महिला के सकारात्मक सुझाव तथा अवगतीकरण समूह एवं स्वयं समूह के कार्य, विचार-विमर्श तथा ए. वी. व्यस्तता का वर्णन करें ।

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प्रश्न – महिला के सकारात्मक सुझाव तथा अवगतीकरण समूह एवं स्वयं समूह के कार्य, विचार-विमर्श तथा ए. वी. व्यस्तता का वर्णन करें । 
उत्तर – महिलाओं में सकारात्मक सुझाव तथा अवगतीकरण की आवश्यकता सामूहिक क्रियाकलापों, परस्पर विचारों के आदान-प्रदान में हैं, जिसका आकलन निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा रहा है –
  1. जागरूकता हेतु—स्त्रियों में समूह, स्वयं – समूह, कार्यों तथा विचार-विमर्श के द्वारा इन विषयों के प्रति सकारात्मक सुझाव तथा अवगतीकरण की आवश्यकता, जागरूकता के प्रसार हेतु अत्यधिक है । विभिन्न प्रकार के समूहों में कार्य करने तथा महत्त्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श करने से स्त्रियों में जागरूकता के साथ-साथ अवकाश के समय का सदुपयोग करने की प्रवृत्ति का भी विकास होता है ।
  2. अवकाश के सदुपयोग हेतु- हमारे प्राचीन नीतिशास्त्र विषयी ग्रन्थों में भी कहा गया है कि व्यक्ति को अपने खाली समय का दुरुपयोग पर – निन्दा इत्यादि के कार्यों में न करके अपितु उस समय का सदुपयोग विभिन्न प्रकार के विचार-विमर्श में लगाना चाहिए । इससे आमोद-प्रमोद के साथ-साथ ज्ञान की भी प्राप्ति होगी । स्त्रियों के अवकाश के समय का सदुपयोग करने हेतु उन्हें समूह, स्वयं समूह कार्यों तथा विचार-विमर्श में संलग्न करना चाहिए जिससे उनके ज्ञान और दृष्टिकोण का विस्तार होगा ।
  3. सामाजिकता हेतु – स्त्रियाँ घर की चारदीवारी में सीमित रहती हैं जिसके कारण उन्हें समाज के सम्पर्क में आने के पर्याप्त अवसर नहीं प्राप्त होते हैं, जिससे उनकी सामाजिकता भी प्रभावित होती है । समूह, स्वयं-समूह कार्यों, विचार तथा विमर्श के द्वारा स्त्रियों की सामाजिक्ता में वृद्धि होती है और उनका सकारात्मक सुझाव तथा व्यस्तता और अवगतीकरण में भी वृद्धि होती है ।
  4. सामूहिकता हेतु – समूह, स्वयं समूह कार्य, विचार-विमर्श तथा व्यस्तता के द्वारा स्त्रियों में सामूहिकता की भावना का विकास होता है जिससे वे अलग-थलग न रहकर समूह के साथ कार्य करना तथा विचारों का आदान – प्रदान करती हैं। इस प्रकार सामूहिकता की भावना के विकास हेतु यह अत्यावश्यक है।
  5. आर्थिक तथा सामाजिक उन्नति हेतु – समूह, स्वयं कार्यों के द्वारा स्त्रियों की आर्थिक उन्नति होती है क्योंकि वे समाज के साथ विचार-विमर्श कर कदम-से-कदम मिलाकर चलती हैं, जिससे वे समाज की उन्नति में सहयोग करती हैं । स्वयं समूह कार्यों तथा विचार-विमर्श के द्वारा स्त्रियाँ अपने साथ-साथ अपने समाज की आर्थिक इत्यादि उन्नति में सहयोग प्रदान करती हैं ।
  6. विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श हेतु – समूह तथा स्वयं समूह कार्यों द्वारा स्त्रियाँ विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श करती हैं जिससे उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन आता है और वे सकारात्मक विचारों की ओर अग्रसर होती हैं । विविध विषयों पर सामूहिकता की भावना के कारण स्त्रियों में सामाजिक सरोकारों के प्रति परिचय तथा उन सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता का भाव जाग्रत होता है । स्त्रियों के विभिन्न मुद्दों पर उनका स्वयं का सकारात्मक झुकाव अत्यावश्यक तथा उपयोगी है ।
  7. मिथकों को तोड़ने तथा आत्मविश्वास हेतु – समूह, स्वयं समूह कार्य, विचार-विमर्श तथा व्यस्तता के कारण स्त्रियों की भूमिका उनके प्रति वर्षों से चली आ रही सामाजिक परम्पराओं और मिथकों को तोड़ने में रही है । स्त्रियाँ स्वयं समूह कार्य के द्वारा समाज के समक्ष अपनी सकारात्मक छवि का प्रस्तुतीकरण कर रही हैं जिससे उनके प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन आ रहा है और विचार-विमर्श में सक्रिय रूप से सहभागिता लेने के कारण स्त्रियों में स्वयं के प्रति हीनता का जो भाव था वह धीरे-धीरे आत्मविश्वास में परिवर्तित होने लगा है।
