निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिंदुओं के आधार पर लगभग 250-300 शब्दों में निबंध लिखें।
प्रश्न – निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिंदुओं के आधार पर लगभग 250-300 शब्दों में निबंध लिखें।
(क) परिश्रम की महत्ता
(i) भूमिका
(ii) महत्त्व
(iii) उपसंहार
(ख) राष्ट्रभाषा
(i) आरंभ
(ii) पक्ष में तथ्य
(iii) आवश्यकता
(iv) उपसंहार ।
(ग) हमारा विद्यालय
(i) प्रारंभ
(ii) शिक्षण व्यवस्था
(iii) पाठ्यक्रमेतर कार्य
(iv) उपसंहार ।
(घ) मित्रता
(i) प्रारंभ
(ii) लाभ
(iii) हानि
(iv) उपसंहार ।
(ङ) गणतंत्र दिवस
(i) भूमिका
(ii) इतिहास
(iii) महत्त्व
(iv) उपसंहार ।
उत्तर –
(क) परिश्रम की महत्ता
(i) भूमिका : मनुष्य के जीवन में परिश्रम का बहुत महत्त्व होता है। हर प्राणी के जीवन में परिश्रम का बहुत महत्त्व होता है। इस संसार में कोई भी प्राणली काम किए बिना नहीं रह सकता है। प्रकृति का कण-कण बने हुए नियमों से अपना-अपना काम करता है। चींटी का जीवन भी परिश्रम से ही पूर्ण होता है। मनुष्य परिश्रम करके अपने जीवन की हर समस्या से छुटकारा पा सकता है। सूर्य हर रोज निकलकर विश्व का उपकार करता है।
(ii) महत्त्व : परिश्रम का बहुत अधिक महत्त्व होता है। जब मनुष्य के जीवन में परिश्रम खत्म हो जाता है तो उसके जीवन की गाड़ी रुक जाती है। अगर हम परिश्रम न करें तो हमारा खुद का खाना-पीना उठना-बैठना भी संभव भी नहीं हो पायेगा। अगर मनुष्य परिश्रम न करे तो उन्नति और विकास की कभी कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। आज के समय में जितने भी देश उन्नति और विकास के स्तर पर इतने ऊपर पहुँच गये हैं वे भी परिश्रम के बल पर ही ऊँचे स्तर पर पहुँचे हैं।
(iii) उपसंहार: तो व्यक्ति परिश्रमी होते हैं वे चरित्रवान, ईमानदार, परिश्रमी, और स्वावलंबी होते हैं। अगर हम अपने जीवन की अपने देश और राष्ट्र की उन्नति चाहते हैं तो आपकी भाग्य पर निर्भर रहना छोड़कर परिश्रमी बनना होगा। जो व्यक्ति परिश्रम करता है उसका स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।
(ख) राष्ट्रभाषा
(i) आरंभ : भाषा के द्वारा मनुष्य अपने विचारों को आदान-प्रदान करता है। अपनी बात को कहने के लिए और दूसरे की बात को समझने के लिए भाषा एक सशक्त साधन है।
(ii) पक्ष में तथ्य : भारत भी अनेक राज्य हैं। उन रथ्यों की अपनी अलग-अलग भाषाएँ हैं। इस प्रकार भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है लेकिन उसकी अपनी एक राष्ट्रभाषा है – हिन्दी 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को यह गौरव प्राप्त हुआ। 26 जनवरी 1950 को भारत को अपना संविधान बना । हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। यह माना कि धीरे-धीरे हिन्दी अंग्रेजी का स्थान ले लेगी और अंग्रेजी पर हिन्दी का प्रभुत्व होगा।
(iii) आवश्यकता : यद्यपि हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी है परन्तु हमारा चिंतन आज भी विदेशी है। हम वार्तालाप करते समय अंग्रेजी का प्रयोग करने में गौरव समझते हैं, भले ही अशुद्ध अंग्रेजी हो। इनमें इस मानसिकता का परित्याग करना चाहिए और हिन्दी का प्रयोग करने में गर्व अनुभव करना चाहिए। हम सरकारी कार्यालय बैंक, अथवा जहाँ भी कार्य करते हैं, हमें हिन्दी में ही कार्य करना चाहिए।
