पारिवारिक संबंधों के निर्धारक तत्त्वों की विवेचना करें ।

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प्रश्न – पारिवारिक संबंधों के निर्धारक तत्त्वों की विवेचना करें ।
(Discuss the determinants of faimily relationship.)
उत्तर – पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले अनेक निर्धारक तत्त्व हैं। इनमें से कुछ प्रमुख निर्धारक तत्त्वों का वर्णन निम्न प्रकार से है –
1. संरक्षकों की अभिवृत्तियाँ (parental Attitudes)

संरक्षकों और बालकों के सम्बन्ध बहुत कुछ संरक्षकों की अभिवृत्तियों से प्रभावित और निर्धारित होते हैं। संरक्षकों में उनके बालकों के प्रति अभिवृत्तियों का निर्माण कई बार बालकों के उत्पन्न होने हले ही हो जाता है। संरक्षकों की अभिवृत्तियों का निर्माण भी अधिगम के आधार पर होता है। संरक्षक लोगों का यह अधिगम उनके अनुभवों, परम्पराओं और उनके संरक्षकों के शिक्षण के परिणामस्वरूप चलता है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि अधिक आयु वाले संरक्षकों की अपेक्षा कम आयु वाले संरक्षक बालक के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह ठीक प्रकार नहीं करते हैं। इसका मुख्य कारण अपने नए उत्तरदायित्वों के साथ समायोजन न कर पाना है। (S. Clavan, 1968)।

कुछ संरक्षकों में बालकों के प्रति ऐसी अभिवृत्ति होती है कि बालकों का अति-संरक्षण (Over-protection) करते हैं। फलस्वरूप बालक में अति-आश्रितता (over-dependency) के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। अति संरक्षण के कारण बालकों में शीघ्र परेशान होने, उत्तेजित होने, बेचैनी, ध्यान लगाने की कम योग्यता, आदि जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। अति-संरक्षण के कारण उनमें कुछ अन्य लक्षण भी उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे अपनी योग्यताओं में विश्वास न होना, दूसरों से शीघ्र प्रभावित होना, दूसरों पर अधिक आश्रित होना तथा अपनी आलोचना के प्रति अधिक संवेदनशील होना आदि। बालकों में जब यह लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं तब निश्चय ही इन लक्षणों के कारण उनमें पारिवारिक सम्बन्ध बिगड़ सकते हैं। कुछ संरक्षक अपने बालकों को हर बात की अनुमति या अधिक छूट (Permissiveness) देते हैं। इस प्रकार के संरक्षक अपने बच्चों के प्रति अधिक सहनशील होते हैं। जब संरक्षक अपने बच्चों को बहुत अधिक छूट देते हैं, तो बच्चे नियन्त्रण से बाहर हो सकते हैं। एक सीमा से अधिक छूट देने से पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना रहती है। (W. Boroson, 1970 ) । कुछ संरक्षक अपने बच्चों का तिरस्कार के कारण उत्पन्न सभी लक्षण बालक के पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं। इन लक्षणों की उपस्थिति में पारिवारिक सम्बन्धों में ह्रास ही होता है। कुछ संरक्षक अपने बच्चों के प्रति अधिक प्रभुत्वशाली अभिवृत्ति अपनाते हैं अथवा अपने बच्चों को अधिक नियन्त्रण में रखते हैं। इस अवस्था में बच्चे अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। वह अधिक शर्मीले, हीन भावना वाले, शीघ्र भ्रमित हो जाते हैं। यह लक्षण भी बालक के पारिवारिक सम्बन्धों को बिगाड़ने में अपना योगदान देते हैं ।

कुछ संरक्षक ऐसे भी होते हैं जो अपने बालकों को इतनी छूट दे देते हैं कि वह घर को नियन्त्रण या प्रभुत्व में रखते हैं। बहुधा ऐसे बच्चों के घर में हर बात मानी जाती है ऐसे बच्चे कहना न सुनने वाले, अनुत्तरदायित्वपूर्ण, आक्रामक, लापरवाह तथा संरक्षकों का आदर न करने वाले होते हैं। निश्चय ही ऐसे बालकों के पारिवारिक सम्बन्ध अच्छे नहीं होते  हैं ।

