संवेगात्मकता को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें।

प्रश्न – संवेगात्मकता को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें।
उत्तर – बालक में संवेगों की उत्पत्ति और विकास परिपक्वता और अधिगम (Maturation & Learning) पर आधारित है। इन कारकों के अतिरिक्त भी कुछ कारक हैं जो बालक के संवेगात्मक व्यवहार को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कारकों का वर्णन नीचे दिया हुआ है। इन्हीं कारकों के योगदान के फलस्वरूप कुछ बालकों में संवेगात्मकता अधिक और कुछ में कम मात्रा में पाई जाती है।
(1) शारीरिक स्वास्थ्य (Bodily Health)–बालकों के स्वास्थ्य का प्रत्यक्ष सम्बन्ध उनकी संवेगात्मकता से है। हरलॉक (1978) का विचार है कि सीमित आधार ओर दुर्बल पाचन शक्ति के कारण, बीमारियों के कारण, बालक का शारीरिक स्वास्थ्य दुर्बल हो सकता हैं। इन सभी अवस्थाओं में बालक में संवेगात्मक अस्थिरता उत्पन्न करते हैं जिससे बालक के संवेगात्मक व्यवहार में परिवर्तन आ जाते हैं । थकान (Fatigue) की अवस्था में भी बालकों की संवेगात्मकता बढ़ जाती है। इस अवस्था में बालकों को विशेष रूप से क्रोध अधिक आता है।
(2) बुद्धि (Intelligence ) — बालकों की संवेगात्मकता का सम्बन्ध उनकी बुद्धि से है। बुद्धि की सहायता से बच्चें संवेगात्मक परिस्थितियों का प्रत्यक्षीकरण करते हैं तथा अपनी संवेगात्मक अभिव्यक्ति के सम्बन्ध में निर्णय लेते हैं। अध्ययनों में देखा गया है कि अधिक बुद्धि वाले बालक कम बुद्धि वाले बालकों की अपेक्षा अपने संवेगों की अभिव्यक्ति समाज द्वारा मान्य तरीकों से करना जल्दी सीख लेते हैं। जर्सील्ड (Jersild, et al., 1974) का विचार है कि अधिक बुद्धि वाले बालकों में संवेगात्मक स्थिरता अधिक पाई जाती है।
( 3 ) लिंग ( Sex) – बालक और बालिकाओं के संवेगों में अन्तर पाया जाता है। बालकों में भय का संवेग बालिकाओं की अपेक्षा कम मात्रा में होता है। इसी प्रकार बालिकाएँ बालकों की अपेक्षा अधिक ईर्ष्यालु होती हैं।
(4) अभिभावक – पुत्र सम्बन्ध (parent- Child Relationship) जो माता-पिता अपने बच्चों को अधिक लाड़ प्यार देखभाल (Over-protecting) करते हैं, प्रायः उनके बच्चे अपने माता-पिता पर अधिक आश्रित होने के कारण कम चिन्ता करने वाले परन्तु अधिक क्रोधी होते हैं। जो माता-पिता कठोर (Strict) होते हैं, उनके बालक दब्बू और शीघ्र भयभीत होने वाले होते हैं। कुछ माता-पिता ऐसे होते हैं जो अपने बालकों का तिरस्कार (Reject) करते हैं रहते हैं, उनके बालकों में आक्रामकता और क्रोध ऐसे लक्षण अधिक शीघ्र विकसित हो जाते हैं ।
(5) सामाजिक वातावरण (Social Environment)– सामाजिक वातावरण भी बालकों की संवेगात्मकता को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है। बालक जैसे वातावरण में रहता है, उसमें उसी प्रकर से संवेग उत्पन्न और विकसित होते हैं। उदाहरण के लिए यदि वह ऐसे व्यक्तियों के मध्य रहता है जिनमें समय-समय पर मारपीट, लड़ाई-झगड़ा होता रहता है तो निश्चित रूप से ऐसे बालक में क्रोध संवेग का विकास शीघ्र और अधिक मात्र में होगा। बालक अपने परिवार, अपने पड़ोस और अपने स्कूल आदि के अतिरिक्त अपने निकट रहने वाले सभी लोगों से संवेगात्मक अभिव्यक्ति सीखता है। एक अध्ययन (N.N.Springer, 1938) ने अपने अध्ययनों में देखा कि गरीब परिवार के बच्चों में संवेगात्मक अस्थिरता अधिक होती है तथा संवेगात्मक परिस्थितियों में इनका समायोजन दुर्बल होता है।
