राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की मान्यता कौन प्रदान करते हैं और इसके मापदंड क्या है ? अथवा, न्यायपालिका की भूमिका लोकतंत्र की चुनौती है। कैसे? इसे सुधारने के क्या उपाय हैं ?
प्रश्न – राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की मान्यता कौन प्रदान करते हैं और इसके मापदंड क्या है ? अथवा, न्यायपालिका की भूमिका लोकतंत्र की चुनौती है। कैसे? इसे सुधारने के क्या उपाय हैं ?
उत्तर – राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की मान्यता चुनाव आयोग प्रदान करता है। राष्ट्रीय राजनीतिक दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए राजनीतिक दलों को लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में 4 या अधिक राज्यों द्वारा कुल डाले गए वैध मतों का 6 प्रतिशत प्राप्त करने के साथ किसी राज्य से लोकसभा की कम-से-कम 4 सीटों पर विजयी होना आवश्यक है या लोकसभा में 11 सीटें जीतना जरूरी है जो कम-से-कम तीन राज्यों से होनी चाहिए। इसी प्रकार राज्य स्तरीय राजनीतिक दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए उस दल को लोकसभा या विधान सभा के चुनावों में डाले गए वैध मतों का कम-से-कम 6 प्रतिशत मत प्राप्त करने के साथ-साथ राज्य विधानसभा की कम-से-कम 3 प्रतिशत सीटें या 3 सीटें जीतना आवश्यक हैं।
अथवा,
लोकतंत्र तीनों अंगों कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका में से दो क्रमशः कार्यपालिका एवं विधायिका व्यवहारिक रूप से आपस में जुड़ी होती है। किसी मुद्दों पर इनका एकमत हो जाना आम बात है क्योंकि इनको साथ मिलाकर चलना होता है। इसके कारण कई बार जनता की हितों की रक्षा नहीं हो पाती एवं कानून का भी हनन होता है। न्यायपालिका का सक्रिय होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। न्यायपालिका के इतिहास को भारतीय संदर्भ में देखें तो इसे साफ सुथरा नहीं कहा जा सकता है, जैसे—(i) न्यायपालिकाओं के निर्णय सत्ताधारी दलों या राजनेताओं द्वारा प्रभावित होते रहे हैं। (ii) न्यायधीश की नियुक्तिओं में पारदर्शिता की कमी है। (iii) न्यायधीशों द्वारा अपने संपत्ति के ब्यौरे को सार्वजनिक करने का प्रस्ताव एवं लोगों के द्वारा इसका विरोध किया जाता है।
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