मध्यकालीन भारत : संकल्पनाएँ, विचार एवं शब्दावली (MEDIEVAL INDIA : CONCEPTS, IDEAS AND TERMS)

मध्यकालीन भारत : संकल्पनाएँ, विचार एवं शब्दावली (MEDIEVAL INDIA : CONCEPTS, IDEAS AND TERMS)

खुतबा 
यह एक व्याख्यान पत्र है, जो दोनों ईद की नमाजों और जुमे की नमाज में पढ़ा जाता है. इसमें अल्लाह, पैगम्बर की प्रशंसा के बाद समकालीन शासक की प्रशंसा की जाती है. यह शासक की सर्वोच्चता की घोषणा करने का महत्वपूर्ण साधन है.
खिलाफत 
खलीफा की आध्यात्मिक सत्ता और शासन व्यवस्था को खिलाफत कहा जाता था. हजरत मुहम्मद के उत्तराधिकारी खलीफा कहलाये और हजरत अबुबकर प्रथम खलीफा थे. खिलाफत पूरे विश्व में इस्लामी शासन की आध्यात्मिकता को प्रकट करती है. मंगोलों ने खिलाफत को नष्ट कर दिया था.
सुलह-ए-कुल
शिक्ष का प्रमुख अब्दुल सुलह-ए-कुल का अर्थ है – “सबके साथ शान्ति व्यवस्था बनाए रखने का सिद्धान्त.” यह अकबर की नीति सिद्धान्त था, जिसका प्रतिपादन अकबर लतीफ ने किया था. सुलह-ए-कुल की नीति ने शांति व सहयोग को बढ़ावा दिया. इस नीति का मुख्य उद्देश्य विभिन्न धार्मिक मान्यताओं शिया, सुन्नी और हिन्दुओं को मिलाना और उनमें पाये जाने वाले साम्प्रदायिक मतभेदों को दूर करना था.
दीन-ए-इलाही
दीन-ए-इलाही अकबर द्वारा प्रचलित एक नया धर्म था जिसका सरकारी नाम ‘तौहीद-ए-इलाही’ था. अकबर सभी धर्मों की अच्छाइयों को एक स्वरूप प्रदान करके एक नया रूप देना चाहता था. इसी उद्देश्य से उसने दीन-ए-इलाही धर्म चलाया. इस धर्म के 18 अनुयायी थे, जिसमें बीरबल ही एकमात्र हिन्दू था. नये धर्म के पीछे उसका मुख्य उद्देश्य हिन्दू और मुसलमानों के बीच वैमनस्य को कम करके एक सुदृढ़ साम्राज्य की स्थापना करना था.
महाराष्ट्र धर्म
मराठों के काल में महाराष्ट्र में संत तुकाराम और गुरु रामदास समर्थित जिस धर्म का प्रचार हुआ वह ‘महाराष्ट्र धर्म’ कहलाता है. इसके सिद्धान्त भक्ति आन्दोलन से प्रभावित थे. इस धर्म ने समानता के सिद्धान्त द्वारा वर्णव्यवस्था को लचीला बनाने में सफलता प्राप्त की तथा लोगों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया था.
जजिया कर 
मध्यकाल में गैर-मुसलमानों से लिया जाने वाला कर “जजिया कर’ कहलाता था. जजिया का अर्थ है ‘मुआवजा’. यह कर उनसे वसूल किया जाता था, जिन्हें जिम्मी ठहरा दिया गया था. यह कर गैर-मुसलमानों से इसलिए वसूल किया जाता था, क्योंकि वे सैनिक सेवा से मुक्त थे और उनकी रक्षा का भार मुसलमानों पर था. अकबर ने इस कर को समाप्त कर दिया तथा औरंगजेब ने इसे पुनः लगा दिया. ब्राह्मणों, स्त्रियों, बच्चों तथा अन्धों से यह कर नहीं लिया जाता था, लेकिन फिरोज तुगलक ने इनसे भी यह कर वसूला.
