प्रतिभाशाली बालक से आप क्या समझते हैं ? प्रतिभाशाली बालकों हेतु विशिष्ट कक्षा-कक्ष शिक्षण की विवेचना करें ।
- स्किनर एवं हैरीमैन के अनुसार “प्रतिभाशाली ” शब्द का प्रयोग उन 1 प्रतिशत बालकों के लिए किया जाता है, जो सबसे अधिक बुद्धिमान होते हैं।
- क्रो एवं क्रो के अनुसार प्रतिभाशाली बालक दो प्रकार के होते हैं –
- वे बालक, जिनकी बुद्धि-लब्धि 130 से अधिक होती है और जो असाधारण बुद्धि वाले होते हैं |
- वे बालक, जो कला, गणित, संगीत, अभिनय आदि में एक या अधिक में विशेष योग्यता रखते हैं ।
- टरमन व ओडन के अनुसार- “प्रतिभाशाली बालक-शारीरिक गठन, सामाजिक समायोजन, व्यक्तित्व के लक्षणों, विद्यालय – उपलब्धि, खेल की सूचनाओं और रुचियों की बहुरूपता में सामान्य बालकों से बहुत श्रेष्ठ होते हैं । “
1. विशाल शब्दकोश |2. मानसिक प्रक्रिया की तीव्रता ।3. दैनिक कार्यों में विभिन्नता ।4. सामान्य ज्ञान की श्रेष्ठता ।5. सामान्य अध्ययन में रुचि ।6. अध्ययन में अद्वितीय सफलता ।7. अमूर्त विषयों में रुचि ।8. आश्चर्यजनक अन्तर्दृष्टि का प्रमाण ।9. मन्दबुद्धि और सामान्य बालकों से अरुचि ।10. पाठ्य-विषयों में अत्यधिक रुचि या अरुचि ।11. विद्यालय के कार्यों के प्रति बहुधा उदासीनता ।12. बुद्धि परीक्षाओं में उच्च- बुद्धि-लब्धि (130+ से 170 + तक)
विटी के अनुसार प्रतिभाशाली बालक खेल पसन्द करते हैं, 50% मित्र बनाने की इच्छा रखते हैं, 80% धैर्यवान होते हैं, दूसरों का सम्मान करते हैं, 96% अनुशासन प्रिय होते हैं ।
सभी बालकों में वैयक्तिक भिन्नताएँ पायी जाती हैं किन्तु प्रतिभाशाली बालक सामन्य बालकों से अपनी बहिर्मुखी विशेषताओं एवं आवश्यकताओं के कारण अधिक भिन्न दिखाई पड़ते हैं। एक सामान्य कक्षा का शिक्षण मुख्यतः औसत बुद्धि एवं योग्यता वाले छात्रों को ध्यान में रखते हुए नियमित एवं व्यवस्थित किया जाता है । इन कक्षाओं में शिक्षक का ध्यान आकर्षित करने वाले बालक या तो शारीरिक रूप से अक्षम होते हैं अथवा शैक्षिक रूप से पिछड़े व मंद बुद्धि जिनको कि शिक्षक अन्य औसत एवं सामान्य छात्रों की उपलब्धि के स्तर तक लाने के प्रयास में अधिक समय व ध्यान देता है। प्रतिभाशाली बालक अपनी कक्षा स्तर के सभी कार्यों को समय से पहले तथा बिना किसी की सहायता से हल कर लेने के कारण शिक्षक की नजर में तो रहते हैं, किन्तु उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाते हैं । अतः, यह स्वाभाविक है कि असाधारण योग्यताओं के धनी इन प्रतिभाशाली बालकों को जितना विशिष्ट निर्देशन मिलना चाहिए उतना नहीं मिल पाता और इस प्रकार वांछनीय अवसरों के अभाव में उनका व्यक्तित्व कुण्ठित हो जाता है ।
इसके अतिरिक्त अपनी विशिष्ट उच्च योग्यताओं के कारण ये बालक शिक्षक से अधिकाधिक प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा को शान्त करना चाहते हैं, किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि औसत क्षमताओं वाला शिक्षक प्रतिभाशाली बालक की जिज्ञासा को शान्त कर सकने की योग्यता रखता हो। ऐसी दशाओं में प्रतिभाशाली बालक या तो आलसी प्रवृत्ति के अथवा कक्षा में पढ़ाए जाने वाले विषयों के प्रति अरुचि रखने वाले बन जाते हैं । प्रायः ऐसा भी देखा जाता है कि ये बालक सामान्य कक्षाओं में औसत छात्रों के अध्ययन एवं विकास में व्यवधान उपस्थित करते हैं । औसत छात्र इनकी उपस्थिति में अपने आपको सदैव पिछड़ा हुआ पाते हैं तथा उनसे आगे न बढ़ पाने की स्थिति में स्वयं हतोत्साहित एवं निराश हो जाते हैं । अतः, यदि समन्वित रूप से देखा जाए तो प्रतिभाशाली बालक सामान्य कक्षाओं में स्वयं तो लाभान्वित नहीं हो पाते हैं साथ ही अन्य औसत छात्रों के विकास में भी बाधा बन जाते हैं।
