निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत- बिंदुओं के आधार पर लगभग 250-300 शब्दों में निबंध लिखें।
प्रश्न – निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत- बिंदुओं के आधार पर लगभग 250-300 शब्दों में निबंध लिखें।
(क) सत्यवादिता
(i) परिभाषा
(ii) महत्ता
(iii) उपसंहार ।
(ख) वर्षा ऋतु
(i) प्रारंभ
(ii) सौन्दर्य
(iii) उपसंहार |
(ग) सरस्वती पूजा
(i) प्रारंभ
(ii) पर्याय
(iii) उत्सव
(iv) महात्म्य
(घ) महात्मा गाँधी
(i) भूमिका
(ii) बाल्यकाल
(iii) राजनीति
(iv) महत्ता
(v) उपसंहार
(ङ) विज्ञान वरदान या अभिशाप
(i) भूमिका
(ii) लाभ
(iii) हानि
(iv) उपसंहार
उत्तर –
(क) सत्यवादिता
(i) परिभाषा : जिनमें सत्य ईमानदारी जैसे गुण मूल में होते हैं। हमेशा सत्य वचन कहने वाले को सत्यवादी कहा जाता है। भारत में राजा हरिश्चन्द्र को हर कोई जानता है जो अपनी सत्यवादिता के कारण अमर हो गया। जीवन की प्रत्येक परस्थिति चाहे वह हमारे अनुकूल हो या प्रतिकूल उसमें सत्य का साथ न छोड़ना ही सत्यता या सत्यवादिता कहलाता है।
(ii) महत्ता : हमें सत्यवादी की समझने से पूर्व सत्यता के अर्थ स्वरूप और प्रभाव को जानना होगा। सत्यता का अर्थ होता है सत्य का स्वरूप उसे धारण करने वाली सत्यवादी कहलाता है। सत्य शब्द का निर्माण संस्कृत की सत धातु एवं ल्यव प्रत्यय लगने से बनता है। जिसका संस्कृत में आशय अस्ति से होता है।
(iii) उपसंहार : महाभारत में भी सत्यवादी भीष्म पितामह का प्रसंग मिलता है। जिन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के पालन के लिए साहस नहीं छोड़ा। आधुनिक के लिए साहस नहीं छोड़ा। आधुनिक युग में गाँधी को सत्यवादी कहा गया इस तरह हम समझ सकते हैं प्राचीनकाल से लेकर आधुनिक काल तक सत्यवादी लोग अमर हुए।
(ख) वर्षा ऋतु
(i) भूमिका : वसंत को ऋतुओं का राजा और वर्षा को ऋतुओं की रानी कहते हैं। यह ऋतु बड़ी आकर्षक और सुहानी होती है। ग्रीष्मऋतु के बाद इस ऋतु का आगमन होता है। भारत में मानसून की
प्रथम वर्षा प्रायः मध्य जून में होती है। इसके बाद वर्षा होने का क्रम शुरू हो जाता है। सितंबर तक समय-समय पर हलकी या भारी वर्षा होती रहती है। मध्य जून या अंतिम जून से सितंबर तक की अवधि को हम वर्षाऋतु में परिगणित करते हैं।
(ii) महत्व : वर्षा ऋतु सभी ऋतु में सबसे अच्छे ऋतु मानी जाती है, जब भी वर्षा आती है तब धरती का कण कण उमंग से प्रफुल्लित हो उठता है। हमारा देश गर्म प्रांतीय क्षेत्र में आता है इसलिए यहाँ पर सबसे अधिक गर्मी पड़ती है, नदियों में पानी का अभाव है इसलिए पानी की उपलब्धता कम है। इसीलिए हमारे देश में वर्षा ऋतु का महत्व और भी बढ़ जाता है वर्षा ऋतु जब भी आती है तो सभी के मन को भा जाती है। हमारा भारत देश में ज्यादातर खेती ही की जाती है और खेती के लिए पानी की आवश्यकता होती है इस आवश्यकता की पूर्ति सावन और भादो माह में आने वाली बारिश ही करती है। किसानों के लिए तो यह अमृत के समान है क्योंकि उनकी फसल बारिश पर ही निर्भर करती है ।