  8. प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा हेतु – समूह, स्वयं समूह कार्य, विचार-विमर्श तथा व्यस्तता इत्यादि की क्रियाओं से स्त्रियों को अवगत कराना और उनके प्रति सकारात्मक झुकाव का विकास करना प्रजातांत्रिक मूल्यों की स्थापना तथा रक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । प्रजातांत्रिक मूल्यों के अनुसार बिना किसी भेदभाव के सभी समानता, स्वतन्त्रता और न्याय के अधिकारी हैं । अत: स्त्रियों को इन कार्यों द्वारा व्यस्त रखने से वे इन मूल्यों के प्रति तथा इन मूल्यों की प्राप्ति के प्रति अधिक जागरूक बनती हैं ।
समूह, स्वयं समूह कार्य, विचार-विमर्श तथा ए वी व्यस्तता (Group, SelfGroup Work, Discussion and A-V Engagement ) – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । इसीलिए वह समाज में विभिन्न प्रकार के विचारों, रहन-सहन इत्यादि की विविधता के पश्चात् भी अनुकूलन करता है। सामाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान, आत्म-प्रकाशन और चारित्रिक, नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, सांवेगिक, राजनैतिक तथा आर्थिक इत्यादि विकास यहीं करता है। इसी कारण से मनुष्य सामाजिक संरचना और नियमों में आस्था रखता है। स्त्रियों को सामाजिक सरोकारों से प्रायः पुरुष-प्रधान समाज में दूर रखा जाता है जिस कारण से वे अपनी समस्याओं और मुद्दों पर खुलकर विचार-विमर्श नहीं कर पाती हैं तथा इसे अपनी नियति मानकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी सहन करती रहती हैं जिसके कारण लैंगिक भेदभावों में अत्यधिक वृद्धि हो रही है । अतः स्त्रियों में इस हीन भावना और उपेक्षा के मनोविज्ञान से बाहर निकलकर समूह के मध्य अपनी समस्याओं और स्त्रियों तथा सामाजिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करना होगा ।
समूह में स्त्रियाँ जब कार्य करती हैं तो एक-दूसरे की ऊर्जा और शक्ति प्रदान कर शक्ति का समूह बन जाती हैं। इससे वे लिंगीय भेदभावों, स्त्रियों के प्रति दुर्व्यवहार, भाषायी तथा शारीरिक हिंसा पर मिलकर आवाज उठाती हैं, जिसकी अनुगूँज प्रभावी होती है। स्त्रियाँ स्वयं समूह कार्य के द्वारा स्वयं तो स्वावलम्बी तथा आत्मनिर्भर बन रही हैं, परन्तु इस श्रृंखला में नित्यप्रति और लोग भी जुड़कर स्वावलम्बन के पथ पर अग्रसर हो रहे हैं। कहावत है कि ‘जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई’ अर्थात् स्त्रियाँ जिस असमानता, भेदभाव और शोषण की शिकार हो रही हैं, उसका समाधान संविधान और कानून के नियमों तक में निहित न होकर उनके अपने प्रयासों, जागरूकता और इच्छा शक्ति में है । घरेलू कार्यों के पश्चात् स्त्रियों के पास जो समय शेष बचता है उसका सदुपयोग उनमें सकारात्मक विचारों, स्त्री जनित विषयों के प्रति सकारात्मक सुझाव तथा उन विषयों से यदि अवगत कराने में प्रयोग किया जाये तो उत्साहजनक परिणाम प्राप्त होंगे ।
शिक्षा के अभाव के कारण स्त्रियाँ अवकाश के समय का न तो किसी उत्पादक कार्य हेतु प्रयोग कर पाती हैं और न ही इस समय का प्रयोग वे अपनी समस्याओं की समाप्ति हेतु करती हैं | अतः उनको शिक्षा के द्वारा इस विषय में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए । आर्थिक आधार, सामाजिक तथा राजनैतिक और सांस्कृतिक इत्यादि सभी में स्त्रियों की भूमिका कम है । अतः उन्हें इन विषयों से अवगत कराना चाहिए । जब इन विषयों के प्रति स्त्रियों में सुग्राह्यता आयेगी तो वे लिंगीय मुद्दों के प्रति स्वयं तथा धीरे-धीरे समाज में सकारात्मकं झुकावों का विकास करेंगी। समूह तथा स्वयं-समूह कार्य द्वारा धीरे-धीरे यह एक विस्तृत श्रृंखला बन जायेगी तो सशक्तीकरण, लिंगीय मुद्दों के प्रति जागरूकता, सामाजिक सरोकारों के प्रति सकारात्मक झुकाव तथा अवगतीकरण के रूप में परिलक्षित होगी । स्त्रियाँ स्वयं अथवा स्व-समूह कार्य के द्वारा आपस में अन्तः क्रिया कर वर्षों से चली आ रही सामाजिक कुरीतियों, परम्पराओं, अन्धविश्वासों तथा मिथकों को तोड़ने का कार्य करेंगी। वर्तमान में कार्यात्मक साक्षरता के द्वारा समाज शिक्षा के अन्तर्गत स्त्रियों के अवकाश के समय को सामाजिक विषयों के अवगतीकरण तथा सकारात्मक झुकाव की ओर मोड़ा जा रहा है । समूह, स्व-समूहकार्य, विचार-विमर्श स्त्रियों की सुग्राह्यता और व्यस्तता के विविध क्षेत्रों में लाभ देखे जा सकते हैं। ये क्षेत्र अग्रलिखित हैं –