औसत छात्रों के लिए की गई शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा पाने वाले प्रतिभाशाली छात्र अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप वातावरण न पाकर अनेक समायोजन एवं अनुशासन सम्बन्धी समस्याओं को जन्म देते हैं। इनमें से कुछ समस्याएँ व्यक्तिगत रूप से उनकी व कुछ वातावरणजन्य होती हैं। यदि हम विशिष्ट रूप से प्रतिभाशाली बालकों की समस्याओं पर ही ध्यान दें तो निम्न स्थितियाँ स्पष्ट परिलक्षित होती हैं –
- अनुकूल उत्साहवर्धन एवं निर्देशन के अभाव में वे स्वयं को परित्यक्त एवं विलग अनुभव कर सकते हैं । असुरक्षा एवं हीनता की भावनाएँ भी इनमें विकसित हो सकती हैं ।
- समाज के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण विकसित हो सकता है ।
- कक्षा-कार्य अत्यधिक सरल लगने पर वे स्वयं को नीरस महसूस कर सकते हैं । इस दशा में दिवा – स्वप्न अथवा भगोड़ेपन जैसी अव्यावहारिक स्थितियाँ देखने को मिलती हैं।
- कक्षा में दिए गए कार्य को सामान्य से कम समय में पूर्ण कर लेने के उपरान्त वह बची ऊर्जा तथा समय का उपयोग कक्षा का अनुशासन बिगाड़ने से भी कर सकते हैं ।
- कभी-कभी अपनी आवश्यक श्यकताएँ पूर्ण न होने पर प्रतिभाशाली बालक उग्र एवं उच्छृंखल हो जाते हैं ।
- अपने ही स्तर के साथी तथा मित्रों के अभाव में इनके सामाजिक विकास में बाधा आती है ।
- विविध रुचियों तथा विविध योग्यताएँ होने के कारण कभी-कभी उनके लिए जीवनोपयोगी व्यवसाय का क्षेत्र चुनने में कठिनाई हो जाती है ।
- इस प्रकार के बालक माता-पिता तथा अध्यापकों का अतिरिक्त ध्यान पाकर कभी-कभी जिद्दी, निर्भर, अभिमानी तथा श्रेष्ठता की भावना आदि अन्य ग्रन्थियों से ग्रस्त भी हो जाते हैं ।
पूर्व विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रतिभाशाली बालकों को उनके पूर्ण विकास के अवसर प्रदान करने के लिए सामान्य शिक्षा से हट कर कुछ ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जो उनकी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके । चूँकि प्रतिभा सम्पन्नता एक धनात्मक विशिष्ठता है, इसलिए अन्य विशिष्ट बालकों की भाँति प्रतिभाशाली बालक को सामान्य शिक्षा के अनुरूप बनाने के स्थान पर शिक्षा को उसके अनुरूप बनाने की आवश्यकता होती है ।
प्रतिभाशाली बालक के लिए शिक्षा की योजना निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए बनाई जानी चाहिए –
- उच्च स्तरीय ज्ञान एवं योग्यताओं के विस्तार हेतु ।
- विशिष्ट प्रतिभाओं के पूर्ण विकास हेतु ।
- उच्चस्तरीय पाठ्यक्रमों के व्यावहारिक चयन एवं व्यापकता हेतु ।
- विश्लेषणात्मक विचारशीलता के विकास हेतु ।
- उनकी असाधारण इच्छाओं एवं आकांक्षाओं की प्राप्ति के साधन जुटाना और उनके प्रति अति सावधान रहना ।
- उनकी जिज्ञासात्मक प्रवृत्ति को सन्तुष्ट करने का प्रयास करना ।
- उनकी सृजनात्मक एवं क्रियात्मक एवं क्रियात्मक शक्तियों को अभिव्यक्ति के अवसर प्रदान करना ।
