राष्ट्रीय न्यास पर संद्धिप्त टिप्पणी लिखें ।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
प्रश्न – राष्ट्रीय न्यास पर संद्धिप्त टिप्पणी लिखें ।

उत्तर- राष्ट्रीय न्यास (National Trust) – राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999 की धारा 3 के अंतर्गत राष्ट्रीय कल्याण न्यास के निंगमन का उपबंध है । न्यास के कार्यकलापों और कार्यवार का साधारण अधीक्षण, निदेशन और प्रबंध बोर्ड में निहित होंगे जो उन सभी कार्यों और बातों को कर सकेगा जो न्यास द्वारा प्रयोग की जा सकेंगी या किए जा सकेंगे [ धारा 3 (2) ] | न्यास का मुख्य कार्यालय नई दिल्ली में है ।

प्रबंधन बोर्ड – बोर्ड केन्द्रीय सरकार द्वारा उन व्यक्तियों में से नियुक्त किया जाएगा जिनके पास स्वपराणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-नि:शक्तता के क्षेत्र में विशेषज्ञता और अनुभव हो [धारा 3 (3)] । बोर्ड निम्नलिखित से मिलकर बनेगा ।

(क) अध्यक्ष – एक अध्यक्ष जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उन व्यक्तियों में से नियुक्त किया जाएगा जिनके पास स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु – नि:शक्तता के क्षेत्र में विशेषज्ञता और अनुभव हो । अध्यक्ष का वेतन भारत सरकार के संचित के मूलवेतन के समतुल्य होगा (धारा 4, नियम 2000)।

अध्यक्ष की शक्तियाँ एवं कर्तव्य-राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999 नियम 2000 की धारा 6 के अनुसार बोर्ड के अध्यक्ष की शक्तियाँ एवं कर्तव्य निम्नलिखित हैं :

(i) अध्यक्ष, बोर्ड के सभी अधिवेशनों को बुलाने और उनका सभापतित्व करने के लिए. उत्तरदायी होगा [ धारा 6 (11)]।

(ii) अध्यक्ष, बोर्ड द्वारा विचार किए जाने के लिए अपेक्षित या केन्द्रीय सरकार बोर्ड द्वारा विचार किए जाने के लिए अपेक्षित किसी विषय के संबंध में अपने मतों पर विचार किए जाने के लिए बोर्ड को प्रस्ताव करेगा [ धारा 6 (2)] |

(iii) अध्यक्ष न्यास, जिसमें इसकी स्थानीय स्तर की समितियाँ भी हैं, के उचित रूप से कार्य करने के लिए उत्तरदायी होगा और वह न्यास की नीतियों और कार्यक्रमों का क्रियान्वयन के लिए मुख्य कार्यपालक अधिकारी को निर्देश देगा [ धारा 6 (3)] ।

(ख) सदस्य – नौ सदस्य जो रजिस्ट्रीकृत संगठनों में से ऐसी प्रक्रिया के अनुसार जो विहित की जाए, नियुक्त किए जाएँगे जिनमें से तीन-तीन सदस्य स्वयं सेवी संगठनों, स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु – निशक्तताग्रस्त व्यक्तियों के माता-पिताओं के संगम और निःशक्त व्यक्तियों के संगम में से होंगे; सदस्य, परंतु इस खंड के अधीन आरंभिक नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्देशन द्वारा की जाएगी ।

(ग) आठ ऐसे व्यक्ति जो भारत सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे के नहीं होंगे और जो उस सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएँगे और जो सामाजिक न्याय और अधिकारिता, महिला और बाल विकास स्वास्थ्य और परिवार कल्याण तथा नियोजन तथा ग्रामीण नियोजन और गरीबी उन्मूलन मंत्रालयों या विभागों का प्रतिनिधित्व करेंगे, पदेन सदस्य ।

(घ) परोपकारी क्रियाकलापों में लगे हुए व्यापार, वाणिज्य और उद्योग संगमों का प्रतिनिधित्व करने के लिए बोर्ड द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाने वाले तीन व्यक्ति, सदस्य ।

