्टिन प्रॉक्टर की पुस्तक ‘शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन’ में निर्देशन के छः प्रकार वर्णित किए गए हैं, जो निम्न प्रकार हैं—
- ब्रीवर के अनुसार – जॉन एम. ब्रीवर (1932) ने अपनी पुस्तक ‘शिक्षा तथा निर्देशन’ में एक नवीन सूची प्रकाशित कर निर्देशन के दस प्रकार बताए हैं, जो अग्र प्रकार हैं—
- पैटरसन के अनुसार-पैंटरसन ने निर्देशन का वर्गीकरण करते समय व्यावसायिक निर्देशों का उल्लेख तो किया है, साथ-ही-साथ व्यक्तिगत निर्देशन को भी सम्मिलित किया है। सामाजिक, मनोसंवेगात्मक, अवकाश सम्बन्धी निर्देशन को उन्होंने व्यक्तिगत निर्देशन के अन्तर्गत स्थान दिया तथा अन्य प्रकारों को भी व्यक्तिगत तथा सामाजिक निर्देशन के अन्तर्गत स्थान प्रदान किया। पैटरसन द्वारा निर्देशन के बताए गए पाँच प्रकार निम्नवत् हैं —
परामर्श के प्रकार एवं क्षेत्र (Types and Scopes of Counselling) – परामर्श को गिलबर्ट ने जहाँ दो व्यक्तियों के मध्य होने वाली गतिशील प्रक्रिया माना है वहीं मायर्स ने इसे दो व्यक्तियों के मध्य होने वाले सम्बन्ध के रूप में माना है। इस प्रकार परामर्श में एक व्यक्ति दूसरे की समस्या का समाधान करने में सहायता करता है। परामर्श के क्षेत्र एवं प्रकार, समस्या तथा विषय और उपबोध्य की दृष्टि से निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है।
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