विलम्बी क्रियात्मक विकास के कारणों की विवेचना करें।

प्रश्न – विलम्बी क्रियात्मक विकास के कारणों की विवेचना करें।
उत्तर – सामान्य बच्चों का विकास उपरोक्त वर्णित विधियों से होता है किन्तु सभी बच्चों में सामान्य क्रियात्मक विकास नहीं होता। कुछ बच्चों में देर से विकास होता है और कुछ में देर से क्रियात्मक विकास समयानुसार नहीं होता तो उसपर ध्यान देने की जरूरत है। इसके सही कारणों का पता लगा कर उसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए अन्यथा बच्चा मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं रह पाता। बच्चे का सामाजिक विकास भी इससे बाधित होता है। मनोवैज्ञानिकों ने विविध अध्ययन कर उसके निम्नलिखित कारण बताए हैं :
1. शारीरिक दुर्बलता या बीमारी ( Poor physical condition or illness ) – एक ही उम्र के बच्चों की तुलना करें तो यह प्रकट होता है कि अच्छी सेहतवाले बच्चों का क्रियात्मक विकास, बीमार एवं दुबर्ल बच्चों की अपेक्षा जल्दी होता है। प्रायः न्युमोनिया, रिकेट्स, डिप्थीरिया आदि से ग्रस्त बच्चों में क्रियात्मक विकास धीमी गति से होता है। क्रियात्मक विकास का होना सिर्फ शारीरिक विकास पर ही निर्भर नहीं करता बल्कि अन्य बातों का भी असर पड़ता है। ज्ञानात्मक दोष (senory defects), अंतः श्रावी ग्रंथियों (endocrine glands) की कार्य क्षमता में खराबी आने पर भी क्रियात्मक विकास विलम्ब से होता है। पौष्टिक भोजन के अभाव में भी बच्चे का क्रियात्मक विकास प्रभावित होता है।
2. पौष्टिक भोजन का अभाव (Lock of nutrition) शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास का भोजन से विशेष संबंध है। पौष्टिक भोजन के अभाव में शारीरिक विकास सही नहीं हो पाता एवं दुर्बलता आ जाती है। फलत: माँसपेशिय (muscular) नियंत्रण नहीं हो पाता। गर्भावस्था में भी यदि गर्भवती स्त्री को सही भोजन नहीं मिले तो बच्चे का विकास जीवन-पर्यन्त उससे प्रभावित रहता है ।
3. शरीर का आकार एवं अनुपात (Size and proportion of the body) — शरीर के आकार एवं अनुपात से भी बच्चे का क्रियात्मक विकास प्रभावित होता है। सही तरीके से चलना, बैठना, खड़ा होना आदि सभी शरीर के सही अनुपात एवं शारीरिक संतुलन पर आधारित होते हैं। शर्ली ने अपने अध्ययन में पाया कि बहुत ही अधिक दुबले-पतले या मोटे बच्चों में क्रियात्मक विकास सामान्य बच्चों की अपेक्षा देर से होता है।
4. बुद्धि (Intelligence) – प्रायः प्रथम वर्ष की अवस्था में बुद्धि एवं क्रियात्मक विकास में निकट संबंध होता है। जो बच्चे सामान्य बच्चों की अपेक्षा देर से बैठते, खड़े होते या चलते हैं, उनका बौद्धिक विकास भी सामान्य बच्चों की अपेक्षा कम होता है। जिन बच्चों में क्रियात्मक विकास सामान्य बच्चों की अपेक्षा पहले होता है, वे बुद्धि विकास में भी उनसे आगे रहते हैं—ऐसा मत है टरमन, टेनिस एवं गैरिसन का । यही कारण है कि दो वर्षों की उम्र की भीतर बच्चों के लिए बने बुद्धि-परीक्षणों में क्रियात्मक कार्यों की अधि कता होती है। किन्तु यह कदापि जरूरी नहीं कि जिन बच्चों का क्रियात्मक विकास देर से होता है, उनका बौद्धिक विकास भी देर से ही होता है। बुद्धि विकास एवं क्रियात्मक विकास का पारस्परिक संबंध पूर्व पाठशालीय अवस्था (Pre school age) अवस्था स्पष्ट दिखता हैं किन्तु बड़े एवं किशोरावस्थ में आते-आते इनके संबंध नगण्य हो जाते हैं। जरसील्ड के अनुसार मंद बुद्धि वाले बच्चों में तीव्र बुद्धि वाले बच्चों की अपेक्षा क्रियात्मक विकास देर से होता है।
