निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें :

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प्रश्न – निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें : 
(i) स्लेिक्सिया,
(ii) स्वलीनता (ऑस्टिम),
(iii) व्यक्तिगत विभिन्नता के कारण ।
(Write short notes of the following :
(i) Dystexia,
(ii) Austism,
(iii) Causes of Individual differences.)

उत्तर – स्वलीनता (Autism) – प्रसवपूर्व, प्रसवकालीन और प्रसवोत्तर काल में बालक में मस्तिष्क विकृति, फिनाइलकीटोन्यूरिया, रूबेला संक्रमण, जैव-रासायनिक असंतुलन एवं आनुवंशिक कारणों से बच्चे स्वलीनता के शिकार हो जाते हैं। पीड़ित बच्चा समाज से कटा रहने लगता है । वह हम उम्र साथियों से समन्वय भी स्थापित करने में असमर्थ होता है । यहाँ तक कि वह किसी से आँख से आँख नहीं मिला पाता है । वाक् एवं भाषा का विकास देर से होता है । स्वयं-सहायता कौशल का अभाव, पेशाब – पाखाना करने की समस्या से भी वह ग्रस्त रहता है। दस हजार बच्चों में तीन या चार बच्चों के स्वलीनताग्रस्त होने की संभावना होती है ।

स्वलीनताग्रस्त बच्चों के व्यवहार संबंधी विकृति को दूर करने के लिए बिहैवियर मोडिफिकेशन तकनीक का प्रयोग किया जाता है । ध्यान केन्द्रित करने के लिए योग काफी लाभदायक होता है जबकि पीड़ित बालकों की शैक्षिक समस्याओं को दूर करने के लिए विशिष्ट शिक्षा एवं व्यक्तिनिष्ठ शैक्षिक कार्यक्रम काफी मददगार साबित होता है ।

(i) पढ़ने संबंधी विकार (Dyslexia) – पढ़ने संबंधी विकार को “डिस्लेक्सिया ” कहा जाता है। ‘डिसलेक्सिया’ शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्द ‘dus’ और ‘lexis’ से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है- कठिन भाषा । वर्ष 1887 में इस शब्द की खोज जर्मनी के आँख रोग विशेषज्ञ रूडोल्फ बर्लिन ने की थी । इसे ‘शब्द अंधता’ भी कहा जाता है । इसके अंतर्गत पठन विकार से लेकर भाषाई अक्षमता तक समाहित है।

सामान्य विशेषताएँ (General Characteristics) — डिस्लेक्सियाग्रस्त बालक

  1. सामान्यतः औसत या औसत से अधिक बुद्धिलब्धि वाले होते हैं ।
  2. औसत बालकों की अपेक्षा पढ़ने-लिखने में कमजोर होते हैं ।
  3. दृष्टि क्षमता 20/20 और श्रवण क्षमता सामान्य होता है
  4. अकादमिक उपलब्धि काफी कमजोर होती है ।
  5. मौखिक-भाषा क्षमता सामान्य होती है लेकिन लिखित भाषिक जाँच परीक्षाओं में उनका प्रदर्शन कमजोर होता है ।
  6. अपने आप को गूँगा महसूस करते हैं। साथ ही उनका स्वाभिमान स्तर भी काफी नीचे होता है ।
  7. पढ़ने संबंधी कमजोरी को छिपाने की कोशिश करते हैं।
  8. प्रदर्शन, प्रयोग, प्रेक्षण, दृश्य शैक्षिक सामग्री के जरिये अच्छी तरह से शिक्षण अधिगम भी कर लेते हैं ।
  9. कला, नाटक, संगीत, खेल, कहानी – बाचन और व्यवसाय आदि क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं ।
वाक् श्रवण एवं अन्य कमियाँ (Speech, Hearing and Listenig Deficits) —
  1. वर्णमाला अधिगम में कठिनाई महसूस करते हैं।
  2. नाम संबंधी समस्याओं से पीड़ित होते हैं।
  3. तुकबंदी वाले कविता पहचान करने में असमर्थ होते हैं।
  4. सुनने में कठिनाई होती है। शब्द ध्वनियों में अंतर स्पष्ट नहीं कर पाते हैं।
  5. अक्षरों की ध्वनियों को सीखने में कठिनाई महसूस करते हैं
  6. शब्दार्थ संबंधी कठिनाई ग्रस्त होते हैं ।
पढ़ने एवं स्पेलिंग संबंधी कमियाँ (Reading and Spelling Deficit)—
  1. ध्वनियों को पहचानने में कठिनाई होती है ।
  2. संवेदी सूचनाओं के प्रोसेसिंग में परेशानी महसूस होती है
  3. अध्ययन संबंधी एकाग्रता की कमी महसूस करते हैं।
  4. अधिगम एकरूपता का अभाव होता है।
  5. पढ़ने में परेशानी होती है।
  6. वर्गों और शब्दों की निरर्थक व्याख्या करते है।
  7. पढ़ते वक्त स्वर वर्णों को छोड़ देना । उदाहरणार्थ- Magic को mgc पढ़ना ।
  8. शब्दों को उल्टा पढ़ना, जैसे- नाम को ‘मान’, ‘शावक’ को ‘शाक’, SUN को SNU, GEL को LEG और DOES को DOSE पढ़ना, को DOG पढ़ना GOD आदि ।
  9. स्पेलिंग संबंधी दोष से पीड़ित होना, जैसे- Should की जगह Shud पढ़ना ।
  10. समान उच्चारण वाले ध्वनियों को पहचानने में कठिनाई, उदाहरणार्थ- Their और There में अंतर स्पष्ट नहीं होना ।
  11. शब्दकोष की कमी।
  12. भाषा का अर्थपूर्ण प्रयोग नहीं करना, बोले हुए शब्दों का अर्थ नहीं समझना ।
  13. याददाश्त संबंधी रणनीतियों के प्रयोग की अक्षमता ।
  14. नियमित रूप से पाठ – पुनरावृत्ति प्रवृत्ति का अभाव ।
  15. कमजोर याददाश्त, जैसे- कविता, कहानी और यहाँ तक शब्दार्थ याद कर पाने की असमर्थता ।
  16. परीक्षा में कमजोर प्रदर्शन |
  17. वर्णमाला के अक्षरों और अंकों को गलत पढ़ना, अथवा क्रम उलट कर पढ़ना । उदाहरणार्थ –b को d पढ़ना, P को Q लिखना आदि ।
  18. धारा – प्रवाह शब्दोच्चारण का अभाव |