(iv) उपसंहार : जब विश्व के अन्य देश अपनी मातृभाषा में पढ़कर उन्नति कर सकते हैं, तब हमें, राष्ट्र भाषा अपनाने में झिझक क्यों होनी चाहिए। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-व्यवहार हिन्दी में होना चाहिए। स्कूल के छात्रों को हिन्दी पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए। जब हमारे विद्यार्थी हिन्दी प्रेमी बन जायेंगे तब हिन्दी का धारावाह प्रसार होगा। हिन्दी दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए।
(ग) हमारा विद्यालय
(i) प्रारंभ : विद्यालय एक ऐसा स्थान है जहाँ लोग बहुत कुछ सीखते जहाँ लोग बहुत कुछ सीखते हैं और पढ़ते हैं। इसे ज्ञान का मंदिर कहा जाता है। अपने विद्यालय में हम सब जीवन का सबसे ज्यादा समय व्यतीत करते हैं।
(ii) शिक्षण व्यवस्था : मेरे विद्यालय का अरविन्द पब्लिक स्कूल है। मेरा विद्यालय बहुत बड़ा है और भव्य है, यह भुवनेश्वर में स्थित है। यह तीन मंजिला है और इसकी इमारत बहुत ही सुंदर है। यह मेरे घर के पास शहर के केंद्र में स्थित है।
(iii) पाठ्यक्रमेतर कार्य : पहली मंजिल पर एक बड़ा पुस्तकालय है, जो कि पुस्तकों से अच्छी तरह से सुसज्जित है इसमें अनेक विषयों से संबंधित किताब है। यहाँ पर वाद्य यंत्र की कक्षायें भी है इसके अलावा एक विज्ञान प्रयोगशाला है।
(iv) उपसंहार : हमारे प्रधानाचार्य हमारे चरित्र निर्माण, शिष्टाचार, नैतिक शिक्षा, अच्छे मूल्यों को प्राप्त करने और दूसरों का सम्मान करने के लिए 10 मिनट के लिए मीटिंग हॉल में प्रतिदिन प्रत्येक छात्र की कक्षाएँ लेते हैं। इस तरह मेरी प्रधानाचार्य एक अच्छी शिक्षक भी है।
(घ) मित्रता
(i) प्रारंभ : मनुष्य का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है, कदम-कदम पर उसे चुनौतियों का सामाना करना पड़ता है। सारी समस्याओं से वह अकेला नहीं लड़ सकता। उसे कुछ मित्रों की आवश्यकता होती है। लेकिन मित्र वही जो मुसीबत में काम आए। यदि किसी को जीवन में सच्चा, स्वार्थहीन मित्र मिल जाए, तो उसका तो कल्याण ही हो जाएगा। सच्ची मित्रता वह है जहाँ मित्र का दुख अपना दुख लगे और मित्र का सुख अपना सुख । सच्चा मित्र अपने मित्र को कुमार्ग पर चलने से रोकता है और सुपथ का मार्ग दिखाता है। वह उसके गुणों की भरपूर प्रशंसा करता है लेकिन हर दुःख-सुख में अपने मित्र के साथ खड़ा होता है।
(ii) लाभ : अच्छी मित्रता के अनेक लाभ हैं। इससे जीवन का मार्ग सरल हो जाता है। कठिन से कठिन कार्य भी सरल लगने लगता है। जीवन में सुख-आनंद बढ़ता है। सच्ची मित्रता से एक-दूसरे पर विश्वास बढ़ता है। अच्छी मित्रता से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है।
इतिहास सच्ची मित्रता के उदाहरणों से भरा पड़ा है। कृष्ण और सुदामा की सच्ची मित्रता से तो सभी परिचित हैं। कृष्ण राजकुमार थे और सुदामा गरीब ब्राह्मण। लेकिन दोनों की मित्रता के बीच पैसा कभी नहीं आया और कृष्ण भगवान ने सुदामा की सहायता की। ऐसी ही मित्रता रामचन्द्र जी तथा सुग्रीव के बीच भी थी। सच्ची मित्रता के लिए दोनों ओर से सहयोग होना आवश्यक है। दोनों में विश्वास होना जरूरी है। इसके बिना मित्रता सुदृढ़ नहीं हो सकती। मित्रता में विश्वास का होना भी आवश्यक है। जलन, ईर्ष्या, बैर के लिए मित्रता में कोई स्थान नहीं होता है।