(iii) लाभ : चढ़ते आषाढ़ में जब आकाश में बादल घिरने लगते हैं तब सबके मन में झमाझम वर्षा की कल्पना से आनंद की लहरें मचलने लगती हैं। किसानों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता! बच्चे उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं और उछल-कूद मचाने लगते हैं। पहली वृष्टि होती है, सबकी प्रतीक्षा सुहागिन होती है। बच्चे झमाझम वर्षा में चहक चहककर स्नान करने लगते हैं। किसान फसलों के संबंध में योजनाएँ बनाने लगते हैं।
(iv) हानि : वर्षा के अभाव में कृषि चौपट हो जाती है। वर्षाधिक्य से भी फसल बरबाद हो जाती है। संतुलित वर्षा कृषि के लिए उपयोगी होती है। वर्षाऋतु विष्णुभार्या की तरह समस्त जगत की पोषिका है। ऋतु में पर्याप्त से अधिक वर्षा होने पर नदियों में बाढ़ आ जाती है, जिससे जान-माल की अपार क्षति होती है।
(v) निष्कर्ष : वर्षाऋतु प्राणदायिनी ऋतु है। जल ही जीवन है और वर्षाऋतु जलदात्री है, इसकी महत्ता स्वयंसिद्ध है। भारत की कृषि पूर्णतः वर्षा पर निर्भर है।
(ग) सरस्वती पूजा
(i) प्रारंभ : सरस्वती पूजा, वसंत पंचमी के मौके पर मनाने वाला एक पर्व हैं। इसलिए हर साल सरस्वती पूजा वसंत पंचमी के दिन ही की जाती है। माँ सरस्वती को विद्या की देवी माना जाता है। इस दिन पीले कपड़े पहने जाते हैं और माता की प्रतिमा की पूजा की जाती है।
(ii) पर्याय: माँ सरस्वती विद्या की देवी हैं इसलिए विद्यार्थियों के लिए यह पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस पूजा में सभी विद्यार्थी उपस्थित होते हैं। इस दिन माता सरस्वती का शृंगार किया जाता है।
(iii) उत्सव : माँ सरस्वती जी की पूजा का विशेष महत्व है हम सभी जानते हैं कि सरस्वती माता विद्या की देवी होती हैं। कहते हैं जो माता सरस्वती की पूजा करता है, उनकी आराधना करता है, उसका पढ़ाई में बहुत ही अच्छी तरह से मन लगता है। में
(iv) महात्म्य : जो सतत ज्ञान के पथ पर अग्रसर होते हैं, वे ही माता सरस्वती के सच्चे पुजारी है। जिनके अंदर सात्विक ज्ञान की पिपासा, है जो सदा नये ज्ञान की खोज में लगे रहते है, व ही माता सरस्वती के वरद-पुत्र है।
(घ) महात्मा गाँधी
(i) भूमिका : महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी था। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी था। मोहनदास की माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गाँधी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता और ‘राष्ट्रपिता’ माना जाता है।
(ii) बाल्यकाल : मोहनदास एक औसत विद्यार्थी थे, हालांकि उन्होंने यदा-कदा पुरस्कार और छात्रवृत्तियाँ भी जीतीं। वह पढ़ाई व खेल, दोनों में ही तेज नहीं थे। बीमार पिता की सेवा करना, घरेलू कामों में माँ का हाथ बँटाना और समय मिलने पर दूर तक अकेले सैर पर निकलना, उन्हें पसंद था।
(iii) राजनीति : सन् 1914 में गाँधी जी भारत लौट आए। देशवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया और उन्हें महात्मा पुकारना शुरू कर दिया। उन्होंने अगले चार वर्ष भारतीय स्थिति का अध्ययन करने तथा उन लोगों को तैयार करने में बिताए जो सत्याग्रह के द्वारा भारत में प्रचलित सामाजिक व राजनीतिक बुराइयों को हटाने में उनका साथ दे सके।