तुर्कान-ए-चहलगानी
सल्तनत काल में यह चालीस गुलामों का गुट था, जिसकी स्थापना इल्तुतमिश ने की थी. ये गुलाम इल्तुतमिश द्वारा खरीदे गये थे, जो प्रशासन में उसकी सहायता करते थे. इस गुट का सुल्तान पर बहुत अधिक प्रभाव था. जब बलबन सुल्तान बना तो उसने इस गुट को नष्ट कर दिया.
मदद-ए-माश 
मध्यकाल में धार्मिक व्यक्तियों, सन्तों तथा विद्वानों को जो करमुक्त भूमि अनुदान में दी जाती थी, वह ‘मदद-एमाश’ कहलाती थी. इस पर बादशाह का पूरा अधिकार होता था. इस प्रकार की भूमि वापस जब्त भी की जा सकती थी. सामान्यतया ऐसी भूमि दी जाती थी जो कृषि योग्य हो, लेकिन उस पर कृषि नहीं की जा रही हो.
अक्ता
अक्ता अर्थात् ‘हस्तान्तरणीय लगान अधिन्यास’ सल्तनत काल में सैनिक और असैनिक अधिकारियों को उनकी सेवाओं के बदले वेतन के रूप में जो भूमि प्रदान की जातीथी, उसे ‘अक्ता’ कहा जाता था. अक्ता प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस भूमि का सारा लगान अपने उपयोग के लिए रखता था और केन्द्रीय सरकार के प्रति उसका एकमात्र कर्तव्य सेना में व्यक्तिगत सेवा प्रदान करना था. अक्ता प्राप्त करने वाला अधिकारी ‘मुक्ता’ या ‘वली’ कहलाता था.
चौथ
चौथ मराठों द्वारा लिया जाने वाला भूमि कर था, जो कुल उपज का एक-चौथाई होता था. चौथ उस क्षेत्र से वसूल किया जाता था जिस क्षेत्र पर मराठा आक्रमण की पूर्ण सम्भावना होती थी, लेकिन चौथ का भुगतान करते रहने से यह निश्चित हो जाता था कि मराठा उस क्षेत्र पर आक्रमण नहीं करेंगे और यदि उस क्षेत्र पर अन्य बाह्य शक्ति ने आक्रमण किया तो उसकी रक्षा मराठा करेंगे.
वतन
यह एक प्रकार की जागीर थी, जो मुगलकाल में जागीरदारों को दी जाती थी. वतन वह भूमि होती थी, जो मूल रूप से उसके शासन में थी. यह राजाओं की पुश्तैनी भूमि होती थी जो शाही नियमों द्वारा नियन्त्रित होती थी.
लंगर
धार्मिक स्थानों, मस्जिदों, दरगाहों, गुरुद्वारों द्वारा निर्धन व गरीब लोगों को मुफ्त में जो भोजन बाँटा जाता था, वह ‘लंगर’ कहलाता है. मुगलकाल में भी लंगर की प्रथा प्रचलित थी. लंगर गरीब लोगों की सहायता करने का एक साधन था.
अमरम
विजयनगरकालीन सेनानायकों को जिन्हें राजा वेतन के बदले अथवा उनके अधीनस्थ सेना के रखरखाव के लिए एक विशेष भूमि दे देता था जिसे ‘अमरम’ कहा जाता था. इस भूमि का उपभोग करने के कारण उसे ‘अमरनायक’ कहा जाता था. इस भूमि से प्राप्त आय का एक अंश केन्द्रीय खजाने में जमा करना पड़ता था तथा इसी भूमि की आय से राजा की सहायता के लिए एक सेना रखनी पड़ती थी. अमरम भूमि में शांति एवं व्यवस्था बनाये रखने का दायित्व अमरनायक पर ही था.
भाई-बाँट
दो भाइयों के बीच चल और अचल सम्पत्ति का बँटवारा ‘भाई-बाँट’ कहलाता था. इसका विभाजन प्रतिष्ठित व्यक्तियों की उपस्थिति में किया जाता था, ताकि उनमें झगड़ा नहीं हो.
