महिलाओं के सुरक्षात्मक वैधानिक प्रावधान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।
प्रश्न – महिलाओं के सुरक्षात्मक वैधानिक प्रावधान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।
उत्तर— भारत में महिलाओं की भूमिका को सशक्त बनाने के लिए भारतीय संविधान में वर्णित प्रावधानों के अलावा भी सरकार द्वारा महत्त्वपूर्ण अधिनियम पारित किये गये हैं जो महिलाओं पर लादी गयी कुप्रथाओं से मुक्ति दिलाने से सम्बन्धित है अथवा समाज में उनकी स्थिति सशक्त करने से सम्बन्धित है । ये वैधानिक (सरकारी) नियम इस प्रकार से वर्णित है—
- बागान श्रम अधिनियम, 1951 – इस अधिनियम के द्वारा महिला कर्मचारियों को अपने बच्चों को दूध पिलाने हेतु आवश्यक रूप से व्यवस्था की गयी है ।
- कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1952 – राज्य की महिला कर्मचारियों से सम्बन्धित इस नियम के द्वारा महिलाओं को दिये जाने वाली प्रसूती अवकाश में चिकित्सकीय प्रमाण-पत्र की तिथि को ही प्रभावी माना जायेगा ।
- खान अधिनियम, 1952 – खानों में कार्य करने वाली महिलाओं से सम्बन्धित इस नियम के अन्तर्गत खानों में कार्यरत महिलाओं के बालकों के लिये शिशु सदन की व्यवस्था करने का प्रावधान किया गया है ।
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (संशोधन, 1986 ) – भारतीय समाज में महिलाओं के लिए दहेज एक बड़ा अभिशाप है । अतः 1961 में इस अधिनियम के द्वारा दहेज लेने एवं देने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इसमें 1986 में संशोधन करके इस अधिनियम को और भी अधिक कठोर बना दिया गया । इसमें दहेज लोभियों को कड़ी सजा भुगतने का विशेष रूप से प्रावधान किया गया है.
- प्रसूति सुविधा अधिनियम, 1961- महिलाओं के प्रसूति अवकाश से सम्बन्धित इस नियम के अनुसार, यदि महिला को कार्य करते हुए 80 दिवस हो गये हैं तो उसे प्रसव / गर्भपात हेतु अवकाश एवं निःशुल्क चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध करायी जाने की व्यवस्था की गयी है । इस प्रकार की सुविधा यह अधिनियम प्रदान करता है, जिससे अनेक महिला कर्मचारियों को लाभ हुआ है ।
- बीड़ी या सिगार कर्मकार अधिनियम, 1966- यह अधिनियम ऐसे कारखानों, जहाँ पर काम करने से महिलाओं के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, से सम्बन्धित है वहाँ महिलाओं के कार्य करने पर इसके द्वारा प्रतिबन्ध लगा दिया गया है ।
- ठेका श्रम अधिनियम, 1976- यह अधिनियम महिलाओं के लिए कार्य दिवस एवं घण्टों का निर्धारण करता है। महिला श्रमिकों से बागानों में प्रात: 6:00 बजे से सायंकाल 7 के बीच 9 घण्टे से अधिक काम लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है ।
- समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 – मजदूरी से सम्बन्धित इस नियम के अन्तर्गत महिलाओं के लिए समान कार्य हेतु पुरुषों के समान पारिश्रमिक का प्रावधान किया गया है । अब दोनों के पारिश्रमिक में अन्तर नहीं किया जा सकता है ।
- बीड़ी कर्मकार कल्याण निधि अधिनियम, 1976- लौह, मैंगनीज एवं अयस्क खान, श्रमिक कल्याण निधि अधिनियम, 1976 एवं चूना पत्थर ओर डोलोमाइट खान कल्याण निधि अधिनियम, 1972 – इन अधिनियमों के अन्तर्गत नियुक्त सलाहकार समिति में एक महिला सदस्य की नियुक्ति को अनिवार्य बना दिया गया है ।
- अन्तर्राज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम, 1979 – यह अधिनियम कुछ विशेष नियोजनों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय एवं स्नानाहार की व्यवस्था करने पर जोर देने के लिए बनाया गया है ।
- वेश्यावृत्ति निवारण अधिनियम, 1986 – यह अधिनियम महिलाओं को अनैतिक कार्यों में दुरुपयोग रोकने के सन्दर्भ में पारित किया गया है ।
- स्त्री अशिष्ट निरूपण निषेध अधिनियम, 1986 – इस अधिनियम के द्वारा महिलाओं के अश्लील प्रदर्शन पर राके लगाये जाने की व्यवस्था करता है ।
- 73वाँ एवं 74 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1993- भारत में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति को सशक्त करने के लिए यह अधिनियम पारित किया गया जिसके अन्तर्गत महिलाओं को ग्रामीण एवं नगरीय स्वायत्त संस्थाओं में एक-तिहाई आरक्षण देने का प्रावधान विशेष रूप से किया गया है ।
- प्रसव पूर्व निदान तकनीकी अधिनियम, 1994 – भ्रूण परीक्षण से सम्बन्धित इस नियम के द्वारा गर्भावस्था में बालिका भ्रूण की पहचान करने पर रोक लगा दी गयी है ।
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