पहचान (Indentification ) — हालाँकि लक्षणां एवं विशेषताओं के आधार पर डिस्लेक्सियाग्रस्त बालकों को पहचान पाना मुश्किल होता है क्योंकि ऐसे बालकों में शैक्षिक रूप से पिछड़े बालकों जैसे लक्षण भी दृष्टिगोचर होते हैं। ऐसे में यह पहचान पाना थोड़ा मुश्किल है कि बालक डिस्लेक्सिक है अथवा नहीं । अमेरिकन फिजिशियन एलेना बोडर ने 1973 में ‘बोड टेस्ट ऑफ रीडिंग- स्पेलिंग पैटर्न’ नामक परीक्षण विकसित किया । लेकिन भारत में भी ‘डिसलेक्सिया अर्ली स्क्रीनिंग टेस्ट’ और ‘डिस्लेक्सिया स्क्रीनिंग टेस्ट’ सरीखे परीक्षण उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों की पहचान की जा सकती है ।

कारण (Causes) — न्यूरो – विकृति डिस्लेक्सिया का मुख्य कारण माना जाता है। हालाँकि यह आनुवंशिक कारणों से भी हो सकता है।

उपचार कार्यक्रम (Remedial Programme ) – डिस्लेक्सिया लाईलाज है फिर भी उपयुक्त शिक्षण-अधिगम एवं थीरैपी के जरिये इसे न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है यानी पठन विकृति से पीड़ित बालक को पढ़ना-लिखना सीखाया जा सकता है। स्कूल स्तर पर प्रभावकारी प्रशिक्षण देकर भी डिस्लेक्सिया का उपचार किया जा सकता है ।

डिस्लेक्सिया एवं उससे जुड़ी अवस्थाएँ (Dyslexia and Associated Conditions) — डिस्लेक्सिया के अलावा उससे जुड़ी कुछ अन्य अवस्थाएँ भी हैं जो बालक के पढ़ने की क्षमता को प्रभावित करता है । ये अवस्थाएँ हैं—