विशेष शिक्षा व्यवस्था ( Special Education Arrangement) — विशिष्ट बालकों हेतु उपयुक्त शिक्षा की व्यवस्था एक दुरूह कार्य है । परन्तु, परिस्थितियों की को अनुकूलता ध्यान में रखते हुए विशिष्ट बालकों को शिक्षा प्रदान करने हेतु मुख्य रूप से 3 प्रणालियाँ अपनायी जाती हैं, जैसे—
(i) प्रभावक एवं उपयुक्त शिक्षा (Effective and efficient education)(ii) सम्बर्द्धित पाठ्यक्रम (Enriched curriculum)(iii) विशिष्ट विद्यालय एवं कक्षाएँ ( Special schools and classes)
(i) प्रभावक एवं उपयुक्त शिक्षा – प्रायः देखने में आता है कि प्रतिभासम्पन्न बालक अल्पायु में ही चलना, बोलना एवं अन्य गतीय क्रियाएँ करना सीख जाते हैं | समान आयु के बालकों के साथ कक्षा में बैठाए जाने पर ऐसे बालक शिक्षक द्वारा दिए गए कार्य को आसानी तथा शीघ्रता से पूरा कर लेते हैं । अतः, इनकों इनके स्तर का कार्य देने के लिए आवश्यक हो जाता है कि इन्हें उस कक्षा में रखा जाए जिसका कार्य औसत प्रतिभा वाले बालकों के समान ही पूरा कर सकें। इस प्रकार की शिक्षा देने की योजना निम्न प्रकार से बनानी चाहिए —
इस विधि द्वारा प्रतिभा के संवर्धन के विषय में सभी विद्वान एकमत नहीं हैं। इसके आलोचकों का कहना है कि इस प्रणाली के अनुसार अपने साथियों से आगे बढ़ जाने वाला छात्र अपने आपको विस्थापित अनुभव करने लगता है । शीघ्र कक्षोन्नति मिलने के कारण हर बार एक नए समूह के साथ उसे समायोजित होने में कठिनाई का अनुभव होता है और जब तक वह उस कक्षा में अपने आफ्को समायोजित करता है उसे फिर कक्षोन्नति दे दी जाती है । इस प्रकार वह भिन्न रुचियों, शारीरिक विशेषताओं, व्यक्तित्व एवं सामाजिक परिपक्वता वाले छात्रों के साथ कुसमायोजित रहता है । यह समस्या उसकी क्षमताओं एवं प्रतिभा पर प्रतिकूल प्रभाव डालकर उन्हें कुण्डित कर सकती है ।
उपर्युक्त कमियों के होने पर भी यह एक ऐसी परम्परागत प्रणाली है जो सामान्य परिस्थितियों एवं सीमित साधनों में भी प्रतिभाशाली बालकों की प्रतिभा को मुखरित एवं संपोषित करने में सहायक होती है । इसके समर्थक इसके निम्न गुणों की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं —
(अ) अतिरिक्त प्रगति, उदाहरणार्थ – शीघ्र कक्षोन्नति पाकर प्रतिभाशाली बालक उत्साहित होता है तथा इस प्रगति को वह एक चुनौती के रूप में स्वीकार करता है ।
(ब) विद्यालय, छात्र एवं अभिभावकों के समय, शक्ति व धन की बचत होती है ।
(स) प्रतिभाशाली छात्र की क्षमताओं का पूर्णतया सदुपयोग हो जाता है ।
(ii) सम्बद्धित पाठ्यक्रम (Enriched Curriculum)– प्रतिभाशाली बालकों में किसी नवीन तथ्य को ग्रहण करने के लिए सामान्य बालक से कम अभ्यास की आवश्यकता होती है | अतः, इनको अन्य बालकों की तुलना में थोड़ा कठिन और अधिक मात्रा में कार्य दिया जा सकता है । इसके लिए आवश्यक हो जाता है कि इनके लिए पाठ्यक्रम को पुनर्गठित किया जाय तथा उनको दिए जाने वाला गृह कार्य उच्च कठिनता और न्यूनतम समय सीमा का हो ।
अतिरिक्त एवं सम्बद्धित पाठ्यक्रम का प्रावधान निम्न रूपों में किया जा सकता है ।
(अ) व्यक्तिगत सम्बद्धिता (Individual Enrichment) — अतिरिक्त पाठ्य वस्तु को इस प्रकार नियोजित करें कि कोई भी प्रतिभाशाली छात्र उसे व्यक्तिगत रूप से लगभग आत्म-निर्भर होकर पूर्ण कर सके ।