1. पारिवारिक क्षेत्र,
2. सामाजिक क्षेत्र,
3. सांस्कृतिक क्षेत्र,
4. आर्थिक क्षेत्र,
5. राजनैतिक क्षेत्र,
6. धार्मिक क्षेत्र,
7. शैक्षिक क्षेत्र,
8. राष्ट्रीय क्षेत्र,
9. अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र ।
इन लाभों को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत देख सकते हैं-
1. सर्वांगीण विकास का सम्पन्न होना
2. बहुमूल्य समय का सदुपयोग ।
3. सामाजिक विकास ।
5. भावना ग्रन्थियों का समापन ।
4. आर्थिक सशक्तता ।
6. लिंगभेद में कमी ।
7. आत्म – प्रकाशन तथा वैचारिक आदान-प्रदान के कारण समाजीकरण की प्रक्रिया में तीव्रता ।
8. कार्य के प्रति समुचित दृष्टिकोण का विकास |
9. आत्मविश्वास की प्राप्ति ।
10. शान्ति, सहयोग, परोपकार तथा अवबोध की स्थापना ।
11. लिंगीय दुर्व्यवहारों में कमी ।
12. नैतिक तथा चारित्रिक विकास |
13. सामाजिक कुरीतियों तथा कुप्रथाओं की समाप्ति
14. स्त्रियों की शक्ति तथा समय का राष्ट्र हित में प्रयोग ।
15. स्त्रियों को प्रजातांत्रिक मूल्यों तथा आदर्शों के अनुरूप स्थान प्राप्त होना |
16. स्त्रियों की स्थिति में सुधार ।
17. आर्थिक स्वावलम्बन ।
18. शैक्षिक उन्नयन ।
19. विचार-विमर्श के द्वारा स्त्रियों के इन अमूल्य विचारों का प्रयोग उनके उत्थान में करना ।
20. जागरूक तथा सुसंस्कृत समाज की स्थापना ।
21. महत्त्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श के द्वारा उनके प्रति एकमतता का निर्माण ।
22. निर्णय तथा विवेक एवं आत्मविश्वास हेतु उपयोगी ।
23. खोये हुए सम्मान की प्राप्ति ।
24. मानवता के उन्नयन में सहायता ।
25. समूह, में व्यक्ति जब कार्य करता है तो उसमें अनुकूलन और संघर्ष की क्षमता का विकास होता है, अतः यह महत्त्वपूर्ण है
26. सामूहिक कार्यों के द्वारा स्त्रियों में धीरे-धीरे आत्मविश्वास आने लगता है जो उनके तथा समाज के लिए हितकारक है ।
27. समूह, स्वयं समूह कार्य, विचार-विमर्श तथा ए वी व्यस्तता के द्वारा स्त्रियों का सशक्तीकरण प्रदान करते हैं ।
28. सामूहिक कार्यों के द्वारा पुरुष भी स्त्रियों के प्रति अपना दृष्टिकोण परिवर्तित कर उन्हें सहयोग प्रदान करते हैं ।
29. स्त्रियों में महत्त्वपूर्ण विषयों के प्रति जागरूकता का भाव उत्पन्न होता है और वे घर, परिवार, समाज तथा समुदाय को भी जागरूक बनाती है ।
समूह, स्वयं-समूह कार्य, विचार-विमर्श तथा व्यस्तता के परिणामस्वरूप स्त्रियाँ अपनी चिर-परिचित अबला की भूमिका से बाहर निकलकर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर, सकारात्मक झुकावों का विकास हो रहा है, उनका अवगतीकरण होने से । स्त्रियाँ लैंगिक भेदभावों को भुलाकर अब स्वयं-समूहों का निर्माण कर रही हैं जो स्वयं अपनी स्थिति में सुधार हेतु कार्यरत हैं। इससे उनके अवकाश के समय का सदुपयोग भी होता है। सामूहिकता की भावना तथा कार्य के द्वारा स्त्रियाँ एक-दूसरे से मिलती हैं, उनमें वैचारिक आदान – प्रदान के साथ-ही-साथ सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक, धार्मिक, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर विचार-विमर्श तथा उन विषयों के प्रति सकारात्मक भावों का विकास होता है । बिना सामाजिक सम्पर्क के व्यक्ति की सामाजिकता का दायरा और सोच संकुचित रह जाती है, परन्तु जब कार्य इत्यादि के द्वारा सम्पर्क स्थापित होता है तो इस ज्ञान के अवगतीकरण द्वारा व्यापक दृष्टिकोण का विकास होता है। वर्तमान में महिलाओं के अपने संघ हैं जहाँ पर वे अपनी समस्याओं पर बातचीत, समाधान के साथ-साथ स्वयं सहायता समूहों द्वारा स्वावलम्बन की ओर अग्रसर हो रही हैं ।

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