पढ़ने की चरणबद्ध प्रक्रिया को समझाइये ।

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प्रश्न – पढ़ने की चरणबद्ध प्रक्रिया को समझाइये ।
अथवा, पढ़ने की प्रक्रिया और विभिन्न सोपानों में निम्नलिखित का तात्पर्य एवं महत्त्व बताइये –
  • (1) लिपि पहचानना
  • (2) अनुमान लगाना
  • (3) अर्थ समझना
  • (4) पढ़कर सार प्रस्तुत करना
  • (5) पढ़कर प्रतिक्रिया देना ।
उत्तर – (1) लिपि पहचानना
लिपि पहचानना, पठन प्रक्रिया का सर्वप्रथम सोपान है । भाषा के ध्वन्यात्मक प्रतीकों को लिपि कहा जाता है । भाषायी पठन प्रक्रिया में बालक को सर्वप्रथम ध्वनियों और उसके प्रतीकों से परिचित कराया जाता है । पिलप पहचानने की प्रक्रिया के विभिन्न चरण हैं, जो इस प्रकार हैं –
  1. भाषा के वर्गों की पहचान कराना तथा उनके उच्चारण से परिचित कराना । लिखित भाषा की अन्तिम इकाई वर्ग है । प्रत्येक ध्वनि को लिखित रूप में अभिव्यक्त करने के लिए जो चिह्न या प्रतीक प्रयुक्त होता है, उसे वर्ण कहते हैं। सभी वर्गों के समूह को वर्णमाला कहा जाता है । जिस रूप में इन्हें लिखा जाता है उसे लिपि कहते हैं। हिन्दी भाषा की लिपि को देवनागरी नाम से पुकारा जाता है ।
  2. लिपि का दूसरा रूप है— उसकी शब्दावली । शब्द की व्यक्ति के भावों, विचारों एवं अनुभूतियों के प्रशासन के लिए प्रतीक का कार्य करते हैं। किसी भी जाति के अनुभव शब्दों के रूप में सुरक्षित रहते हैं। ध्वनियों / वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहा जाता है ।
  3. लिपि व्यवस्था का तीसरा सोपान वाक्य रचना है । वाक्यों के द्वारा ही भाव या विचार सम्प्रेषण का कार्य पूर्ण हो जाता है । शब्दों का ऐसा समूह जो किसी पूर्ण अर्थ को व्यक्त करता है, वाक्य कहलाता है ।
  4. अनुच्छेद भाषा का अप्रिय चरण है । सार्थक वाक्य मिलकर जब किसी विस्तृत अर्थ को व्यक्त करते हैं तब उसे अनुच्छेद कहा जाता है। अनुच्छेदों से मिलकर किसी पाठ की रचना होती है ।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि लिपि भाषा-भवन का मूलाधार है। इसके बिना लिखित भाषा की कल्पना नहीं की जा सकती। अनुभवों का संचय नहीं किया जा सकता है। ज्ञान को भावी पीढ़ियों तक नहीं पहुँचाया जा सकता। अतः लिपि की पहचान कराना भाषा सीखने के लिए अनिवार्य है ।

(2) अनुमान लगाना

पठन की यह एक प्रमुख विशेषता । किसी लिखित सामग्री को पढ़ते समय पाठक । को आगामी शब्दों का अनुमान लगाते हुए पढ़ना होता है । इससे पठन में द्रुतता आती है। इसके अभाव में पठन में प्रवाहपूर्णता का अभाव ही रहता है । यह अनुमान दो शब्दों में लगाना है—(i) शब्द के स्तर पर, (ii) अर्थ के स्तर पर ।

शब्द के स्तर पर अनुमान की प्रक्रिया में प्रवीणता आ जाने पर पठन में तीव्रता आती । अतः विद्यार्थियों को इसका अधिकाधिक अभ्यास कराया जाना चाहिए । है।

