मगध का अभ्युदय और सिकन्दर का आक्रमण
मगध का अभ्युदय और सिकन्दर का आक्रमण
मगध साम्राज्य का विकास
छठी सदी B. C. में मगध में हर्यक वंश का शासन प्रारम्भ हुआ, जिसका संस्थापक बिम्बसार माना जाता है. बिम्बसार के पिता का नाम भट्टिय, हेमजीत, क्षेमजीत के रूप में मिलता है; जिसने मगधराज बालक की षड्यन्त्र से हत्या करवाकर अपने पुत्र को मगध का शासक बनवाया.
बिम्बिसार
बिम्बिसार ने अपना प्रभाव विभिन्न राजघरानों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके बढ़ाया. बिम्बिसार के अनेक पुत्र थे— अजातशत्रु, हाल, वेहाल, अभय, नन्दीसेन और मेघकुमार प्रथम तीन तो चेलना के पुत्र थे और चौथा आम्रपाली का पुत्र था, जो बिम्बिसार की रखैल थी. तक्षशिला के राजा को जब उसके शत्रु परेशान कर रहे थे, तब उसने बिम्बिसार से मदद माँगी जिसे बिम्बिसार ने अस्वीकार कर दिया. बिम्बिसार ने अवन्ति के शासक चण्डप्रद्योत के पीलिया रोग से पीड़ित होने पर उसे रोगमुक्ति दिलाने के लिए जीवक नामक राजवैद्य को भेजा था. बिम्बिसार ने ब्रह्मदत्त को पराजित कर अंग राज्य को मगध में मिलाया. आवश्यक सूत्र के अनुसार हालांकि बिम्बिसार ने अजातशत्रु को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, लेकिन अजातशत्रु गद्दी के लिए उताबला था उसने उसे कैद कर सत्ता हथिया ली. कैद में उसकी सेवा चेलना ने की जेल में बिम्बिसार की मृत्यु हुई.
बिम्बिसार के वैवाहिक सम्बन्ध
1. कौशल के शासक प्रसेनजित की बहिन (कौशलदेवी) महाकौशला के साथ विवाह जिसके फलस्वरूप न केवल पश्चिम की ओर से भयमुक्त हो गया, बल्कि काशी का प्रदेश भी दहेज में मिला.
2. लिच्छवि गणज्येष्ठ चेतक की पुत्री चेलना के साथ.
3. विदेह की राजकुमारी वासवी के साथ.
4. मद्र की राजकुमारी क्षेमा के साथ.
अजातशत्रु
बिम्बिसार की मृत्यु के बाद अजातशत्रु का कौशलराज से युद्ध हुआ, जिसमें अनेक उतार-चढ़ाव आए और अन्ततः कौशलराज ने अपनी अपनी पुत्री वज्जिरा का विवाह अजातशत्रु से कर दिया. अजातशत्रु और वैशाली के बीच युद्ध हुआ, जो 16 वर्ष तक चला. अन्ततः अजातशत्रु की जीत हुई. अजातशत्रु ने अवन्ति के विरुद्ध युद्ध लड़ा या नहीं यह ठीक से विदित नहीं है पर युद्ध की तैयारी अवश्य की थी.
पुराणों के अनुसार दर्शक अजातशत्रु का उत्तराधिकारी बना तथा कुछ स्रोतों के अनुसार उदयिन अजातशत्रु का उत्तराधिकारी बना.
वैशाली से युद्ध का कारण
जैन परम्परा के अनुसार चेलना से उत्पन्न दो पुत्रों हल्ल और बेहल्ल को बिम्बिसार द्वारा सचेतक हाथी और बहुमूल्य हार प्रदान किये थे, जिसे प्राप्त करने के लिए अजातशत्रु द्वारा के साथ युद्ध हुआ, क्योंकि दोनों भाई अपने नाना चेतक के यहाँ चले गये थे.
⇒ बौद्ध परम्परा के अनुसार गंगा में स्थित सोने की खान के बँटवारे को लेकर.
⇒ मुख्य कारण अजातशत्रु की महत्वाकांक्षा.
⇒ वज्जि संघ में फूट डालने और सैनिक रहस्यों को जानने के लिए अजातशत्रु ने सुनीध और वर्षकार को भेजा था.
⇒ वज्जि संघ एवं मगध के बीच युद्ध पाटलिपुत्र ग्राम नामक स्थान पर हुआ. जहाँ आगे चलकर पाटलिपुत्र की स्थापना हुई.
