निम्नलिखित में किन्हीं आठ प्रश्नों के उत्तर दें –
प्रश्न- निम्नलिखित में किन्हीं आठ प्रश्नों के उत्तर दें –
(क) महान् लोग संसाररूपी सागर को कैसे पार करते हैं?
(ख) ‘पाटलिपुत्रवैभवम्’ पाठ के आधार पर यहाँ स्थित दर्शनीय स्थलों पर प्रकाश डालें।
(ग) ‘अलसकथा’ पाठ में वास्तविक आलसियों की पहचान कैसे हुई ?
(घ) शैशव संस्कारों पर प्रकाश डालें।
(ङ) ‘नीतिश्लोकाः’ पाठ के आधार पर ‘मूढ़चेता नराधम्’ के लक्षणों को लिखें।
(च) “शिक्षा कर्म जीवनस्य परमागतिः” रामप्रवेश राम पर उपरोक्त कथन कैसे घटित होता है?
(छ) मध्यकाल में भारतीय समाज में वर्तमान कुरीतियों पर प्रकाश डालें ।
(ज) “ज्ञानं भार: क्रियां बिना” यह उक्ति व्याघ्रपथिक कथा पर कैसे चरितार्थ होती है? “
(झ) ‘शास्त्रकारा: ‘ पाठ में वर्णित वैज्ञानिक शास्त्रों पर प्रकाश डालें।
(ञ) महात्मा बुद्ध के अनुसार वैर की शांति कैसे संभव है ?
(ट) ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा क्यों आवश्यक है?
(ठ) ‘भारतमहिमा’ पाठ के आधार पर भारतीय मूल्यों की विशेषता पर प्रकाश डालें।
(ड) ‘वेदांग संख्या में कितने हैं?
(ढ) ‘नीतिश्लोका:’ पाठ से किसी एक श्लोक को साफ-साफ शब्दों में लिखें।
(ण) स्वामी दयानंद की शिक्षा व्यवस्था का वर्णन करें।
उत्तर –
(क) श्वेताश्वतर उपनिषद् में ज्ञानी लोग और अज्ञानी लोग में अंतर स्पष्ट करते महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि अज्ञानी लोग अंधकारस्वरूप और ज्ञानी प्रकाशस्वरूप हैं। महान लोग इसे समझकर मृत्यु को पार कर जाते हैं। संसाररूपी सागर को पार करने का इससे बढ़कर अन्य कोई रास्ता नहीं है।
(ख) आजकल पाटलिपुत्र बिहार की राजधानी है। इस नगर में उत्कृष्ट संग्रहालय, उच्च न्यायालय, सचिवालय, गोलघर, तारामंडल, जैविक उद्यान, मौर्यकालीन अवशेष तथा हनुमान मंदिर आदि दर्शनीय स्थान हैं। प्राचीन पटना नगर में सिक्ख समुदाय का पूजनीय स्थल गुरुद्वारा है जो दसवें गुरु गोविंद सिंह का जन्म स्थल है।
(ग) वास्तविक आलसियों की पहचान करने के लिए वहाँ पर नियुक्त कर्मियों ने सोये हुए आलसियों के घर में आग लगा दी। जो धूर्त थे, वे घर में लगी आग को देखकर भाग गए। लेकिन वास्तविक आलसी वहीं पड़े रहे।
(घ) शैशव संस्कार छह होते हैं – (i) जातकर्म, (ii) नामकरण, (iii) निष्क्रमण (बाहर निकलना), (iv) अन्नप्राशन (बच्चे को पहली बार अन्न खिलाने की रस्म), (v) चूड़ाकर्म और (vi) कर्णवेध। ये सारे संस्कार शैशवावस्था में ही पूरे किए जाते हैं।
(ङ) ‘नीतिश्लोकाः’ पाठ में महात्मा विदुर ने मूढ़चेतनराधम के तीन लक्षण बतलाए हैं। ऐसा व्यक्ति जो बिना बुलाए आता है। बिना पूछे ही अधिक बोलता है। वह अविश्वासी पर भी विश्वास करता है।
(च) रामप्रवेश राम ‘शिक्षा ही जीवन की परम गति होती है, ऐसा मानता हुआ अपने परिश्रम से विद्या लाभ के लिए परिश्रम करने लगा। अपने परिश्रम से उसने विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय स्तर पर सभी परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया। अपने परिश्रम के कारण वे केन्द्रीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में भी सफल रहे।
(छ) मध्यकाल में अनेक कुरीतियाँ भारतीय समाज को दूषित कर रही थीं। जातिवाद से उत्पन्न असमानता, छुआछूत, धार्मिक कार्यों में दिखावापन आदि कुरीतियाँ भारतीय समाज में विद्यमान थीं। इसके अतिरिक्त स्त्रियों में अशिक्षा, विधवाओं की दयनीय स्थिति आदि दोष भी भारतीय समाज में थे।
(ज) जिसकी इन्द्रियाँ और मन वश में नहीं हैं, ऐसे व्यक्तियों का ज्ञान व्यावहारिक क्रिया के अभाव में भारस्वरूप हो जाता है। इस कथा में भी व्यावहारिक बुद्धि के अभाव में पथिक ने लोभ के वशीभूत होकर व्याघ्र जैसे हिंसक पशु पर विश्वास किया। इसलिए वह मारा गया।
(झ) विज्ञान-संबंधी रचनाओं को लिखनेवाले प्राचीन भारत में अनेक वैज्ञानिक ऋषि थे, जिसमें आयुर्वेदशास्त्र में चरक रचित चरकसंहिता एवं सुश्रुत रचित सुश्रुतसंहिता अति प्रसिद्ध है। आर्यभट्ट का ग्रंथ ‘आर्यभट्टीयम्’ अति प्रसिद्ध है, जिसमें खगोलविज्ञान एवं गणितशास्त्र की विस्तृत व्याख्या है। वराहमिहिर रचित वृहदसंहिता तथा महर्षि पराशर-रचित कृषिविज्ञान भी अंतिमहत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें अनेक विषयों तथा वैज्ञानिक कृषि-संबंधी वर्णन है।
(ञ) महात्मा बुद्ध ने कहा था – वैर से कभी वैर शांत नहीं होता। अवैर, करुणा, परोपकार और मित्रता से ही वैर की शांति हो सकती है।
(ट) उदार हृदय वाले लोग अपना पराया की भावना नहीं रखते। वे संपूर्ण विश्व के लोगों को अपना परिवार मानते हैं। वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा विश्व में शांति स्थापित करने के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
(ठ) हमारी भारत भूमि विशाल, आकर्षक स्वरूप वाली और कल्याणप्रद है। यहाँ विभिन्न प्रकार के लोग धर्म जाति का भेदभाव भुलाकर एकता की भावना को धारणा करते करते हैं। निवास
(ड) वेदाङ्ग छः हैं – शिक्षा, कल्प, व्याकरण निरूक्त, छन्द और ज्योतिष |
(ढ) सत्येन रक्ष्यते धर्मों विद्या योगेन रक्ष्यते ।
मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ।।
(ण) आर्यसमाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में मुंबई नगर में की। आर्यसमाज वैदिक धर्म और सत्य के प्रचार पर बल देता है। यह संस्था मूर्तिपूजा का घोर विरोध करती है। आर्यसमाज ने नवीन शिक्षा पद्धति को अपनाया और इसके लिए डी०ए०वी० नामक विद्यालयों की समूह की स्थापना की। आज इस संस्था की शाखाएँ-प्रशाखाएँ देश-विदेश के प्रायः प्रत्येक प्रमुख नगर में अवस्थित हैं।
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