(ब) सामूहिक सम्बर्द्धिता (Group Oriented Enrichment) — बालकों को इकाइयों अथवा समूहों में संगठित करके उन्हें निर्धारित कार्य-सामग्री दी जाय जिसे वह समूह प्रक्रिया के माध्यम से पूर्ण करने में सक्षम हों ।
(स) नियमित कक्षाओं में ही अध्यापक इन बालकों को अतिरिक्त पठन एवं लेखन कार्य करने के लिए दें ।
(द) अतिरिक्त कौशल एवं कलाओं को सीखने के लिए प्रोत्साहित करें ।
(य) ऐसे विशिष्ट परिभ्रामी शिक्षक या प्रशिक्षक नियुक्त किए जाएँ जो प्रतिभाशाली बालकों को पहचानने एवं प्रतिभा के क्षेत्र तथा आवश्कताओं की जानकारी प्राप्त करने का कार्य कर सकें । साथ ही समय-समय पर उनकी प्रगति के लिए की जा सकने वाली व्यवस्था के विषय में शिक्षक, व्यवस्थापक एवं अभिभावकों को सुझाव दे सकें ।
(र) प्रतिभाशाली बालकों के लिए अपेक्षाकृत उच्च लक्ष्य निर्धारित किए जाएँ ।
(ल) सघन एवं नवीन अनुभव प्रदान करने की दृष्टि से बालकों के लिए नई-नई योजनाएँ प्रस्तुत की जाएँ ।
(व) शिक्षण पद्धतियों में विविधता एवं नवीनता लाई जाए ।
(श) बालकों को उनकी अतिरिक्त क्षमताओं के विषय में पूर्णतः अवगत कराया जाए तथा उसके अनुरूप पाठ्यवस्तु के प्रावधान की योजना बालक से वार्तालाप करके बनाई जाए।
(ष) महाविद्यालय स्तर पर इनके लिए विशिष्ट एवं ऑनर्स पाठ्यक्रम की व्यवस्था की जाए ।
(iii) विशेष कक्षाएँ एवं विद्यालय ( Special Classes and Schools) – प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए विशेष विद्यालयों एवं कक्षाओं की व्यवस्था के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है फिर भी, सामान्य कक्षाओं में अन्य प्रतिभासम्पन्न बालकों को शिक्षा देने से उत्पन्न समस्याओं के निराकरण एवं इन बालकों की योग्यताओं के चरम विकास के लिए यह सर्वोत्तम व्यवस्था मानी जाती है ।
(अ) विशेष कक्षाएँ – प्रतिभाशाली बालकों के लिए सामान्य विद्यालयों में ही पृथकीकरण (Segregation ) द्वारा अलग कक्षाओं की व्यवस्था की जा सकती है । इन कक्षाओं में ये बालक अपने समान बौद्धिक स्तर व योग्यताओं के बालकों के साथ ही शिक्षा ग्रहण करते हैं। इनके लिए विशेष रूप से विस्तृत पाठ्यक्रम, अतिरिक्त कार्यकलापों, प्रयोगशाला कार्य आदि की व्यवस्था की जाती है। इन कक्षाओं को पढ़ाने वाले अध्यापक भी प्रतिभा सम्पन्न वर्ग के लिए जाते हैं जिससे कि वे अपनी कक्षाओं के छात्रों की जिज्ञासा को शान्त करने में समर्थ हों ।
प्रतिभाशाली बालकों के लिए इस प्रकार की विशेष कक्षाओं की व्यवस्था करना अधिक खर्चीला होता है लेकिन इस व्यवस्था से प्रतिभाशाली बालक अधिक लाभान्वित हो पाते हैं । इन कक्षाओं में इन्हें (सामान्य कक्षाओं में शिक्षण पाने की भाँति) अन्य औसत बालकों के साथ उन्हीं की दर से प्रगति करने के लिए बाध्य नहीं होना पड़ता । इन्हें श्रेष्ठतम शिक्षकों का दक्ष एवं उत्कृष्ट शिक्षण तथा निर्देशन प्राप्त होता है और इस प्रकार इनकी समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ भी उत्पन्न नहीं होती हैं। विशिष्ट कक्षाओं में जाने से ये बालक अपनी प्रतिभा के प्रति चैतन्य एवं सचेत हो जाते हैं तथा उसके अधिकतम प्रदर्शन एवं अभिव्यक्ति में स्वयं भी रुचि लेने लगते हैं ।