5. स्नायविक नियंत्रण में विकास लाने की सुविधाओं का अभाव (Lack of opportunity to develop muscle control)— अभ्यास के अवसरों एवं सुविधाओं की कमी के कारण भी बच्चों में क्रियात्मक विकास अन्य बच्चों की अपेक्षा देर से होता है। इस बात की पुष्टि मनोवैज्ञानिकों ने भी की है। वैसे बच्चे जो ज्यादा समय तक गोद या पालने में रहते हैं, उनका क्रियात्मक विकास अन्य सामान्य बच्चों की अपेक्षा कम होता है। हमारे यहाँ होपी इंडियन में बच्चों को पीठ पर टोकरी में रखकर ढ़ोने की क्रिया होती है किन्तु उन बच्चों का क्रियात्मक विकास देर से नहीं होता। किन्तु गुटरिज, जोन्स एवं गैरिसन के अनुसार अभ्यास करने की सुविधाओं तथा अभ्यास करने की क्रिया को उत्साहित करनेवाली सामग्रियों के अभाव में बच्चों के क्रियात्मक कौशल के विकास में बाधा पहुँचती है। इसी वजह से आगे चलकर प्रौढ़ावस्था में क्रियात्मक कौशलों (motor skills) सीखने की इच्छा नहीं होती।
6. स्नायविक नियंत्रण को विकसित करने की प्रेरणा का अभाव (Lack of incentive to devleop muscle control)—इच्छा एवं प्रेरणा तथा स्नयुओं पर नियंत्रण नहीं कर सकने के कारण अथवा किसी अन्य माध्यम से उनकी जरूरतों की पूर्ति हो जाने के कारण बच्चे इसके लिए प्रयास नहीं करते। फलतः उनके क्रियात्मक विकास मंद गति से होता है। यह बात विशेषकर चलने, वस्त्र धारण करने तथा स्वयं खाने की क्रियाओं पर खरी उतरती है। गेसेल ने बताया है कि निम्न आर्थिक वर्ग से आने वाले बच्चों का क्रियात्मक विकास, उच्च आर्थिक वर्ग से आने वाले बच्चों की अपेक्षा अधिक होता है क्योंकि उन्हें अपनी हर जरूरत की पूर्ति के लिए जल्द दक्ष होना पड़ता है।
7. विशिष्ठ क्रियाओं के विकास पर विशेष जोर (Emphasis on specific movements)—सामान्य क्रियाओं को सीखने के पूर्व यदि बच्चे को विशेष क्रियाएँ सिखाई जानी शुरु कर दी जाय तो उसके क्रियात्मक विकास में बाधा पहुँचती है। बिना पूर्व प्रायोजित कार्य सिखलाये बिना, उदाहरणस्वरूप बिना लाइन या विविध रेखाओं को बनाए, सीधे बच्चे को अक्षर ज्ञान कराना, उसमें सीखने की गति को धीमा कर देता है।
8. कसे हुए वस्त्र (Hampering clothes) — बच्चों के कसे हुए वस्त्र उसके स्वतंत्र रूप से अंग संचालित करने में बाधा डालते हैं। विशेष तौर पर यह बात जूतों के साथ देखी जाती सकती है। छोटे जूते पहनाने पर बच्चे ठीक तरह से चल नहीं पाते । फलत: उनमें चलने की क्रिया अन्य बच्चों की अपेक्षा देर से होती है।
9. सीखने के अवसर का अभाव (Lack of opportunity to learn ) – बच्चों को सभी क्रियात्मक कौशलों को यदि सीखने का अवसर न दिया जाय तो उन कार्यों से संबंधित मांसपेशियों का विकास नहीं हो पायेगा। फलतः क्रियात्मक विकास भी मंद पड़ जाता है।
10. भय (Fear) — यदि बच्चों को कोई ऐसा कार्य करने के लिए बाध्य किया जाय जिसे करने के लिए उसमें आवश्यक स्नायविक नियंत्रण तथा स्नायु मंडल का विकास नहीं हुआ है, तो उसके क्रियात्मक विकास में बाधा पहुँचती है। अब यदि बार-बार उसे उस कार्य को करने के लिए कहा जाय और वे उसमें असफल हों तो उनमें उस कार्य के प्रति भय बैठ जाता है। बड़े होकर जब उनमें उस कार्य को करने की क्षमता आ भी जाती है, तब भी वे उस कार्य को करना नहीं चाहते। इस कारण वे क्रियात्मक ज्ञान में अन्य बच्चों से पिछड़ जाते हैं। अतः अविभावकों को सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी असफलता पर उन्हें डाँटे नहीं, बल्कि प्रोत्साहित करें। डाँटने से उनमें भय का संचार होगा और वे उस क्रिया को अपनी उम्र के अन्य बच्चों की अपेक्षा देर से करेंगे ।
अतः स्पष्ट है क्रियात्मक विकास के विलम्ब से होने के कई कारण हैं। उन कारणों का सही तरीके से पता लगाकर उसका निवारण करने का प्रयास करना चाहिए। अन्यथा उनके भावी जीवन के शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास भी अवरुद्ध हो जाएँगे ।
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