कुछ संरक्षकों द्वारा अपने बच्चों में से कुछ के साथ पक्षपात (Favourism) किया जाता है। एक अध्ययन (N. Bayley, 1960) में यह देखा गया कि माँ अपने बेटे का बेटियों की अपेक्षा अधिक पक्ष लेती है तथा पिता अपने बेटे की अपेक्षा अपनी बेटी का अधिक पक्ष लेता है। परिवार के अधिकांश सदस्य उस बच्चे का अधिक पक्ष लेते हैं जो नियमित रूप से स्कूल जाता है, अच्छी आदतों वाला होता है अथवा परिवार में जो अधिक लोकप्रिय होता है। माता-पिता उस बच्चे का पक्ष भी अधिक लेते है जिसमें कोई शारीरिक दोष होता है अथवा जो मानसिक रूप से दुर्बल होता है। माता-पिता जब अपने अन्य बच्चों की अपेक्षा किसी या कुछ बच्चों का पक्ष लेते हैं तब भी पारिवारिक सम्बन्ध बिगड़ने की सम्भावना अधिक होती है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि संरक्षक की विभिन्न अभिवृत्तियों का प्रभाव बालकों के पारिवारिक सम्बन्धों पर तो पड़ता ही है, साथ ही साथ बालकों का व्यवहार भी संरक्षकों की अभिवृत्तियों से प्रभावित होता है। जब बालकों को अपने अभिभावकों की अनुकूल अभिवृत्ति प्राप्त होती है तो बच्चों में आनन्द, मित्रता, सहयोग और संरचनात्मकता जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। जब बालकों को अपने संरक्षकों से अनुकूल अभिवृत्ति प्राप्त नहीं होती है तब उनमें ऐसे लक्षण उत्पन्न होते हैं जिससे कि बालक के पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना अधिक होती है। हरलॉक (1978) ने संरक्षकों की सहनशीलता और अहम् शक्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि संरक्षकों में सहनशीलता जितनी ही अधिक होती है, बालकों की अहम् शक्ति (Ego Strength) उतनी ही अधिक होती है।

2. बाल पोषण विधियाँ (Child Rearing Methods)

बालक के पारिवारिक सम्बन्ध इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि बालक का पालन-पोषण किस विधि के द्वारा किया जा रहा है और बालक पोषण विधियों को किस रूप में देखता है। यदि बालक को प्रशिक्षण अधिक प्रभुत्वशाली वातावरण में दिया जा रहा है, तो बालक में कहना’ न मानने की प्रवृत्ति विकसित हो सकती है, जिसके कारण पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना रहती है। यदि पोषण विधि अधिक प्रजातान्त्रिक वातावरण से सम्बन्धित है, तो बालक में स्वतन्त्र चिन्तन, अधिक सृजनात्मकता, अधिक सहयोग जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। इन लक्षणों की उपस्थिति में बालक के पारिवारिक सम्बन्ध अच्छे हो सकते हैं। संरक्षक बालकों के पालन-पोषण में अधिक छूट वाली प्रवृत्ति अपना सकते हैं। इस प्रकार की विधि में अनुशासनप्रियता बच्चों में विकसित नहीं होती है। ऐसे बच्चों के भी पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना अधिक रहती है।

3. परिवार का आकार (Family Size)

आधुनिक परिवार न्यूक्लियर परिवार (Nuclear Family) कहलाता है। इस प्रकार के परिवार में पति, पत्नी और बच्चे ही सम्मिलित होते हैं। अन्य सम्बन्धी इस प्रकार के परिवार के सदस्य नहीं होते हैं। पहले तो पाश्चात्य देशों में ही इस प्रकार के परिवार प्रचलित थे, परन्तु अब यह परिवार भारतवर्ष के शहरी क्षेत्र में भी अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। अमेरिका में अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि अन्य परिवारों की अपेक्षा न्यूक्लियर परिवारों में बालकों का विकास अच्छा और स्वस्थ होता है। इन अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि बड़े परिवारों की अपेक्षा छोटे परिवारों में पारिवारिक सम्बन्ध अधिक अच्छे होते हैं। वास्तव में देखा जाए तो परिवार का आधार स्वयं में पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित नहीं करता है, बल्कि परिवार के आकार से सम्बन्धित कुछ अन्य प्रमुख अवस्थाएँ पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करती है, इनमें से कुछ निम्न प्रकार से हैं,

