पाठ्यक्रम के मूल्यांकन पर प्रकाश डालें ।

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प्रश्न – पाठ्यक्रम के मूल्यांकन पर प्रकाश डालें । 
उत्तर- पाठ्यक्रम संरचना का अंतिम सोपान सम्पूर्ण प्रक्रिया का उद्देश्यों की प्राप्ति की दृष्टि से मूल्यांकन करना है। उद्देश्यों के निर्धारण एवं स्पष्ट कथन, अधिगम- अनुभवों एवं अन्तर्वस्तु के चयन तथा अन्तर्वस्तु के संग्रथन एवं संगठन के पश्चात् पाठ्यक्रम को कार्यरूप दे दिया जाता है, परंतु इतने से ही पाठ्यक्रम निर्माताओं के कार्य की इतिश्री नहीं हो जाती है । पाठ्यक्रम को कार्यरूप देने के बाद यह भी जानना आवश्यक होता है कि उस पाठ्यक्रम से विद्यार्थियों में कितना अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन हुआ है और कितना नहीं हो सका है । इस कार्य को मूल्यांकन की संज्ञा दी जाती है। पाठ्यक्रम के मूल्यांकन के प्रमुख रूप से दो लाभ हैं –
  1. इसके द्वारा विद्यार्थियों से अपेक्षित तथा उनमें हो चुके व्यवहारगत परिवर्तनों की तुलना हो जाती है । इसके अभाव में यह नहीं कहा जा सकता है कि उद्देश्यों की पूर्ति हुई है अथवा नहीं तथा यदि हुई है तो किस अंश अथवा सीमा तक । इससे यह भी पता चल जाता है कि ज्ञान, अवबोध, कौशल, मूल्य अभिवृत्ति आदि सम्बन्धी उद्देश्य कहाँ तक पूर्ण हो सके हैं ।
  2. चूँकि पाठ्यक्रम की प्रक्रिया सतत् चलती रहती है। किसी वृत्त पर अंकित बिन्दुओं के समान उसके क्रमिक सोपान एक-दूसरे के बाद आते चले जाते हैं अर्थात् इसका न कोई आदि होता है और न अन्त । इस दृष्टि से मूल्यांकन भावी कार्य के लिए उपयोगी निर्देश देता है। मूल्यांकन के आधार पर ही यह निर्णय किया जा सकता है कि जो कुछ प्राप्त हो चुका है उसे कैसे आगे बढ़ाया जाये तथा जिसकी प्राप्ति नहीं हो सकी है, उसके लिए किस तरह के परिवर्तन किये जायें ।

मूल्यांकन, मापन एवं परीक्षण (Evaluation, Measurement and Testing)सामान्यतया मूल्यांकन, मापन और परीक्षण को एक ही अर्थ में प्रयोग कर लिया जाता है, किन्तु ये प्रक्रियाएँ भिन्न-भिन्न हैं । अतः मूल्यांकन की विस्तृत विवेचना में जाने से पूर्व यह आवश्यक है कि इस शब्दावली के संभ्रम को दूर कर लिया जाये ।

मूल्यांकन एक गुणात्मक प्रक्रिया है तथा इन तीनों में सबसे अधिक व्यापक संकल्पना है । इसके अन्तर्गत केवल अपेक्षित एवं प्राप्त उद्देश्यों की तुलना की प्रक्रिया ही सम्मिलित नहीं हैं, बल्कि परिवर्तनों की प्रकृति एवं वांछनीयता के बारे में निर्णय करना भी सम्मिलित है । इस प्रकार निर्णयों का शैक्षिक उद्देश्यों से सीधा सम्बन्ध है, किन्तु ये निर्णय परीक्षण के आधार पर ही लिये जा सकते हैं। अतः परीक्षण, मूल्यांकन की पूर्व आवश्यकता है। परीक्षण से, परिवर्तन हुआ कि नहीं? यदि हुआ तो कितना तथा किस दिशा में ? आदि प्रश्नों के उत्तर प्राप्त होते हैं, किन्तु क्या अधिगम- अनुभव उद्देश्य की दृष्टि से उपयुक्त था ? यह मूल्यांकन से सम्बन्धित है, क्योंकि इसमें निर्णय लेने की बात निहित है ।