सामान्य स्तरीय विद्यालयों में विशेष कक्षाओं की व्यवस्था करना उन दशाओं में प्रायः असंभव सा हो जाता है जबकि प्रत्येक कक्षा में प्रतिभाशाली बालकों की संख्या बहुत कम हो या उस विद्यालय को वे सुविधाएँ प्राप्त न हों जो विशेष कक्षाएँ चलाने के लिए आवश्यक हों। ऐसी परिस्थितियों में शासन द्वारा विद्यालयों को अतिरिक्त सहायता व प्रतिभाशाली छात्रों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जानी चाहिए । सभी विद्यालयों में समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए जिससे कि पृथक्-पृथक् विद्यालयों में प्रतिभाशाली बालकों के लिए उपलब्ध विशेष सहायक सामग्री व परियोजनाओं से इन सभी विद्यालयों के प्रतिभाशाली छात्र लाभ उठा सकें । इन दशाओं में विज्ञान एवं तकनीकी की नवीनतम उपलब्धियों पर आधारित पाठ्यक्रम का पूर्ण समावेश एवं अनुप्रयोग हो ।
(ब) विशेष विद्यालय (Special Schools) — प्रतिभाशाली बालकों के लिए विशेष विद्यालयों की व्यवस्था करना भी पृथकीकरण के प्रविधि पर आधारित है । ये विद्यालय विशेष रूप से विभिन्न विशिष्ट प्रतिभाओं के धनी बालकों के लिए ही बनाए जाते हैं तथा इनमें केवल उच्च बौद्धिक क्षमता एवं योग्यताओं वाले बालकों को ही प्रवेश दिया जाता है । इन विद्यालयों की शिक्षा प्रणाली, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन पद्धति का निर्धारण तथा इनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों की नियुक्ति विशेष रूप से प्रतिभाशाली बालकों की आवश्यकताओं एवं उनकी योग्यताओं के सम्पूर्ण विकास के अवसर प्रदान करने की संभावनाओं को दृष्टिगत रखकर की जाती है । इन विद्यालयों में विज्ञान एवं तकनीकी की नवीनतम उपलब्धियों पर आधारित पाठ्यक्रम व नए शैक्षिक एवं व्यावसायिक आयामों का पूर्ण समावेश, सामंजस्य एवं अनुप्रयोग हो, ताकि प्रतिभा सम्पन्न छात्रों को जीवन एवं कार्य क्षेत्र के प्रति नवीनतम दृष्टिकोण प्राप्त हो ।
इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था पर अधिक धन व्यय होता है तथा कुछ विद्वान अन्य कारणों से भी इसका विरोध करते हैं। लेकिन, विश्व, राष्ट्र एवं प्रतिभासम्पन्न बालकों के व्यक्तिगत हित में देखा जाय तो यह शिक्षा व्यवस्था बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है ।
संसार में इस प्रकार के विद्यालय बहुत ही कम हैं जो केवल प्रतिभाशाली बालकों के लिए बनाए गए हैं। भारतवर्ष में इस प्रकार का एक विद्यालय ‘ज्ञान प्रबोधिनी’ के नाम से पूना में स्थित है जहाँ कि केवल प्रतिभाशाली एवं सृजनात्मक बालकों की शिक्षा व प्रशिक्षण का प्रावधान है । यद्यपि पब्लिक विद्यालयों में विशेष रूप से सम्बन्धित पाठ्यक्रम व शिक्षण योजनाएँ ही व्यवहार में लाई जाती हैं, लेकिन इन विद्यालयों में प्रवेश के लिए उन सभी बालकों का चयन कर लिया जाता है जो इन विद्यालयों का खर्चा (जो बहुत अधिक होता है) वहन कर सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में निम्न या औसत आर्थिक, सामाजिक स्तर वाले प्रतिभाशाली बालक सामान्य कक्षाओं में ही औसत बालकों के साथ शिक्षा पाते हैं। अतः आवश्यकता इस बात की है कि अन्य विशिष्टताओं वाले बालकों के समान ही प्रतिभासम्पन बालकों की समस्याओं एवं आवश्यकताओं पर भी शासन, विद्यालय, समाज, अभिभावक आदि ध्यान दें तथा उनकी शिक्षा के लिए भी विशेष प्रबन्ध करें।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार ने प्रतिभाशाली बालकों को निःशुल्क गुणात्मक शिक्षा देने के उद्देश्य से समस्त भारत के ग्रामीण एवं शहरी अंचलों में अब तक 258 नवोदय विद्यालयों की स्थापना की हैं। इन विद्यालयों के मुख्य उद्देश्य निम्नांकित हैं—