(i) परिवार की अन्तः क्रियात्मक व्यवस्था (Interactional System) की संख्या भी पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करती है। अन्तःक्रियात्मक व्यवस्था की संख्या ज्ञात करने का सूत्र एक अध्ययन (J.H.S. Bossard & E. S. Boll, 1966) के अनुसार अग्रलिखित है –

X = Y2-Y/2

(इस सूत्र में X = पारस्परिक सम्बन्धों की संख्या तथा Y = परिवार में सदस्यों की संख्या है।)

परिवार में यदि पति और पत्नी केवल दो सदस्य हैं तो उपर्युक्त सूत्र के अनुसार पारस्परिक सम्बन्धों की संख्या केवल एक होगी। यदि परिवार में एक शिशु का जन्म हो जाता है तो उपर्युक्त सूत्र के अनुसार अन्तःक्रियात्मक व्यवस्थाओं की संख्या 3 हो जाएगी। यदि परिवार में माता-पिता और उनके दो बच्चे अर्थात् चार सदस्यों वाला परिवार है, तो अन्तः क्रियात्मक व्यवस्थाओं की संख्या 6 होगी। स्पष्ट है कि परिवार का आकार बढ़ता चला जाएगा, अन्तः क्रियात्मक व्यवस्थाओं की संख्या भी उसी रूप में उतनी ही बढ़ती चली जाएगी तथा मनमुटाव (Friction) के बढ़ने की सम्भावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। प्रत्येक सदस्य की कुछ अपनी आवश्यकताएँ, रुचियाँ और आकांक्षाएँ होती हैं। एक परिवार में प्रत्येक ` सदस्य की रुचियाँ, आकांक्षाएँ और आवश्यकताएँ जरूरी नहीं हैं कि समान हों। इस कारण भी परिवार में मनमुटाव बढ़ता है और परिवार का संवेगात्मक वातावरण बदल जाता है और अन्त में पारिवारिक सम्बन्ध भी बिगड़ जाते हैं।

(ii) परिवार की बनावट ( Composition of the Family) भी पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करती है। अध्ययनों में देखा गया है कि जिस परिवार में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक संख्या में होती हैं, उसमें मनमुटाव अपेक्षाकृत शीघ्र प्रारम्भ होते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा घर में अधिक समय तक रहती हैं जिससे उनमें सम्बन्धों की निरन्तरता के कारण मनमुटाव शीघ्र उत्पन्न होते हैं। बड़े आकार के परिवारों में इस प्रकार की सम्भावनाएँ अधिक हैं। यह भी देखा गया है कि जिन परिवारों के सदस्यों की आयु में अन्तर अधिक होते हैं, उन परिवारों में भी मनमुटावा शीघ्र इसलिए होते हैं कि भिन्न-भिन्नं आयु के सदस्यों की रुचियाँ, मूल्य, आवश्यकताएँ तथा आकांक्षाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं, उनमें मेल नहीं बैठता है तब पारिवारिक सम्बन्ध हास की ओर अग्रसर होते हैं।

(iii) परिवार के आकार के प्रति संरक्षकों की अभिवृति भी पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करती है। यदि संरक्षक बड़ा परिवार चाहते हैं और परिवार बड़ा है तो परिवार का संवेगात्मक वातावरण अच्छा होगा और दूसरी ओर यदि संरक्षकों की पसन्द छोटे परिवार की ओर अधिक है और परिवार उनका बड़ा है तो इस अवस्था में परिवार का संवेगात्मक वातावरण बिगड़ जाएगा और अन्त में पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावनाएँ बढ़ जायेंगी।

(iv) परिवार में नए बच्चों के उत्पन्न होने के समय का अन्तर भी पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करता है। यदि माता-पिता की इच्छा है कि पहले और दूसरे बच्चे में अन्तर अधिक रहता है तब परिवार का वातावरण अच्छा रहता है और पारिवारिक सम्बन्ध भी अच्छे रहते हैं। यह देखा गया है कि यदि यह अन्तर इच्छा के विपरीत हो जाता है तब परिवार का संवेगात्मक वातावरण बिगड़ जाता है।