उदयिन
महावंश के अनुसार उदयभद्र या उदयिन ने 16 वर्ष शासन किया. उदयिन की माँ पद्मावती थी. उदयिन ने पाटलिपुत्र नगर की स्थापना की और अवन्ति के शासक को पराजित किया.
शिशुनाग
उदयिन के पश्चात् शिशुनाग गद्दी पर बैठा और उसने अपनी राजधानी वैशाली स्थानान्तरित कर दी गई. उसने अवन्ति की शक्ति को नष्ट कर मगध में मिला लिया. शिशुनाग के पश्चात् कालाशोक शासक बना. उसके समय में वैशाली में बौद्ध संगीत आयोजित की गई थी.
नन्द
कालाशोक के पश्चात् नन्द वंश का शासन स्थापित हुआ. नन्द शासक अत्यन्त धनवान और बलशाली था. उन्होंने कलिंग के उत्तरी भाग को विजित किया और वहाँ से जैन तीर्थंकर की प्रतिमा विजय के प्रतीक के रूप में उठा लाए. नन्द वंश के शासन के दौरान ही सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था. सिकन्दर के आक्रमण के पश्चात्च न्द्रगुप्त मौर्य का उदय हुआ उसने चाणक्य की मदद से नन्द वंश का नाश कर दिया और मौर्य वंश की स्थापना की. मौर्य वंश के शासन में मगध अपने चर्मोत्कर्ष पर पहुँचा.
मगध साम्राज्य के उत्थान के कारण
सातवीं और छठी शताब्दी ई. पू. में देश विभिन्न महाजनपदों में विभक्त था, जिनमें अपनी-अपनी साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता एवं संघर्ष दिखाई देता है, जिसमें अन्ततोगत्वा मगध विजयी होता है. अतः स्वाभाविक प्रश्न उपस्थित है कि वे कौनसे कारण एवं परिस्थितियाँ थीं जिनके कारण मगध अन्य राज्यों की तुलना में अपनी साम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने में सफल हो सका.
साम्राज्य की सफलता या असफलता मुख्यतः राज-तन्त्रात्मक शासन में बहुत कुछ निर्भर करती है. सौभाग्य से मगध को बिम्बसार, अजातशत्रु एवं शिशुनाग जैसे कुशल शक्तिशाली और कूटनीतिक शासकों का सानिध्य प्राप्त हुआ जिन्होंने मगंध को सही अर्थों में एक साम्राज्य के रूप में प्रतिष्ठित करने में महती प्रयास किया, लेकिन अन्य कारणों की भी इसमें उल्लेखनीय भूमिका रही.
भौगोलिक दृष्टिकोण से मगध की स्थिति अत्यन्त महत्वपूर्ण थी. मगध की राजधानी राजगृह उस स्थल के निकट थी, जहाँ लोहे के पर्याप्त भण्डार थे. परिणामतः शस्त्र निर्माण की से मगध की स्थिति अपने प्रतिद्वन्द्वी राज्यों की तुलना में महत्वपूर्ण बन गई. उल्लेखनीय है कि अवन्ति में भी लोहे के पर्याप्त भण्डार थे और उन्होंने भी उन्नत किस्म के हथियारों का निर्माण किया. यही कारण है कि मगध को उस पर अधिकार करने में 100 वर्ष से भी अधिक समय लगा, , लेकिन अन्य परिस्थितियों की दृष्टि से मगध की स्थिति महत्वपूर्ण थी. मगध की राजधानियाँ राजगृह और पाटलिपुत्र सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों पर स्थित थीं. राजगृह पाँच पर्वत शृंखलाओं से घिरा हुआ था, जहाँ शत्रु के लिए पहुँचना दुष्कर था, तो पाटलिपुत्र गंगा, सोन, गण्डक नदियों से आवृत्त थी.
यह भी ज्ञातव्य है कि दक्षिणी बिहार के घने जंगलों में हाथियों की प्रचुरता थी जिनका प्रयोग युद्ध कार्यों में मुख्यतः शत्रुओं के दुर्गों को ध्वस्त करने में किया गया. यूनानी इतिहासकारों ने नन्द सेना में हाथियों की संख्या सम्बन्धी उल्लेख तथा चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा सेल्युकस को 500 हाथी देने के साक्ष्य भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं.
यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र में ब्राह्मण प्रति-क्रियावादी विचार श्रेष्ठता प्राप्त न कर सके और यहाँ उदारता व समन्वय का वातावरण बना रहा. जिससे मगध में विस्तृत दृष्टिकोण का विकास हुआ जो विस्तृत साम्राज्य के निर्माण में सहायक था.
रूढ़िवादी ब्राह्मण सभ्यता द्वारा लगाये गये सामाजिक बन्धनों में शिथिलता और बौद्ध तथा जैन धर्मों सार्वजनिक दृष्टिकोण ने जिन्हें मगध में सुखद स्थान प्राप्त हुआ, इस क्षेत्र के राजनीतिक दृष्टिकोण को विस्तृत कर दिया और इस क्षेत्र को एक शक्तिशाली साम्राज्य का केन्द्र बना दिया.
सिकन्दर का आक्रमण
मेसीडोनिया के शासक सिकन्दर ने 330 ई. पू. में पर्सियोलिस के महल के जलने के बाद भारत विजय की योजना बनाई. उसने सर्वप्रथम हेराक्लीज और डायोनीसस की शक्ति को समाप्त किया और अपने देश में अपनी स्थिति मजबूत की तत्पश्चात् उसने क्रमशः सीस्तान, दक्षिण अफगानिस्तान, बेक्ट्रिया और समीपवर्ती क्षेत्रों पर अधिकार किया 327 ई. पू. में सिकन्दर ने मात्र दस दिन में हिन्दुकुश मार किया और सिकन्दरिया पर अधिकार कर लिया. काबुल नदी के तट पर पहुँचकर उसने अपनी सेना को दो भागों में विभाजित किया एक का सेनापतित्व, हेफिस्शन और परडिकप्स को सौंपा और दूसरे की कमान स्वयं सँभाली. मार्ग में सिकन्दर ने अस्पासिओई पर अधिकार कर 40,000 कैदियों को यूनान कृषि कार्य के लिए भेजा. अस्पासिओई के बाद उसने निसा को अधीन किया और 300 घुड़सवारों को अपनी सेवा में लिया. आगे बढ़ते हुए उसने मसग के युद्ध में अस्साकेनोई जाति को परास्त किया. अस्साकिनोई राजा की विधवा क्लिओफिस से उसका प्रेम प्रसंग चला और एक पुत्र का जन्म हुआ 326 ई. पू. में सिकन्दर ने ओहिन्द के समीप सिन्धु नदी को पार किया, जहाँ तक्षशिला के शासक अम्भि ने उसका स्वागत किया और 5,000 सैनिक उसकी सेवा में भेज दिए. अम्भि के बाद अभिसार शासक ने भी समर्पण कर दिया. इसके पश्चात् झेलम नदी के तट पर सिकन्दर और पोरस के बीच युद्ध हुआ, जिसमें पोरस की हार हुई. पोरस की वीरता से सिकन्दर प्रसन्न हुआ और उसने उसको अपना मित्र बना लिया. पोरस से युद्ध के पश्चात् सिकन्दर ने बोकफल और निकाइया नामक नगरों की स्थापना की.
इसके पश्चात् सिकन्दर आगे बढ़ा और ग्लोसाई जाति को परास्त कर 37 नगरों पर अधिकार कर लिया. ग्लोसाई देश में ही सिकन्दर को सिन्धु के पश्चिम में हुए विद्रोह की सूचना मिली, जिसमें बिकानोर की हत्या कर दी गई थी. विद्रोह के दबने के बाद सिकन्दर ने चिनाब नदी को पार किया और छोटे पोरस को परास्त किया. अगस्त 326 ई. तक सिकन्दर रावी नदी तक बढ़ आया और अरिस्ता जाति को अपने अधिकार में ले लिया. इसके पश्चात् सिकन्दर ने सांगल किले को नष्ट कर दिया. सांगल विजय के बाद ग्रीक सेना ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और सिकन्दर को वापस लौटना पड़ा. मार्ग में ही सिकन्दर की मृत्यु हो गई.
आक्रमण के प्रभाव
भारत में अनेक ग्रीक बस्तियाँ बस गई.
सिकन्दर के द्वारा बनाए गए नगर काफी फले-फूले.
एकीकृत साम्राज्य की स्थापना के विचार को बढ़ावा मिला.
भारत सीधे पश्चिमी दुनिया के सम्पर्क में आ गया.
व्यापार में वृद्धि के साथ-साथ कला और साहित्य में वृद्धि को नए आयाम मिले.
इतिहास निर्धारण के लिए निश्चित तिथि मिली.
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