बालक के विकास में घर की भूमिका का वर्णन करें।

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प्रश्न – बालक के विकास में घर की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर – स्किनर के अनुसार– “विकास प्रक्रियाओं की निरन्तरता का सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि व्यक्ति में कोई परिवर्तन आकस्मिक नहीं होता।” सोरेन्सन के अनुसार — “वृद्धि से आशय शरीर तथा शारीरिक अंगों में भार तथा आकार की दृष्टि से वृद्धि होना है, ऐसी वृद्धि जिसका मापन सम्भव हो ।” विकास की प्रक्रिया पर कोई एक घटक प्रभाव नहीं डालता, कोई एक अभिकरण उत्तरदायी नहीं होता, अपितु अनेक कारक तथा अनेक अभिकरण बालक के विकास में योग देते हैं। घर, विद्यालय तथा समुदाय भी ऐसे ही अभिकरण हैं जिनका उपयोग बालक के विकास में मनोवैज्ञानिक रूप से होना चाहिये।
बालक के विकास में घर का योगदान (Contribution of Home in Child Development)
परिवार, बालक के विकास की प्रथम पाठशाला है। यह बालक में निहित योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास करता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य, बालक के विकास में योगदान देता है। यंग एवं मैक के अनुसार– “परिवार सबसे पुराना और मौलिक मानव समूह है। पारिवारिक ढाँचे का विशिष्ट रूप एक समाज से दूसरे समाज में भिन्न हो सकता है और होता है पर सब जगह परिवार के मुख्य कार्य हैं – बच्चे का पालन करना, उसे समाज की संस्कृति से परिचित कराना, सारांश में उसका सामाजीकरण करना ।”
“The family is the oldest human group and the basic one. While the particular form of family structure may and does vary from society to society, the central foci of family activities every where are child bearing and the initial induction of the child into the culture of a given society in short, socialization.”
— Young and Mack.
परिवार या घर समाज की न्यूनतम समूह इकाई है। इसमें पति-पत्नी, बच्चे तथा अन्य आश्रित व्यक्ति सम्मिलित हैं। इसका मुख्य आधार रक्त सम्बन्ध है। क्लेयर ने परिवार की
परिभाषा देते हुए कहा है — ” परिवार, सम्बन्धों की वह व्यवस्था है जो माता-पिता तथा सन्तानों के मध्य पाई जाती है। “
“By family we mean a system of relationship existing between parents and children.”
– Clare.
बालक के विकास पर घर का प्रभाव
(Influence of Home on Child Development)
मांटेसरी (Montessori) ने बालकों के विकास के लिये परिवार के वातावरण तथा परिस्थिति को महत्त्वपूर्ण माना है। इसीलिये उन्होंने विद्यालय को बचपन का घर (House of Childhood) कहा है। रेमन्ट के अनुसार-“घर ही वह स्थान है जहाँ वे महान गुण उत्पन्न होते हैं जिनकी सामान्य विशेषता सहानुभूति है। घर में घनिष्ठ प्रेम की भावनाओं का विकास होता है। यहीं बालक, उदारता – अनुदारता, निस्वार्थ और स्वार्थ, न्याय और अन्याय, सत्य और असत्य, परिश्रम और आलस्य में अन्तर सीखता है । “
> बालक के जीवन पर घर का प्रभाव इस प्रकार पड़ता है –
1. घर बालक की प्रथम पाठशाला है। वह घर में वे सभी गुण सीखता है जिनकी पाठशाला में आवश्यकता होती है।
2. बालकों को घर पर नैतिकता एवं सामाजिकता का प्रशिक्षण मिलता है।
3. समायोजन तथा अनुकूलन के गुण विकसित करता है।
4. सामाजिक व्यवहार का अनुकरण करता है।
5. सामाजिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों को विकसित करने में घर का योगदान प्रमुख है।
6. उत्तम आदतों एवं चरित्र के विकास में योग देता है।
7. रुचि-अभिरुचि तथा प्रवृत्तियों का विकास होता है।
8. बालक की वैयक्तिकता विकसित होती है।
9. प्रेम की शिक्षा मिलती है।
10. सहयोग, परोपकार, सहिष्णुता, कर्त्तव्य-पालन के गुण विकसित होते हैं।
11. घर बालक को समाज में व्यवहार करने की शिक्षा देता है। प्लेटो के अनुसार – “यदि आप चाहते हैं कि बालक सुन्दर वस्तुओं की प्रशंसा और निर्माण करे, तो उसके चारों ओर सुन्दर वस्तुयें प्रस्तुत कीजिये।”
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