बालकों के सामाजिक विकास का प्रभावित करने वाले तत्त्वों की विवेचना करें।
प्रश्न – बालकों के सामाजिक विकास का प्रभावित करने वाले तत्त्वों की विवेचना करें।
उत्तर- बालक के सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्त्व : –
1. स्वास्थ्य एवं मनोरंजन (Health and recreation) सामाजिक विकास में स्वास्थ्य एवं मनोरंजन का ज्यादा स्थान होता है।
2. पारिवारिक वातावरण (Family environment)– परिवार बच्चे की प्रारम्भिक पाठशाला है जहाँ बच्चों की समाजीकरण सिखाया जाता है। बच्चे परिवार में ही सर्वप्रथम माँ-बाप एवं अन्य सदस्यों के सम्पर्क में आते हैं और उनके प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। बाद में उसकी पहचान का दायरा मित्रों तक फैलता है किन्तु बीजारोपण परिवार में ही होता है। परिवार में बच्चे एवं अभिभावक या माता-पिता का सम्बन्ध बच्चे के समाजीकरण की नींव है। जिन बच्चों के माता-पिता उनसे अच्छा सम्बन्ध नहीं रखते, उन बच्चों का समुचित विकास नहीं हो पाता। अत्यधिक प्यार या सुरक्षा (excess love or over protection), तिरस्कार (neglect) तथा उभयात्मकता (ambivalence) ये तीनों कारक बच्चों एवं माता-पिता के बीच के सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं। अत्यधिक प्यार की वजह से बच्चे आश्रित (dependent) हो जाते हैं जबकि अनियमित रूप से अगर उनपर शासन किया जाए तो उनके व्यवहार में एकरूपता नहीं रहती। माता-पिता से तिरस्कृत बच्चे बाल-अपराधी एवं असामाजिक कार्यों की ओर प्रवृत्त होते हैं। इसी प्रकार यदि समान रूप से बच्चों के साथ सामाजिक सम्बन्ध नहीं रख पाते तो प्यार करने वाले व्यक्ति के साथ उनका सम्बन्ध अधिक हो जाता है और दूसरे के साथ वह विरोधी व्यवहार प्रदर्शित करता है। इस सम्बन्ध में अल्फ्रेड एडलर (Alfred Adler) का कहना है कि परिवार में बच्चों के जन्म क्रम (birth order) का भी काफी महत्त्व है। अकेले और सबसे बड़े बच्चे को परिवार का अनुकूल वातावरण मिलता है और उसका सामाजिक विकास बहुत अच्छा होता है। किन्तु छोटे या उसके बाद के बच्चे सही ढंग से विकसित नहीं हो पाते। कारण यह है कि पहले बच्चे के लिए सभी प्रकार के साधन उपलब्ध कराए जाते हैं जबकि दूसरे बच्चे के लिए वह वातावरण नहीं मिल पाता। छोटा होने के कारण वह बहुत लाड़-प्यार में रहता है और हमेशा दूसरों पर आश्रित रहता है। फलतः उसका सामाजिक विकास नहीं हो पाता। वह परिवार से अलग अपनी रुचि स्थिर करने की चेष्टा करने लगता है। कभी-कभी माता-पिता तथा बच्चे का सम्बन्ध इस प्रकार का रहता है कि उनमें से एक बच्चे से प्यार करता है और दूसरे से घृणा तो ऐसी परिस्थिति में बच्चे की अवस्था बहुत नाजुक हो जाती है। वह इस अवस्था में स्वयं को सुरक्षित नहीं पाता। माता-पिता में से एक व्यक्ति उसे गलतियाँ करने को प्रेरित करता. है एवं दूसरा उसे दंडित करता है। बच्चा भी एक से प्रेम करता है एवं दूसरे से घृणा ऐसे व्यवहारों का असर उसपर इतना गहरा होता है कि वह स्वयं को समाज के अनुरूप नहीं बना पाता और अपने आवांछित व्यवहारों से समाज के अन्य व्यक्तियों को भी असंतुष्ट करता है।
