संथाल विद्रोह के मुख्य कारणों का विवरण दीजिए। उनके क्या प्रभाव हुए।
ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यवस्था द्वारा संथाल जनजातियों के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा प्रशासनिक जीवन में शोषणपूर्ण हस्तक्षेप ने संथाल विद्रोह की पृष्ठभूमि निर्मित की। संथाल जनजाति के लोग राजमहल की पहाड़ियों में रहते थे। ये लोग जीवनयापन के लिए पहाड़ों में घास जलाकर खेतीबाड़ी करते थे तथा पशुपालन करते थे। परन्तु पहाड़ों में सीमित संसाधन होने के कारण ये लोग निकटवर्ती मैदानी क्षेत्रों में लूटपाट भी करते थे और पहाड़ों से गुजरने वाले रास्तों पर पथकर लगाकर जीवनयापन करते थे। लेकिन जब 1770 में कंपनी शासन के समय खेतीबाड़ी योग्य भूमि की कमी हो गई और जमींदार व साहूकारों द्वारा धन की उगाही लगाकर की जाती रही तो ऐसे में इन लोगों को जीवनयापन में अत्यंत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अंततः इन्होंने जमींदारों व साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह का मोर्चा खोल दिया और आगे चलकर अंग्रेजों के विरुद्ध हिंसक हो गए। अंग्रेजों ने इसे निर्ममता पूर्वक दबा दिया। विद्रोह का नेतृत्व चार भाइयों सिद्धो, कान्हो, भैरव और चांद के हाथों में था। चारों विद्रोही नेता संघर्ष में मारे गए।
संथालों के स्वनिर्भर आर्थिक जीवन को अंग्रेजों ने अपना हित साधने के लिए नष्ट कर दिया था। अंग्रेजों द्वारा इस क्षेत्र में लागू जमींदारी व्यवस्था ने सामूहिक लगान अदायगी पद्धति को खत्म कर व्यक्तिगत लगान अदायगी की व्यवस्था को स्थापित कर दिया। संथाली लोगों द्वारा उत्पादित अन्य वस्तुओं पर भी करारोपण किए गए। वन्य भूमि तथा वनोत्पादों के प्रयोग पर रोक लगाई गई। इसके परिणामस्वरूप संथालों के आर्थिक उपार्जन के स्रोत समाप्त हो गए। इन्हीं कठिन परिस्थितियों में संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
नवीन ब्रिटिश भू-राजस्व नीति एवं वन कानून पूर्णतः शोषण एवं अधिकतम दोहन के उद्देश्य से ही लागू की गई थी। संथालों की आर्थिक स्थिति में तेजी से गिरावट आई और वे साहूकारों की ऋणग्रस्ता के अंतहीन जाल में फंसते चले गए। संथालों की जमीन अब उनके पास नहीं रही। इन्हीं दुष्कर परिस्थितयों ने संथाल विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार की।
संथाल विद्रोह का सामाजिक कारण :
- जमीदारों, पुलिस, राजस्व और कठिन न्यायिक प्रक्रिया आदि इन सभी कारकों ने संथाल विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार की। इनके विरुद्ध होने वाली व्यक्तिगत हिंसा ने भी इन्हें अंग्रेजों और साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह के लिए प्रेरित किया।
- ऋण की अति ब्याज दर ( 50-500%)
- वस्तुओं को बेचने हेतु उचित बाजार का उपलब्ध न होना।
- संथालों को शारीरिक मानसिक यातनाएं दी जाने लगी। उन्हें बेगार हेतु बाध्य किया गया।
- इसाई मिशनरियों ने उनके धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप किया।
- संथाल लोग जादू में विश्वास करते थे। विद्रोह के प्रमुख नेता सिद्धो और कान्हो ने लोगों को बताया कि ठाकुर जी यानी भगवान ने उन्हें आदेश दिया है कि वे दिकुओं के विरुद्ध हथियार उठाएं।
- गैर संथालों द्वारा भी इस विद्रोह को समर्थन दिया गया है। जैसे ग्वालाओं ने संथालों की इस विद्रोह में मदद भी । लोहारों ने विद्रोहियों के लिए हथियार तैयार किए जो अंग्रेजों के विरुद्ध उनके लड़ने में काम आया।
- 1854 में प्रमुख संथालों ने आपस में मुलाकात की और अंग्रेजों के द्वारा लिए जाने वाले शोषण के विरूद्ध आंदोलन की रूप रेखा तैयार की।
- जमींदारों और ऋणदाताओं द्वारा संथालों का बड़े पैमाने पर शोषण किया जाना।
- 30 जून, 1985 को 400 गांवों के 6000 संथालों ने एक सम्मेलन बुलाया और उसमें कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा कर आंदोलन का निर्णय लिया।
- उन्होंने आंदोलन के लिए एक संगठन बनाकर एक साथ अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का निर्णय लिया।
- ब्रिटिश सरकार आंदोलन की गंभीरता को भांप गई और विद्रोह को दबाने के लिए सेना का सहारा लिया
- क्रूरता से आंदोलन का दमन किया गया।
- 15000 से ज्यादा संथाल विद्रोह के दौरान मारे गए और दस से अधिक गांवों को नष्ट कर दिया गया।
- सिद्धो को गिरफ्तार कर लिया गया और अगस्त 1855 में उसे मार दिया गया।
- कान्हो को आंदोलन के अंत में यानी फरवरी, 1866 में गिरफ्तार किया गया।
- राजमहल की पहाड़ियां संथाल विद्रोहियों के खून से लाल हो गई।
यद्यपि संथाल विद्रोह अपने उद्देश्यों में विफल रहा, लेकिन इसके बावजूद ब्रिटिश शासन के समक्ष संथालों ने कड़ी चुनौती प्रस्तुत की। अपनी स्थानीय एवं पुरातन प्रकृति के बावजूद इस विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हुए सुधार करने हेतु बाध्य किया।
भले ही हजारों संथालों ने अपने हक के लिए कुर्बानी दी पर उन्होंने ये साबित कर दिया कि निरीह जनता भी दमन और अत्याचार एक हद के बाद बर्दास्त नहीं कर सकती। सरकार द्वारा संथाल की मांगों को बाद में पूरा करने का प्रयास किया जाने लगा। कालांतर में सरकार ने संथालपरगना को जिला बनाया। फिर भी आदिवासियों पर दमन होता ही रहा । संथाल विद्रोह से प्रेरणा लेकर आदिवासियों ने आगे भी सरकार के विरुद्ध आंदोलन किया।
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