- प्रतिभाशाली छात्रों को निःशुल्क शिक्षा देना ।
- देश के विभिन्न भागों के छात्रों को एक साथ रहने एवं सीखने के समान अक्सर प्रदान करके राष्ट्रीय एकता में वृद्धि करना ।
- प्रतिभाशाली बालकों की क्षमता का पूर्ण विकास करना ।
- इनमें उच्च शैक्षिक लब्धि वाले प्रतिभाशाली छात्रों को विशेष शिक्षा दी जाती है
- प्रतिभाशाली बालकों के लिए शिक्षक अधिगम के विशेष प्रबन्ध किए जाते हैं। यद्यपि सरकारी अनुप्रबन्धों में प्रतिभासम्पन्न छात्रों के उत्तरोत्तर विकास के लिए नवोदय विद्यालयों के विशिष्ट पाठ्यक्रमों एवं कक्षाओं के माध्यम से विशेष प्रयत्न तो किया जा रहा है, परन्तु वास्तविक उपलब्धि तो शिक्षकों की लगनशीलता, प्रतिस्पर्धात्मक व्यक्तित्व एवं उनकी सृजनात्मकता एवं अध्ययनशीलता पर अवलम्बित है। नवीन कार्यक्रम की सफलता हेतु नवीन अभिप्रेरणा आवश्यक है।
प्रतिभाशाली बालकों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति व अतिरिक्त शक्ति के सदुपयोग के लिए विशेष शिक्षा व्यवस्था के अलावा पाठ्य सहगामी व पाठान्तर क्रियाओं की व्यवस्था करना भी उपयोगी होता है । इसके द्वारा उनकी विद्यालयीय शिक्षा की एकरसता समाप्त होती है तथा अभिरुचि विकास में सहायता मिलती है। साथ ही उनमें बौद्धिक, सामाजिक, कलात्मक व संवेगात्मक परिपक्वता आती है |
सामान्य व विशेष दोनों ही प्रकार के विद्यालयों में प्रतिभासम्पन्न बालकों के लिए निम्न पाठ्यान्तर व पाठ्य सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था की जा सकती है।
- प्रतिभाशाली बालकों को उनकी क्षमताओं एवं रुचियों के अनुरूप परियोजनाएँ चलाने के लिए प्रोत्साहन व सुविधाएँ प्रदान करना ।
- गोष्ठियों, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं, शैक्षिक परिभ्रमण में भाग लेने के अवसर प्रदान करना ।
- मौलिक व सृजनात्मक कार्यों को करने और अनुसंधान प्रवृत्ति को बढ़ावा देना ।
- स्वाध्याय तथा विशेष पुस्तकालय अध्ययन के लिए इन बालकों को प्रेरित करना ।
- उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपना तथा विद्यालय के कार्यों में हाथ बँटाने के अवसर देना ।
- मॉडल, चार्ट, चित्र तथा अन्य स्व-निर्मित उपकरण की रचना करवाने के लिए वर्कशॉप योजना चलाना ।
- मानसिक विकास के उद्देश्य से बौद्धिक खेलों का आयोजन करना ।
- शारीरिक विकास व स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने के लिए खेल-कूद, ड्रिल, स्काउटिंग आदि में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना व उनमें प्रतिस्पर्धात्मक आयोजन करना ।
- सामाजिक एवं अतिरिक्त कौशलों के विकास के लिए नृत्य, संगीत, सामूहिक, सम्मेलन व सामूहिक क्रियाओं की व्यवस्था करना ।
इन क्रिया-कलापों के अतिरिक्त समय-समय पर विशेषज्ञों के द्वारा परिचर्चा, शैक्षिक व मनोरंजन के उद्देश्यों से बनी फिल्मों के प्रदर्शन आदि की भी व्यवस्था प्रतिभाशाली बालकों के बहुआयामी विकास में बहुत सहायक हो सकती है । इन विभिन्न प्रकार की क्रियाओं से इन बालकों के मानसिक, सामाजिक, सांवेगिक व शारीरिक गुणों व विशेषताओं का विकास तो होता ही है साथ ही उनको अपनी नेतृत्व की शक्ति प्रदर्शित करने के अवसर भी मिलते हैं।
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