अर्थ के स्तर पर अनुमान लगाने से आशय पढ़ते हुए पाठ्य सामग्री का अर्थ ग्रहण करने से है। विस्तृत पठन के लिए अर्थ का अनुमान लगाने में कुशल होना अत्यावश्यक है। शब्द और अर्थ दोनों के स्तर पर अनुमान लगाना का अभ्यास छात्रों को कराया जाना चाहिए। इससे उनमें पठन सम्बन्धी परिपक्वता आ जायेगी ।

(3) अर्थ समझना

इसे पढ़ने की प्रक्रिया का तीसरा सोपान कहा जा सकता है। पढ़ने की प्रक्रिया में प्रतीकों की पहचान व अनुमान लगाने के पश्चात् अर्थ समझना ही पठन का उद्देश्य हो है। इसके बिना पठन निरर्थक व अनुपयोगी होता है । पठन की सार्थकता ही पाठ्य-सामग्री का अर्थ ग्रहण करते हुए पढ़ने में है। अन्यथा की स्थिति में पढ़ना दिखावे की क्रिया मात्र रह जाती है। भाषा की सम्पूर्णता पाठ्य विषय के अर्थ अवबोधन में ही होती है ।

अर्थ-अवबोधन या अर्थ समझने से आशय उस भाषाई कौशलात्मक प्रक्रिया से है जिसके अन्तर्गत पाठक ध्वन्यात्मक प्रतीकों का उच्चारण करते हुए, शब्दों और वाक्यों का पूर्वापर सम्बन्ध जोड़ते हुए पाठ्य विषय का सुसंगत व सटीक अर्थ स्पष्टत: ग्रहण करता है। एक प्रशिक्षु छात्राध्यापक को चाहिए कि वह अर्थ समझने की प्रक्रिया में पारंगत हो ताकि वह छात्रों को पाठ्य-विषय को सुसंगत अर्थ ग्रहण करने में समर्थ बना सके।

(4) पढ़कर सार प्रस्तुत करना

जब अध्यापक किसी पाठ को पढ़कर, उसका सुसंगत अर्थ समझकर सार ग्रहण करके छात्रों के सामने उसकी प्रस्तुति करता है तो उसे सार प्रस्तुति कहते हैं। सार ग्रहण करने के लिए गहन पठन की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए तो विस्तृत पठन ही पर्याप्त होता है। कम से कम समय में पढ़कर सार ग्रहण किया जा सकता है। एक अध्यापक को इस कौशल में दक्ष होना चाहिए ताकि वह छात्रों को सम्बन्धित विषय वस्तु का सार प्रस्तुत करके छात्रों में उस विषय के प्रति रुचि विकसित कर सके ।

(5) पढ़कर प्रतिक्रिया देना

पाठ्य-विषय को पढ़कर समझना और समझ कर सार ग्रहण करना तदोपरान्त उस पर अपनी प्रतिक्रिया देना पठन प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण सोपान है ।

इस प्रक्रिया में परिपक्वता प्राप्त कर लेने के बाद ही भाषा पर अधिकार का गुण उत्पन्न होता है । इस अवस्था में पहुँचकर अध्यापक अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करने में पूर्ण सफल हो जाता है । एक अध्यापक का दायित्व होता है कि वह अपने छात्रों में किसी विषय को पढ़कर उसपर प्रक्रिया देने की क्षमता का विकास करे। अतः अध्यापक को चाहिए कि वह विभिन्न व्यावहारिक विधियों को अपना कर अपने छात्रों में इस गुण का विकास करे ।

पढ़कर प्रतिक्रिया देने से तात्पर्य उस गुण से है जिसमें विद्यार्थी किसी विषय को पढ़कर उसका अभीष्ट समुचित व सुसंगत अर्थ ग्रहण करता है। उसका सार समझता है, उसका विवेचन करता है तत्पश्चात् उस पर अपनी प्रतिक्रिया देता है ।

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