(iii) हानि : सच्ची मित्रता यदि हमारा कल्याण कर सकती है तो बुरी मित्रता हमें गर्त में भी गिरा सकती है। वह पैर में बँधी चक्की के समान है। एक व्यक्ति के पैरों में यदि चक्की बाँध दी जाए, तो वह तैर नहीं सकता। पैरों में बँधी चक्की अच्छे से अच्छे तैराक के पैरों में बेड़ियाँ डाल देती है। उसी प्रकार बुरे व्यक्ति की मित्रता विनाश का कारण बनती है तथा पतन की ओर ले जाती है।
(iv) उपसंहार : वास्तव में सच्ची मित्रता का जीवन पर सुखकारी प्रभाव पड़ता है। यह मनुष्य के लिए सुख तथा सम्पन्नता का आधार है। हमें सदा सच्चे मित्रों पर विश्वास रखना चाहिए।
(ङ) गणतंत्र दिवस
(i) भूमिका : 26 जनवरी का राष्ट्रीय पर्व पूरे भारतवर्ष में बड़े हर्षोल्लास और उमंग के साथ मनाया जाता है। इस दिन समूचे देश में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। विद्यालयों, महाविद्यालयों, सरकारी कार्यालयों तथा विभिन्न प्रतिष्ठानों में ध्वज – वंदना का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
(ii) इतिहास : गणतंत्र दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है। यह प्रतिवर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था। जब भारतवर्ष को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणतंत्र घोषित किया गया तब देश का शासन पूर्ण रूप से देशवासियों के हाथ में आया। प्रत्येक नागरिक देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व को अनुभव करने लगा। देश के अभ्युत्थान और इसकी मान-मर्यादा की रक्षा को प्रत्येक व्यक्ति अपनी मान-मर्यादा और अभ्युत्थान समझने लगा। देश के इतिहास में वास्तव में यह दिन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
(iii) महत्त्व : यह दिन हम भारतवासियों के लिए ऐतिहासिक महत्त्व का दिन है। इस दिन सारा राष्ट्र राष्ट्रदेव की अभ्यर्थना में सम्मिलित होता है। इसीलिए, इस पर्व को राष्ट्रीय पर्व कहा जाता है। इस दिन राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सारा राष्ट्र अपना सम्मान व्यक्त करता है। वह राष्ट्रीय ध्वज के आगे अपना सिर झुकाता है। नई दिल्ली के विजय चौक से सुबह परेड का प्रारंभ होता है। राष्ट्रपति ध्वजारोहण करते हैं।
ध्वजारोहण के बाद राष्ट्रीय धुन बजाई जाती है और इसके बाद 31 तोपों की सलामी दी जाती है। इस अवसर पर किसी देश के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री विशेष आमंत्रित अतिथि होते हैं।
(iv) उपसंहार : अपने देश की राजधानी नई दिल्ली में इस राष्ट्रीय पर्व के लिए विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है। इस समारोह की भव्यता देखते ही बनती है। देश के विभिन्न भागों से अनगिनत लोग इस समारोह की शोभा देखने के लिए आते हैं। देश का कोई ऐसा कोना नहीं है जहाँ यह पर्व हर्ष और उल्लास के साथ नहीं मनाया जाता हो। नई दिल्ली में मनाए जानेवाले इस पर्व को दूरदर्शन और आकाशवाणी से प्रसारित किया जाता है।
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