अभिप्रेरण से आप क्या समझते हैं ? प्रेरकों के वर्गीकरण पर प्रकाश डालें ।
“Better the Motivation better the learning.”

सामान्यत: हम देखते हैं कि कक्षा में कुछ विद्यार्थी शिक्षण में अत्यन्त रुचि ले रहे होते हैं तथा सक्रिय रूप से कक्षा-कार्यों में भाग लेते हैं तथा दूसरी ओर हमें ऐसे छात्र भी दिखाई देते हैं जो कक्षा में बिल्कुल निष्क्रिय बैठे रहते हैं तथा कक्षा शिक्षण में कोई रुचि नहीं लेते । अध्यापक को कक्षा में एक ही समय में इन दो परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जो उसके लिए चिन्ता का विषय हो सकता है । कक्षा में यदि एक भी छात्र पढ़ाई में रुचि नहीं लेता या कुछ अजीब सा व्यवहार करता है तो अध्यापक का शिक्षण कार्य में ध्यान केन्द्रित नहीं हो पाता । ऐसी स्थिति में अध्यापक सोचता है कि जो छात्र शिक्षण में रुचि नहीं ले रहा वह शारीरिक रूप से तो कक्षा में उपस्थित है लेकिन मानसिक तौर पर उसका ध्यान कहीं और लगा है। ऐसे छात्र दिवा स्वप्न के शीघ्र ही शिकार हो जाते हैं तथा अध्यापक के लिए कई प्रकार की समस्याएँ खड़ी करते हैं । अध्यापक छात्र को कक्षा में बैठने के लिए तो मजबूर कर समता है लेकिन उसे पढ़ने के लिए तब तक बाध्य नहीं कर सकता जब तक कि उसमें स्वयं ही पढ़ने के प्रति रुचि उत्पन्न न हो जाए । यहाँ हमें एक उक्ति याद आती है कि, “आप घोड़े को तालाब तक खींच कर तो ले जा सकते हैं लेकिन उसे पानी पीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते ।” अथवा, हम यह कहें कि दूध का जला छाछ भी फूँक-फूंक कर पीता है । जलने से पहले गर्म दूध को देखकर भी उसे गटागट पी जाने की प्रेरणा होती है। जलने के बाद अब उसे छाछ को भी गटागट पीने की प्रेरणा नहीं होती । यही बात विद्यार्थी के साथ भी है, अर्थात् जब तक वह स्वयं पढ़ने के लिए लालायित या प्रेरित नहीं है आप उसे कुछ नहीं पढ़ा सकते । इसीलिए थॉमसन कहते हैं कि अध्यापक का सबसे पहला कार्य विद्यार्थी में रुचि उत्पन्न करना है। उन्होंने इसी आधार पर प्रेरणा को परिभाषित किया है –
थॉमसन (Thomson)–” प्रेरणा विद्यार्थी में रुचि उत्पन्न करने की एक कला है, ऐसी रुचि जो या तो छात्र में है ही नहीं या इस रुचि का उसे आभास ही नहीं है । ”
गुड़ (Good) — “प्रेरणा क्रिया को आरम्भ करने, जारी रखने एवं नियमित रखने की प्रक्रिया है । ”
बर्नार्ड (Bernard)–“जिस लक्ष्य के प्रति पहले कोई आकर्षण नहीं था, उस लक्ष्य के प्रति कार्य की उत्तेजना अभिप्रेरणा है।”
स्किनर (Skinner) — ” प्रेरणा सीखने के लिए राजमार्ग है । ”
प्रेरणा शब्द लैटिन भाषा के ‘मोटम’ शब्द से निकाला है जिसका अर्थ है— Move, Moter तथा Motion. इसके अनुसार प्रेरणा में गति का होना अनिवार्य है । एक अन्य मनोवैज्ञानिक क्रेच तथा क्रचफील्ड के अनुसार प्रेरणा हमारे क्यों का उत्तर देती हैं | हम किमी से क्यों प्यार करते हैं? क्यों घृणा करते हैं ? छात्र सारी – सारी रात क्यों पढ़ता है ? किसान तपती दोपहरी में खेत में हल क्यों जोतता है ? आदि-आदि । शिक्षा एक जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है । जीवन, चलते रहने का नाम है तथा प्रत्येक क्रिया के पीछे एक बल कार्य करता है जिसे हम ‘प्रेरक बल’ कहते हैं । इस सन्दर्भ में प्रेरणा एक बल है जो प्राणी को कोई निश्चित व्यवहार या निश्चित दिशा में चलने के लिए बाध्य करती है ।