निशान
मुगलकाल व सल्तनतकाल में शासकों के पास जो स्वतन्त्रता का परचम होता था, वह ‘निशान’ कहलाता था. यह स्वतन्त्रता का प्रतीक होता था.
जंगम
वीरशैव सम्प्रदाय की स्थापना वासवराज ने की थी. इस हैं. ये शिवलिंग की उपासना करते हैं तथा उसे चाँदी के सम्प्रदाय को मानने वाले लोगों को जंगम (लिंगायत) कहते सम्पुट में रखकर गले में धारण किये रहते हैं. जंगमों ने शैव धर्म के प्रचार में बहुत योगदान दिया था.
राया – रेखों 
यह विजयनगर साम्राज्य में भूमि मूल्यांकन के लिए प्रयुक्त एक मानक था.
बलूता
मुगलकाल में शिल्पकारों तथा दस्तकारों को उनके पारिश्रमिक के रूप में अनाज का एक निर्धारित भाग दिया जाता था, जिसे ‘बलूता’ कहा जाता था.
हुण्डी [Hundi (Bills of Exchange)]
हुण्डी एक साख – पत्र होती थी, जिसका भुगतान किसी निश्चित समय के बाद छूट के साथ किया जाता था. हुण्डी में माल अक्सर बीमे की राशि भी सम्मिलित होती थी. बीमे की दर मूल्य, उसे पहुँचाने के ठिकाने और उसकी ढुलाई की पद्धति पर निर्भर थी. हुण्डी के माध्यम से काम करने वाले लोग साख पैदा करते थे, जो मुद्रा के प्रचलन की अनुपूर्ति करता था. व्यापारी वर्ग माल बेचने के स्थान पर हुण्डी को नकद में बदल सकता था. इसलिए पैसा साथ लेकर चलने की आवश्यकता नहीं थी.
सर्राफ (Sarraf)
मध्यकाल में देश में पैसे को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए हुण्डी की व्यवस्था की गयी थी. इस व्यवस्था के विशेषज्ञ लोग सर्राफ कहलाते थे. सर्राफ लोग बैंकों का कार्य करते थे. वे सरदारों का पैसा जमा करते थे एवं उसे उधार पर लगाते थे.
पोलेगर (Polygars )
विजयनगर साम्राज्य के अन्तर्गत ऐसे राजा जिन्हें पराजित करने के बाद उनके राज्य लौटा दिये गये थे, ये राजा अपने सैनिक सरदारों को एक निश्चित राजस्व वाला क्षेत्र दे देते थे. ये सैनिक सरदार राज्य की सेवा के लिए एक निश्चित संख्या में पैदल सैनिक, घोड़े अथवा हाथी रखने पड़ते थे. इन्हें केन्द्रीय कोष के लिए कुछ धन भी देना पड़ता था. ये सैनिक सरदार अथवा नायक ही ‘पोलेगर’ कहलाते थे.
जागीर (Jagir )
मध्यकाल में मुगल शासकों द्वारा अपने अधीन सामन्तों व राजाओं को एक निश्चित आय वाला भू-भाग प्रदान किया जाता था. इस क्षेत्र की आय से ये सामंत शासक एक निश्चित संख्या में सेना रखते थे व खर्चे के अतिरिक्त बची हुई रकम को केन्द्रीय कोष में जमा करा देते थे. इस क्षेत्र को ही जागीर कहा जाता था.
दस्तूर (Dastur)
मुगलकाल में जिलों को ‘दस्तूर’ कहा जाता था, जिसके अन्तर्गत ग्राम होते थे जो प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थे. दस्तूर में फौजदार नामक एक स्थायी सैनिक अधिकारी होता था, जो कानून व्यवस्था बनाये रखता था. इसके अलावा एक अमलगुजार होता था जो आय-व्यय का विवरण रखता था. शहर में एक कोतवाल भी होता था, जो नगर में घटने वाली समस्त घटनाओं के प्रति उत्तरदायी होता था.
