बिहार अपने मानव संसाधनों के संदर्भ में एक समृद्ध राज्य है, इसके बावजूद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में इसका योगदान नगण्य है। इसके पीछे निहित कारणों पर चर्चा करें और इस स्थिति को सुधारने के लिए सुझाव प्रदान करें।
जनगणना 2011 के अनुसार, बिहार में 108.92 मिलियन से अधिक आबादी है, जो देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी बड़ी है। इसके अलावा, इस बड़ी आबादी का एक महत्वपूर्ण अनुपात (लगभग 35% ) 19-38 वर्ष के आयु के युवाओं का है। बिहार में कुल शिक्षा दर 63.82% (पुरुषों के लिए 75.7% और महिलाओं के लिए लगभग 55.1%) है।
सार रूप में बिहार में भारत के सभी राज्यों में सबसे जीवंत, युवा जनसांख्यिकीय प्रोफाइल है। इस प्रकार बिहार की बौद्धिक और भौतिक पूँजी अधिक संतोषजनक है।
हालांकि, जब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों में उपलब्धियों की बात होती है, तो बिहार से शायद ही किसी नाम का उल्लेख होता है। इस प्रकार, यह ध्यान देने योग्य है कि इस तरह के युवाओं से युक्त, सक्षम जनसांख्यिकीय प्रोफाइल के बावजूद, बिहार ने खेल के क्षेत्र में बहुत कम हासिल किया है।
खेल में उपलब्धियों के संदर्भ में राज्य में प्रचलित इस बहुत ही खराब परिदृश्य के लिए निम्नलिखित कारणों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है –
- सामाजिक-सांस्कृतिक कारक – खेल काफी हद तक एक सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दा है। भारत के पश्चिमी राज्यों के विपरीत, बिहार के समाज ने शायद ही खेल को आर्थिक अवसर के रूप में देखा हो। उनके लिए खेल अभी भी मनोरंजन का विषय है। वे अभी भी मानते हैं कि खेलों में कोई भविष्य नहीं है और इस प्रकार, वे अपने बच्चों को खेल में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित नहीं करते हैं। समाज में ‘खेल’ की स्वीकृति की कमी के कारण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में साल दर साल बिहार का प्रदर्शन खराब होता गया।
- राजनीतिक समर्थन का अभाव – भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी चीज को प्रोत्साहित करने के लिए राजनीतिक समर्थन एक महत्वपूर्ण घटक है। बिहार में, सरकार और राजनीतिक नेताओं का इस दिशा में समर्थन भी बहुत कम है। बिहार सरकार के पास खेलों के प्रति समर्पित नीति भी नहीं है। प्रायः सरकार राज्य में स्वस्थ खेल संस्कृति विकसित करने के प्रति अपनी अज्ञानता और कमी को सही ठहराने के लिए अन्य जरूरी प्राथमिकताएं जैसे गरीबी, भूख, कुपोषण, आजीविका आदि का हवाला देती है।
- आधुनिक बुनियादी ढाँचे की कमी – आधुनिक खेल प्रतियोगिताएँ गंभीर रूप से प्रतिस्पर्धी हो गई है। कोई भी खिलाड़ी गहन और प्रशिक्षित अभ्यासों, जो आधुनिक अवसंरचना जैसे कि जिम, स्टेडियम आदि से सुसज्जित हों अर्थात् रेस ट्रैक, इनडोर स्टेडियम सुविधा, आधुनिक पेशेवर प्रशिक्षक, आदि की उपलब्धता के बिना विजेता बनकर नहीं उभर सकता है। बिहार में इन सुविधाओं का अभाव है और एथलीटों को अभी भी उनके पुराने आदिम तरीके से प्रशिक्षित किया जाता है। यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों में उनके प्रदर्शन पर भारी पड़ता है।
