पियाजे के विकास सिद्धान्त की विवेचना करें ।

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प्रश्न – पियाजे के विकास सिद्धान्त की विवेचना करें ।
(Discuss the development theory of Piaget.)

उत्तर – पियाजे (Jean Piaget, 1952) के अध्ययनों का आधुनिक बाल विकास विषय पर अधिक प्रभाव पड़ा है। उसने मनोवैज्ञानिकों का ध्यान विकास की अवस्थाओं की ओर तथा संज्ञान (Cognition) के महत्त्व को आकर्षित किया है। पियाजे के सिद्धान्त के कुछ प्रमुख विचार निम्न प्रकार से हैं –

1. निर्माण और खोज (Construction & Invention)

प्रत्येक बालक अपने अनुभवों को अर्थ पूर्ण बनाने के लिए क्रियाशील होता है । वह यह जानने के लिए प्रयत्नशील होता है कि उसके विचार सम्बद्धतापूर्ण (Coherent whole) से मेल खाते हैं या नहीं। बच्चे उन व्यवहारों और विचारों की समय-समय पर खोज और निर्माण करते रहते हैं, जिन व्यवहारों और विचारों का उन्होंने कभी पहले प्रत्यक्ष नहीं किया होता है। पियाजे का विचार है कि, ज्ञानात्मक विकास केवल नकल (Copying) न होकर खोज (Invention) पर आधारित है। नवीनता या खोज (Novelty of Invention) को उद्दीपक-अनुक्रिया सामान्यीकरण के आधार पर नहीं समझाया जा सकता है; उदाहरण के लिए, एक चार साल का बालक यदि भिन्न-भिन्न आकार के प्यालों को प्रथम बार क्रमानुसार लगा देता है, तो यह उसके बौद्धिक विवृद्धि की खोज और निर्माण से सम्बन्धित है।

2. कार्य क्रिया का अर्जन (Acquisition of Operation)

आपरेशन का तात्पर्य — उस विशिष्ट प्रकार के Mental Routine से हैं, जिसकी मुख्य विशेषता उत्क्रमणशीलता (Reversibility) है। प्रत्येक आपरेशन का एक तर्कपूर्ण विपरीत होता है; उदाहरण के लिए, एक मिट्टी के चक्र को दो भागों में तोड़ना तथा दो टूटे हुए भागों को पुनः एक पूर्ण चक्र के रूप में जोड़ना एक आपरेशन है। आपरेशन की सहायता से बच्चे मानसिक रूप से वहाँ पुनः पहुँच सकते हैं जहाँ से उन्होंने कार्य प्रारम्भ किया था। बौद्धिक विवृद्धि (Growth) का केन्द्र इन्हीं आपरेशन्स का अर्जन है। पियाजे का विचार है कि, जब तक बालक किशोरावस्था तक नहीं पहुँच जाता है तब तक वह भिन्न-भिन्न विकास-अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न वर्गों के आपरेशन्स का अर्जन करता रहता है। एक विकास अवस्था से दूसरी में पदार्पण के लिए निम्न दो मेकेनिज्म्स आवश्यक हैं-

(i) सात्मीवरण (Assimilation)– सात्मीकरण का अर्थ है- बालक में उपस्थित एक विचार (Idea or Schema) में किसी नये विचार या वस्तु का समावेश हो जाना। पियाजे का विचार (Idea or Schema) का अर्थ है, बालक के प्रत्यक्षात्मक गत्यात्मक समन्वय (Perceptual-motor Coordinations ) से है। प्रत्येक बालक में प्रत्येक आयु स्तर पर कुछ-न-कुछ क्रियाओं या आपरेशन्स के सेट विद्यमान होते हैं। इन पुराने आपरेशन्स में नए विचार या क्रियाओं का समावेश हो जाता है। अतः सात्मीकरण का अभिप्राय पुराने विचारों और आदतों को नई वस्तुओं में प्रयुक्त करना है तथा घटनाओं को वर्तमान विचारों को, एक भाग के रूप में समझना है।

(ii) व्यवस्थापन तथा सन्तुलन स्थापित करना (Accommodation and Equilibration) व्यवस्थापन का अर्थ नई वस्तु या विचार के साथ समायोजन करना है या अपने विचारों और क्रियाओं को नये विचारों और वस्तुओं में फिट करना है। बालकों में बौद्धिक विवृद्धि जैसे-जैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे वह नई परिस्थितियों के साथ समायोजन, करना सीखता है। मानसिक विवृद्धि में सात्मीकरण और व्यवस्थापन में उपस्थित अथवा उत्पन्न तनाव का हल (Resolution) निहित होता है। यह तनाव नई परिस्थितियों में पुरानी अनुक्रियाओं के प्रयोग के समय उत्पन्न होते हैं या उस समय उत्पन्न होते हैं जबकि बालक नई अनुक्रियाओं को नई समस्याओं के समाधान में फिट करता है। बालक हर समय नई घटनाओं या समस्याओं के साथ अपने को व्यवस्थापित करता रहता है, जिससे उसका बौद्धिक विकास परिपक्वता की ओर अग्रसर होता है। इस प्रकार का व्यवस्थापन सन्तुलन (Equilibration) कहलाता है।

