भाषा की शैलीगत विशेषताएँ बताइए ।
प्रश्न – भाषा की शैलीगत विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – भाषा की शैलीगत विशेषताएँ
- रूपान्तर की दृष्टि से हिन्दी संज्ञाओं के केवल चार रूप हैं— दो मूल रूप, और दो विकसित रूप; जैसे- लड़का-लड़के, लड़कों-लड़कों, बहन — बहनें, बहनों-बहनों, लड़की – लड़कियाँ, लड़कियों लड़कियों आदि ।
- हिन्दी में दो ही वचन हैं अर्थात् एकवचन तथा बहुवचन । इसमें दो ही लिंग (पुल्लिंग, स्त्रीलिंग) हैं। इसके साथ-साथ हिन्दी में व्याकरणिक लिंग भेद भी है । यह भेद वहाँ पर हैं जहाँ आकारान्त विशेषण पद होते हैं। जैसे—
अच्छा –अच्छीगोरा – गोरीलम्बा –लम्बीकाला –कालीनीला – नीलीछोटा – छोटीये लिंग भेद क्रियाओं तक व्याप्त हैं, हिन्दी के सर्वनामों में लिंग भेद क्रिया ही बताती है।
- संस्कृत में जहाँ आठ कारक थे, हिन्दी में केवल दो ही रूपों से काम चला लिया गया है । एक प्रातिपादिक का मूल रूप है दूसरा उसका विकसित रूप है । विकसित रूप के साथ विभक्ति चिह्न लगाकर आठों कारकों के अर्थ प्रकट किए जा सकते हैं; जैसे—ने, को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि ।
- हिन्दी की क्रियाओं के साधारण रूप के अन्त में ‘ना’ प्रत्यय का प्रयोग होता है; जैसे—जाना, खाना, पीना, लिखना, उठना, बैठना आदि । ‘ना’ को हटाने से पीछे धातु रह जाती है । कभी-कभी हिन्दी क्रियाएँ संज्ञा पद का भी काम करने लगती हैं। जैसे’पढ़ना-लिखना अच्छा है ।’ हिन्दी में लगभग पाँच सौ क्रियाएँ हैं, जिनमें सकर्मक, अकर्मक, संयुक्त, प्रेरणार्थक और नामधातु हैं ।
- हिन्दी की क्रिया पद्धति में तीन काल – भूत, वर्तमान और भविष्य हैं। इसी प्रकार तीन अभिप्रेतार्थ (आज्ञा, निश्चय तथा सम्भावना), तीन कालावस्थाएँ (सामान्य, पूर्ण और अपूर्ण), तीन वाक्य (कर्तृ, कर्म और भाव) तथा तीन प्रयोग ( कर्त्ता, कर्म, भाव) मिलते हैं।
- हिन्दी अव्ययों के चार वर्ग हैं, ये हैं – क्रिया विशेषण, समुच्चयबोधक, सम्बन्धबोधक तथा विस्मयादिबोधक ।
- हिन्दी वाक्य रचना कर्त्ता, कर्म तथा क्रिया के पद कर्म पर आधारित है । मानक हिन्दी के वाक्यों के तीन प्रकार हैं- साधारण (सरल), संयुक्त तथा मिश्रित । वाक्यांतरण की भी अनेक रीतियाँ हैं; जैसे—विधान, निश्चय, निषेध तथा प्रश्न आदि ।
- हिन्दी के पदकर्म में प्रायः उद्देश्य के पहले उद्देश्य के विस्तार को तथा विधेय के विस्तार को विधेय से पहले रखा जाता है। गौण कर्म को भी मुख्य कर्म से पहले रखा जाता है। कर्म को सकर्मक क्रिया के एकदम पहले रखा जाता है। अन्य कारक करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण कर्त्ता के मध्य में उल्टे क्रम से रखे जाते हैं ।
- कर्त्ता कारक के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग हिन्दी की भूतकालिक क्रियाओं में किया जाता है। लेकिन गत्यर्थक और अकर्मक क्रियाओं में ऐसा नहीं होता ।
- शब्दों का उच्चारण करते समय हिन्दी का ह्रस्व ‘अ’ की ध्वनि का उच्चारण नहीं होता । लेकिन लिखित रूप में यह विद्यमान रहता है । इसी प्रकार ‘व’ का प्रयोग लिखित रूप में ही होता है उच्चारण में नहीं ।
- तत्सम शब्दों में सन्धि और समास की प्रक्रिया संस्कृत के अनुसार मानक हिन्दी में ज्यों की त्यों स्वीकार कर ली गई है । लेकिन मानक हिन्दी को सजीव भाषा बनाने के लिए कुछ अपनी रूप स्वानिमिक व्यवस्था भी अपनाई गई है । जैसे- -अब + ही = अभी, तब + ही = तभी, जब + ही = जभी, कब + कभी । इसी प्रकार समास में भी प्रयत्न लाघव और स्वानिमिक मितव्ययिता अपनाई गई है, जैसे—आठ आने-अठन्नी, घोड़ों की दौड़-घुड़दौड़ आदि ।
- फुसफुसाहट वाले तथा उदासीन स्वरों को छोड़कर हिन्दी के सभी स्वर अनुनासिक और निरनुनासिक है। जैसे— हँसना, आँसू, निन्दिया, बींधना, मूँगा, मुँह, गेंदा, भैंस, बूँद, सौंफ आदि ।
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