जहाँ माता-पिता न तो बच्चों को बहुत प्यार करते हैं और न हीं उसका तिरस्कार करते हैं, ऐसी अवस्था में बच्चे का सामाजिक विकास बहुत अच्छा होता है। जहाँ उसे प्रोत्साहन की जरूरत होती है, वहाँ प्रोत्साहन मिलता है और जहाँ दण्ड की आवश्यकता होती है, उसे दंड मिलता है। ऐसी स्थिति में पला हुआ बच्चा बहुत अच्छा सामाजिक प्राणी होता है क्योंकि माँ-बाप विभिन्न खेलों एवं शैक्षणिक माध्यमों से उसे समाज के बारे में अच्छी तरह बता देते हैं। घर में मेहमानों के आने पर उनका स्वागत करना, योग्यतानुसार घर के कार्यों में सहयोग करना सिखाया जाता है। इन सब कारणों से बच्चा एक सुंदर सामजिक प्राणी के रूप में निखरता है। किन्तु कभी-कभी माता-पिता में ही आपसी रंजिश हो तो फिर बच्चे की सही देखभाल नहीं हो पाती । फलतः बच्चों का सही सामाजिक विकास नहीं हो पाता।
बच्चों को सामाजिक विकास परिवार की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति (socioeconomic status) पर भी निर्भर करता है। जिस परिवार में खेलने, लिखने पढ़ने के जितने ज्यादा साधन होंगे, वहाँ बच्चे उतनी ही अच्छी तरह विकसित होते हैं। इन समग्र बातों पर ध्यान देते हुए माता-पिता का कर्त्तव्य है कि वे अपने बच्चे को सही सामाजिक विकास हेतु परिस्थितियाँ उत्पन्न करें एवं उन्हें ऐसी शिक्षा दें कि वे अच्छे सामाजिक प्राणी के रूप में विकसित हो सकें।
3. सामाजिक व्यवस्था (Social order) — सामाजिक व्यवस्था जिस प्रकार की रहती है उसकी प्रकार बच्चे का सामाजिक व्यवहार भी होता है। आरम्भ में इन प्रक्रियाओं का असर ज्यादा नहीं पड़ता किन्तु उम्र की वृद्धि के अनुसार इसका असर बढ़ता जाता है। समाज के रीति-रिवाज (customs), धर्म, माध्यम (standard), संस्कृति (culture) आदि के अनुरूप ही बच्चे को प्रतिक्रिया करने का अवसर मिलता है और इन प्रक्रियाओं का जीवन में विशेष महत्त्व रहता है।
4. पाठशाला का वातावरण (Environment of school)—पाठशालीय वातावरण का भी बच्चे के सामाजिक विकास पर प्रभाव पड़ता है जिसका हमारे यहाँ अभाव है। न तो यहाँ अध्यापक बाल मनोविज्ञान का ध्यान रखते हैं और न तो बच्चों के साथ उचित सामाजिक सम्बन्ध रख पाने में सफल होते हैं। फलत: बच्चों का सांवेगिक एवं सामाजिक विकास नहीं हो पाता। जहाँ प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था है, जैसे नर्सरी स्कूल में, बच्चों का सामाजिक विकास बड़ी तेजी से होता है। वे खुद खुश व किसी चीज के छिन जाने पर दुःखी नहीं होते। काफी बोलते एवं दूसरों के प्रति सहानुभूति दिखाते हैं। अच्छे नर्सरी स्कूल के वातावरण में बच्चों का बौद्धिक एवं सामाजिक विकास जल्दी होता है ।
आधुनिक शिक्षालय जहाँ अच्छे शिक्षक खेल एवं मनोरंजन के अच्छे साधन हों, बच्चों को अधिकाधिक सीखने की सुविधा प्राप्त होती है। अन्य विद्यार्थियों के साथ रहकर उनका भय और संकोच खत्म हो जाता है। वस्तुतः पाठशाला में केवल पुस्तकों का ज्ञान ही प्राप्त नहीं होता बल्कि अध्यापकों के साथ बातचीत करना, अन्य विद्यार्थियों से सहज प्रतिक्रिया करना सीख जाता है तो उनके सामाजिक अभियोजन में सहायक होता है ।