प्रेरणा से संबंधित पद (Explanation of Related Terms ) – मुख्य रूप से अग्रांकित चार पद हैं—
1. आवश्यकता (Need) — यह हमारे शरीर की कोई जरूरत या अभाव है जिसके उत्पन्न होने पर हम शारीरिक असन्तुलन या तनाव महसूस करते हैं । जैसे–सर्दी लगने पर कपड़े की आवश्यकता, थक जाने पर आराम की आवश्यकता, अकेले होने पर साथी की आवश्यकता, बीमार पड़ने पर दवा की आवश्यकता तथा रोटी, कपड़ा व मकान की आवश्यकता ।
बोरिंग लैंग फील्ड (Boring Langfield) के अनुसार’आवश्यकता प्राणी की वह आन्तरिक अवस्था है जो किसी उद्दीपनों अथवा लक्ष्यों के सम्बन्ध में जीवों का क्षेत्र संगठित करती है और उनकी प्राप्ति हेतु क्रिया उत्पन्न करती है । ”
2. चालक (Drive) – प्रत्येक आवश्यकता से जुड़ा हुआ एकं चालक होता है, जैसे— खाने की आवश्यकता से भूख, पान की आवश्यकता से प्यास, आदि । जब तक वह चालक शान्त नहीं होता हम तनाव में रहते हैं ।
डैशिल (Dashill) के अनुसार — “चालक शक्ति की वह मौलिक स्रोत है जो व्यक्ति को क्रियाशील कर देता है । ”
3. प्रोत्साहन (Incentive)—“प्रोत्साहन, वातावरण में उपस्थित वह तत्त्व है जो हमारे चालक को शान्त कर देता है, जैसे-प्यास लगने पर प्राणी पोखर, तालाब, झरना, नदी-नाले का पानी पीकर अपनी प्यास बुझाता है ।
बोरिंग तथा अन्य (Boring and others) के अनुसार — “उद्दीपन वह वस्तु, परिस्थिति अथवा क्रिया है जो व्यवहार को उत्तेजना प्रदान करती है, उसे जारी रखती है तथा उसे दिशा देती है । ”
वास्तव में देखा जाए तो आवश्यकता, चालक एवं उद्दीपन में घनिष्ठ सम्बन्ध है । आवश्यकताएँ चालकों को जन्म देती हैं। चालक तक तनावपूर्ण स्थिति होती है। पूर्ति के पश्चात् चालक की समाप्ति हो जाती है । आवश्यकता, चालक एवं उद्दीपन के सम्बन्ध को निम्न रेखाचित्र द्वारा भी प्रदर्शित किया जा सकता है ।

अभिप्रेरणा के कार्य (Functions of Motivation) — अभिप्रेरणा के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं—
- प्रेरणा हमारे शरीर की एक उत्तेजित अवस्था है। अर्थात्, जब हम उत्तेजित होते हैं तो हमारा सम्पूर्ण शरीर हरकत में आ जाता है और ऐसी स्थिति में हम कोई भी कार्य करने को स्वयं को तत्पर पाते हैं ।
- संवेग हमारे शारीरिक अंगों में स्फूर्ति भरते हैं । उदाहरणार्थ — मान लीजिए आप सड़क के बीचोबीच खड़े हैं और अचानक एक कार को तेज गति से अपनी ओर आते देखते हैं । तो ऐसी हड़बड़ाहट की स्थिति में भय का संवेग या मृत्यु का डर आपके शारीरिक अंगों में इतनी स्फूर्ति भर देगा कि आप उछल करं सुरक्षित सड़क के दूसरे किनारे पर पहुँच जाएँगे, इतनी तेजी के साथ जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।
