पर्यावरण सरंक्षण तथा धारणीय विकास में क्या अंतर है? भारत में आर्थिक संवृद्धि तथा पर्यावरण अध:पतन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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प्रश्न – पर्यावरण सरंक्षण तथा धारणीय विकास में क्या अंतर है? भारत में आर्थिक संवृद्धि तथा पर्यावरण अध:पतन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर –  पर्यावरण संरक्षण और विकास का आपस में बहुत घनिष्ठ संबंध है, इसलिए क्योंकि शायद हमारे विकास के मौजूदा प्रतिमान ने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचाया है। पर्यावरण एवं विकास हेतु गठित विश्व आयोग के अनुसार सतत् विकास की अवधारणा की शुरूआत तो इस सदी में हुई है, लेकिन इसका लाभ वर्तमान से लेकर आने वाली पीढ़ियों तक को मिलेगा। धारणीय विकास संभावना को बनाए रखता है, यह आने वाली पीढ़ियों ओर पर्यावरण को बचाए रखता है | सतत विकास हेतु पर्यावरण का सरंक्षण अति महत्वपूर्ण है। अगर पर्यावरण का संरक्षण उचित ढंग से नहीं किया जाता तो यह विकास की प्रक्रिया को बाधित कर देगा। जिससे कई प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न होंगी जो विनाश की प्रक्रिया को तीव्र करते हुए आने वाली पीढ़ी के लिए विकास के कार्यों में अवरोध उत्पनी करेंगी। संसाधनों के अभाव और निरंतर बढ़ रहे प्रदूषण के कारण सतत् विकास की प्रक्रिया बाधित होगी।

हाल के दिनों में तीव्र आर्थिक विकास एवं तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या ने भी पर्यावरण के लिए अनेकों समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं। इसके प्रमुख कारक हैं तेजी से बढ़ता शहरीकरण एवं उद्योगों की संख्या में तेजी से ही रही निरंतर वृद्धि । वहीं बड़े पैमाने पर कृषि का विस्तार तथा तेजी से वनों का नष्ट होना भी अन्य महत्वपूर्ण कारक हैं, जिससे पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।

पर्यावरणीय विषयों के अंतर्गत जैव विविधता में कमी, एवं कृषि भूमि क्षरण, संसाधन रिक्तिकरण, परिस्थितिकी प्रणालियों में लचीलापन की कमी आदि कारक इसमें शामिल हैं।

विभिन्न संस्थाओं द्वारा जारी किए गए एक अनुमान के अनुसार 2050 तक भारत की जनसंख्या चीन से अधिक हो जाएगी। यानी भारत विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। भारत में कुल विश्व की कुल जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत लोग रहते हैं। जबकि यहाँ का क्षेत्रफल विश्व के कुल क्षेत्रफल की तुलना में सिर्फ 2.4 प्रतिशत है, जिससे यहां संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बढ़ता जा रहा है।

वर्ष 1991 के बाद से दी भारत में आर्थिक विकास की प्रक्रिया आरंभ हुई। इस क्रम में औद्योगीकरण के साथ-साथ नगरीकरण पर भी काफी बल दिया गया। इसके कारण प्रदूषण की समस्या जैसे वायु प्रदूषण, वनों की कटाई आदि आरंभ हो गई जिसका प्रभाव सीधे तौर पर देश पर पड़ा। हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत विश्व की सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था वाला देश है। विगत् दशकों में भी भारत की विकास दर 7.9% तक थी । यद्यपि पिछले दशक में तेजी से विकास हुआ लेकिन इसका प्रभाव पर्यावरण पर पड़ा।

विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पर्यावरणीय नुकसान की कीमत 80 बिलियन डॉलर के करीब है। हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार वायु प्रदूषण से ग्रस्त 132 देशों की सूची में भारत का स्थान 126वां था । सर्वे के अनुसार वायु प्रदूषण अत्यंत खराब स्थिति में है। वायु प्रदूषण के मुद्दे पर भारत, चीन, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से भी नीचे है। विश्व स्वास्थ्य संगठन जी-20 देशों के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 13 भारत में हैं। वार्षिक भूमि उपलब्धता प्रति व्यक्ति 70% कम होकर 1822 मी’ तक पहुँच गई है। वनों की कटाई से प्राप्त लकड़ी का प्रयोग ईंधन एवं फर्नीचर तथा कटाई से मुक्त जमीन का कृषि विस्तार हेतु प्रयोग किया जा रहा है। तीव्र आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप उद्योगों एवं वाहनों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसके कारण जल एवं वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण इत्यादि में वृद्धि हो रही है। जल प्रदूषण के कारण कई नदियाँ इतनी प्रदूषित हो चुकी हैं कि उसमें रहने वाले जीव जंतु मर रहे हैं। अत: पर्यावरण संरक्षण के लिए सतत् विकास की नितांत आवश्यकता है।

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