दिए गए संकेत बिन्दुओं के आधार पर लगभग 250 शब्दों में किसी एक विषय पर निबंध लिखें।

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प्रश्न – दिए गए संकेत बिन्दुओं के आधार पर लगभग 250 शब्दों में किसी एक विषय पर निबंध लिखें।

(क) राष्ट्रीय पर्व (स्वतंत्रता दिवस)
संकेत बिन्दु : (i) भूमिका
(ii) संघर्ष की गाथा
 (iii) परिणति
(iv) पर्व की महत्ता
(v) उपसंहार
(ख) मेरे प्रिय खेल
संकेत बिंदु: (i) भूमिका
(ii) खेल का महत्त्व
(iii) खेल से लाभ
 (iv) खेल से हानि
(v) उपसंहार
(ग) होली/ईद
संकेत बिंदु: (i) भूमिका
(ii) मनाने की तैयारी
(iii) अन्तर्कथा
(iv) लाभ एवं हानि
(v) उपसंहार।
उत्तर – (क) राष्ट्रीय पर्व (स्वतंत्रता दिवस)
(i) भूमिका : स्वतंत्रता सबसे बड़ा वरदान है। जब कोई राष्ट्र दुर्भाग्य से परतंत्र हो जाता है तो दुर्गति हो जाती है। आपसी फूट और वैमनष्य से भारत को भी यह अभिशाप सदियों सहना पड़ा है। अंगेजों की गुलामी जब असह्य हो उठी, तो देश जागा और आजादी की जंग छिड़ी। दमन का चक्र चला लेकिन आखिर शहीदों का खून रंग लाया और गाँधीजी की युक्ति काम आई। 15 अगस्त का पावन दिन आया। स्वतंत्रता का नवप्रभात निकला। भारत के राजनीतिक इतिहास का यह स्वर्णिम दिन है।
 (ii) संघर्ष की गाथा : स्वतंत्रता तो आई लेकिन देश के दो टुकड़े हो गए। भीषण रक्तपात हुआ। साम्प्रदायिकता की दीवार खड़ी हो गई। लेकिन स्वतंत्रता तो स्वतंत्रता ही होती है। स्वतंत्रता का समाचार सुनकर भारतवासी प्रसन्नता से झूम उठे। 15 अगस्त की भोर भी क्या मनोरम भोर थी ! प्रत्येक गली संगीत से गूंज उठी। इस दिन स्वतंत्रता संघर्ष के महान् सेनानी और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर राष्ट्रीय झण्डा फहराया। शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलियाँ अर्पित की गई। भारत के स्वर्णिम भविष्य के लिए अनेक योजनाओं की घोषणा हुई।
(iv) पर्व की महत्ता : इसी दिन की याद में प्रत्येक वर्ष स्वाधीनता दिवस मनाया जाता है। दिल्ली में प्रधानमंत्री लाल किला पर झंडा फहराते और राष्ट्र को संबोधित करते हैं। राज्यों की राजधानियों में मुख्यमंत्री यह कार्य करते हैं। अनेक कार्यक्रम होते हैं, सेना की टुकड़ियों की परेड होती है। झाँकियाँ निकलती हैं। स्वतंत्रता बनाए रखने की प्रतिज्ञा होती है।
(v) उपसंहार : स्वतंत्रता दिवस ऐतिहासिक दिन है और स्वतंत्रता एक अमूल्य वस्तु । इसके लिए हमने महान्ं त्याग किया है। अनेक देशभक्तों ने भारत माता के सिर पर ताज रखने के लिए अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया है। इस दिन हमें एकजुट होकर राष्ट्र की एकता और अखण्डता को अक्षुण रखने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए।
(ख) मेरे प्रिय खेल
(i) भूमिका – खेलना मानव की प्रवृत्ति है, वह इसे छोड़ नहीं सकता। शिशु हो या बालक, किशोर हो या युवा, प्रौढ़ हो या वृद्ध, सभी कोई-न-कोई खेल अवश्य खेलते हैं। अत्यंत अशक्त वृद्ध भी बच्चों के साथ खेलकर या उन्हें खेलाकर अनिर्वचनीय आनंद का अनुभव करते हैं। मानवेतर प्राणिजगत में भी खेल की स्वाभाविक एवं सहज प्रवृत्ति पाई जाती है। मेरा प्रिय खेल क्रिकेट है।
