हिन्दी की पाठ्य पुस्तक के गुण एवं विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- प्रत्येक विषय की अपनी प्रकृति होती है, पाठ्यक्रम निर्माण करते समय विषय की प्रकृति को ध्यान में रखा जाता है और पाठ्यक्रम के अनुरूप पाठ्य पुस्तकों का निर्माण किया जाता है। हिन्दी की भी अपनी प्रकृति है, भाषा की दृष्टि से भी और साहित्य की दृष्टि से भी | हिन्दी की पाठ्य पुस्तक के विभिन्न पक्ष, गुण एवं विशेषताओं को हम निम्नलिखित प्रकार से देख सकते हैं –
(क) अध्ययन पक्ष, (ख) बाह्य रूप पक्ष।
(क) अध्ययन पक्ष–पाठ्य-पुस्तक के अध्ययन पक्ष के अन्तर्गत पाठ्य-पुस्तक की भाषा-शैली, विषय-सामग्री, चित्र, शीर्षक, लेखक, प्रकाशक, भूमिका, पाठ रुचि, व्यावहारिक कार्य आदि आते हैं, जिनको हम निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं-
- भाव– पाठ्य-पुस्तक की भाषा सरल, स्पष्ट और स्तरानुकूल होनी चाहिए । हिन्दी एक भाषा है और भाषा की पुस्तक का यह कार्य होना चाहिए कि वह बालक की भाषा में रुचि बढ़ाये, उसे भाषा सिखाये और उत्तरोत्तर भाषा का विकास करते हुए उसे भाषा में दक्ष बनाये। भाषा विकास ही मानव के दूसरे विकासों का आधार है, क्योंकि भाषा सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है। अतः पुस्तक की भाषा बालक के लिए सरल और उपयुक्त ढंग से सम्प्रेषित होनी चाहिए।
- शैली – भाषा को लिखने और बोलने का ढंग शैली कहलाता है। हिन्दी भाषा की पाठ्य-पुस्तक में शैलीगत विविधता होनी चाहिए ताकि बालकों में रुचि बनी रहे, साथ ही वे विभिन्न लेखन शैलियों से भी परिचित हो सकेंगे। प्राथमिक कक्षाओं की पाठ्य पुस्तकों में विवरणात्मक शैली के लेखों को संकलित करना चाहिए, माध्यमिक कक्षाओं में भाव प्रधान एवं तर्क प्रधान शैलियों के लेख पाठ्य पुस्तकों में संकलित करने चाहिए ।
- विषय – सामग्री–विषय-सामग्री पाठ्य-पुस्तक का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष होता है। पाठ्य-पुस्तक की विषय-सामग्री का चयन करते समय उसके विभिन्न पहलुओं पर गम्भीरता से चिन्तन करना चाहिए। ये पहलू निम्नलिखित हैं
(1) विषय-सामग्री का चयन, (2) विषय-सामग्री का स्तरीकरण, (3) विषय-सामग्री का प्रस्तुतीकरण ।
1. विषय सामग्री का चयन-विषय-सामग्री के चयन में दो बातें विचारणीय हैंएक तो विषय सामग्री की प्रकृति और दूसरी विषय-सामग्री की मात्रा ।
विषय-सामग्री की प्रकृति क्या हो, इसका निर्धारण हिन्दी – शिक्षण के उद्देश्यों, राष्ट्रीय लक्ष्यों, शिक्षार्थी की आवश्यकताओं, शिक्षार्थी का स्तर, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम आदि को ज्ञान और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों समाज, संस्कृति, कला, विज्ञान, खेल-कूद, मनोरंजन, दर्शन, धर्म आदि से सम्बन्धित होते हैं। वैचारिक सामग्री के चयन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
