शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं ? इसके विविध चरणों की विवेचना कीजिए।
प्रश्न – शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं ? इसके विविध चरणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर – शारीरिक विकास का अर्थ जन्म से लेकर किशोरावस्था तक के शारीरिक परिवर्तन से है। बालक के शारीरिक विकास का अध्ययन भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बड़े व्यापक रूप में हुआ है। आयुर्विज्ञान, शरीरशास्त्र, जीव-रसायन (Bio-chemistry), आकृति-विज्ञान (Morphology) सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health), आरोग्य विज्ञान (Hygiene), मनोविज्ञान, मानसिक आरोग्य विज्ञान (Mental Hygien), मनोरोग चिकित्सा आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ विद्वानों ने बालक के शारीरिक विकास का विस्तृत अध्ययन किया है ।
शारीरिक विकास का बालक के व्यवहार की गुणात्मकता और मात्रात्मकता, दोनों पर ही बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। कैरन का कथन है, “बालक के शारीरिक विकास और उसके सामान्य व्यवहार में घनिष्ठ सहसम्बन्ध है। यदि हम समझना चाहते हैं कि भिन्न-भिन्न बालकों में क्या समानताएँ हैं क्या भिन्नताएँ हैं और आयु वृद्धि के साथ-साथ व्यक्ति में क्या-क्या परिवर्तन आते हैं तो हमें बालक के शारीरिक विकास का भली-भाँति अध्ययन करना होगा। ” (The interi relationship between physical growth and behaviour is so important that an understanding of how the human child grows and develops is essetilial to an understanding of similarities and differences between different individuals and the changes that take place in the same individual with increasing age.) बालक के व्यवहार पर शारीरिक विकास के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। प्रत्यक्ष प्रभाव में वैसी सारी भावनाएँ आती हैं जिसका प्रभाव उसके शारीरिक विकास पर पड़ता है। किसी विशेष उम्र में बच्चा क्या कर सकता है और क्या नहीं ये भावनाएँ उसके शारीरिक विकास को प्रभावित करती है। शारीरिक विकास के व्यवहार पर दूसरे तरह का प्रभाव अप्रत्यक्ष प्रभाव कहलाता है जिसमें पहले बालक की स्वयं के प्रति अथवा दूसरों के प्रति अभिवृत्तियाँ बनती है। यदि बच्चा स्वयं को अपने उम्र के बच्चों से भिन्न एवं पिछड़ा हुआ महसूस करते हैं, तो उनमें हीनता का भाव उत्पन्न होता है। उसके विषय में दूसरे व्यक्ति किस प्रकार की विचारधारा रखते हैं, यह बात उसके व्यक्तित्व एवं व्यवहार को प्रभावित करती है। इस बात की गंभीरता के विषय में जोन्स (M. C. Jones, 1958) ने कहा है, “जब बालक से वयस्क व्यक्ति बनता है तब बाल्यावस्था के अंतिम चरण के व्यवहार को शारीरिक विकास के अप्रत्यक्ष प्रभाव महत्त्वपूर्ण ढंग से चिरस्थायी रूप से प्रभावित करते हैं । ” ( indirect influences of physical development have more serious or more lasting effects on behaviour at the end of childhood when the body is being transffered from that of a child into that of an adult.)
बालक का शारीरिक विकास उसके सामान्य व्यवहार को किस प्रकार प्रभावित करता है, थॉमसन ने इस प्रभाव को जानने के लिए चार क्षेत्रों का अध्ययन किया। पहला क्षेत्र है स्नायुमंडल (Nervous system) जिसके विकास के साथ-साथ बालक की बौद्धिक योग्यता भी बढ़ती है। मांसपेशियों का विकास जैसे-जैसे होता है, वैसे-वैसे उसकी क्रियात्मक क्षमताएँ बढ़ती जाती है और इसके फलस्वरूप बच्चा विभिन्न खेलों में भाग लेना शुरू कर देता है।
दूसरे अंत:स्त्रावी ग्रंथियों (Endocrine glands) के स्राव एवं परिवर्तन बच्चों के सामान्य व्यवहारों पर प्रभाव डालते हैं। उदाहरणार्थ किशोरावस्था के पूर्व बालक भिन्न-लिंगीय (different sex) व्यक्तियों को नापसंद करता है पर किशोरावस्था में इन्हीं विषम-लिंगीय व्यक्तियों के प्रति आकर्षण में बढ़ोत्तरी होती है और वे एक-दूसरे को आकर्षित करने के लिए स्वयं को सजाकर रखते हैं।
इसी प्रकार शरीर रचना में वजन, लम्बाई आदि का भी प्रभाव बच्चों के व्यवहार को प्रभावित करता है। सामान्य वजन एवं लम्बाई सामान्य न होने पर बच्चे अपने आप में हीनता महसूस करते हैं और दूसरों द्वारा टोके जाने या हँसी का पात्र बनने से भागते हैं।
शारीरिक विकास के विविध चरण (Different stages of Physical Development) बालक का विकास किसी नियम के अधीन नहीं होता। कभी, शारीरिक विवृद्धि (physical growth) की गति तीव्र होती है तो कभी धीमी। प्रतिवर्ष प्रत्येक समय पर बच्चे का विकास एक समान नहीं होता। विकास-क्रम का अध्ययन करने पर पता चलता है कि बालक के विकास की सामान्यतः चार अवस्थाएँ हैं। दो अवस्थाओं में विकास तीव्र गति से होता है तथा दो में धीमी गति से। जन्म से दो वर्षों तक विकास की दर तीव्र होती है। तत्पश्चात दो वर्ष से किशोरावस्था के आगमन तक विकास की दर या गति मन्द पड़ जाती है। पुन: किशोरावस्था में विकास चरम सीमा पर पहुँच जाता है, जब विकास की गति अत्यंत तीव्र होती है। किशोरावस्था से परिपक्वावस्था (adulthood) तक विकास की गति कम हो जाती है। कॉमगन के अनुसार, बालक की विकास प्रक्रिया में शक्ति का व्यय होता है, अतः आवश्यक है कि बालक पर भार एकदम न पड़े और वह अपने कार्यों से समायोजन करता चले। इसकी कारण विकास क्रम में मन्दता देखी जाती है। इसे यों भी कह सकते हैं कि बालक में वृद्धि कुछ चक्रों या वेव्स (cycles or waves periods or phases) में होती है जिसका अर्थ है एक समय जिसमें घटनाएँ एक विशेष क्रम में घटित होती है। पारकर (E.Parker, 1960) का मानना है कि विवृद्धि कभी मंद गति से होती है तो कभी तीव्र गति में। लेकिन विवृद्धि की गति चाहे कोई भी हो, उसमें हमेशा एक सामंजस्य होता है।
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