- संवेग मानव व्यवहार के संतुलन बिन्दु होते हैं । यही कारण है कि हम अत्यधिक क्रोध की अवस्था में अथवा विपरीत परिस्थितियों में, न चाहते हुए भी संतुलित व्यवहार करते हैं तथा वातावरण एवं परिस्थितियों के साथ समायोजन करना सीख लेते हैं ।
- सांवेगिक उथल-पुथल के बाद जो व्यवहार बनता है वह पूर्व की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी, तीव्र तथा स्थायित्व लिए होता है । उदाहरणार्थ, यदि कोई व्यक्ति दूसरे से लड़ने के लिए मानसिक तौर पर तैयार है तो लड़ाई में उसका कौशल देखते ही बनता है, अपेक्षाकृत उस स्थिति में जब उस पर अचानक पीछे से हमला कर दिया गया हो ।
- संवेग जीवन में मसाले का कार्य करते हैं। इसीलिए, प्यार, स्नेह, सहानुभूति, त्याग, इत्यादि हमारे जीवन को अधिक सार्थकता प्रदान करते हैं और यही कारण है कि हम दूसरों के प्रति घृणास्पद दृष्टिकोण अपनाने के स्थान पर मैत्रीपूर्ण व्यवहार अपनाते हैं ।
- संवेगों में जब पर्याप्त संशोधन कर दिया जाता है तो ये भावनाओं, विचारों, उद्देश्यों, दृष्टिकोणों, रुचियों, मूल्यों आदि का रूप ले लेते हैं जो मानव व्यक्तित्व को एक विशिष्टता प्रदान करते हैं ।
- प्रेरणा छात्र के व्यवहार में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाती है ।
- प्रेरक हमारे व्यवहार को शक्ति प्रदान करते हैं। इसीलिए परीक्षा के दिनों में विद्यार्थी सारी – सारी रात पढ़ता है अथवा एक गोलकीपर गोल बचाने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देता है, इस बात की परवाह किए बगैर कि ऐसा करते समय उसे चोट भी लग सकती है।
- अभिप्रेरणा, चरित्र निर्माण में भी सहायक होती है।
- प्रेरक हमारे व्यवहार के सबसे अच्छे परिचायक हैं। उदाहरणार्थ – एक ही अखबार में प्रत्येक व्यक्ति सर्वप्रथम अपनी रुचि का ही कॉलम देखता है, उसके बाद अखबार के अन्य पृष्ठों को । जैसे— खिलाड़ी सबसे पहले खेलपृष्ठ को ही देखेगा, बेरोजगार व्यक्ति नौकरी वाला कॉलम, सिनेमा में रुचि रखने वाला सिने-पृष्ठ को आदि-आदि ।
- अभिप्रेरणा ध्यान केन्द्रित करने में व्यक्ति की सहायता करती है ।
- प्रेरणा हमारे व्यवहार में निरन्तरता बनाए रखती है और हम तब तक अपने प्रयासों में कमी नहीं लाते जब तक कि हमें हमारा लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता ।
- प्रेरणा हमारे व्यवहार में विधिवत लाकर लक्ष्य प्राप्ति में सहायता प्रदान करती है । उदाहरणार्थ- थार्नडाइक की बिल्ली पिंजड़े से बाहर रखी मछली को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार से पिंजड़े का दरवाजा खोलने का प्रयास करती है और तब तक चैन से नहीं बैठती जब तक कि वह पिंजड़े का दरवाजा खोलने में सफल नहीं हो जाती ।
- इस प्रकार, प्रेरक हमारे व्यक्तित्व के आधारशिला समझे जाते हैं । ( Motives are foundation stones of human personality.)
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