इसी प्रकार अलग-अलग, किन्तु समान वर्गों के लिए अधिगम- अनुभवों एवं विषय-सामग्री के एक से अधिक समूह प्रयुक्त किये जाने पर परीक्षण से यह पता चल सकता है कि विभिन्न वर्गों में किस प्रकार का और कितना अंतर है, जबकि मूल्यांकन से इस बात का पता चल सकेगा कि कौन-सा समूह अथवा कौन-सी विधि अधिक उपयुक्त है ।

मापन परीक्षण का एक सीमित रूप है । यह किसी मापक पैमाने (Scale) पर आधारित होता है। मापन या परीक्षण के द्वारा कुछ विशिष्ट गुणों की ही जानकारी प्राप्त की जा सकती है, जैसे-ऊँचाई, भार, बुद्धि-लब्धि आदि, किन्तु ईमानदारी, आत्म-विश्वास, सुन्दरता आदि गुणों का मापन नहीं किया जा सकता है। इन गुणों का तो मूल्यांकन ही किया जा सकता है । मूल्यांकन के अन्तर्गत मापन एवं परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है । अतः मूल्यांकन की प्रक्रिया गुणात्मक के साथ-साथ परिमाणात्मक भी है । यह मूल्यांकन की परिस्थितियों पर निर्भर करता है ।

मापन एवं परीक्षण की प्रविधियाँ सीमित हैं । मापन के अधिकांशतः परीक्षणों का ही प्रयोग होता है, जबकि मूल्यांकन में अनेक प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे- परीक्षण, रेटिंग, निरीक्षण, साक्षात्कार, अनुसूची, प्रश्नावली आदि । शिक्षा के अन्तर्गत मापन एवं परीक्षण द्वारा छात्रों की कमजोरियों का निदान किया जाता है। जबकि मूल्यांकन द्वारा प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता एवं गुणों का स्तर ज्ञात किया जाता है |

पाठ्यक्रम का मूल्यांकन (Evaluation of Curriculum) – पाठ्यक्रम के मूल्यांकन का तात्पर्य शैक्षिक प्रयासों के परिणामस्वरूप उत्पन्न व्यवहारगत परिवर्तनों की प्रकृति, दिशा तथा सीमा के प्रमाण प्राप्त करना तथा उनको पाठ्यक्रम प्रक्रिया के पक्षों में सुधार लाने के लिए मार्ग-दर्शक के रूप में प्रयुक्त करना है। स्पष्ट है कि यह प्रमाण केबल छात्रों में हुए परिवर्तनों से ही प्राप्त किया जा सकता है। कुछ स्थितियों में इनका मापन वस्तुनिष्ठ रूप में तथा संख्यात्मक रूप में करना सम्भव है, किन्तु अधिकांशतः गुणात्मक मापन ही किया जा सकता है तथा इसे ही पर्याप्त माना जाता है ।

विद्यार्थियों के व्यक्तिगत अथवा वर्गगत व्यवहार परिवर्तन के साथ-साथ विद्यालय के उद्देश्यों तथा उन्हें प्राप्त करने के लिए प्रयुक्त अधिगम-अनुभवों, अन्तर्वस्तु संगठन तथा शिक्षण-विधियों के सम्बन्ध में निर्णय लेना भी मूल्यांकन के अन्तर्गत आता है। अतः शिक्षा में मूल्यांकन के प्रमुख क्षेत्र निम्नवत् हैं

  1. छात्रों में व्यवहारगत परिवर्तन तथा इन व्यवहारों को प्रभावित करने के लिए उत्तरदायी कारक ।
  2. मूल्यांकन कार्यक्रम का छात्र – अभिप्रेरणा तथा अधिगम पर प्रभाव।
  3. पाठ्यक्रम प्रक्रिया के सभी पक्षों का मूल्यांकन

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