भिन्न-भिन्न आकार के परिवार में पारिवारिक सम्बन्ध भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं । समाजशास्त्रियों के अनुसार मध्यम आकार का परिवार सर्वश्रेष्ठ होता है। इस परिवार में माता-पिता के अतिरिक्त तीन या चार बच्चे होते हैं। उस परिवार के पारिवारिक सम्बन्ध कई दृष्टियों से श्रेष्ठ माने गए हैं। जिस परिवार में एक बच्चा ही होता है, उस परिवार के संरक्षक अतिसंरक्षण (over-protection) वाले होते हैं। परिवार में प्रजातान्त्रिक वातावरण में बालक का पालन-पोषण होता है। इन परिवारों में पेरैन्ट चाइल्ड सम्बन्ध अति घनिष्ठ होते हैं जिसके कारण बालक का व्यवहार शीघ्र परिपक्व होता है। छोटे परिवारों (Small Families) में संरक्षक बच्चों की अधिक समय देते हैं। बच्चों में ईर्ष्या अधिक होती है। बच्चों को समान सुविधाएँ प्राप्त होती है।

4. भाई-बहिनों के सम्बन्ध (Sibling Relationships)

भाई-बहिनों के आपसी सम्बन्धों का प्रभाव पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करता है। बहुधा यह देखा गया है कि पहला बच्चा यदि लड़का है तो वह पिता का सहायक बनता है और यदि पहला बच्चा लड़की है तो वह माँ की सहायक बनती है। यदि बालक को इस अवस्था में जो रोल्स दिए जाते हैं, वह उन्हें स्वीकार्य होते हैं तब तो परिवार का वातावरण अच्छा बना रहता है, परन्तु यदि यह रोल्स उन्हें स्वीकार नहीं होते हैं तब पारिवारिक सम्बन्धों में ह्रास प्रारम्भ हो जाता है। संरक्षकों की बालक के प्रति अभिवृत्ति भी पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, पहले बालक के प्रति संरक्षकों में अच्छी अभिवृत्ति होती है, इस बच्चे को अधिक प्रिफरेन्स मिलता है। फलस्वरूप उसका व्यवहार अधिक परिपक्व होता है। इसमें अनुरूपता और आश्रितता अधिक होती है। बाद के बच्चों के साथ माता-पिता का व्यवहार अच्छा होता है; परन्तु यह बाद के बच्चे अपने आपकों पहले बच्चे की अपेक्षा तिरस्कृत समझते हैं। इस अवस्था में पारिवारिक सम्बन्धों में बिगड़ने की सम्भावना अधिक होती है।

अध्ययनों में देखा गया है कि भाई-बहिनों में सर्वाधिक अच्छे सम्बन्ध उस समय होते हैं जब भाई-बहिनों में आयु सम्बन्धी कोई अन्तर नहीं होता है। जुड़वाँ बच्चों में आपसी सम्बन्ध सर्वाधिक अन्य भाई-बहिनों की अपेक्षा अच्छे होते हैं। भाई-बहिनों में आयु सम्बन्धी अन्तर जितना ही अधिक होता है, उनके आपसी सम्बन्धों के खराब होने की सम्भावना उतनी ही अधिक होती है। अध्ययनों में देखा गया है कि दो बहिनों में जितनी ईर्ष्या होती है उतनी दो भाईयों या एक भाई बहिन में नहीं होती है। लड़के अपनी बहिनों की अपेक्षा अपने भाईयों से अधिक लड़ाई करते हैं। अध्ययनों में देखा गया है कि भाई-बहनों में यदि स्नेह है, वह एक-दूसरे के साथ खेलते हैं, वह एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं और सहायता करते हैं, तो इस अवस्था में पारिवारिक सम्बन्ध अच्छे होते हैं, परन्तु भाई-बहनों में यदि स्नेह नहीं पाया जाता है, वह एक-दूसरे की सहायता नहीं करते हैं, वह एक-दूसरे पर आक्रमण करते हैं तो भला इस अवस्था में उनमें अच्छे सम्बन्ध कैसे हो सकते हैं। इस अवस्था में पारिवारिक सम्बन्ध भी अच्छे नहीं होंगे। भाई-बहिनों में जब भी मनमुटाव वाले सम्बन्ध होंगे, पारिवारिक सम्बन्ध तब अवश्य खराब होंगे। बालकों के बीच ईर्ष्या और मनमुटाव को प्रारम्भ में ही डरा-धमका कर समाप्त कर देना चाहिए जिससे कि सम्बन्धों में ह्रास न हो।

