अर्थगत स्मृति या सामान्य स्मृति के मॉडल या सिद्धान्त की विवेचना करें ।
1. आनुक्रमिक तंत्र मॉडल (Hierarchical Network Model)—अर्थगत स्मृति के इस सिद्धान्त को क्विलियन ने प्रतिपादित किया । इस सिद्धान्त या मॉडल के अनुसार अर्थगत स्मृति में ऐसी सूचनाएँ संचित होती हैं जो तार्किक अनुक्रम में सामान्य श्रेणी से विशिष्ट श्रेणी की ओर होती हैं। इस प्रकार अर्थगत स्मृति की मुख्य दो विशेषताएँ हैं—
(i) पहली विशेषता यह है कि अर्थगत स्मृति में सूचनाएँ यादृच्छिक नहीं होती है, बल्कि आनुक्रमिक होती हैं।
(ii) दूसरी विशेषता यह है कि अर्थगत स्मृति में सूचनाएँ एक विशिष्ट तंत्र में संगठित होती हैं ।
इस संदर्भ में एक मुख्य समस्या यह है कि अर्थगत स्मृति में सूचना किस प्रकार स्मृति के रूप में संगठित हो जाती है। इस संगठन से संबंधित एक मुख्य तत्त्व संप्रत्यय है। संप्रत्यय के रूप में सूचना अथवा सूचनाएँ संगठित रहती हैं । जैसे— वाहन, एक संप्रत्यय है जो साइकिल, हवाई जहाज, मोटर, लिफ्ट आदि को समाहित करता है। इसी तरह ‘पक्षी’ या ‘चिड़िया’ एक संत्यय है, जिसमें कौआ, मैना, गीद्ध, बगुला, कबूतर आदि अनेक पक्षी समाहित हैं।
अर्थगत स्मृति में संप्रत्ययों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती हैं। संप्रत्यय का तात्पर्य ऐसी वस्तुओं या घटनाओं की मानसिक श्रेणी से है, जो कुछ निश्चित दृष्टि से समान होती हैं । अर्थगत स्मृति में संप्रत्यय ऐसे तंत्रों या नेटवर्क में होते हैं जिनसे तंत्रों के बीच संबंधों का पता चलता है। जैसे पशु एक संप्रत्यय है जिससे मछली, बिल्ली, चूहा आदि प्राणियों का प्रदर्शन होता है।
अर्थगत स्मृति के नेटवर्क मॉडल में एक संप्रत्यय के अर्थ से अन्य निकटवर्ती संप्रत्ययों के साथ इसके साहचर्य या संबंध का बोध सहज ही हो जाता है। दूसरा विचार यह है कि संप्रत्ययों का अर्थ आदिप्ररूप या आदर्श से उत्पन्न होता है। आदिप्ररूप का अर्थ है वह अमूर्त आदर्शरूपी प्रतिनिधित्व जो एक श्रेणी या कोटि के सदस्यों के प्रारूपिक धारणा को अभिव्यक्त करता है । जैसे— हमारी अर्थगत स्मृति में प्रोफेसर के लिए जो आदिप्ररूप है वह उन सभी प्रोफेसरों को चित्रित करता है जिनसे हमें अपने जीवन में भेंट हुई है। हमारी यह अर्थगत स्मृति हमें सूचित कर सकती है कि औसतन प्रोफेसर मध्यआयु के होते हैं, भूलक्कड़ होते हैं, जीवन के प्रति उदासीन होते हैं, इत्यादि । इस संदर्भ में दूसरा विचार यह है कि अर्थगत स्मृति में संप्रत्यय का प्रतिनिधित्व आदिप्ररूप के रूप में नहीं होता है बल्कि एक उदाहरण के रूप में होता है । जैसे— जब हम ‘फल’ शब्द पढ़ते हैं तो हमारी स्मृति में सेव, नारंगी या नासपाती सहज ही उभर आते हैं, अतएव अर्थगत स्मृति के स्वरूप की व्याख्या करने में आदिप्रारूप तथा उदाहरण दोनों की भूमिका देखी जाती है ।
2. सेट – सैद्धान्तिक मॉडल (Set theoretical Model) — अर्थगत स्मृति के इस सिद्धान्त या मॉडल को प्रतिपादित करने में मेयर, मेयर एवं श्वानेवेट आदि के योगदान है । इस मॉडल में अर्थगत स्मृति की व्याख्या विशेषताओं के सेट अथवा समूह के रूप में की गई है। इन्हीं विशेषताओं के सेट के रूप में व्यक्ति किसी संप्रत्यय को अपनी अर्थगत स्मृति में संचित रखता है।