3. क्रमिक विकासात्मक अवस्थाएँ (Sequential Development Stages)

पियाजे ने विकास की चार मुख्य अवस्थाओं का वर्णन किया है-
  1. सेन्सोरीमोटर अवस्था (Sensorymotor Period) — यह जन्म से चौबीस महीने तक की अवस्था है। इस आयु में उसकी बुद्धि उसके कार्यों द्वारा व्यक्त होती है; उदाहरण के लिए, चादर पर बैठा बालक चादर पर पड़े दूर खिलौने को प्राप्त करने के लिए चादर को खींचकर खिलौना प्राप्त कर लेता है। पियाजे के अनुसार यह एक बौद्धिक कार्य है। पिवाजे इस कार्य को आपरेशन न कहकर Schema of action की संज्ञा देते हैं। इस आयु के बच्चों में Schema of action के अनेक सेट पाए जाते हैं। पियाजे ने सेन्सोरी – मोटर अवस्था को पुनः निम्न छः अवस्थाओं में विभाजित किया है – (1) Reflexes — यह जन्म से एक माह तक ही अवस्था है। (2) Primary Circular Reactions—यह एक से तीन माह तक की अवस्था है। (3) Secondary Circular Reactions—यह चार से छह माह तक की (4) Co-ordination of Secondary Reaction — यह सात से दस माह तक की अवस्था है। (5) Teritiary Circular Reaction — यह ग्यारह से अठारह माह तक की अवस्था है। (6) Final Stage of this Period— यह अवस्था वह है जो बालक लगभग चौबीस साह की आयु में प्राप्त करता है।
  2. प्री-आपरेशनल अवस्था (Preoperational Period) — यह दो से सात वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था में वह नई सूचनाओं और अनुभवों का संग्रह करता है। वह पहली अवस्था की अपेक्षा अधिक समस्याओं का समाधान करने योग्य हो जाता है। इस अवस्था में उसमें आत्मकेन्द्रिता (Egocentricity) का उदय होता है। इस अवधि के अन्त तक जब बालक में कुछ सामाजिक विकास उन्नत हो जाता है तब उसकी यह आत्मकेन्द्रिता कुछ कम होने लग जाती है (Piaget and Inhelder, 1969; Flavall, 1974)। इस अवस्था मुख्यतः भाषा और वस्तुओं तथा घटनाओं के अर्थ का विकास होता है। इस अवस्था का वर्णन करते हुए लाइवर्ट (Liebert. et al., 1977) ने लिखा है कि इस अवस्था में बच्चा कुछ भौतिक आपरेशन्स की उत्क्रमणशीलता को देखने में असफल होता है। वह ट्रान्सफारमेशन्स के स्थान पर अवस्थाओं का प्रत्यक्षीकरण करता है और वह समस्या के एक अकेले विवरण पर ध्यान केन्द्रित करता है वह समस्या के दूसरे आयाम पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता है । यद्यपि पियाजे का विचार है कि, छ: वर्ष से कम आयु के बालकों में संज्ञानात्मक परिपक्वता का अभाव पाया जाता है। इस अभाव के कारण वह परम्परागत समस्याओं को तभी सीख पाते हैं जब उन्हें कुछ शिक्षण प्रशिक्षण दिए जाते हैं। (During this period the child fails to see the reversibility of certain physical operations, perceives states rather than transformations, and tends to focus on a single detail of a problem without being able to sift to another dimension. Although Piaget believed that children below the age of six lacked the cognitive maturity to learn conservation problems, several training procedures have been successful in teaching them)!
  3. कान्क्रीट आपरेशन अवस्था (Concrete Operation Period) — यह अवस्था सात से ग्यारह वर्ष तक की अवस्था है। उस अवस्था में वह यह विश्वास करने लगता है कि लम्बाई, भार अंक आदि स्थिर रहते हैं। वह अनेक कार्यों की मानसिक प्रतिभा प्रस्तुत कर सकता है। वह किसी पूर्व और उसके अंश के सम्बन्ध में तर्क कर सकता है। संक्षेप में वह अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने के लिए अनेक नियमों को सीख लेता है।
  4. फॉरमल आपरेशन्स अवस्था (Formal Operations Period) — यह अवस्था ग्यारह वर्ष से प्रौढ़ावस्था तक की अवस्था है। इस अवस्था में वह परिकल्पनात्मक ढंग से समस्याओं पर विचार कर सकता है। वह अनेक आपरेशन को संगठित कर उच्च स्तर के आपरेशन का निर्माण कर सकता है और विभिन्न प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए अमूर्त नियमों का निर्माण कर सकता है। संक्षेप में वह इस योग्य हो जाता है कि एक समस्या विशेष का प्रत्येक सम्भव तरीके से समाधान कर सके।

उपरोक्त चारों विकास-अवस्थाओं में निरन्तरता है और प्रत्येक अवस्था अपने से पहली अवस्था से सम्बन्धित और आश्रित है।

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