5. परिवार की व्यस्था (Home Setting )

बालकों की अभिवृत्तियाँ, व्यवहार और पारिवारिक सम्बन्ध आदि उसके परिवार की व्यवस्था से भी प्रभावित होते हैं। परिवार की व्यवस्था से सम्बन्धित कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित प्रकार से हैं –

(i) परिवार का सामाजिक स्तर ( Social Status of Family) भी पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है। मध्यम श्रेणी परिवारों में बालकों से परिवार के लिए अनेक आशाएँ की जाती हैं। इस प्रकार के परिवार के बच्चों पर सामाजिक अनुरूपता (Social Conformity) स्थापित करने पर बल दिया जाता है। सामाजिक अनुरूपता जितनी ही अधिक होती है, बालक और परिवार दोनों का ही सामाजिक स्तर बढ़ता है। बालकों को इस बात का प्रशिक्षण दिया जाता है कि वह ऐसा कोई कार्य न करें जिससे परिवार की आलोचना या बदनामी हो । प्रत्येक समय संरक्षकों से परिवार का सामाजिक स्तर बनाए रखने के लिए जो दबाव पड़ता रहता है, इस दबाव के कारण कई बार पारिवारिक सम्बन्धों में मनमुटाव प्रारम्भ हो जाता है। बालक के परिवार का सामाजिक स्तर यदि बालक के साथियों के परिवार के सामाजिक स्तर से नीचा होता है तब बालक अपने परिवार और पिता पर शर्म महसूस करते हैं, परन्तु यदि बालक के परिवार का सामाजिक स्तर अन्य साथियों के परिवार के सामाजिक स्तर से ऊँचा होता है तो बड़े पिता और परिवार पर गर्व करते हैं। बच्चों में यह शर्म और गर्व भी भावना भी उनके पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करती है।

(ii) माता-पिता का व्यवसाय (Parental Occupation) — यह एक महत्त्वपूर्ण कारक है जो बालक के पारिवारिक सम्बन्धों को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है। पिता के व्यवसाय (Father’s Occupation) का परिवार के बच्चें से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। बड़े बच्चों की तो सामाजिक प्रतिष्ठा बहुत कुछ पिता के व्यवसाय से ही निर्धारित होती है। कुछ अध्ययनों (H. Rodman, et al., 1969; J.H.S. Bossard & E.S.Boll, 1966 ) में यह देखा गया है कि जो बच्चे अपने पिता के व्यवसाय को बताने पर शर्म का अनुभव करते हैं, उन बच्चों की उनके पिता, घर और स्वयं के प्रति विपरीत अभिवृत्तियाँ निर्मित होती हैं जिससे पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना अधिक होती है। माँ का व्यवसाय (Mother’s Occupation) भी बालकों के व्यवहार को प्रभावित करता है। माँ यदि किसी व्यवसाय में है तो छोटे बच्चों को अकेले रहना पड़ता है जिससे उसमें अप्रसन्नता और अकेलेपन की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। यह भावनाएँ उस समय और भी तीव्र हो जाती हैं जब बालक के दूसरे साथियों की माँ घर में रहकर उनका पालन-पोषण करती हैं। इस अवस्था में भी पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना अधिक होती है।

(iii) रिश्तेदार (Relatives) – परिवार में समय-समय पर आने वाले रिश्तेदार भी बालक के पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं। रिश्तेदारों के एक परिवार में आने पर परिवार की स्त्री पर कार्य का बोझ बढ़ जाता है। रिश्तेदारों की देखभाल करना माँ का कार्य होता है। बालकों को यह सिखाया जाता है कि वह आने वाले रिश्तेदारों का सम्मान करें। रिश्तेदारों के कारण पारिवारिक सम्बन्धों में मनमुटाव उस समय उत्पन्न होता है जब वह बच्चों अथवा बालक की आलोचना करते हैं अथवा बालकों पर प्रभुत्व जमाना चाहते हैं ।

