गृहयुद्ध की प्रगति ( Progress of the Civil War)

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गृहयुद्ध की प्रगति ( Progress of the Civil War)

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इंग्लैंड के गृहयुद्ध का इतिहास दो चरणों में विभाजित किया गया है जिसमें पहला-प्रथम गृहयुद्ध (सन् 1642 ई.-से सन् 1646 ई.) और दूसरा द्वितीय गृहयुद्ध (सन् 1646 ई.-सन् 1649 ई.)। इन दोनों चरणों पर विस्तृत प्रकाश आगे डाला गया है—
प्रथम गृहयुद्ध (सन् 1642 ई. से सन् 1646 ई.) (First Civil War)
गृहयुद्ध के पहले चरण में लन्दन पर अधिकार करना इंग्लैंड के राजा चार्ल्स प्रथम का प्रमुख उद्देश्य था। दोनों पक्षों के बीच एजहिल की प्रसिद्ध लड़ाई हुई, जिसमें हार जीत का फैसला न हो सका। चार्ल्स की सेना लन्दन के समीप पदार्पण कर चुकी थी। लन्दन के निकट टरहम ग्रीन नामक स्थान पर लगभग 24 हजार लन्दन निवासी राजा की फौज से युद्ध करने हेतु तैयार बैठे थे। अतः विवश होकर चार्ल्स की सेना की / को ऑक्सफोर्ड लौटना पड़ा। यह राजा की सबसे बड़ी भूल कहीं जा सकती है।
परन्तु लन्दन को अपने नियंत्रण में करने के उद्देश्य से सन् 1643 ई. में चार्ल्स प्रथम ने तीन तरफ से आक्रमण की योजना बनायी। होप्टन को पूर्व की ओर से, लार्ड-न्यूकासिल को दक्षिण की ओर से तथा स्वयं राजा को पश्चिम की ओर से आक्रमण करना था। यह वर्ष संसद के लिए अत्यन्त दुर्भाग्यशाली सिद्ध हुआ। न्यूकासिल ने अडवाल्टन मूट के युद्ध में संसद की सेना को हराकर चाकेशायर के अधिकांश चाकेशायर के अधिकांश क्षेत्रों को अपने अधिकार में कर लिया, रुपर्ट ने ब्रिस्टल के पश्चिमी भाग को अपने अधिकार में ले लिया और होप्टन ने संसद की सेना को राउण्टअवे डाउन के युद्ध में हराया तथा युद्ध में हैम्बडन मारा गया। कुछ समय बाद लॉर्ड इसेक्स के नेतृत्व में संगठित संसद की सेना का चार्ल्स की सेना के साथ भयंकर युद्ध हुआ। यद्यपि युद्ध में राजा के पक्ष की तदन्तर अक्टूबर, सन् 1843 ई. में दोनों पक्षों के बीच विनवी की लड़ाई हुई, जिसमें संसद की ओर से क्रॉमवेल को विशेष स्थान मिला। क्रॉमवेल को इस सफलता से काफी लोकप्रियता हासिल हुई और वह प्यूरिन दल का प्रधान बन गया।
गृहयुद्ध में अब तक किसी भी पक्ष को सफलता नहीं प्राप्त हुई थी। अतः अब दोनों ही पक्ष स्कॉटलैंड से मदद मांगने लगे। इस क्रम में प्रथम सफलता ग्रीम को उस दौरान मिली जब वह ‘सोलेमन लीग और कोवनेण्ट’ सन्धि के अनुसार 20 हजार सैनिकों की सहायता पाने में सफल हुआ। सन्धि की शर्त के अनुसार संसद द्वारा अंग्रेजी चर्च को स्कॉटिश चर्च की पद्धति सुधारने का आश्वासन दिया गया। इसी दौरान ग्रीक की अचानक मृत्यु हो जाने से संसद को भारी क्षति पहुँची। दूसरी ओर चार्ल्स प्रथम ने भी आयरलैंड के शासन में सुधार लाने की कोशिश की गई, लेकिन आयरिश सहायता से राजा को कोई विशेष लाभ न मिल सका, क्योंकि इसके सत्ता के सैनिक आयरलैंड के कैथोलिक सैनिकों से असन्तुष्ट थे।