(ङ) मुख्य कार्यपालक अधिकारी, जो भारत सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति का होगा, सदस्य सचिव पदेन ।

अध्यक्ष या सदस्य अपना पद, अपनी नियुक्ति की तारीख से तीन वर्ष की अवधि के लिए अथवा अपना उत्तरवर्ती सम्यक् रूप से नियुक्त किए जाने तक जो भी बाद में हो, धारण करेगा [ धारा 4 (1)]।

परंतु कोई भी व्यक्ति पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात् अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में पद धारण नहीं करेगा ।

अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की सेवा शर्तें ऐसी होंगी जो विहित की जाएँ [ धारा 4 (2) ]। बोर्ड में हुई आकस्मिक रिक्ति धारा 3 के उपबंधों के अनुसार भरी जाएँगी और इस प्रकार नियुक्त व्यक्ति केवल उस शेष अवधि के लिए पद धारण करेगा जिसके लिए वह सदस्य, जिसके स्थान पर उसे नियुक्त किया गया था, उस पद को धारण करता [धारा 4 (3) ] ।

किसी व्यक्ति को अध्यक्ष या सदस्य के रूप में नियुक्त करने से पूर्व केन्द्रीय सरकार अपना स्वयं का समाधान करेगी कि वह व्यक्ति ऐसा कोई वित्तीय या अन्य हित नहीं रखता है और न ही रखेगा जिससे ऐसे सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना हो [ धारा 4 (4) ] ।

बोर्ड का कोई सदस्य उस अवधि के दौरान जिसमें ऐसा सदस्य पद धारण करता है, न्यास का हिताधिकारी नहीं होगा [ धारा 4 (5)]।

बोर्ड का अधिवेशन तीन मास में कम से कम एक बार ऐसे समय और स्थान पर होगा जो बोर्ड द्वारा विनियमों द्वारा अवधारित किया जाए और वह अधिवेशन में कार्यवार के संव्यवहार की प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगा जो विहित किए जाएँ [ धारा 4 (6) ]

अधिवेशन में अध्यक्षता अध्यक्ष या यदि किसी कारणवश वह बोर्ड के अधिवेशन में उपस्थित होने में असमर्थ है तो उपस्थित सदस्यों द्वारा अपने में से निर्वाचित कोई सदस्य करेगा [ धारा 4 (7) ] ।

ऐसे भी प्रश्न जो बोर्ड के किसी अधिवेशन के समक्ष आते हैं। उपस्थित मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा विनिश्चत किए जाएँगे और मत बराबर होने की दशा में अध्यक्ष का या उसकी अनुपस्थिति में अध्यक्ष करने वाले व्यक्ति का दूसरा या निर्णायक मत होगा [ धारा 4 (8) ] ।

न्यास के उद्देश्य (Aims of Trust)-राष्ट्रीय न्यास अधिनियम के अध्याय 3 में न्यास के उद्देश्यों की चर्चा की गई है । धारा 10 के अंतर्गत राष्ट्रीय न्यास के निम्नलिखित उद्देश्य हैं ।

  1. निःशक्त व्यक्तियों को यथासंभव स्वतंत्र और पूर्ण जीवन जीने के लिए उस समुदाय के भीतर और उसके नजदीक रहने के लिए जिसे वे हैं, समर्थ बनाना और सशक्त करना [ धारा 10 (क) ] ।
  2. निःशक्त व्यक्तियों को उनके अपने कुटुम्ब में रहने में सहायता प्रदान के लिए सुविधाओं को सुदृढ़ करना [ धारा 10 (ख) ] |
  3. निःशक्त व्यक्तियों के परिवार में संकट की अवधि के दौरान आवश्यकतानुसार सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए संगठनों को रजिस्ट्रीकृत करने के लिए सहायता देना [ धारा 10 (ग) ] ।
  4. उन निःशक्त व्यक्तियों की समस्याओं का समाधान करना जिनको परिवार का सहारा नहीं है धारा 10 (घ) निःशक्त व्यक्तियों की उनके माता-पिता अथवा संरक्षकों की मृत्यु की दशा में देख-भाल और संरक्षण के लिए उपायों का संप्रवर्तन करना [ धारा 10 (ङ) ] ।
  5. उन निःशक्त व्यक्तियों के लिए जिनको ऐसे संरक्षण की आवश्यकता है, संरक्षक और न्यासी नियुक्त करने के लिए प्रक्रिया तय करना [ धारा 10 (च) ] ।
  6. निःशक्त व्यक्तियों के लिए समान अवसर, अधिकारों के संरक्षण और उनको पूर्ण भागीदारी प्रदान करने को सुकर बनाना [ धारा 10 (छ) ] ।
  7. कोई अन्य कार्य करना जो पूर्वोक्त उद्देश्यों के आनुषंगिक हों [ धारा 10 (ज) ]