(iv) टूटे परिवार (Broken Homes) – परिवार के किसी व्यक्ति की मृत्यु या तलाक की अवस्था में परिवार का ढाँचा परिवर्तित हो जाता है। उस स्थिति में वह परिवार टूटा परिवार कहलाता है। टूटा परिवार वह भी जिसमें परिवार के बड़े-बूढ़े अथवा पिता अधिक दिनों के लिए परिवार से बाहर रहता है । इस अवस्था में परिवार बाबा या नाना के साथ रह सकता है अथवा किसी अन्य रिश्तेदार के साथ भी रह सकता है। ऐसे परिवारों में बहुधा आर्थिक समस्याएँ अधिक जटिल होती हैं। यह भी हो सकता है कि परिवार में माँ न हो और बच्चों का पालन-पोषण पिता को करना पड़ा हो । इस प्रकार के टूटे परिवारों की समस्याएँ भी पारिवारिक सम्बन्धों को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती हैं। टूटे परिवार की स्थिति सुधारने हेतु एक उपाय उस समय अधिक किया जाता है जब परिवार में माँ की मृत्यु हो जाती है तो पुनर्विवाह कर नई स्त्री घर में प्रवेश करती है। यह नई स्त्री परिवार के सम्बन्धों को बदल देती है। सौतली माँ द्वारा बालकों के लिए जो व्यवहार किया जात है, वह सर्वविदित है।

(v) दोषपूर्ण बच्चे (Defective Children) – दोषपूर्ण बच्चे भी पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं। परिवार के बच्चे जब कुसमायोजित होते हैं अथवा उनमें कोई शारीरिक या मानसिक दोष होता है, इस प्रकार के बच्चे दोषपूर्ण बच्चे कहलाते हैं। इस प्रकार के बच्चों की देखभाल माता-पिता को अपेक्षाकृत अधिक समय के लिए करनी पड़ती है। जब माता-पिता अपने इन बच्चों की तुलना अन्य सामान्य बालकों से करते हैं तो उनमें दुःख और निराशा की भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। बाद में यही भावनाएँ पारिवारिक सम्बन्धों को बिगाड़ने में सहायक होती हैं। इन दोषपूर्ण बालकों पर माता-पिता को खर्च भी अधिक करना पड़ता है। परिवार के बड़े बच्चों को इन दोषपूर्ण बालकों की देखभाल से सम्बन्धित जिम्मेदारी दी जाती है, जिसे वहन करने से यह बड़े बच्चे कतराते हैं। फलस्वरूप मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कुसमायोजन वाले बच्चे कभी आक्रामक व्यवहार अपनाते हैं, कभी दूसरों को परेशान करते, चिढ़ाते या छेड़छाड़ करते हैं। यह कई बार चीजों की तोड़फोड़ भी करते हैं। इस स्थिति में भी पारिवारिक सम्बन्धों की बिगड़ने की सम्भावना अधिक होती है। कुछ कुसमायोजित बच्चे अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते हैं, यह दूसरों से अपना काम करवाने के अधिक आकांक्षी और अधिक मतलबी होते हैं, फलस्वरूप कुसमायोजित होते हैं। यह कुसमायोजित बालक भी पारिवारिक सम्बन्धों को दोषपूर्ण बनाते हैं।

6. पारिवारिक कार्य के प्रत्यय (Concepts of Family Roles)

सामाजिक और पारिवारिक नियमों, मूल्यों तथा प्रथाओं के कारण परिवार के प्रत्येक सदस्य के कार्य या रोल्स पूर्वनिर्धारित होते हैं। यह और बात है कि परिवार के सदस्य अपने पूर्वनिर्धारित रोल्स का पालन करते रहते हैं तब पारस्परिक सम्बन्ध मधुर बने रहते हैं, परन्तु जब इनमें से कोई या कुछ अपने रोल्स का निर्वाह बन्द कर देते हैं या दोषपूर्ण ढंग से करते हैं तब पारिवारिक सम्बन्धों में मनमुटाव प्रारम्भ हो जाता है। परिवार के कार्यों के कुछ प्रमुख प्रत्यय निम्न प्रकार से हैं-