- प्रायोजकों का अभाव – यह एक सही तथ्य है कि अकेले सरकार खेलों से सम्बंधित सभी खर्चों का वहन नहीं कर सकती है। खेलों के प्रायोजन के लिए निजी क्षेत्र के भी प्रायोजकों का अस्तित्व आवश्यक है। बिहार के खिलाड़ियों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता की तैयारी के लिए अच्छी संख्या में प्रायोजकों की आवश्यकता है। खेल उपलब्धियों के निराशाजनक रिदृश्य का मुकाबला करने के लिए कार्यप्रणाली में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।
बिहार में स्थिति को सुधारने में निम्नलिखित उपायों से मदद मिल सकती है –
- सामाजिक जागरूकता – समाज में खेल के बढ़ते महत्व के बारे में सामाजिक जागरूकता बढ़ने के लिए सरकार और अन्य हितधारकों जैसे कि गैर सरकारी संगठनों, सिविल सोसायटी, बौद्धिक व्यक्तियों आदि को एक साथ आना चाहिए। समाज को इस तथ्य से अवगत कराया जाना चाहिए कि किसी भी तरह से खेल केवल मनोरंजन का एक स्रोत नहीं रहा है, बल्कि यह एक उद्योग बन गया है। दुनिया भर के खेलों में लाखों डॉलर निवेश किये जा रहे हैं और बिहार को भी इसका फायदा उठाना चाहिए। खेल और फिटनेस उद्योग के क्षेत्र में बढ़ते आर्थिक अवसरों के बारे में समाज को संवेदनशील बनाने की तत्काल आवश्यकता है।
- राजनीतिक समर्थन जुटाना – समाज को आर्थिक अवसरों के मामले में खेलों के बढ़ते महत्व के बारे में जागरूक करने के बाद राजनीतिक समर्थन जुटाना दूसरी प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रशासन की पूरी श्रृंखला- उच्चतम निर्णय (कैबिनेट) से लेकर न्यूनतम प्रशासनिक इकाई इस संबंध में उनकी जिम्मेदारियों के बारे में संवेदनशील होना चाहिए। प्रशासनिक कर्मियों को खेल नीतियों के क्षेत्र में ( पंचायत स्तर) तक पेशेवर रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि राज्य में बेहतर खेल नीतियों का निर्माण और निष्पादन हो सके।
- आधुनिक बुनियादी ढाँचे के लिए प्रावधान – राज्य को खेल से संबंधित जिम्मेदारियों से हाथ पीछे हटाने का बहाना नहीं खोजना चाहिए । खेल से संबंधित मांगों जैसे बुनियादी ढाँचे, प्रायोजन, आयोजनों, पेशेवर प्रशिक्षकों आदि को समायोजित करने के लिए राजस्व का वैकल्पिक स्रोत खोजना होगा।
- निजी खिलाड़ियों ( private players) की बढ़ी हुई भूमिका – इस नव-उदारवादी युग में कोई भी खेल पर्यावरण प्रणाली निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों की व्यापक भागीदारी के बिना जीवित नहीं रह सकती है। सरकार को इस संबंध में, निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों को राज्य में एक बेहतर व स्थायी खेल संस्कृति बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए। राज्य को इस तरह के स्थायी खेल इको-सिस्टम बनाने के पक्ष में नीतियां बनानी चाहिए। सरकार बिहार में खेल उद्योग की ओर निजी क्षेत्र का ध्यान आकर्षित करने के लिए सार्वजनिक नीतियों का उपयोग कर सकती है।
जिस समय पूरी दुनिया तेजी से संसाधन जुटा रही है और खेल इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बिहार को भी अपने फायदे तलाशने चाहिए और इस संबंध में स्वयं को अच्छे उपयोग की स्थिति में रखना चाहिए ताकि मजबूत वैश्विक मूल्य श्रृंखला का अधिकतम फायदा उठाया जा सके। बिहार सरकार और राज्य का समाज इस चल रही प्रक्रिया के दो सबसे बड़े लाभार्थी हैं और इस प्रकार, उन्हें अपनी जिम्मेदारियों के बारे में भी उतना ही सावधान रहना चाहिए ।
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