राजनीतिक दलों को “लोकतंत्र का प्राण” क्यों कहा जाता है ? अथवा, परिवारवाद और जातिवाद बिहार में किस तरह लोकतंत्र को प्रभावित करता है ?

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प्रश्न – राजनीतिक दलों को “लोकतंत्र का प्राण” क्यों कहा जाता है ? अथवा, परिवारवाद और जातिवाद बिहार में किस तरह लोकतंत्र को प्रभावित करता है ?

उत्तर – राजनीतिक दल को ‘लोकतंत्र का प्राण’ कहा जाता है क्योंकि ये प्रतिनिधियों के निर्वाचन में मुख्य रूप से भाग लेते हैं और ये दल ही लोकतांत्रिक शासन को व्यावहारिक रूप प्रदान करते हैं। राजनीतिक दल ही जनता की समस्याओं को सरकार के समक्ष रखते हैं तथा सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं। राजनीतिक दल ही जनता को राजनीतिक प्रशिक्षण देते हैं। ये शासन को निरंकुश होने से रोकते हैं।
अथवा,
बिहार के लोकतंत्र में जातिवाद, क्षेत्रवाद, परिवारवाद जैसी बुराइयाँ हैं। यहाँ यह निर्णायक भूमिका निभाती है। परिवारवाद के चलते राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है। ऐसी परिस्थिति में भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति को सुदृढ़ बनाने के लिए कुछ लोग कानून का निर्माण कर इसे साफ-सुथरा बनाने की बात करते हैं। परन्तु वास्तविकता यह है कि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का समाधान केवल कानून बनाने से नहीं होगा। जैसे हमारा संविधान अस्पृश्यता को नकारता है, फिर भी बिहार में आज भी अस्पृश्यता कायम है।

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