(i) संरक्षक सम्प्रत्यय ( Concepts of Parents ) – संरक्षक वह व्यक्ति होता है जो बच्चे उत्पन्न कर सकता है तथा बच्चों की देखभाल कर सकता है। यह देखभाल वह उस समय विशेष रूप से कर सकता है जब बच्चे छोटे होते हैं। वह संरक्षक अच्छे कहलाते हैं, जो अपने बच्चे को अधिक सुविधाएँ देते हैं। संरक्षकों के कार्य की दृष्टि से दो प्रकार के प्रत्यय हैं : परम्परागत प्रत्यय (Traditional Concepts) — इस प्रकार के प्रत्यय वाले संरक्षक प्रभुत्वशाली रोल अदा करते हैं। अपने प्रभुत्वशाली रोल्स के आधार पर यह बालकों को सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्य सीखने के लिए बाध्य करते हैं। दूसरा प्रकार हैविकासात्मक प्रतयय (Development Concepts) – इस प्रकार के प्रत्यय वाले संरक्षक अनुमतियुक्त (Permissive) रोल्स अदा करते हैं। बच्चे उन संरक्षकों को अच्छा समझते हैं, जो उनको सहायता करते हैं या सुविधाएँ देते हैं। तथा उन्हें बुरा समझते हैं जो उनकी सहायता नहीं करते हैं अथवा जो उनको निराश करते हैं। बच्चे अच्छा संरक्षक उनको कहते हैं, जिनमें निम्न विशेषताएँ होती हैं— सहायक अनुमतियुक्त, अच्छा .. अनुशासन, प्यार करने वाले, आदि। बच्चे बुरा संरक्षक उनको कहते हैं जिनमें निम्न विशेषताएँ होती हैं— दण्ड देने वाले, घर में तनाव और अशान्ति उत्पन्न करने वाले, दोषारोपण करने वाले, आलोचना करने वाले, दोस्तों के साथ खेलने और मिलने को मना करने वाले, बालक के खेलों में कम रुचि लेने वाले, दुर्घटना पर बालक को डाँटने वाले, कम स्नेह करने वाले, बालकों को दबाव में रखने वाले आदि ।

(ii) माता और पिता का प्रत्यय (Concept of Mother & Father) – एक मध्यम श्रेणी के परिवार में माँ वह स्त्री है जिसका विकासात्मक कार्य होता है, जो बच्चों का अपने पति की सहायता से पालन-पोषण करती है। बच्चों के लिए माँ वह स्त्री है जो उसकी देखभाल करती है, उसे प्यार करती है, उसकी शैतानी को सहन करती है, संकट के समय सहायता करती है तथा उसके सभी कार्य करती है। पारिवारिक सम्बन्धों में मनमुटाव उस समय उत्पन्न होता है जब माता-पिता निर्मित प्रयत्नों के अनुसार व्यवहार नहीं करते हैं। कुछ बच्चों में पिता का प्रत्यय स्पष्ट होता है तथा कुछ में अस्पष्ट प्रत्यय होता है एक मध्यम वर्गीय बालक के लिए पिता वह व्यक्ति है, जो बच्चों को शीघ्र समझ लेता है, बच्चों का साथी होता है, बच्चें को शिक्षा देता है, उनके विकास के लिए समय-समय पर निर्देश देता है तथा बच्चों के लिए और बच्चों के साथ अनेक कार्य करता है। इसके अतिरिक्त कुछ बच्चे यह सोच सकते हैं कि पिता वह है जो माँ से अधिक दण्ड देता है तथा माँ की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।

(iii) बालक का प्रत्यय (Concept of Child) — यह एक परम्परागत विश्वास है कि एक अच्छा बालक वह है जो अपने संरक्षकों का आदर करता है, उनकी आज्ञा का पालन करता है, उनको खुश करता है, उनके साथ सहयोग करता है, स्वस्थ होता है और सीखने का इच्छुक होता है। बच्चे अपने रोल्स के सम्बन्ध में क्या प्रत्यय निर्मित करेंगे, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि बालक के प्रति संरक्षकों के क्या प्रत्यय हैं। उदाहरण के लिए, यदि संरक्षक बालक को आश्रित समझते हैं, तो बालक भी यह रोल सीख सकता है ।

(iv) रिश्तेदारों का प्रत्यय (Concept of Relatives) — बालक के जीवन पर रिश्तेदारों अपेक्षाकृत बहुत कम प्रभाव पड़ता है अतः रिश्तेदारों के सम्बन्ध में बच्चों में प्रत्यय अनुभवों के आधार पर निर्मित होते हैं। बच्चे अपने बाबा, दादी, नाना, नानी आदि जिसके सम्पर्क में जितना ही अधिक आते हैं, उनके सम्बन्ध में प्रत्यय उतनी ही शीघ्र और उतना ही अधिक निर्मित होते हैं।