बोर्ड की शक्तियाँ और कर्तव्य (Powers and Functions of the Board) – राष्ट्रीय न्यास अधिनियम अध्याय 4 में बोर्ड की शक्तियाँ और कर्तव्य का विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है। अधिनियम की धारा 11 के मुताबिक बोर्ड –

(i) केन्द्रीय सरकार से समग्र निधि के लिए एक समय में एक अरब रुपए का अभिदाय प्राप्त करेगा जिससे होने वाली आय का निःशक्त व्यक्तियों को यथोचित जीवन स्तर उपलब्ध कराए जाने के लिए उपयोग किया जाएगा [ धारा 11 (1) क ] |

(ii) साधारणतया निःशक्त व्यक्तियों के फायदे के लिए और विशिष्टतया न्यास के उद्देश्यों को अग्रसर करने के लिए किसी व्यक्ति के स्थावर संपत्ति की वसीयत प्राप्त करेगा [धारा 11 (1) ख]।

परंतु बोर्ड की ओर से यह बाध्यकर होगा कि वसीयत में, यदि कोई है, नामित हिताधिकारी के लिए यथोचित जीवन स्तर की व्यवस्था करे और किसी अन्य प्रयोजन के लिए, जिसके लिए वसीयत की गई है, वसीयत की गई संपत्ति का उपयोग करें ।

परंतु यह और कि बोर्ड किसी ऐसी बाध्यता के अधीन नहीं होगा कि वह वसीयत में हिताधिकारी के रूप में नामित निःशक्त व्यक्तियों के अन्य फायदे के लिए वसीयत में उल्लिखित समस्त रकम का उपयोग करें ।

(iii) केन्द्रीय सरकार ने उतनी राशि प्राप्त करेगा जितनी किसी अनुमोदत कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के लिए रजिस्ट्रीकृत संगठनों को वित्तीय सहायता देने के लिए प्रत्येक वित्तीय वर्ष में आवश्यक समझी जाए [ धारा 11 (1) ग ] ।

अधिनियम की धारा 11 (2) उपधारा (1) के तहत बोर्ड के निम्नलिखित कार्य हैं।

कोई ऐसा कार्यक्रम, जो निःशक्त व्यक्तियों के लिए समुदाय में स्वतंत्र जीवनयापन को निम्नलिखित द्वारा संप्रवर्तित करता है – (i) समुदाय में प्रेरक वातावरण सृजित करना । (ii) निःशक्त व्यक्तियों के कुटुंब के सदस्यों को परामर्श और प्रशिक्षण देना । (iii) प्रौढ़ प्रशिक्षण इकाइयों, व्यष्टिक और सामूहिक गृहों को स्थापित करना । (iv) कोई ऐसा कार्यक्रम, जो निःशक्त व्यक्तियों के लिए विराम, देख-रेख, पोषक कुटुंब देख-रेख या दैनिक देख-रेख सेवा को संप्रवर्तित करें। (v) निःशक्त व्यक्तियों के लिए आवासीय छात्रावासों और आवासीय गृहों की स्थापना करना । (vi) निःशक्त व्यक्तियों के अधिकारों की प्राप्ति के लिए स्वयं सहायता समूहों का विकास करना । (vii) संरक्षकता का अनुमोदन प्रदान करने के लिए स्थानीय स्तर की समिति स्थापित करना, और (viii) ऐसे अन्य कार्यक्रम जो न्यास के उद्देश्यों को संपरिवर्तित करें ।