(1) विषय-वस्तु शैक्षणिक उद्देश्यों के अनुरूप हो ।(2) विषय-वस्तु में सम्मिलित पाठ जीवन में विविध क्षेत्रों से सम्बन्धित उचित अनुपात में होने चाहिए।(3) विषय-वस्तु राष्ट्र, समाज और मानव के लिए कल्याणकारी हो ।(4) विषय-वस्तु बालकों के स्तरानुकूल हो ।(5) विषय-वस्तु शुद्ध, सत्य और प्रामाणिक हो ।(6) विषय-वस्तु पूर्व ज्ञान पर आधारित हो ।(7) विषय- वस्तु बालकों में सद्वृत्तियों का विकास करने वाली हो ।
भाषिक सामग्री के अन्तर्गत विविध भाषा- योग्यताओं एवं कौशलों के विकास की दृष्टि से अपेक्षित भाषिक तत्त्वों के समावेश पर विचार किया जाता है। भाषिक सामग्री में शब्द उत्पत्ति, शब्द संरचना, पद संरचना, बाह्य संरचना, भाषा के व्याकरणिक रूप तथा भाषा की ध्वनि और उसके उच्चारण आदि रूपों का इस दृष्टि से चयन किया जाता है कि बालकों का भाषा ज्ञान उत्तरोत्तर संवर्द्धित हो और भाषा के व्यवहार में उन्हें दक्षता प्राप्त हो ।
साहित्यिक रूप एवं विधाओं की दृष्टि से हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में ऐसे पाठों का चयन होना चाहिए, जिससे कि विद्यार्थियों को साहित्य की सभी विधाओं की जानकारी मिल जाये।
हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक की विषय-सामग्री की मात्रा कक्षा के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम में भाषा (हिन्दी) के शिक्षण के लिए कितना स्थान और समय दिया गया है, इस पर निर्भर है| विषय-सामग्री को विविध रूपों में किन-किन क्षेत्रों को किस-किस अनुपात में रखा जाये, यह पाठ्यक्रम के उद्देश्यों पर निर्भर है।
2. विषय – सामग्री का स्तरीकरण-विषय-सामग्री पर स्तरीकरण की दृष्टि से विचार करना आवश्यक हो जाता है | विषय – सामग्री बालकों के मानसिक स्तर के अनुरूप होनी चाहिए। शैक्षणिक उद्देश्य, विद्यार्थियों की रुचि, पाठों की जटिलता, सूक्ष्मता आदि के आधार पर वैचारिक सामग्री का वर्णन किया जाता है। वैचारिक सामग्री के वर्गीकरण में निम्नांकित बातों का ध्यान रखा जाता है—
(1) ज्ञात से अज्ञात की ओर,(2) सरल से जटिल की ओर,(3) स्थूल से सूक्ष्म की ओर,(4) निरीक्षण से तर्क की ओर,(5) यथार्थ से आदर्श की ओर,(6) पाठों का पूर्वापर सम्बन्ध,(7) विद्यार्थियों की मानसिक परिपक्वता ।
3. विषय सामग्री का प्रस्तुतीकरण-विषय-सामग्री के प्रस्तुतीकरण में निम्नांकित बातें विचारणीय हैं –
(1) विविध पाठ,(2) अभ्यास,(3) भूमिका शिक्षकों के प्रति, शिक्षार्थियों के प्रति,(4) शब्दार्थ, टिप्पणी, सन्दर्भ आदि,(5) पाठ सूची, लेखक परिचय, शीर्षक तथा प्रकाशक ।
विविध पाठों के प्रस्तुतीकरण में साहित्य की विधाओं, शैलियों एवं संगठनात्मक रूपों का ध्यान रखना पड़ता है।
शिक्षण में अभ्यास और व्यावहारिक कार्य का बहुत महत्त्व है। प्रत्येक पाठ के अन्त में अभ्यास कार्य अवश्य होना चाहिए। अभ्यास कार्य शैक्षिक उद्देश्यों पर आधारित होना चाहिए और उसमें सभी प्रकार के प्रश्नों का समावेश होना चाहिए। प्रश्नों के अन्य रुचिकर कार्य भी अभ्यास के लिए दिये जाने चाहिए। यह कार्य व्यावहारिक हो तथा शिक्षण के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक हो।