( 6 ) जन्म – क्रम (Ordinal Position) – बालकों की संवेगात्मकता पर उनके जन्म-क्रम का प्रभाव भी महत्त्वपूर्ण ढंग से पड़ता है। जो बालक अपने माता-पिता के पहले पुत्र या पुत्री होते हैं, उन्हें अपने माता-पिता का अधिक स्नेह और अधिक संरक्षण प्राप्त होता है। फलस्वरूप ऐसे बालकों में स्नेह और दब्बूपन के लक्षण शीघ्र उत्पन्न हो जाते हैं। बाद के जन्मे बच्चों पर माता-पिता उतना ध्यान नहीं दे पाते हैं। फलस्वरूप ये बच्चे कुछ ही दिनों में अधिक क्रोधी और झगड़ालू हो जाते हैं।
( 7 ) परिवार का आकार (Family Size) – परिवार के आकार का भी बालकों के संवेगात्मक विकास से महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि बड़े परिवारों के बच्चों में संवेगों का विकास अपेक्षाकृत जल्दी होती है क्योंकि ये बच्चे अन्य बच्चों और बड़े व्यक्तियों के सम्पर्क में अधिक आने के कारण अनुकरण (Imitation) द्वारा विभिन्न संवेगों की अभिव्यक्ति सीख लेते हैं। छोटे परिवार के बच्चों को इस प्रकार के कम अवस प्राप्त होते हैं।
(8) सामाजिक-आर्थिक स्तर (Socio-economic Status) – एक अध्ययन (J.N. Lal, 1968) में, जो भारतीय बालकों पर था, यह देखा गया है कि उच्च सामाजिक-आर्थिक स्तर के परिवार के बालकों में संवेगात्मक स्थिरता अधिक होती है तथा मध्य और निम्न स्तरीय परिवार के बालकों में संवेगात्मक स्थिरता कम होती है या संवेगात्मक अस्थिरता अधिक होती है। हरलॉक (1974) का विचार है कि निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर वाले बालकों में हिंसा सम्बन्धी भय अधिक मात्रा में होता है परन्तु उच्च सामाजिक आर्थिक स्तर वाले परिवार के बच्चों में भय अपेक्षाकृत कम मात्रा में होता है।
(9) व्यक्तित्व (Personality) – अध्ययनों में देखा गया है कि जिन बच्चों में की भावना अधिक मात्रा में होती है, उनमें भय अधिक में सुरक्षा की भावना अधिक मात्रा में होती है, तथा जिन बालकों उनमें भय अपेक्षाकृत कम मात्रा में होता है। असुरक्षा में होता है कुछ अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि बहिर्मुखी व्यक्तियों में भय अधिक और अन्तर्मुखी व्यक्तियों में भय कम मात्रा में होता है क्योंकि बहिर्मुखी व्यक्तियों को अनुकरण के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।
(10) सामाजिक वातावरण (Social Environment) बालक जिस सामाजिक वातावरण में रहता है वह सामाजिक वातावरण भी बालक के सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है। बालक यदि ऐसे सामाजिक वातावरण में रहता है जहाँ के लोग बात-बात पर क्रोध की अभिव्यक्ति करने वाले हैं तो बालक भी इसी प्रकार की क्रोध की अभिव्यक्ति सीख लेगा। यदि बालक को अपने चारों ओर के सामाजिक वातावरण में संवेगों की अभिव्यक्ति के सामान्य प्रतिमान दिखाई देते हैं तो वह सामान्य संवेगात्मक अभिव्यक्तियाँ सीखेगा। यदि वह अपने चारों और के वातावरण में संवेगों की विकृत अभिव्यक्तियाँ देखता है तो उसका उसी प्रकार का सामाजिक अधिगम होगा, उस बालक की संवेगात्मक अभिव्यक्तियाँ भी विकृत होंगी।
( 11 ) आत्म-विश्वास (Self-Confidence)–जर्सील्ड (1978) ने इस सम्बन्ध में अपनी पुस्तक में लिखा है कि, “कोई चीज जो बालक के आत्म-विश्वास को कम करे या उसके आत्म सम्मान या उसके कार्य, जिसे वह करना चाहता है या उद्देश्य जिसे वह महत्त्वपूर्ण समझता है, से विचलित करे तो यह उसमें चिन्ता या भय की प्रवृत्ति में वृद्धि कर सकती है” (“Anything that lowers child’s confidence in himself, anything that threatens his self-regard or threatens to disturb the role he wishes or pretends increase to play or threatens to block goals which he regard as important may his tendency to be anxious or afraid.”)
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