मनसब ( ओहदा ) [ Mansab ( Rank )]
अकबर ने अपनी सेना का गठन मनसबदारी पद्धति के द्वारा किया. इस पद्धति में प्रोगों को इससे ऊँचा मनसब दिया जाता था.
देशमुख (Deshmukh)
शिवाजी के समय में मराठा प्रदेश अनेक छोटी-छोटी अर्द्ध-स्वतन्त्र इकाइयों में गठित था. इन इकाइयों के स्वामी देशमुख कहलाते थे. ये लोग गाँवों में छोटे किले अथवा गढ़ी बनाकर रहते थे तथा स्थानीय जनता से कर वसूल करते थे. इन लोगों ने अपने धन के बल पर पैदल सैनिक एवं बन्दूकचियों की भर्ती कर ली थी. अतः शिवाजी ने इन्हें ध्वस्त कर अपना प्रभुत्व इन पर कायम किया.
नाडु (Nadu)
चोल साम्राज्य मंडलों में विभाजित था. मंडल बलनाडु में तथा बलनाडु नाडु में विभाजित थे. ‘नाडु’ आधुनिक जिले के समान इकाई था. इसकी सभा को ‘नाट्टार’ कहा जाता था. नाट्टार सभा में सभी गाँवों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते थे. इसका मुख्य कार्य भू-राजस्व का प्रबन्ध करना होता था. इसे किसी को भू-राजस्व में छूट दिला देने का भी अधिकार था. यह मन्दिर के प्रबन्ध का कार्य भी करती थी.
परगना (Pargana)
मुगलकाल में साम्राज्य सूबों में बँटा था तथा सूबे सरकार या परगने में बँटे होते थे, जिसके अन्दर कई जिले सम्मिलित होते थे. शिकदार परगने में शांति व्यवस्था बनाये रखने वाला प्रमुख अधिकारी होता था तथा आमिल नामक अधिकारी को राजस्व वसूली में सहयोग देता था. परगने के अन्य अधिकारी कानूनगो, फोतदार, कारकून आदि थे.
बंगाल वैष्णव धर्म (Bengal Vaishnavism )
बंगाल वैष्णव धर्म का प्रवर्तन चैतन्य महाप्रभु ने ने था. इन्होंने सगुण भक्ति मार्ग का अनुसरण करते हुए कृष्ण भक्ति पर विशेष बल दिया. इस धर्म के कारण जाति-पाँति एवं अनावश्यक कुरीतियों का बंगाल में विरोध हुआ. चैतन्य ने मूर्ति पूजा, अवतारवाद, कीर्तन, नृत्य एवं संगीत लीला आदि को मानने को कहा तथा इससे ईश्वर का साक्षात् होना बतलाया. यह धर्म बंगाल के अतिरिक्त उड़ीसा तथा बिहार में भी फैला. किया
अल्त-मघा (Alt-Magha)
मोहरबन्द या शाही शील युक्त भूमि अनुदान, जिसे जहाँगीर द्वारा प्रारम्भ किया गया. एक विशिष्ट भू-धृति अथवा भूमि अनुदान इन अनुदानों को ‘अल्त-मघा’ इसलिए कहते थे, क्योंकि इसी नाम से सम्राट की मोहर इन अनुदानों पर लगाई जाती थी. ये भूमि अनुदान, जागीर-ए-वतन अथवा गृह जागीरों के रूप में दिये जाते थे. यह भूमि अनुदान या जागीरें एक निश्चित अवधि के लिए ही दी जाती थीं.
शाहना-ए-मंडी ( Shahna-i-Mandi)
अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियन्त्रण व्यवस्था में शाहना-ए-मंडी एक प्रमुख अधिकारी था. इसके अधीन बरीद होते थे जो बाजार के अन्दर घूम-घूम कर बाजार का निरीक्षण किया करते थे. अलाउद्दीन अपने इन अधिकारियों के बल पर ही अपने ‘सराय-ए-अदल’ नामक बाजार में प्रत्येक वस्तु की कीमतें स्थिर रखने में सफल हो सका था.

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