उपर्युक्त सभी प्रत्ययों को प्रभाव पारिवारिक सम्बन्धों पर महत्त्वपूर्ण ढंग से पड़ता है। उदाहरण के लिए, एक बालक अपने आपको अच्छा बालक समझता है परन्तु उसके संरक्षक उसे बुरा या शैतान बच्चा समझते हैं तो इस अवस्था में पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना अधिक होती है। इसी प्रकार से यदि एक माँ अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ करती परन्तु उसके बेटे उसमें रुचि नहीं लते हैं और यह समझते हैं कि माँ हमारा तिरस्कार करती है तो इस अवस्था में भी बालकों के पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना अधिक होती है। कभी-कभी यह भी देखा गया है कि पारिवारिक रोल्स से सम्बन्धित प्रत्यय और वास्तविक जीवन में पारिवारिक रोल्स में समानता नहीं होती है, तो निश्चय ही इस स्थिति में पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की पूरी पूरी सम्भावना होती है। हरलॉक (1978) का विचार है कि ‘एक बालक जो अपनी सौतेली माँ को पसन्द नहीं करता है उसकी इस नापसन्द का कारण और आधार परियों की कहानियाँ होती हैं। उसकी यह नापसन्द परिवार में माता-पिता में अलगाव और तलाक जैसी स्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है। ” (“The child who dislikes a step mother because his concept of her is based on fairy tales can cause enough trouble in the home to participate in a separation or divorce.”)

7. एक संरक्षक के लिए प्राथमिकता या वरीयता  (Preference for one parent)

बालकों में देखा गया है कि कभी वह एक संरक्षक को वरीयता देता है तो कभी दूसरे को वरीयता देता है। उदाहरण के लिए, यदि बालक अपनी माँ को वरीयता देता है तो निश्यच ही वह अपने पिता को कम पसन्द करेगा। इसी प्रकार से यदि वह अपने पिता को वरीयता देता है तो वह अपनी माँ को कम पसन्द करेगा। दोनों ही परिस्थितियों में बालक के पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना होती है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि बालक अपने संरक्षकों को वरीयता अनेक कारणों से देता है। कुछ प्रमुख प्रभावित करने वाले कारक निम्न प्रकार से हैं-

  1. यदि एक संरक्षक बालक के साथ अधिक समय व्यतीत करता है और दूसरा कम, तो निश्चय ही अधिक समय व्यतीत करने वाले संरक्षक को बालक वरीयता देगा।
  2. संरक्षकों में जो बालक के साथ अधिक खेलता है, बालक उसको वरीयता देता है।
  3. बालक की अधिक देखभाल करने वाले संरक्षक को वरीयता प्राप्त होती है।
  4. बालक को जिस संरक्षक से स्नेह प्राप्त होता है, उसको बालक वरीयता देता है।
  5. बालक को जो संरक्षक दण्ड अधिक देते हैं या जो संरक्षक बालक पर अधिक नियन्त्रण करते हैं या अनुशासन में रखते हैं, बालक उसको वरीयता अधिक देते हैं।
  6. बालकों से जो संरक्षक जरूरत से अधिक आशाएँ रखते हैं, बालक उनका कम वरीयता देते हैं।
  7. माता-पिता में से बालक का जो अधिक पक्ष लेते हैं, उन्हें बालक की वरीयता प्राप्त होती है। बाल्यावस्था में वरीयता अधिक देता है। हरलॉक (1978) ने संरक्षकों के प्रति बालकों को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “एक संरक्षक से दूसरे संरक्षक पर वरीयता बदलती रहती है। पारिवारिक सम्बन्धों की क्षीणता या गिरावट में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जब पारिवारिक सम्बन्धों में गिरावट के अन्य कोई कारण नहीं होते हैं तो पारिवारिक सम्बन्धों की गिरावट का यह कारण होता है । ” (“Preferences shift from one parent to the another, they continue to play an important role in the deterioration of family relationships. Where there is no other causes of deterioration, the shifing of preferences alone would be enough to bring it about.”)

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