निर्देशन एवं परामर्श की आवश्यकता एवं महत्त्व की विवेचना करें ।
प्रश्न – निर्देशन एवं परामर्श की आवश्यकता एवं महत्त्व की विवेचना करें ।
(Discuss the need and importance of guidance and Counselling.)
उत्तर – निर्देशन तथा परामर्श किसी-न-किसी रूप में प्राचीन काल से चले आ रहे हैं । अतः, यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इसकी क्या आवश्यकता और महत्त्व है ? सर्वप्रथम निर्देशन तत्पश्चात् परामर्श की आवश्यकता और महत्त्व का निरूपण किया जा रहा है ।

- शैक्षिक दृष्टि से- शैक्षिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता निम्न प्रकार है—
- छात्र असन्तोष की समस्या के निराकरण हेतु ।
- वैयक्तिक विभिन्नता के अनुरूप शिक्षा का विकास ।
- अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या का समाधान ।
- पाठ्यक्रम निर्माण हेतु ।
- शैक्षिक स्तर तथा उपलब्धि का वांछित स्तर बनाए रखने हेतु ।
- सामाजिक दृष्टि से – सामाजिक दृष्टि सेक निर्देशन की आवश्यकता तथा महत्त्व निम्न प्रकार है —
- समुचित स्थानापन्न का महत्त्व |
- महिलाओं को व्यावसायिक समायोजन के समान अवसर प्रदान करना ।
- परिवार की परिवर्तित परिस्थितियाँ ।
- उद्योग एवं भ्रम की परिवर्तित परिस्थितियाँ ।
- जनसंख्या वृद्धि की समस्या ।
- मानवीय संसाधनों का समुचित उपयोग |
- परिवर्तित सामाजिक मूल्य |
- आवकाश का समुचित उपयोग करने की आवश्यकता ।
- मानवीय क्षमता के अपव्यय को नियन्त्रित करने हेतु आवश्यक ।
- नगरीकरण की समस्या ।
- मनोवैज्ञानिक दृष्टि से – मनौवैज्ञानिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता निम्न प्रकार है –
- व्यक्तित्व का विकास करने में सहायक ।
- वैयक्तिक विभिन्नताओं के अनुसार विकास ।
- संवेगात्मक सन्तुलन बनाये रखना ।
- निर्देशन मनुष्य की आधारभूत आवश्यकता ।
- व्यक्ति की भावात्मक समस्याओं के समाधान हेतु ।
- राजनैतिक दृष्टि से – राजनैतिक दृष्टि से निर्देशन की आवश्यकता निम्न प्रकार है –
- प्रजातन्त्र की रक्षा हेतु ।
- देश की रक्षा हेतु ।
- राष्ट्रीय एकता की भावना के विकास की आवश्यकता ।
- अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास हेतु ।
परामर्श के आवश्यकता तथा महत्त्व (Need and Importance of Counselling)— परामर्श की आवश्यकता तथा महत्त्व निम्न प्रकार है—
- परामर्शप्रार्थी की अन्तर्दृष्टि के विकास हेतु ।
- आत्मविश्वास हेतु ।
- निर्णय क्षमता के विकास हेतु ।
- प्रोत्साहन हेतु ।
- हीन भावना से उबारने हेतु ।
- प्रेम तथा सौहार्द्रपूर्ण वातावरण के निर्माण हेतु ।
- उत्तरदायित्वों को स्वीकारने तथा निर्वहन करने की क्षमता के विकास हेतु ।
- व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान हेतु ।
- व्यक्तिगत रुचियों, आवश्यकताओं तथा योग्यताओं को दिशा प्रदान करने हेतु ।
- सामाजिकता की भावना के विकास ।
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