5. खेल तथा आनंद के साधन (Play and play materials)—खेल तथा आनंद के साधन भी सामाजिक विकास में सहायक होता हैं। छोटे बच्चे पहले अन्य बच्चों के प्रति रुचि नहीं दिखाते, बल्कि सिर्फ अपने खिलौने से खेलना पसंद करते हैं। आयु वृद्धि के साथ-साथ वे दूसरे बच्चों के साथ खेलना पसंद करने लगता है। खेल के दौरान वह सहानुभूति, सहयोग नेतृत्व आदि करने की प्रवृत्ति सीखता है। अन्य बच्चों के साथ सम्पर्क में आने पर वह व्यावहारिक हो जाता है तथा सामाजिक मान्यता के अनुसार व्यवहार हो जाता है। स्वतंत्र अभिव्यक्ति एवं सक्रियता खेल के दौरान उनमें देखी जाती है। तैरना, वयस्कों के साथ खेलना, नाटक- मेले आदि में रुचि बच्चों के सामाजिक व्यवहारों की वृद्धि में सहायक होते हैं ।
6. क्लब, कैंप तथा दल का प्रभाव (Effect of club, camp, group and party)– बच्चों के सामाजिक विकास में इन सबों का अत्यधिक प्रभाव होता है। जो बच्चे किसी क्लब या दल के सदस्य होते हैं, उनमें आपस में मिलना-जुलना आम बाते है लेकिन इसी से बच्चे सामाजिकता, एक-दूसरे के साथ व्यवहार करना आदि सीखते हैं। स्थान परिवर्तन हेतु कई बार कैंपिंग (camping) करने जाते हैं बच्चें। कैंप के वातावरण में बच्चों का आत्मविश्वास (confidence) बढ़ जाता है। वे ज्यादा शिष्ट एवं विनीत हो जाते हैं। कैंप जीवन से उनमें सहायता करना, कल्याण करना, दूसरों की रक्षा करना, मिलना, मित्रता आदि के सबक सीखते हैं। दल का भी प्रभाव बच्चों पर कम नहीं होता। वे दल के अनुशासन मानना- सीखते हैं। दल की व्यवस्था तथा सुरक्षा के लिए सभी व्यक्तियों को लीडर या नायक की बात का पालन करना जरूरी होता है। दल में बच्चे स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं एवं बड़ों के हस्तक्षेप का विरोध करते हैं। यहाँ उन्हें जीवन की वास्तविकता का सामना करना पड़ता है। अपनी समस्याओं का समाधान वे स्वयं करते हैं। दल का निर्माण वयस्कों के अधिकार के विरोध में ही होता है, जब बच्चे वयस्कों के प्रतिमान (standard) का विरोध करते हैं तथा स्वयं अपना क्षेत्र निर्माण करना चाहते हैं। समान आयु एवं एक जाति (sex) के व्यक्तियों को मिलाकर दल बनाते हैं। किन्तु इस बात का ध्यान माता-पिता को रखना चाहिए कि उनकी दलगत गतिविधियाँ समाज-विरोधी या आपराधिक न होने पाएँ।
7. सामाजिक नियम (Social rules) – समाज में प्रचलित नियमों एवं प्रतिमानों का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। समाज के किसी भी समुदाय की जो प्रचलित रीतियाँ तथा आदर्श हैं, उन्हीं के अनुसार बच्चों का व्यवहार निर्देशित होता है । वे घर तथा समुदाय की परिपाटी का अनुसरण करना सीखते हैं ताकि वे सामाजिक मान्यता प्राप्त कर सकें। जिन व्यवहारों तथा विचारों से समाज सहमत नहीं होता, बच्चे भी उनका विरोध करते हैं क्योंकि अमान्य व्यवहारों को सामाजिक मान्यता नहीं मिल सकती। सामाजिक प्राणी होने के कारण बच्चों की जीवन-शैली (life style) समाज के अनुकूल होती है और इसी शैली का प्रभाव उनके खेल तथा अन्य व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध पर पड़ता है। खेल में परिलक्षित (सामाजिक) से पता चल जाता है कि बच्चे का लालन-पालन किस परिवेश में हुआ है। बच्चों की सामाजिक मनोवृत्ति (social attitude) भी सामाजिक मान्यता (Social approval) के अनुकूल ही विकसित होती है।
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