  1. श्रव्य प्रक्रियात्मक विकृति (Auditory Processing Disorder) — श्रव्य प्रक्रियात्मक विकृति से पीड़ित बालक श्रव्य सूचनाओं को कोड करने वाली क्षमता को प्रभावित करता है । कलांतर में यह श्रव्य कार्यात्मक याददाश्त और श्रव्य सिक्वंसिंग समस्या में तब्दील हो जाता है और अंततः यह डिसलेक्सिया का रूप ले लेता है ।
  2. खड़खड़ाहट (Cluttering) – यह एक प्रकार की वाक् विकृति है जिससे पीड़ित बालकों का वाक् दर और तारतम्यता प्रभावित होता है ।
  3. डिस्प्रैक्सिया (Dyspraxia) – डिस्लेक्सिया ग्रस्त बच्चों के डिस्प्रैक्सिया पीड़ित होने की संभावना अधिक रहती है। इससे पीड़ित बच्चों में अवधान-शून्यता विकृति पाई जाती है।
  4. डिस्ग्राफिया (Dysgraphia)-पठन-अक्षमता पीड़ित बच्चों में लेखन अक्षमता ग्रस्त हो जाने की संभावना अधिक होती हैं। पीड़ित बालकों का आँख-हाथ संयोजन गड़बड़ा जाता है।
  5. डिस्कैल्कुलिया (Dyscalculia) डिसलेक्सियाग्रस्त बच्चों में गणितीय कौशल संबंधी विकृति भी पाई गयी है। ऐसे बच्चे जटिल गणितीय अवधारणाओं और सिद्धान्तों को आसानी से समझते हैं लेकिन उन्हें किसी फार्मूले को समझने और यहाँ तक कि जोड़-घट समझने में परेशानी होती है।
पढ़ने संबंधी समस्या का समाधान (Solution of Dyslexic Procedure)
  1. पढ़ते वक्त शब्दों के बीच की दूरी का अभ्यास कराना ।
  2. शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराना ।
  3. शब्दों अथवा वाक्यों को दिखाकर, पढ़ाकर एवं स्पर्श करा कर सीखना ।
  4. समान उच्चारण वाले शब्दों को साथ-साथ देखकर पढ़वाना ।

(III) वैयक्तिक भिन्नताओं के कारण –

1. वंशानुक्रम (Heredity)- वंशानुक्रम में वे सभी जीन्स सम्मिलित हैं, जो एक बालक को उसके माता-पिता से गर्भधारण के समय प्राप्त होते हैं। मन (1968) ने अपनी सामान्य मनोविज्ञान की पुस्तक में लिखा है कि सबका जीवन एक ही प्रकार से आरम्भ होता है फिर भी इसका क्या कारण है कि जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हम लोगों में अन्तर होता जाता है । इसका एक यही उत्तर है कि हम सबका वंशानुक्रम भिन्न-भिन्न है । वंशानुक्रम एक प्रकार की वंशपरम्परागत शक्ति है जिसके द्वारा माता-पिता और पूर्वजों के गुण नवनिर्मित शिशु में स्थानान्तरित होते हैं। शारीरिक और मानसिक, दोनों प्रकार के गुणों का स्थानान्तरण होता है । वैयक्तिक भिन्नताओं के क्षेत्र में सर्वप्रथम वैज्ञानिक अध्ययन गाल्टन (1879) ने प्रारम्भ किए । विंगफील्ड (1928) ने अपने एक अध्ययन में एक परिवार से सम्बन्धित व्यक्तियों की I.Q. का सहसम्बन्ध गुणांक ज्ञात किया । उसे निम्न सह-सम्बन्ध गुणांक प्राप्त हुए- समान जुड़वाँ बच्चे 0.90, भ्राता जुड़वाँ बच्चे 0.70, सहोदर 0.50, माता-पिता एवं बच्चे 0.31, चचेरे भाई बहिन 0.27, पितामह एवं पौत्र 0.16 तथा असम्बन्धित बालक शून्य सहसम्बन्ध प्राप्त हुआ । एक अन्य अध्ययन में पिन्टनर (1931) ने सम्बन्धित व्यक्तियों और असम्बन्धित व्यक्तियों में निम्न सह-सम्बन्ध प्राप्त कियेसमान जुड़वाँ बच्चों में 0.90; जुड़वाँ बच्चों में 0.75; भ्राता जुड़वाँ बच्चों में 0.70, सम्बन्धित भाइ-बहिनों में 0.20, असम्बन्धित व्यक्तियों में शून्य सह-सम्बन्ध प्राप्त हुआ । इन दोनों अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि मानसिक योग्यताओं में उतनी ही अधिक समानता होती है, जितनी उनके वंशानुक्रम में अधिक से अधिक समानता होती है । मानसिक योग्यताओं के क्षेत्र में वैयक्तिक भिन्नताओं के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी वैयक्तिक भिन्नताओं का आधार पूर्ण एक अतिसार्थक कारक वंशानुक्रम है।

2. वातावरण (Environment) – वंशानुक्रम के अतिरिक्त वातावरण भी एक लगभग समान महत्व का कारक है जिसका वैयक्तिक भिन्नताओं में योगदान भी सार्थक रूप से महत्वपूर्ण है । वातावरण में यह सभी वातावरण सम्बन्धी उद्दीपक सम्मिलित हैं जिनके प्रति एक प्राणी गर्भधारण से लेकर मृत्यु तक अनुक्रिया करता है । अतः वातावरण कारक का प्रभाव भले ही वंशानुक्रम की भाँति गम्भीर न हो परन्तु विस्तृत बहुत अधिक है । इस कारक में वायु, भोजन से लेकर शैक्षिक सुविधाएँ और अभिवृत्तियाँ आदि सम्मिलित हैं । वातावरण सम्बन्धी कारकों का प्रभाव भी अन्य के पूर्व ही प्रारम्भ हो जाता है ।

वातावरण कारक का शारीरिक और मानसिक विकास दोनों ही क्षेत्रों में है। उपयुक्त वातावरण के अभाव में शारीरिक और मानसिक योग्यताओं का सामान्य विकास सम्भव नहीं है । किसी व्यक्ति का वंशानुक्रम कितना ही अच्छा क्यों न हो उपयुक्त वातावरण के अभाव में वंशानुक्राम द्वारा प्रदान की हुई विशेषताओं का सामान्य विकास सम्भव नहीं है । फ्रीमैन (1928) और उनके साथियों ने बालकों के एक अध्ययन में वातावरण में प्रभाव का अध्ययन कर कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं—

  1. जब अनाथ और गोद लिए हुए बालकों के पोष्य घरों में रखा गया था, , उनकी बुद्धि में अधिक सुधार हुआ ।
  2. सहोदर भाई-बहिनों की, जिन्हें उच्च स्तर के पोष्य- घरों में रखा गया था, उनकी I.Q. 95 थी तथा जिन्हें गरीब परिवारों में रखा गया था, उनकी IQ. 86 थी ।
  3. वह भाई बहिन जो एक से पोष्य घरों में थे, उनकी मानसिक योग्यताओं में समानता अधिक तथा भाई-बहिन जो भिन्न-भिन्न पोष्य घरों में थे, उनकी मानसिक योग्यता में समानता बहुत कम थी ।

बर्क्स (1928) ने भी बालकों पर वातावरण सम्बन्धी प्रभावों का अध्ययन किया है । उसने अपने अध्ययनों में देखा कि वातावरण बालकों में बौद्धिक स्तर को लगभग 25% प्रभावित करता है । वातावरण के प्रभाव से I.Q. 20 पॉइन्ट बढ़ जाती है ।

वैयक्तिक भिन्नताओं की उत्पत्ति न केवल वंशानुक्रम से होती है और न किसी के साथ बड़े ही जटिल ढंग से पड़ती है। सरल शब्दों में, वैयक्तिक भिन्नताओं के कारणों को स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है कि वैयक्तिक भिन्नताएँ वंशानुक्रम और वातावरण कारकों के बीच अन्तः क्रियाओं के कारण उत्पन्न होती है ।

3. संस्कृति ( Culture ) – वातावरण के अतिरिक्त संस्कृति भी वैयक्तिक भिन्नताओं को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती है। भिन्न-भिन्न संस्कृति के व्यक्तियों के व्यक्तित्व और व्यवहार के भिन्न-भिन्न विशेषताएँ ही नहीं होती है बल्कि इन विशेषताओं की मात्रा भी भिन्न-भिन्न होती है । चूँकि भिन्न-भिन्न संस्कृति के व्यक्तियों का रहन-सहन, खाना-पीना, आदतें, सामाजिक मूल्य तथा सामाजिक नियम आदि भिन्न-भिन्न होते हैं अतः स्वाभाविकहै कि इन विभिन्नताओं वाली परिस्थितियों में पलने वाले व्यक्तियों की विभिन्न व्यवहार विशेषताएँ और व्यक्तित्व – विशेषताएँ भिन्न-भिन्न हो जाती है ।

4. लिंग भेद ( Sex Differences ) – वैयक्तिक भिन्नताओं का एक महत्वपूर्ण कारण लिंग-भेद भी है । बालक और बालिकाओं की शारीरिक बनावट ही भिन्न प्रकार की नहीं होती है है, बल्कि उनके संवेगों की अभिव्यक्ति में भी अन्तर होता है। इन दोनों की मानसिक योग्यताओं और मानसिक कार्यक्षमता में भी अन्तर होता है। स्किनर (1960) का विचार है कि, “बालिकाओं में स्मृति योग्यता अधिक तथा बालकों में शारीरिक कार्य करने की क्षमता अधिक होती है। गणित और विज्ञान में बालिकाएँ बालकों से पीछे हैं परन्तु बालकों की अपेक्षा उनकी रायटिंग और भाषा अच्छी होती है । सुझाव बालिकाओं को अधिक प्रभावित करता है, बालकों को कम । दिवास्वप्न और प्रेम-कहानियों में बालिकाओं की रुचि अधिक होती है जबकि बालकों की रुचि साहसी कहानियों में अधिक होती है ।

5. अन्य कारक (Other Factors) — वैयक्तिक भिन्नताओं को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य महत्वपूर्ण कारकों में आयु, शिक्षा, आर्थिक स्तर आदि हैं । गैरीसन और उनके साथियों (1958) का भी विचार है कि, “बालकों की भिन्नता के श्रेष्ठ कारणों में प्रेरणा, बुद्धि परिपक्वता, वातावरण सम्बन्धी उद्दीपन में विचलन है। ”

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