निधियाँ निश्चित करते समय निःशक्त स्त्रियों या गम्भीर रूप से नि:शक्त व्यक्तियों और निःशक्त अग्रज नागरिकों को अधिमानता दी जाएगी ।

पंजीकरण (Registration) – राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999 के अध्याय 5 की धारा 12 में निःशक्त व्यक्तियों के एसोसिएशन, माता-पिता के एसोसिएशन या स्वयंसेवी संगठनों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया का उल्लेख है।

(i) निःशक्त व्यक्तियों का कोई संगम या निःशक्त व्यक्तियों के माता-पिताओं का कोई संगम या कोई स्वयंसेवी संगठन, जिसका मुख्य उद्देश्य निःशक्त व्यक्तियों के कल्याण का संवर्धन करना है, रजिस्ट्रीकरण के लिए बोर्ड को आवेदन कर सकेगा [ धारा 12 (1) ]।

(ii) रजिस्ट्रीकरण के लिए कोई आवेदन ऐसे प्रारूप में और ऐसी रीति से तथा ऐसे स्थान पर, जो बोर्ड विनियम द्वारा उपबंधित करे, किया जाएगा और उसमें ऐसी विशिष्टियाँ होंगी और उसके साथ ऐसे दस्तावेज और ऐसी फीस होगी जो विनियमों में उपबंधित की जाए [ धारा 12 (2) ] ।

(iii) रजिस्ट्रीकरण के लिए आवेदन के प्राप्त होने पर, बोर्ड आवेदन की असलियत और उसकी किन्हीं विशिष्टियों के सही होने की बाबत ऐसी जाँच कर सकेगा, जो वह ठीक समझे [ धारा 12 (3) ]।

(iv) ऐसे आवेदन के प्राप्त होने पर, बोर्ड या तो आवेदन का रजिस्ट्रीकरण मंजूर करेगा या लेखबद्ध करणों से ऐसे आवेदन को नामंजूर करेगा। परंतु जहाँ आवेदक का रजिस्ट्रीकरण नामंजूर कर दिया गया है वहाँ उक्त आवेदक, अपने पूर्व आवेदन में की त्रुटियों को दूर करने के पश्चात् रजिस्ट्रीकरण के लिए पुनः आवेदन कर सकेगा [ धारा 12 (4) ] ।

संरक्षक की नियुक्ति-राष्ट्रीय न्यास अधिनियम की धारा 14 में निःशक्त व्यक्तियों के देख-भाल के लिए संरक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है। धारा 14 (1) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी निःशक्त व्यक्ति के माता-पिता या उसका कोई नातेदार अथवा पंजीकृत संगठन स्थानीय स्तर की समिति को अपनी रुचि के किसी व्यक्ति को निःशक्त के संरक्षक के रूप में कार्य करने के लिए संरक्षक की नियुक्ति किए जाने के लिए आवेदन कर सकेगा ।

इसके अलावा कोई रजिस्ट्रीकृत संगठन निःशक्त व्यक्ति के लिए संरक्षक की नियुक्ति के लिए विहित प्रारूप में आवेदन स्थानीय स्तर की समिति को कर सकेगा [ धारा 14 (2) ] | नातेदार के अन्तर्गत वे व्यक्ति आते हैं जो रक्त, विवाह या दत्तक ग्रहण के द्वारा उक्त निःशक्त व्यक्ति का संबंधी है ।

परंतु स्थानीय स्तर की समिति द्वारा कोई ऐसा आवेदन तब तक ग्रहण नहीं किया जाएगा जब तक कि नि:शक्त व्यक्ति के संरक्षक की सहमति भी अभिप्राप्त नहीं कर ली जाती है । उल्लेखनीय है कि स्थानीय समिति का गठन बोर्ड द्वारा किया जाता है । इस समिति में जिलाधिकारी या आयुक्त अध्यक्ष होते हैं जबकि एन. जी. ओ. के एक प्रतिनिधि, एक निःशक्त व्यक्ति सदस्य होते हैं । इसकी कार्यविधि तीन वर्गों की होती है । ।

