पाठ्यक्रम, पाठ्यवस्तु एवं पाठ्यचर्या में संबंध की विवेचना करें ।

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प्रश्न – पाठ्यक्रम, पाठ्यवस्तु एवं पाठ्यचर्या में संबंध की विवेचना करें । 

उत्तर – पाठ्यक्रम के लिए ‘करीक्युलम’ के साथ-साथ ‘सिलेबस’ (Syllabus) तथा ‘कोर्स ऑफ स्टडी’ (Course of Study) शब्दों को भी प्रयुक्त किया जाता हैं, किन्तु इन तीनों में अन्तर है । जब तक पाठ्यक्रम (करीक्युलम) शब्द पाठ्य-विषयों के सीमित अर्थ में प्रयुक्त किया जाता रहा तब कि ये तीनों शब्द प्रायः समानार्थी माने जाते रहे, परन्तु पाठ्यक्रम शब्द की संकल्पना में व्यापकता (जैसी कि पूर्व में चर्चा की जा चुकी है) आ जाने के फलस्वरूप इन शब्दों के प्रयोग में भिन्नता आ गई है ।

पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वे सभी अनुभव आ जाते हैं जिन्हें छात्र विद्यालयी जीवन में प्राप्त करता है तथा जिनमें कक्षा के अन्दर एवं बाहर आयोजित की जानेवाली पाठ्य एवं पाठ्येतर क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। जबकि पाठ्य-वस्तु (सिलेबस) में निर्धारित पाठ्य- -विषयों से सम्बन्धित क्रियाओं का ही समावेश होता है । इस प्रकार पाठ्य-वस्तु के अन्तर्गत किसी विषय- वस्तु का विवरण शिक्षण के लिए तैयार किया जाता है जिसे शिक्षक छात्रों को पढ़ाता है।

पाठ्यक्रम और पाठ्य-वस्तु के अन्तर को एक विद्वान ने भिन्न दृष्टि से प्रस्तुत किया है । उसके अनुसार, “पाठ्य-वस्तु पूरे शैक्षिक सत्र में विभिन्न विषयों में शिक्षक द्वारा छात्रों को दिये जाने वाले ज्ञान की मात्रा के विषय में निश्चित जानकारी प्रस्तुत करता है जबकि पाठ्यक्रम यह प्रदर्शित करता है कि शिक्षक किस प्रकार की शैक्षिक क्रियाओं के द्वारा पाठ्य-वस्तु की आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा। दूसरे शब्दों में पाठ्य-वस्तु ( सिलेबस ) शिक्षण की विषय-वस्तु का निर्धारण करता है तथा पाठ्यक्रम उसे देने के लिए प्रयुक्त विधि का ।

” हेनरी हरेप (Henry Harrap) के अनुसार, “पाठ्य-वस्तु (सिलेबस) केवल मुद्रित संदर्शिका है जो यह बताती है कि छात्र को क्या सीखना है ? पाठ्य-वस्तु की तैयारी पाठ्यक्रम विकास के कार्य का एक तर्कसम्मत सोपान है । ”

यूनेस्को (UNESCO) के एक प्रकाशन Preparing Textbook Manuscripts’ (1970) में पाठ्यक्रम एवं पाठ्य-वस्तु के अन्तर को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है-

“पाठ्यक्रम अध्ययन हेतु विषयों, उनकी व्यवस्था एवं क्रम का निर्धारण करता है और इस प्रकार एक सीमा तक मानविकी एवं विज्ञान में सन्तुलन तथा अध्ययन विषयों में एकरूपता सुनिश्चित करता है, जिससे विषयों के बीच अन्तर्सम्बन्ध स्थापित करने में सुविधा होती है। इसके साथ ही पाठ्यक्रम, विभिन्न विषयों के लिए विद्यालय की समय अवधि का आवंटन, प्रत्येक विषय को पढ़ाने के उद्देश्य, क्रियात्मक कौशलों को प्राप्त करने गति तथा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के स्कूलों के शिक्षण में विभेदीकरण का निर्धारण करता है । विकासशील देशों में स्कूल पाठ्यक्रम वहाँ की विकास की आवश्यकताओं से सीधे जुड़ा हुआ होता है । पाठ्य-वस्तु निर्धारित पाठ्य-विषयों के शिक्षण हेतु अन्तर्वस्तु, उसके ज्ञान की सीमा, छात्रों द्वारा प्राप्त किये जाने वाले कौशलों को निश्चित करता है तथा शैक्षिक सत्र में पढ़ाये जाने वाले व्यक्तिगत पहलुओं एवं निष्कर्षों की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है ……… । . पाठ्य-वस्तु किसी पाठ्य-विषय के लिए अधिगम के एक स्तर विशेष पर पाठ्यक्रम का एक परिष्कृत एवं विस्तृत रूप होता है । ”

निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि पाठ्यक्रम के अन्तर्गत समाहित होने वाली कुछ क्रियाएँ पाठ्य-वस्तु के क्षेत्र से बाहर रह जाती हैं तथा पाठ्य-वस्तु उसका एक अंश बनकर रह जाता है । उदाहरणार्थ- हाईस्कूल में पाठ्यक्रम में गणित एक विषय के रूप में सम्मिलित किया जाता है, किन्तु गणित विषय के अन्तर्गत जिन उप-विषयों (अंकगणित, बीजगणित) की एक निश्चित पाठ्य सामग्री अथवा प्रकरणों को पढ़ाने के लिए निर्धारित किया जाता है उसे गणित की पाठ्य-वस्तु कहा जायेगा। इस प्रकार पाठ्य-वस्तु का सम्बन्ध ज्ञानात्मक पक्ष के विकास से होता है, जबकि पाठ्यक्रम का सम्बन्ध बालक के सम्पूर्ण विकास से होता है ।

विद्यालय के अन्तर्गत शिक्षण क्रियाओं का सम्बन्ध ज्ञानात्मक पक्ष से होता है । खेलकूद तथा शारीरिक प्रशिक्षण का सम्बन्ध शारीरिक विकास से होता है । सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास हेतु सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं विशेष पर्वों को मानने का आयोजन किया जाता है। एन. सी. सी. तथा स्काउटिंग आदि के कार्यक्रमों से नेतृत्व के गुणों का विकास होता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम के अन्तर्गत विद्यालय की समस्त क्रियाओं को समाविष्ट किया जाता है तथा इसका स्वरूप व्यापक होता है जबकि पाठ्य-वस्तु का स्वरूप सुनिश्चित होता है तथा इसके अन्तर्गत केवल शिक्षण विषयों के प्रकरणों को ही सम्मिलित किया जाता है ।

पाठ्यचर्या (Course of Study)- पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम के लिए प्रचलित शब्दों में अपेक्षाकृत नया शब्द है । इसका प्रयोग पाठ्यक्रम के क्रमबद्ध, स्पष्ट, विषयवार एवं विस्तृत स्वरूप के लिए किया जाता है ।

पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम के उस पक्ष को कहा जाता है जिसे कक्षा में प्रयोग हेतु व्यवस्थित किया जाता है। इसमें अन्तर्वस्तु के अतिरिक्त शिक्षकों, छात्रों तथा प्रकाशकों के उपयोगार्थ सहायक सामग्री एवं कार्य – विधि आदि के निर्देश भी सम्मिलित होते हैं। गुड के शिक्षा – शब्दकोश के अनुसार पाठ्यचर्या एक कार्यालयी संदर्शिका होती है, जो किसी कक्षा को किसी विषय के शिक्षण में सहायता के लिए किसी विद्यालय विशेष अथवा व्यवस्था के लिए तैयार की जाती है। इसके अन्तर्गत पाठ्यक्रम के लक्ष्य, अपेक्षित परिणाम, अध्ययन सामग्री की प्रकृति एवं विस्तार तथा उपयुक्त सहायक सामग्री एवं पाठ्य पुस्तकों के साथ-साथ अनुपूरक पुस्तकों, शिक्षण विधियों, सहगामी क्रियाओं तथा उपलब्धि मापन के सुझाव भी सम्मिलित किये जाते हैं। कुछ विद्वानों द्वारा पाठ्य-वस्तु (Syllabus) एवं पाठ्यचर्या (Course of Study) को एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है। वर्तमान समय में ‘सिलेबस’ के स्थान पर ‘कोर्स आफ स्टडी’ का प्रयोग अधिक किया जाने लगा है।

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