(iv) महत्ता : इस सफलता से प्रेरणा लेकर महात्मा गाँधी ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए किए जाने वाले अन्य अभियानों में सत्याग्रह और अहिंसा के विरोध जारी रखे, जैसे कि ‘असहयोग आंदोलन’ ‘नागरिक अकजा आंदोलन’ ‘दांडी यात्रा’ तथा भारत छोड़ो आंदोलन । गाँधी जी के इन सारे प्रयासों से भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिल गई |
(v) उपसंहार : मोहनदास करमचंद गाँधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। राजनीतिक और सामाजिक प्रगति की प्राप्ति हेतु अपने अर्हिपक विरोध के सिद्धांत के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई।
(ङ) विज्ञान वरदान या अभिशाप
(i) भूमिका : आज युग विज्ञान का युग है। आज विज्ञान ने हमारे जीवन को बाहर भीतर दोनों ओर से प्रभावित किया है। इसने बाहर से हमारे सभी कार्यकलापो को अपने प्रभाव में लिया है, तो भीतर से इसने हमारे मन-मस्तिष्क को अपने अनुकूल बना लिया है। इस प्रकार विज्ञान से हम पूर्णरूप से प्रभावित होकर इसके अनुकूल होने के लिए पूरी तरह बाध्य हो चुके है। इस संदर्भ में यह भी कहना उचित होगा की विज्ञान ने आज इतनी उन्नति कर ली है कि यदि आदि कालीन मनुष्य पृथ्वी पर आ जाए तो उसे शायद यह विशवास ही नही होगा कि यह वही पृथ्वी है ।
(ii) लाभ : विज्ञान की उन्नति अब शेशयवस्था को पार कर चुकी है। अब वह यौवनावस्था में आ चुकी है। फलतः उसने अपनी चरम उन्नति कर ली है। इस तथ्य की पुष्टि में संक्षिप्त रूप से इतना कहा जा सकता है कि अब इसने दुज़रे विधाता का नाम और स्थान प्राप्ति कर लिया। टेस्ट ट्यूब में इच्छानुसार संलन की प्राप्ति करने से लेकर आकाश-पताल के गम्भीर रहस्यों का ज्ञान प्राप्त करने तक विज्ञान ने अब मनुष्य को सृष्टि का दूसरा ब्रह्मा सिद्ध कर दिया है। आज विज्ञान का स्वरूप और उसके कार्य अनंत है। इससे इसने सम्पूर्ण सृष्टि को प्रभावित और चमत्कृत कर दिया है। मतलब आज विज्ञान यत्र-तत्र-स्वत्र वर्तमान है। दुसरे शब्दो मे इसने एक साथ ही थल, वायु और जल पर समान रूप से अधिकार प्राप्त कर लिए है। विज्ञान की सर्व व्यापकता और सार्वभौमिकता इस दृष्टि से भी सिद्ध होती है कि इसने जीवन के भीतरी ओर बाहरी स्वरूपों को भलीभाँति प्रभावित किया है।
(iii) हानि : परंतु दूसरी ओर यदि इसका गलत उपयोग हो तो यह अत्यंत विनाशकारी हो सकता है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी शहरों में परमाणु बम द्वारा हुई विनाश-लीला इसका ज्वलंत उदाहरण है।
(iv) उपसंहार : आज विज्ञान सचमुच में हमारे जीवन के लिए एक अपूर्व और अदभुत वरदान सिद्ध हो रहा है। यह वास्तव में मनुष्य द्वारा उत्पन्न किया गया मनुष्य के लिए बेजोड़ महावरदान स्वरूप हमारी सम्पुर्ण सृष्टि को प्रभावित कर रहा है। भविष्य में भी यह महावरदान स्वरूप सिद्ध होता रहे, इसके लिए यह नितान्त आवश्यक है कि इसके कल्याणकारी पक्ष को ही अपने जीवन मे उतारते चले। जहां और जैसे ही हम इस विनाशकारी और विध्वसंक रूपी से लापरवाह और अनजान होंगे, वही और वैसे ही यह हमारा विज्ञान हमें विनाश की ओर ढकेल देगा। प्रभाव से हम पलक झपकते ही न जाने कितनी ऊर्जा प्राप्त कर लेते है। बिजली वास्तव मे हमारे लिए ‘अल्लादीन का चिराग’ सिद्ध हो रही है ।
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