संरक्षक की नियुक्ति के लिए आवेदन पर विचार करते समय, स्थानीय स्तर की समिति निम्नलिखित पर विचार करेगी-

(क) निःशक्त व्यक्ति को संरक्षक की आवश्यकता है या नहीं ।

(ख) वे प्रयोजना स्तर की समिति, उपधारा (1) और उपधारा (2) के अधीन प्राप्त आवेदन को विनियमों द्वारा अवधारित रीति से ग्रहण करेगी, उन पर कार्रवाई करेगी और उनका विनिश्चय करेगी ।

परंतु संरक्षक की नियुक्ति के लिए सिफारिश करते समय स्थानीय स्तर की समिति ऐसी बाध्यताओं का उपलंध भी कर सकेगी, जिन्हें संरक्षक द्वारा पूरा किया जाना है। स्थानीय स्तर की समिति अपने द्वारा प्राप्त आवेदनों की और उन पर पारित आदेशों की विशिष्टयाँ, ऐसे अन्तराल पर जो विनियमों द्वारा अवधारित किया जाए, बोर्ड को भेजेगी  [ धारा 14 (5) ] ।

संरक्षक के दायित्त्व – (i) निःशक्त व्यक्ति के संरक्षक के रूप में नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, जहाँ कहीं अपेक्षित हों, ऐसे निःशक्त व्यक्ति और उनकी सम्पत्ति की देखभाल करेगा या निःशक्त व्यक्ति के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी होगा [ धारा 15]।

(ii) संरक्षक के रूप में नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपनी नियुक्ति की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर, उस प्राधिकारी को जिसने उसे नियुक्त किया है, निःशक्त व्यक्ति की स्थावर संपत्ति और निःशक्त व्यक्ति की ओर से प्राप्त की गई सभी आस्तियों और अन्य जंगम संपत्ति की तालिका तथा उसके साथ ऐसे निःशक्त व्यक्ति को शोध सभी दावों और उस पर शोध सभी ऋणों और दायित्वों का कथन परिदत्त करेगा [ धारा 16 (1) ] ।

(iii) प्रत्येक संरक्षक उक्त नियुक्ति प्राधिकारी को प्रत्येक वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर तीन मास की अवधि के भीतर प्रभाव में की संपत्ति और संवितरित सभी देनराशियों तथा उनके पास बचे अतिशेष का लेखा देगा [ धारा 16 ( 2 ) ] ।

संरक्षक की पदच्युति – (i) जब कभी किसी निःशक्त व्यक्ति के माता-पिता या नातेदार को या रजिस्ट्रीकृत संगठन को यह पता चलता है कि संरक्षक व्यक्ति का दुर्विनियोजन या उपेक्षा कर रहा है तो वह ऐसे संरक्षक को हटाए जाने के लिए विहित प्रक्रिया के अनुसार समिति को आवेदन कर सकेगा [ धारा 17 (1)] ।

(ii) समिति ऐसा आवेदन प्राप्त होने पर, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि हटाए जाने के लिए आधार है और लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से ऐसे संरक्षक को हटा सकेगी और उसके स्थान पर नए संरक्षक को नियुक्त कर सकेगी या यदि ऐसा कोई संरक्षक उपलब्ध नहीं होता है तो ऐसी अन्य व्यवस्थाएँ कर सकेगी, जो निःशक्त व्यक्ति को देख-भाल और संरक्षण के लिए आवश्यक हों [ धारा 17 (2) ] ।

(iii) हटाये गया संरक्षक निःशक्त व्यक्ति की सभी संपत्ति का भार और उसके द्वारा प्राप्त या संवितरित किए गए सभी धन का लेखा-जोखा नए संरक्षक को देने के लिए बाध्य होगा [ धारा 17 (3) ]।

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..

  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *