उच्च शिक्षा में पाठ्यक्रम के आधार लिखें।
उत्तर— सन् 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दीक्षान्त भाषण देते हुए पं. जवाहरलाल नेहरू ने विश्वविद्यालय के मूल उद्देश्यों तथा राष्ट्र जीवन में उसकी भूमिका को इन शब्दों में व्यक्त किया, “विश्वविद्यालय का अस्तित्व मानववाद के लिये, सहिष्णुता और विवेक के लिये, विचारगत साहस तथा सत्य की खोज के लिए होता है । उसका लक्ष्य यह होता है कि मानव जाति और भी उच्चतर उद्देश्यों की ओर कदम बढ़ायें । राष्ट्र और जनता का श्रेय इसी में है कि विश्वविद्यालय अपने अस्तित्व का समुचित निर्वाह करते रहें ।
सन् 1948 में भारत सरकार ने विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की नियुक्ति की । इस आयोग का मत है कि विश्वविद्यालय अपनी प्राचीन पद्धति से आबद्ध नहीं रह सकते हैं । समाज की बढ़ती हुई जटिलता और उसकी बदलती हुई संरचना के कारण विश्वविद्यालयों को अपने उद्देश्यों में परिवर्तन करना आवश्यक है। अपने इस विश्वास के आधार पर राधाकृष्णन् कमीशन ने उच्च शिक्षा के निम्नांकित उद्देश्य निर्धारित किये-
- विश्वविद्यालयों को राजनीतिक, व्यावसायिक, औद्योगिक एवं वाणिज्यक क्षेत्रों में नेतृत्व ग्रहण कर सकने वाले व्यक्तियों का निर्माण करना ।
- विश्वविद्यालय समाज-सुधार के कार्य में महान् योग दे सकते हैं । अतः उन्हें दूरदर्शी द्धिमान तथा बौद्धिक साहस वाले व्यक्तियों को जन्म देना ।
- विश्वविद्यालयों को प्रजातंत्र को सफल बनाने के लिए शिक्षा का प्रसार और ज्ञान की खोज कर सकने वाले व्यक्तियों को उत्पन्न करना ।
विश्वविद्यालय–देश की सभ्यता एवं संस्कृति के रक्षक एवं पोषक हैं । अत: उन्हें सभ्यता एवं संस्कृति के अग्रदूतों का निर्माण करना है।
शिक्षा आयोग (1964-66) ने उच्च शिक्षा के निम्नांकित उद्देश्यों पर बल दिया—
- नवीन ज्ञान की प्राप्ति तथा पोषण करना ।
- नई आवश्यकताओं तथा नई खोजों के संदर्भ में प्राचीन ज्ञान और विश्वासों की व्याख्या करना ।
- जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सही नेतृत्व प्रदान करना, प्रतिभावान युवक-युवतियों को पहचानना और शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक शक्तियों के उन्नयन और स्वथ्य रुचियों, मनोवृत्तियों तथा नैतिक एवं बौद्धिक मूल्यों के पोषण द्वारा उनकी सम्भावनाओं को भरपूर सहायता देना ।
- शिक्षा के प्रसार द्वारा समानता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक भेदों को घटाने का प्रयास करना ।
- समाज को ऐसे सक्षम नर-नारी देना जो कृषि कलाओं, चिकित्सा, विज्ञान और टेक्नोलॉजी में तथा अन्य विविध वृत्तियों में प्रशिक्षित हों और साथ ही सामाजिक सोद्देश्यता की भावना से अनुप्रमाणित सुसंस्कृत व्यक्ति भी हों।
- व्यक्ति और समाज में सद्जीवन के विकास के लिये जिन मनोवृत्तियों तथा मूल्यों की आवश्यकता होती है, शिक्षकों तथा छात्रों में और उनके माध्यम से सम्पूर्ण में उन्हीं मनोवृत्तियों एवं मूल्यों का संवर्धन-पोषण करना ।
हम कह सकते हैं कि हमारी उच्च शिक्षा की संस्थाओं के पाठ्यक्रम दोषपूर्ण हैं और आधुनिक भारत के लिए नितान्त निरर्थक हैं । इस तथ्य की ओर संकेत करते हुए राधाकृष्णन कमीशन ने लिखा है “जो पाठ्यक्रम वैदिक काल में उपयोगी था, उसे 20व्रीं शताब्दी में बिना परिवर्तन किए प्रयोग नहीं किया जा सकता है।”
पाठ्यक्रम में सुधार (Reform in Curriculum) — ‘राधाकृष्णन कमीशन’ के विचार से सहमत होने के कारण ‘कोठारी कमीशन’ ने उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम परिवर्तन एवं सुधार करने के लिए निम्नांकित सुझाव दिये हैं—
- उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम को विद्यालय – पाठ्यक्रम से कठोरतापूर्वक सम्बद्ध न.. किया जाना चाहिए ।
- स्नातक – पूर्व स्तर पर पाठ्यक्रम उससे अधिक लचीला होना चाहिए, जितना कि इस समय है ।
- उक्त स्तर पर छात्रों को पाठ्य-विषयों का चयन करने के लिए अधिक स्वतन्त्रता प्रदान की जानी चाहिए ।
- उक्त स्तर पर सामान्य, विशिष्ट एवं आनर्स पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जानी चाहिए ।
- स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों को परिवर्तित करके अधिक लचीला बनाया जाना चाहिए पाठ्यक्रम में सुधार करने के लिए ‘कोठारी कमीशन’ का सबसे महत्त्वपूर्ण सुझाव यह है कि “शिक्षा का देश एवं व्यक्तियों की आवश्यकताओं से सम्बन्धपत किया जाना चाहिए ।” इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ‘कमीशन’ ने पाठ्यक्रम में कार्य अनुभव, व्यावसायिक विषयों और कृषि, विज्ञान एवं प्राविधिक शिक्षा को स्थान दिये जाने का सुझाव प्रस्तुत किया है ।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सातवीं योजना के दौरान विज्ञान मानविकी तथा सामाजिक विज्ञानों में मॉडल पाठ्यचर्याएँ तैयार करने के लए 27 पाठ्यचर्या विकास केन्द्र (Curriculum Development Centres —CDC) स्थापित करके पाठ्यक्रम फिर से तैयार करने की इच्छा व्यक्त की। आयोग ने देश में सन् 1986 से विभिन्न विश्वविद्यालयों में इन पाठ्यचर्या विकास केन्द्रों के माध्यम से 27 विषयों में मॉडल पाठ्यचर्याएँ तैयार करने के लिए एक अतिव्यापक कार्यक्रम शुरू किया । इन्हें अपनाने / अनुकूलन के लिए सभी विश्वविद्यालयों को परिचालित किया गया तथापि विश्वविद्यालय स्तर पर इस सम्बन्ध में की गई कार्यवाही का निरीक्षण करने के लिए अब तक कोई तन्त्र तैयार नहीं किया गया है।
कार्य-योजना, 1992 (Programme of Action, 1992)–पाठ्यक्रम पुनः तैयार करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित सिफारिशें की गयीं—
- सी. डी. सी. द्वारा मॉडल पाठ्यचर्या विकसित करने में निहित व्यापक प्रयासों का विश्वविद्यालय पद्धति में पूर्णरूप से प्रयोग किया जाए ।
- इन पाठ्यचर्याओं को अपनाने या अनुकूल बनाने के लिए सभी विश्वविद्यालयों को परिचालित किया जाये और इस कार्यवाही का निरीक्षण करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में एक तन्त्र (Mechanism) बनाया जाना चाहिए |
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग पाँच वर्षों में कम से कम एक बार मॉडल पाठ्यचर्या को अद्यतन (Latest) बनाने के लिए कार्य करे ।
- अवर स्नातक पाठ्यक्रमों को पुनः तैयार करने की विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की वर्तमान मार्गदर्शीय रेखाओं को जो एक दशक पहले तैयार की गई थीं, सन् 1993-94 तक व्यापक रूप से संशोधित किया जाएं ताकि उनमें अद्यतन विकासों, उभरती रोजगार प्रवृत्तियों तथा मूल्य शिक्षा से सम्बन्धित पहलुओं को इसमें शामिल किया जा सके ।
- पाठ्यचर्या के अनुप्रयोग (Application) उन्मुख पाठ्यक्रम शामिल करके और परियोजना और कार्य-क्षेत्र के लिए अवसर प्रदान करके प्रथम डिग्री स्तर पर सभी छात्रों को कार्यजगत की जानकारी देने के प्रयास किये जाने चाहिए ।
- विश्वविद्यालयों में अध्ययन बोर्डों (Board of Study) को पुनर्गठित करने से सम्बन्धित ज्ञानम समिति की सिफारिश पर जब भी केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड द्वारा विचार किया जाय और इसे अनुमोदित किया जाये तब इसे कार्यान्वित किया जाना चाहिए ।
- सभी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में दाखिले चयनात्मक आधार पर किये जायें और उपलब्ध सीटों तक ही सीमित रखे जायें। सभी विश्वविद्यालयों के स्नातकोत्तर विभागों को ‘चाहिए कि वे सेमेस्टर, ग्रेडिंग सतत् मूल्यांकन तथा कीर्तिमान पद्धति को धीरे-धीरे अपना लें ।
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