(ii) खेल का महत्त्व – खेल से आनंद की प्राप्ति होती है। मनोरंजन के अनेक साधनों में खेल भी एक महत्त्वपूर्ण साधन है। खेल से मनोरंजन तो होता ही है, साथ ही ताजगी का भी अनुभव होता है। ताजगी का अनुभव मानव को पुनर्जीवन प्रदान करता है। वह अपेक्षित कर्मनिष्ठा से भर उठता है। खेल जीवन का अवसाद दूर करता है। खेल केवल खेल नहीं होता, यह हमारा शिक्षक भी होता है। इसके माध्यम से हम एकता, सहयोग, योजना निर्माण तथा उसे प्राप्त करने के लिए धैर्य एवं संघर्ष की महत्ता से भी परिचित होते हैं। क्रिकेट के खेल में उपर्युक्त सारे तत्त्व विद्यमान होते हैं। खेल हमारे शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ बनाता है। यह हमें जीवन की अनेक सच्चाइयों से परिचित कराता है। क्रिकेट के खेल में शरीर और मन का समन्वय होता है। इसलिए, मैं इस खेल को बहुत पसंद करता हूँ।
(ii) खेल से लाभ – खेल से शारीरिक विकास के साथ ही संघर्ष करने की क्षमता का भी विकास होता है। यह हमें संघर्षशील बनाता है तथा लक्ष्योन्मुख करता है। क्रिकेट के खेल में ये सारी विशेषताएँ पाई जाती हैं।
(iv) खेल से हानि – खेल के प्रति अनपेक्षित रुचि होने के कारण छात्रों का अध्ययन बाधित होता है। विद्यार्थियों को अध्ययन और खेल में संतुलन बनाकर चलना चाहिए। अन्यथा, परीक्षाफल पर बुरा प्रभाव पड़ता है। क्रिकेट के खेल में चोट लगने की आशंका हमेशा बनी रहती है। तेज गति के बॉल से सिर में चोट लगने के कारण कई खिलाड़ियों की मृत्यु भी हो गई है।
(v) उपसंहार — आर्थिक दृष्टि से भी आजकल खेल बहुत महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। युवाजन इन्हें कैरियर के रूप में ले रहे हैं। क्रिकेट का खेल इस दृष्टि से अग्रणी है।
(ग) होली
(i) भूमिका – होली का त्योहार एक पौराणिक कथा से जुड़ा है। कहते हैं, प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नामक एक दुष्ट राजा था। ईश्वर पर उसका विश्वास नहीं था लेकिन संयोग ऐसा था कि उसका पुत्र प्रहलाद ईश्वर-भक्त निकला। हिरण्यकशिपु के लिए यह असह्य था कि उसका पुत्र प्रहलाद ईश्वर का नाम ले और पिता को न भजे। लेकिन प्रहलाद को यह स्वीकार नहीं था। ज्यों-ज्यों उसपर दबाव पड़ता, ईश्वर में उसकी आस्था दृढ़ होती जाती । अन्त में हिरण्यकशिपु ने उसे मरवाने की बात सोची। इस षत्रं में सहायक बनी उसकी छोटी बहन होलिका। उसके पास एक ऐसी चादर थी जिस पर अग्नि का असर नहीं पड़ता था। बस, हिरण्यकशिपु ने कहा कि प्रहलाद ! यदि तेरा ईश्वर है तो तू होलिका की गोद में बैठ । उसके इर्द-गिर्द लकड़ी इकट्ठी करके आग जलायी जाएगी। अगर तू साबूत निकल आया तो तेरी जीत हो जाएगी। ऐसा ही किया गया। लेकिन संयोग ऐसा कि आग लगते ही हवा का एक झोंका आया और चादर होलिका के शरीर से अलग होकर प्रहलाद के शरीर से लिपट गयी। होलिका जलकर राख हो गयी और प्रहलाद हँसते हुए अग्नि के मुख से बाहर निकल आया। इसी घटना की याद में होलिका दहन होता है। दूसरे दिन रंगभरी होली खेली जाती है।
(ii) मनाने की तैयारी : होली का आरम्भ वसन्त पंचमी से ही शुरू हो जाता है। पेड़-पौधे हँसने लगते हैं। मलयानिल पर्वत से आती वसंती हवा तन में नयी ऊर्जा और मन में उमंग भरने लगती है। गीत के बोल उमड़ने लगते हैं। घरों में, खलिहानों में, चौपालों में, ढोल बजने लगते हैं। फाल्गुन की पूर्णिमा को होलिका दहन होता है। लोग महीनों पहले से ही लकड़ी लाकर इकट्ठा करते हैं और नियत समय पर लकड़ियों के ढेर की पूजा कर उसमें आग लगा दी जाती है।