दोनों पक्षों के मध्य न्यूवरी का दूसरा युद्ध सन् 1644 ई. में हुआ जिसमें राजकीय पक्ष को गहरी शिकस्त का सामना करना पड़ा। युद्ध के उपरांत संसद की सेना का पुनर्गठन करने का प्रयत्न किया गया। अब तक संसद के सदस्य ही सेनानायक होते थे, परन्तु ऐसे सेनानयक युद्ध कला में प्रवीण नहीं होते थे। अतः संसद ने एक स्वतः अस्वीकार अध्यादेश (Self Denying Ordinance) पास ने किया जिसके अनुसार संसद के सदस्यों को अपने सैनिक पदों को छोड़ना पड़ा। क्रॉमवेल एसेक्स और मैनचेस्टर ने भी अपने अपने पद छोड दिये, लेकिन फेमटफेक्स को इस New Model Army का प्रधान सेनापति बनाया गया। सैनिक को नियमित रूप से सहायता देने का प्रबंध किया गया, लेकिन इस नयी आदर्श सेना को संसद के नियंत्रण से मुक्त रखा गया।
राजा की सेना को संसद की नयी संगठित सेना ने नेस्वी के युद्ध में पूरी तरह से पराजित किया। राजकीय सेना के अधिकांश योग्य अधिकारियों का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया। दक्षिण-पश्चिम के फेयर फेक्स को लैंग फोंर्ट में मिली सफलता से ब्रिस्टल पर पुन: संसद का नियंत्रण स्थापित हो गया। क्रॉमवेल की सेना ने रूपर्ट की घुड़सवार सेना को बुरी तरह से कुचल दिया। इस युद्ध में चार्ल्स को आधी घुड़सवार सेना, सम्पूर्ण तोपखाना और पैदल सेना तथा योग्य सैनिक पदाधि कारी समाप्त हो गये। Charendon ने लिखा था कि, “राजा और राज्य दोनों ही युद्ध में खो गये।”
जब स्कॉटलैंड ने संसद से समझौता कर अर्ल ऑफ मौट्रोज ने उसे विशेष माना और वह चार्ल्स प्रथम को मदद देने हेतु राजी हो गया। अपनी छोटी-सी सेना के बल पर उसने एक वर्ष के अन्दर छः युद्धों में सफलता प्राप्त की। ऐसा प्रतीत होता था कि वह चार्ल्स के लिए सम्पूर्ण स्कॉटलैंड को जीत लेगा। परन्तु फिलिपहाफ के युद्ध में वह सफल नहीं हुआ। इस पराजय के बाद मॉंट्रोल यूरोप भाग गया और मई सन् 1861 ई. में चार्ल्स ने स्वयं को स्कॉटलैण्ड की सेना के हवाले कर दिया। ऑक्सफोर्ड पर संसद की सेना ने अधिकार कर लिया। चार्ल्स के आत्म-समर्पण के साथ ही चार वर्षों से चले आ रहे गृहयुद्ध के प्रथम भाग का अन्त हो गया। इस प्रकार राजतंत्र का पतन हो गया तथा राज्य की शासन शक्ति लम्बे समय तक संसद के हाथों में चली गयी। हालांकि उस समय तक कानूनी तरीके से इंग्लैंड को गणतन्त्र स्वीकार नहीं किया जा सकता था।
द्वितीय गृहयुद्ध (सन् 1646 ई. से सन् 1649 ई.) ( The Second Civil War) 
प्रथम गृहयुद्ध समाप्त होने से इंग्लैंड की मुश्किलों का अंतिम निदान नहीं हो पाया। अभी भी इंग्लैंड के समक्ष कई ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न थे, जिसका हल ढूँढना अत्यावश्यक था। गृहयुद्ध के पश्चात् इंग्लैण्ड के समक्ष दो प्रमुख समस्याएँ थीं- 1. भविष्य में इंग्लैंड की शासन व्यवस्था कैसी हो तथा 2. इंग्लैंड का कौन सा धर्म हो और उससे सहमत न हो उन्हें अपना धर्म मानने की किस सीमा पर छूट दी जाए? इन गंभीर प्रश्नों की गंभीरता इस बात से और भी बढ़ गयी थी कि प्रश्नों का हल निकालने में इंग्लैंड के विपक्ष के लोग रुझान रखते थे, दुर्भाग्यवश