मेयर ने अपने अध्ययन में दो तरह के सकारात्मक वाक्यों अर्थात् सर्वसार्विक वाक्य तथा . विशिष्ट वाक्य का उपयोग करके यह निर्धारित करने का प्रयास किया कि कैसे वाक्य का पुनः प्राप्ति व्यक्ति पहले करता है और इसका तर्क आधार क्या है । “सभी मनुष्य मरणशील है” सर्वसार्विक सकारात्मक वाक्य का उदाहरण है। दूसरी ओर ‘कुछ मनुष्य मरणशील होते हैं।’ विशिष्ट सकारात्मक वाक्य का उदारहण है । प्रत्येक वाक्य में एक कर्त्ता । विधेय होते हैं। मेयर ने इन दोनों के बीच चार प्रकार के संबंधों का उल्लेख किया है, जिन्हें उपसेट संबंध, उच्च सेट संबंध, परस्पर व्यापी संबंध तथा विसंधित संबंध कहते हैं । परिणाम के रूप में मेयर ने यह ‘निष्कर्ष निकाला कि सर्वसार्विक सकारात्मक वाक्य की अपेक्षा विशिष्ट सकारात्मक वाक्य की सत्यता की जाँच करने में कम समय लगता है तथा कठिनाई कम महसूस होती है। कारण विशिष्ट सकारात्मक वाक्य में केवल एकस्तरीय निर्णय प्रक्रिया शामिल होती है जबकि सर्वसार्विक वाक्य में एक से अधिक स्तरीय निर्णय प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं। लेकिन ग्लास एवं होलयोक ने मेयर के इस विचार को खंडित किया है कि विशिष्ट सकारात्मक वाक्य की अपेक्षा सर्वसार्विक सकारात्मक वाक्य का प्रतिक्रिया काल अधिक लंबा होता है ।
3. विशेषता – तुलना मॉडल (Feature Comparison Model) — इस मॉडल या सिद्धान्त के प्रतिपादन में कई मनोवैज्ञानिकों ने योगदान दिया। इस मॉडल के अनुसार अर्थगत स्मृति में संप्रत्ययों को उनसे संबद्ध विशेषताओं की सूची के रूप में संचित किया जाता है। अर्थात अर्थगत स्मृति में उन्हें संचित करने का आधार विशेषताओं की सूची होती है । यह बात दो-स्तरीय प्रक्रिया पर आधारित है, जो निम्नलिखित हैं—
पहली अवस्था (First stage) — इस अवस्था में वाक्य के कर्ता तथा विधेय की विशेषताओं की तुलना समग्र रूप से की जाती है। वाक्य के कर्त्ता तथा विधेय में उभयनिष्ठ विशेषताएँ अधिक होती है तो इसके प्रति व्यक्ति में तुरंत ‘सही’ की प्रतिक्रिया होती है। इसके विपरीत जब वाक्य के कर्त्ता तथा विधेय की विशेषताओं में उभयनिष्ठता कम होती है तो व्यक्ति में तुरंत ‘गलत’ की प्रतिक्रिया होती है |
दूसरी अवस्था (Second stage) — इस अवस्था में वाक्य के कर्त्ता तथा विधेय की विशेषताओं में औसतन समानता होती है। इसलिए, व्यक्ति को इसके प्रति प्रतिक्रिया करने में अधिक समय लगता है। इस मॉडल का सबसे बड़ा महत्त्व यह है कि यह विशेषता सूचक प्रभाव, श्रेणी आकार प्रभाव की व्याख्या करने में सक्षम है। फिर भी इस मॉडल की आलोचना करते हुए होलयोक एवं ग्लास ने कहा है कि कुछ परिस्थितियों में संबंधित एकांश वाले गलत वाक्यों में असंबंधित एकांश वाले गलत वाक्यों की अपेक्षा कम प्रतिक्रियाकाल पाया जाता है। ऐसा क्यों ? इस समस्या का समाधान करने में यह सिद्धान्त सफल नहीं है ।
निष्कर्ष (Conclusion ) – अर्थगत स्मृति से संबंधित तीन मॉडलों, उपागमों या सिद्धान्तों का उल्लेख ऊपर किया गया है। इनमें कोई भी सिद्धान्त पूरी तरह सफल नहीं है। फिर भी इन मॉडलों से इतना अवश्य पता चला है कि अर्थगत स्मृति में सूचनाएँ यादृच्छिक रूप से नहीं बल्कि संगठित रूप से संचित रहती हैं ।
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