(iii) लाभ एवं हानि: होली रंग और गुलाल का विशेष दिन होता है। सवेरे रंगों से होली खेली जाती है, दोपहर के बाद गुलाल की बारी आती है। हँसी-मजाक का दौर चलता है, ठिठोली होती है। रंग और गुलाल डालकर लोग परस्पर गले मिलते हैं, खूब खाते और खूब खिलाते हैं। आजकल लोग होली के दिन शराब पीकर गाली गलौज करते हैं और एक-दूसरे से मारपीट भी कर लेते हैं जिसके कारण होली का रंग फीका हो जाता है।
(iv) उपसंहार : इस प्रकार होली बड़ा ही रंगीन त्योहार है जो न सिर्फ दानवता पर मानवता की विजय के प्रतीक के रूप में है, अपितु आपसी वैर-भाव भुलाकर मिलने-मिलाने का त्योहार है। किंतु कुछ लोग इस दिन नशा-पान कर सब गुड़-गोबर कर देते हैं। होली अपनी झोली में रंग और गुलाल लेकर आती है। यह आनंद, उल्लास, मस्ती और मौज का त्योहार है। ‘होली’ का संबंध ‘होलाका’ कर्म से है जो कालांतर में ‘होलाका’ से कुछ भिन्न कर्म का द्योतक हो गया है। प्राचीनकाल में ‘होलाका’ (‘होला) एक कर्मविशेष था जो स्त्रियों के सौभाग्य के लिए संपादित होता था। इस कर्मविशेष में रंगों की प्रधानता थी, अतएव इसी का विकास ‘होली’ नामक पर्व में हुआ।
                             ईद
 (i) भूमिका – ईद मुसलमान भाइयों का एक प्रमुख त्योहार है। वास्तव में, यह (ईद) मुसलमान भाइयों के लिए सर्वाधिक खुशी का दिन है।
रमजान का महीना मुसलमानों के लिए विशेष अहमियत (महत्त्व) का होता है। यह महीना पाक (पवित्र) तथा रहमतों (मेहरबानी, करुणा) से भरा माना जाता है। इस माह में स्वर्ग (जन्नत) के सारे दरवाजे खोल दिए जाते हैं तथा नरक (जहन्नुम) के सारे दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि रमजानभर एक महीना रोजा रखनेवाले रोजादारों के सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।
(ii) मनाने की तैयारी – ईद का चाँद दिखाई पड़ने पर महीने भर के रोजे समाप्त हो जाते हैं। अगले दिन मुलसमान भाई खुदा की इस मेहरबानी के प्रति धन्यवाद ज्ञापन (शुक्रिया अदा करते हैं। यह धन्यवाद ज्ञापन ईद की सामूहिक नमाज के रूप में होता है। ईद की नमाज के पूर्व जकात ( दान या खैरात). – बचत का चालीसवाँ भाग) और फितरा अंदा करने का हुक्म निभाते हैं। ईद के दिन लोग स्नानकर नई-नई पोशाक धारण करते हैं। ईदगाहों या मसजिदों में जाने के पहले समर्थ लोग गरीबों और जरूरतमंदों को सदक-ए-फितर (सदका) देते हैं। ईदगाहों और मसजिदों में मर्यादापूर्ण तरीके से किसी इमाम के नेतृत्व में नमाज पढ़ी जाती है। इसके बाद खुदा का धन्यवाद करने और एक-दूसरे से गले मिलने एवं मुबारकवाद देने का क्रम (सिलसिला शुरू हो जाता है। लोग अपने-अ संबंधियों और प्रेमीजनों के घर जाते हैं और मिठाइयाँ खाते हैं। सिवैयाँ इस पर्व का विशेष मिष्ठान्न होती है।
(iii) अंतरकथा – इस त्योहार की शुरूआत अरब से हुई बताई जाती है। कंधार, बुखारा, खुरासान और बगदाद जैसे शहरों से यह त्योहार इसलाम के आगमन के पश्चात भारत में आया।
(iv) लाभ – यह त्योहार प्रेम, एकता, परोपकार, समानता एवं बंधुत्व का संदेश देता है।
 (v) उपसंहार – मन को पवित्र और आत्मा को शुद्ध करनेवाले इस पर्व को मानवता के आदर्शों का पर्व माना जाता है।

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