राष्ट्रीय आय की परिभाषा दें। उसकी गणना की प्रमुख विधियाँ कौन-सी हैं? अथवा, भारत में सामान्य व्यक्ति पर वैश्वीकरण का क्या प्रभाव पड़ा ?

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प्रश्न – राष्ट्रीय आय की परिभाषा दें। उसकी गणना की प्रमुख विधियाँ कौन-सी हैं? अथवा, भारत में सामान्य व्यक्ति पर वैश्वीकरण का क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर – प्रो० पीगू ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा निम्नलिखित शब्दों में दिया है – “राष्ट्रीय लाभांश किसी समाज की वस्तुनिष्ठ अथवा भौतिक आय का वह भाग है, जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है और जिसकी, मुद्रा के रूप में माप हो सकती है।”
राष्ट्रीय आय की गणना पाँच प्रकार से की जाती है –
(i) उत्पादन-गणना विधि : जब किसी देश के लोगों की आय उत्पादन के माध्यम से अथवा मौद्रिक आय के माध्यम से प्राप्त होता है तो इसकी गणना उत्पादन के योग के द्वारा किया जाता है। इस गणना विधि को उत्पादन – गणना विधि कहा जाता है।
(ii) आय-गणना विधि : जब किसी राष्ट्र के निवासियों की आय के आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है तो उस गणना विधि को आय-गणना विधि कहा जाता है।
(iii) व्यय-गणना विधि: हम जानते हैं कि प्राप्त की गई आय को व्यक्ति अपने उपभोग के लिए व्यय भी करता है। इसी कारण राष्ट्रीय आय की गणना व्यक्तियों के व्यय के माप से किया जाता है। किसी भी देश के राष्ट्रीय आय को मापने की इस प्रक्रिया को व्यय-गणना विधि कहते हैं।
(iv) मूल्य-योग विधि : जब उत्पादित की हुई वस्तुओं का मूल्य विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्तियों के द्वारा किए गए प्रयास से बढ़ जाता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय आय की गणना को मूल्य-योग विधि कहते हैं।
(v) व्यावसायिक-गणना विधि : जब व्यावसायिक संरचना के आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है तो ऐसी गणना को व्यावसायिक-गणना विधि कहते हैं ।
अथवा,
भारत सरकार की वैश्वीकरण की नीति लगभग दो दशक पूर्व अपनाई गई। इसके फलस्वरूप देश में अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन हुआ है, विदेशी निवेश बढ़ा है तथा सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि हुई है। लेकिन, इससे समाज के सभी वर्ग के लोग समान रूप से लाभान्वित नहीं हुए हैं।
वैश्वीकरण से भारत के धनी उपभोक्ता तथा बड़े उत्पादक लाभान्वित हुए हैं। लेकिन बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा ने मध्यम और छोटे उत्पादकों को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित किया है। खिलौने, बैटरी, टायर, डेयरी – उत्पाद एवं खाद्य-तेल के उद्योग कुछ ऐसे उदाहरण हैं जहाँ प्रतिस्पर्द्धा के कारण छोटे उठाना पड़ा है। इसके फलस्वरूप अनेक लघु इकाइयाँ बंद हो गई हैं और इनमें कार्यरत श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। ऐसा अनुमान है कि पिछले कुछ वर्षों में लगभग 5 लाख लघु इकाइयाँ बंद हो चुकी हैं जिससे 25 लाख से अधिक श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा कृषि के बाद यह क्षेत्र देश में सबसे अधिक श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है।
वैश्वीकरण से श्रमिकों का जीवन व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है। इससे प्रायः कुशल श्रमिकों की आय में वृद्धि हुई है। लेकिन अकुशल श्रमिकों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। प्रतिस्पर्द्धा के कारण अब अधिकांश नियोजक रोजगार की शर्तों को लचीला बनाने के लिए प्रयासरत हैं। इसका अभिप्राय यह है कि वे अपनी आवश्यकतानुसार श्रमिकों की नियुक्ति और उनकी छँटनी करने लगे हैं। इसका एक उदाहरण परिधान उद्योग है। इसके फलस्वरूप, इस उद्योग के अनेक श्रमिक बेरोजगार हुए हैं और अस्थायी श्रमिक के रूप में कार्य करने के लिए विवश हैं।

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