इंग्लैंड के विभिन्न राजनीतिक दलों के दृष्टिकोण इस विषय पर भिन्न थे राजा के समर्थक राजतन्त्र के अधिकार और प्रतिष्ठा की सुरक्षा हेतु लालायित थे। स्कॉटलैंड की सेना चार्ल्स प्रथम को गद्दी से हटाये बिना इंग्लैंड में भी प्रेस्बिटेरियन धर्म को शुरू करना चाहती थी। संसद भी चार्ल्स को मात्र का शासक बनाकर रखना चाहती थी। सहिष्णुता के पक्ष में संसद की आदर्श सेना धार्मिक थी। उग्रवादियों में भी अनेक विचारधाराओं के लोग थे। अतः ऐसी परिस्थितियों ने इंग्लैंड की समस्या को और भी मजबूत बना दिया और एक बार देश पुनः गृहयुद्ध के कगार पर खड़ा हो गया। इंग्लैंड में सन् 1648 ई. तक आते-जाते दूसरा गृहयुद्ध शुरू हो गया, जिसका अंत सन् 1649 ई. में चार्ल्स प्रथम को फाँसी देकर किया गया।
यह बात सच है कि द्वितीय गृह युद्ध बहुत थोड़े समय चला, लेकिन यह युद्ध अत्यन्त भयानक सिद्ध हुआ। इस युद्ध में स्कॉटलैंड की सेनाएँ और प्रेस बिटोरियन मतावलम्बी चार्ल्स प्रथम की ओर से तथा संसद की आदर्श सेना दूसरे पक्ष में लड़े। राजा के समर्थन में केन्ट और इंसैक्स प्रान्तों में विद्रोह हुए। ड्यूक ऑफ हेमिल्टन के नेतृत्व में स्कॉटलैण्ड की सेना ने इंग्लैंड में प्रवेश किया। संसद की सेना के प्रधान सेनापति फेयरफेक्स ने ग्याउसेस्टर पर अधिकार करके केन्ट और इसैक्स के विद्रोहों को दबाकर सफलता हासिल की तथा दूसरी ओर संसद के अश्वारोही सेना के अध्यक्ष ‘क्रॉवेल’ अगस्त सन् 1648 ई. में प्रिस्टन में होमिल्टन की सेनाओं को बूरी तरह से पराजित किया । वस्तुतः सारा इंग्लैंड अब संसद की नयी आदर्श सेना की दया पर था। इस तरह संसद की विजय के साथ दूसरा गृह युद्ध खत्म हो गया। इस जीत का नतीजा यह हुआ कि क्रॉमवेल इंग्लैंण्ड में वास्तविक तानाशाह के रूप में उदय हुआ। देश से तमाम विद्रोह एवं विरोधी भावनाएँ खत्म हो रही थी । राजशाही के समर्थक कुचल दिये गये और संसद क्रॉमवेल के हाथों की एक कठपुतली मात्र बन कर रह गई तथा देश का संविधान कमजोर हो चुका था।
इस बात में सच्चाई है कि इंग्लैंड की संसद ने चार्ल्स प्रथम से समझौता वार्ता करने का प्रयास किया था, किन्तु सेना उसे पदच्युत करने के लिए दृढ़ संकल्प थी। वह उसे दूसरे गृह युद्ध के लिए जिम्मेदार मानता था। अतः दिसम्बर, सन् 1648ई. में कर्नल प्राइड ने लोकसभा से राजा के समर्थक प्रेस बिटेरियन सदस्यों को बल प्रयोग द्वारा सदन से बाहर निकाल दिया। इतिहास में इस घटना को Pride’s Puggy के नाम से भी जाना जाता है। चूँकि सेना राजा को खून का प्यासा न मानती से थी, अतः उस पर न्यायालय में राजद्रोह का मुकदमा चलाने का फैसला लिया गया। जॉन ब्रेडषा को 85 सदस्यीय इस विशेष न्यायालय का प्रधान न्यायाध्यक्ष बनाना गया। राजा ने इस न्यायालय की वैद्यता को स्वीकार करने से मना कर दिया। वस्तुतः यह मुकदमा मौलिक रूप से राजनीतिक था और इसका फैसला भी पहले से ही तय था। चार्ल्स प्रथम को दोषी किया गया और 30 जनवरी, सन् 1649 ई. को फाँसी दे दी गई।
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