जार्ज चतुर्थ 1820-1830 ई. | George 4 – 1820-1830 A.D.

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जार्ज चतुर्थ 1820-1830 ई. | George 4 – 1820-1830 A.D.

जार्ज चतुर्थ का शासनकाल 1820 ई. से 1830 ई. तक का है। वह ब्रिटेन क्रान्ति के कारण विभिन्न क्षेत्रों में सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं दे सका। युद्व बन्द होने के उपरान्त शांति तो फैल गयी । परन्तु बहुत से उद्योग धन्धें ठप्प हो गये और चारों ओर गरीबी और बेरोजगारी फैल गई। जनता ने देश में दंगों को बढ़ावा दिया। इन समस्याओं का समाधान करने हेतु कुछ प्रधानमंत्रियों ने जार्ज चतुर्थ का साथ दिया। जार्ज चतुर्थ के शासनकाल में कई सुधार किये गये, जो निम्न प्रकार हैं—
(1) दण्ड विधान में सुधार— दण्ड विधान के नियम कठोर थे। छोटे-बड़े अपराधों में कोई अन्तर न था। लगभग 200 अपराधों का दण्ड मृत्यु था। अपराध साधारण थे, जैसे छोटे-छोटे वृक्ष काटना, निषिद्ध स्थान से मछली पकड़ना, पशु चराना आदि। सर राबर्ट पील ने लगभग 100 अपराधों हेतु दिया जाने वाला मृत्यु दण्ड हटा दिया।
(2) पुलिस में सुधार— देश में सुधार लाने हेतु पुलिस के संगठन में भी के सुधार किया गया। सर राबर्ट पील ने योग्य एवं अशिक्षित चौकीदारों को हटा दिया और उनके स्थान पर पुलिस का प्रबंध किया जिसके कारण चन्दननगर के अपराधों की संख्या बहुत घट गई । इतिहासकार कार्टर और मिसर्स का कहना है, “चाहे वह कार्य आरम्भ में इतना लोकप्रिय न था परन्तु उपरान्त में पुलिस फोर्स ब्रिटेन की ऐसी संस्था बन गई जिस पर ब्रिटेन को बड़ा मान है। “
(3) स्वतंत्र व्यापार का प्रारम्भ 1823-27 ई.— जार्ज चतुर्थ के राज्यकाल में विलियम हसकिसन ने स्वतंत्र व्यापार की नीति को अपनाया। हसकिसन ने बाहर से कई चीजों से निर्यात कर काफी कम किया और कुछ पर से कर बिल्कुल ही हटा दिया। ब्रिटेन से बाहर जाने वाली चीजों पर जो कई निर्यात कर लगे हुए थे वे भी बिल्कुल हटा दिए या कम कर दिए गये।
(4) टैस्ट एक्ट एवं निष्ठा कानून की समाप्ति 1825 ई.— टैस्ट एक्ट और निष्ठ कानून आदि ये दोनों कानून चार्ल्स द्वितीय के राज्यकाल में पास किए गए थे। सरकारी नौकरी मात्र ब्रिटेन के चर्च के मानने वालो को ही दी जाती थी। रोमन कैथोलिकों ने इसका विरोध किया। विग दल ने इनका समर्थन किया और 1828 ई. में ये दोनों कानून रद्द कर दिए गए और सरकारी नौकरी अब सभी मत वालों को मिलने लगी। लेकिन अब भी ब्रिटेन के चर्च को न मानने वाला पार्लियामेण्ट के सदस्य नहीं बन सकते थे।
(5) कैथोलिक – उद्धार अधिनियम 1892 ई.— कैथोलिकों को प्रोटेस्टेण्ट लोगों के बराबर अधिकार प्राप्त न थे । आयरलैंड में उन्हें न तो पार्लियामेण्ट के सदस्य बनने की आज्ञा थी और न ही वे विश्वविद्यालयों एवं वकालत में जा सकते थे। जल्दी ही डैनियल ओ कोनेल नामक एक बैरिस्टर के अधीन कैथोलिकों के उद्धार के आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। 1828 ई. में ओ’ कोनेल पार्लियामेण्ट का सदस्य चुना तो गया लेकिन कैथोलिक होने के कारण उसे पार्लियामेण्ट में बैठने नहीं दिया गया। ड्यूक ऑफ वेलिगटन ब्रिटेन का प्रध ानमंत्री था, लेकिन वह कैथोलिक विरोधी था । इस विद्रोह के कारण 1829 ई. में उसने पार्लियामेण्ट से कानून पास करवाया जो ‘कैथोलिक उद्धार अधिनियम’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस अधिनियम के कारण कैथोलिकों को सामाजिक एवं राजनीति अधिकार प्राप्त हो गए और उन पर लगे सम्पूर्ण प्रतिबंध हटा लिये गये। इतिहासकार ट्रैविलियन के शब्दों में, “कैथोलिक उद्धार अधिनियम पास करके उन्होंने गृह युद्ध के खतरे को टाल दिया। “
(6) जेल सुधार— इंग्लैंड में जेल की दशा बड़ी सोचनीय थी। वहाँ पर रोशनी और हवा का प्रबंध भी ठीक न था। अपराधियों से बड़ा बुरा व्यवहार किया जाता था। कैदियों के सम्बन्धी एवं मित्र ही उन्हें खाना भेजते थे। खाना नहीं आने पर वे भूखे मरते थे।
धीरे-धीरे कैदियों की इस दशा को सुधारने का प्रयत्न किया गया। जान हावर्ड ने इस सुधार में विशेष योगदान दिया। उसने अपनी पुस्तक ‘जेलों की दशा’ में कैदियों की एवं जेलों की दशा को सुधारने का वर्णन किया। अन्त में जान हावर्ड के प्रयास से दो कानून पास किया गया। जेलर की फीस कैदी से न लेकर सरकार से ली गई। इस प्रकार दिन-प्रतिदिन जेलों की हालत एवं कैदियों की दशा सुधरने लगी।
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