रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें। अथवा, मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ?

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प्रश्न – रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें। अथवा, मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ?

उत्तर – रूसी क्रांति का रूस पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा –
(i) सर्वहारा वर्ग के सम्मान में वृद्धि : रूसी क्रांति के द्वारा सर्वहारा वर्ग की प्रधानता पहली बार विश्व में स्वीकार की गयी। यह क्रांति मध्ययुगीन सामन्ती और रूढ़िवादी समाज के अवशेषों को समाप्त कर दिया था और समता एवं न्याय पर आधारित एक नये आधुनिक समाज की स्थापना की। विश्व के देशों में किसानों और मजदूरों का सम्मान बढ़ गया।
(ii) साम्राज्यवाद के पतन की प्रक्रिया तीव्र : बोल्शेविक क्रांति के फलस्वरूप पराधीन राज्यों के इतिहास में एक नये युग का प्रारंभ हुआ। बोल्शेविक रूस ही यूरोप का पहला देश था, जिसने स्वेच्छा से साम्राज्य को अस्वीकार कर अपने अधीन पराधीन राज्यों को मुक्त कर दिया। इससे प्रेरित होकर समाजवादियों ने सम्पूर्ण विश्व में साम्राज्यवाद के विनाश के लिए अभियान तेज कर दिया।
(iii) साम्यवादी सरकारों की स्थापना : रूसी क्रांति के बाद रूस में सर्वप्रथम साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई। फलस्वरूप साम्यवाद काफी लोकप्रिय हो गया। रूस की साम्यवादी सरकार को देखकर संसार के अन्य देशों, जैसे— चीन और वियतनाम आदि देशों में भी साम्यवादी सरकारों की स्थापना हुई।
(iv) श्रम संगठनों की स्थापना : रूसी क्रांति की सफलता के परिणामस्वरूप श्रमिक के ऊपर हो रहे अत्याचारों में विश्व स्तर पर कमी आयी। श्रमिकों के बारे में चिन्ता किया जाने लगा। जब राष्ट्रसंघ की स्थापना हुई तो उसके अधीन ‘अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ का निर्माण किया गया। इसका उद्देश्य श्रमिकों की दशा में सुधार करना था।
(v) अन्तर्राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन : समाजवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार से अन्तर्राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन मिला। सिद्धान्त रूप में विश्व के सभी राष्ट्रों ने ऐसा महसूस किया कि दूसरे राष्ट्रों के साथ उनके सम्बन्ध का आधार मात्र अपना-अपना स्वार्थ ही नहीं होना चाहिए। फलस्वरूप अब अनेक राष्ट्रीय समस्याओं को अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का रूप प्रदान कर उनका शांतिपूर्ण समाधान ढूँढ़ने का प्रयास किया जाने लगा।
अथवा,
मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को अनेक प्रकार से प्रभावित किया। इसने आमलोगों की जिंदगी ही बदल दी। आमलोगों का जुड़ाव सूचना; ज्ञान, संस्था और सत्ता से नजदीकी स्तर पर हुआ। फलस्वरूप लोक चेतना एवं दृष्टि में बदलाव संभव हुआ।
मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी तबकों तक पहुँच गईं। इससे पढ़ने की एक नई संस्कृति विकसित हुई। एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ। पहले जनता सुनने वाली थी, अब पढ़ने वाली जनता तैयार हो गई। पढ़ने से उनके अन्दर तार्किक क्षमता का विकास हुआ।
मुद्रण क्रांति ने धार्मिक क्षेत्र पर गहरा प्रभाव डाला। किताबों के प्रचार-प्रसार से वाद-विवाद का द्वार खुला। स्थापित राजनीतिक एवं धार्मिक मान्यताओं पर नए सिरे से विचार आरंभ हुआ। बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ एवं धर्मसुधार आन्दोलन के नए विचारों का फैलाव बड़ी तेजी से आमलोगों तक हुआ।
मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप प्रगति और ज्ञानोदय का प्रकाश यूरोप में फैल गया। लोगों में निरंकुश सत्ता से लड़ने हेतु नैतिक साहस का संचार होने लगा । फलस्वरूप फ्रांसीसी क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण हुआ।
मुद्रण क्रांति से भारत में भी राष्ट्रीय आन्दोलन को फैलाने में बहुत मदद मिली। देश में अनेक राष्ट्रवादी अखबार छपने लगे। राष्ट्रवादी नेता अपने विचार समाचारपत्रों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने लगे। इसने सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बाँधने, विभिन्न समुदायों की बीच की दूरी समाप्त करने एवं शोषण के विरुद्ध जनमत तैयार करने का कार्य कर राष्ट्रीय आन्दोलन एवं राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को तीव्र किया।
मुद्रण क्रांति से मुद्रण कला की तकनीकी विकास भी तेजी से हुआ। अब बिजली से चलने वाले बेलनाकार मशीनें भी बाजार में आ गईं। अब प्रेस केवल धर्मप्रचार का ही साधन नहीं रहा, बल्कि ज्ञान-विज्ञान तथा विचारों के फैलाव का माध्यम बन गया।

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