निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर लगभग 20-30 शब्दों में दें।
प्रश्न – निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं पाँच प्रश्नों के उत्तर लगभग 20-30 शब्दों में दें।
(क) मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता है?
(ख) लेखक को क्यों लगता है कि नौकर रखना बहुत जरूरी हो गया था ?
(ग) बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुखद समय कब आया ?
(घ) ‘दिनकर’ की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे ?
(ङ) हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है?
(च) कवि जीवनानंद दास अगले जीवन में क्या-क्या बनने की संभावना व्यक्त करते हैं क्यों ?
(छ) मंगम्मा ने अपना ‘धरम’ नहीं छोड़ा, कैसे ?
(ज) सीता की स्थिति बच्चों के किस खेल से मिलती-जुलती थी?
उत्तर –
(क) नाखून पशुता के प्रतीक है। मनुष्य की पशुता को जितनी बार काटा जाता है वह उतनी ही बार, जन्म ले लेती है और मनुष्य है कि वह अपने से पशुता को निकालकर सच्चे अर्थों में मनुष्य बना रहना चाहता है। अतः पशुता के प्रतीक नाखून जब भी बढ़ते हैं, तब ही मनुष्य उनहें काट डालता है।
(ख) लेखक के घर में ऐसा वातावरण उपस्थित हो गया था जिससे लगता था कि लेखक को नौकर रखना अब बहुत जरूरी है लेकिन नौकर कैसा हो और कहाँ मिलेगा यही प्रश्न लेखक को एक भारी दायित्व के रूप में महसूस हो रहा था।
(ग) जब महाराज जी के बाबूजी की मृत्यु हुई तब उनके लिए बहुत दुखदायी समय व्यतीत हुआ। घर में इतना भी पैसा नहीं था कि दसवाँ किया जा सके। इन्होंने दस दिन के अंदर दो प्रोग्राम किए। उन दो प्रोग्राम से 500 रु० इकट्ठे हुए तब दसवाँ और तरह की गई। ऐसी हालत में नाचना एवं पैसा इकट्ठा करना महाराज जी के जीवन में दुःखद समय आया।
(घ) कवि दिनकर अपने यथार्थवादी दृष्टिकोण से एक नए मानव-मूल्य की स्थापना करते हैं। कवि ने पारंपरिक मान्यता के स्थान पर नई मान्यता को महत्त्व दिया है। ‘कर्म ही पूजा है’ को महत्ता देते हुए वे कहते हैं कि वे मूर्ख हैं जो मंदिरों में धर्म के देवता, राजमहलों में राजा और तहखानों, में धन के देवता को ढूँढ़ते हैं, सभ्यता-संस्कृति, रक्षण-पोषण तथा सुख-समृद्धि का मूल कर्म है। अत: कर्मयोगी ही देवत्व के उत्तराधिकारी है और वे कर्मयोगी हमें सड़कों, खेत-खलिहानों में ही मिलेंगे।
(ङ) पत्थर पर जली हुई छाया ने जो अमिट लेख लिखा है, वह बहुत बड़ी साक्षी है आनेवाली पीढ़ियों के लिए। आनेवाली मानव की अगणित पीढ़ियाँ यह देख सकेंगी कि मानव की विवेकहीनता उसे इतना निर्मम और संवेदनाशून्य बना सकती है कि उसे परमाणु-बम- जैसे संहारक अस्त्र, को अपने पर ही गिराने में कोई हिचक नहीं होती।
(च) कवि जीवनानंद दास अगले जीवन में भोर के समय कलरव करनेवाले पक्षी अबाबील और कौवा बनने की संभावना व्यक्त करते हैं क्योंकि जीविका के कारण कवि अपनी मातृभूमि के साहचर्य से दूर चला जाना चाहता है।
(छ) मंगम्मा अपने छोटे से परिवार की स्वामिनी है। वह वात्सल्यमयी है। वह अपने पोते को बहुत प्यार करती है। वह पतित्यक्ता है। उसमें लोकजीवन के सारे संस्कार वर्तमान हैं। वह स्वाभिमानी है। इसलिए मंगम्मा ने अपना धर्म नहीं छोड़ा।
(ज) सीता की स्थिति बच्चों के उस खेल से मिलती-जुलती थी जिसमें बच्चे सरातगियों के ‘पाटे’ पर ‘भाई-भाई रोटी दे’ वाला खेल खेलते ।
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