निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें । प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का होगा।

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प्रश्न – निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें । प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का होगा। 
 (क) “आदर्श व्यक्ति कर्मशीलता में ही अपने जीवन की सफलता समझता है। जीवन का प्रत्येक क्षण वह कर्म में लगाता है। विश्राम और विनोद के लिए उसके पास निश्चित समय रहता है। शेष
समय जन सेवा में व्यतीत होता है। हाथ पर हाथ धरकर बैठने को वह मृत्यु के समान समझता है। काम करने की उसमें लगन होती है। उत्साह होता है। विपत्तियों में भी वह अपने चरित्र का सच्चा परिचय देता है। धैर्य रूपी कुदाली से वह बड़े-बड़े संकट रूपी पर्वतों को तोड़ देता है। उसकी कार्यकुशलता देखकर लोग दाँतों तले ऊँगली दबाते हैं। संतोष उसका धन है। वह परिस्थितियों का दास नहीं परिस्थितियाँ उसकी दासी हैं। “
(i) आदर्श व्यक्ति किसमें अपनी सफलता समझता है ?
(ii) आदर्श व्यक्ति का शेष समय किस कार्य में व्यतीत होता है?
(iii) आदर्श व्यक्ति आराम से बैठना किसके समान समझता है ?
 (iv) ‘संतोष’ किसका धन है ?
(v) कौन परिस्थितियों का दास नहीं है?
(ख) स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा का निवास होता है। यदि हम आत्मिक बल चाहते हैं तो स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना हमारा परम कर्त्तव्य है। स्वास्थ्य का हमारे चरित्र के साथ घनिष्ठ संबंध है। स्वस्थ व्यक्ति ही चरित्रवान हो सकता है। कारण स्पष्ट है कि स्वास्थ्य का आत्म संयम से संबंध है। आत्म संयम चरित्र की सीढ़ी है। यदि स्वास्थ्य नष्ट हुआ तो बहुत कुछ नष्ट हो गया। स्वस्थ व्यक्ति धन कमा सकता है, परंतु धनवान व्यक्ति धन से स्वास्थ्य नहीं खरीद सकता। व्यायाम स्वास्थ्य का सहोदर है। जिन व्यक्तियों का व्यवसाय शारीरिक श्रम से संबंधित है, उन्हें मस्तिष्क संबंधित व्यायाम और जिनका व्यवसाय मस्तिष्क संबंधी है, उन्हें शारीरिक व्यायाम अवश्य करना चाहिए। तन तथा मस्तिष्क जीवन रूपी तराजू के दो पलड़े हैं जिनका संतुलन अनिवार्य है।
(i) मनुष्य के लिए स्वस्थ रहना क्यों आवश्यक है ?
(ii) किसका हमारे चरित्र के साथ घनिष्ठ संबंध है?
 (iii) स्वास्थ्य का महत्त्व धन से भी अधिक क्यों है?
 (iv) चरित्र की सीढ़ी क्या है ?
(v) व्यायाम स्वास्थ्य का सहोदर है – कैसे ?
उत्तर –
(क) (i) आदर्श व्यक्ति कर्मशीलता में ही अपने जीवन की सफलता समझता है।
 (ii) आदर्श व्यक्ति का शेष समय जन सेवा में व्यतीत होता है।
 (iii) आदर्श व्यक्ति आराम से बैठने को वह मृत्यु के समान समझता है।
(iv) संतोष आदर्श व्यक्ति का धन है।
(v) आदर्श व्यक्ति परिस्थितियों का दास नहीं है ।
(ख) (i) मनुष्य के लिए स्वस्थ रहना आवश्यक है क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा का निवास होता है।
(ii) स्वास्थ्य का हमारे चरित्र के साथ घनिष्ठ संबंध है।
(iii) स्वास्थ्य का महत्त्व धन से भी अधिक है क्योंकि स्वस्थ व्यक्ति धन कमा सकता है, परंतु, धनवान व्यक्ति धन से स्वास्थ्य नहीं खरीद सकता।
 (iv) चरित्र की सीढ़ी आत्म संयम है।
(v) जिन व्यक्तियों का व्यवसाय शारीरिक श्रम से संबंधित है उन्हें मस्तिष्क संबंधित व्यायाम और जिनका व्यवसाय मस्तिष्क संबंधी है उन्हें शारीरिक व्यायाम अवश्य करना चाहिए। इस तरह हम कह सकते हैं कि व्यायाम स्वास्थ्य का सहोदर है।

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