पाठ्य पुस्तकों में चित्रों का महत्त्व सर्वमान्य है। लेकिन चित्र कैसे और कहाँ-कहाँ पर हों ? इस बारे में निर्णायक रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन प्राथमिक कक्षाओं की पुस्तकों में चित्र अवश्य होने चाहिए। चित्रों की सुन्दरता, उनके रंगों, आकार एवं स्पष्टता आदि पर ध्यान अवश्य दिया जाना चाहिए।
पाठ्य पुस्तक की भूमिका अध्यापकों तथा विद्यार्थियों दोनों के लिए ही महत्त्वपूर्ण हो सकती है। पाठ्य-पुस्तक लेखन का प्रयोजन, उसकी विषय-वस्तु की प्रकृति, उसकी विशेषताओं आदि के बारे में भूमिका से जाना जा सकता है।
पाठ्य-पुस्तक के प्रत्येक पाठ के अन्त में पुस्तक के सभी पाठों के अन्त कठिन स्थलों की व्याख्या, अन्य आवश्यक संकेत या सन्दर्भ दिये जा सकते हैं, ये छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी होते हैं।
पाठ सूची पुस्तक के आरम्भ में अवश्य होनी चाहिए। पाठ सूची में पाठों के शीर्षक स्पष्ट होने चाहिए, उनकी पृष्ठ संख्या तथा लेखकों का नाम उल्लेखित होना चाहिए। लेखक का परिचय प्रत्येक पाठ के आरम्भ में अलग से भी दिया जाना चाहिए । पुस्तक के प्रकाशक का उल्लेख भी सुस्पष्ट होना चाहिए।
(ख) बाह्य रूप पक्ष- बाह्य रूप पक्ष मुख्य पृष्ठ (आवरण), बिन्दु, कागज, अक्षरों का आकार (मुद्रण) तथा पुस्तक का आकार एवं मूल्य आते हैं, बाह्य रूप पक्ष के निम्नलिखित प्रकार हैं –
- मुख पृष्ठ (आवरण) पाठ्य पुस्तक का आवरण पृष्ठ आकर्षक तथा सुन्दर होना चाहिए। आवरण पृष्ठ पर पुस्तक का नाम स्पष्ट तथा बड़े अक्षरों में अंकित होना चाहिए। आवरण पृष्ठ मजबूत होना चाहिए । पुस्तक की जिल्द मजबूत होनी चाहिए। आवरण पृष्ठ पर चित्र होने चाहिए । पुस्तक की जिल्द मजबूत होनी चाहिए। आवरण पृष्ठ पर चित्र होने चाहिए। प्राथमिक कक्षाओं में रंगीन चित्र होने चाहिए और माध्यमिक कक्षाओं में सादे, किन्तु कलात्मक चित्र होने चाहिए।
- कागज – पाठ्य पुस्तक में काम में लिया गया कागज पुराना, कमजोर और पतला नहीं होना चाहिए। पाठ्य पुस्तक निर्माण में अच्छे और टिकाऊ कागज को काम में लेना चाहिए।
- मुद्रण – पुस्तक की छपाई शुद्ध, सुन्दर एवं स्पष्ट होनी चाहिए, अक्षर बहुत छोटे नहीं होने चाहिए। पाठ के शीर्षक तथा अभ्यास कार्य आदि के अक्षरों की बनावट अलग होनी चाहिए।
- पुस्तक का आकार – पुस्तक का आकार कक्षा के पाठ्यक्रम पर निर्धारित है। छोटी कक्षाओं की पुस्तक के पृष्ठों की संख्या तथा लम्बाई एवं चौड़ाई के आकार में बड़ी होनी चाहिए।
- मूल्य – पाठ्य पुस्तक का मूल्य अधिक नहीं होना चाहिए। छात्रों के अभिभावक उन्हें आसानी से खरीद सकें, इतना मूल्य पाठ्य पुस्तक का होना चाहिए। सरकारों का यह दायित्व है कि वे विद्यार्थियों को सस्ते से सस्ते मूल्य पर पुस्तकें उपलब्ध करवाये।
उपर्युक्त वर्णित आन्तरिक अध्ययन पक्ष और बाह्य रूप पक्ष के गुण एवं विशेषताओं के आधार पर विभिन्न कक्षाओं में निर्धारित पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा की जा सकती है।
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