भारतीय संविधान में शिक्षा सम्बन्धी प्रावधान का वर्णन करें ।
प्रश्न – भारतीय संविधान में शिक्षा सम्बन्धी प्रावधान का वर्णन करें ।
(Describe the Provision relating to education in India Constitution.)
उत्तर – शिक्षा समवर्ती सूची में (Education in the concurrent list)— भारतीय संविधान में शासन सम्बन्धी विषयों को तीन सूचियों में विभक्त किया गया है—
सूची I में वे सारे विषय आ जाते हैं जिन पर कार्य करने का अधिकार/उत्तरदायित्व केन्द्रीय सरकार का है । इस सूची के अन्तर्गत 97 विषयों का उल्लेख किया गया है । इनमें शिक्षा से सम्बन्धित 63 से 66 तक विषय दिए गए हैं ।
सूची II में वे सारे विषय दिए गए हैं जिन पर राज्यों का अधिकार है । इन विषयों की कुल संख्या 66 है ।
सूची III समवर्ती (Concurrent) है । इसमें उन सभी विषयों का उल्लेख है जिनके सम्बन्ध में केन्द्र तथा राज्य सरकारें दोनों कार्य कर सकती हैं। शिक्षा इसी सूची में है ।
शिक्षा मुख्य रूप में 1976 से पहले राज्यों के अधिकारों में थी । 1976 में यह अनुभव किया गया कि शिक्षा के क्षेत्र में जिस मात्रा में शिक्षा का विकास किया जाना था, वह न हो पाया । अतः शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा गया ताकि केन्द्र भी इस सन्दर्भ में अपनी भूमिका जोरदार तरीके से निभा सके ।
शिक्षा को समवर्ती सूची में लाने का अर्थ है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारें दोनों इस क्षेत्र में नीतियाँ निर्धारित कर सकती हैं तद्नुसार शिक्षा के परिमाणात्मक तथा गुणवत्तात्मक विकास में वांछित कार्य कर सकती हैं। इस सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि यदि किसी नीति के कार्यान्वयन में कोई मतभेद होता है तो केन्द्रीय सरकार का निर्णय सर्वोपरि होगा ।
संविधान में प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण से सम्बन्धित धाराएँ अथवा उपबन्ध (Constitutional Provisions Related to Universalisation of Elementary Education) – प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के सम्बन्ध में स्वतन्त्रतापूर्व अनेक प्रयास किए गए थे, परन्तु सफलता नहीं मिली । स्वतन्त्रता मिलने पर इस पर विशेष ध्यान दिया गया । इस सन्दर्भ में निम्न प्रावधान किए गए –
1. धारा 21A शिक्षा का अधिकार (Right of Education)– “राज्य, छ: वर्ष से चौदह वर्ष की आयु वाले बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने की ऐसी रीति में, जो राज्य विधि द्वारा, आधारित करे, उपबन्ध करेगा ।”
नोट – पहले इस सन्दर्भ में धारा 45 थी जिसमें 2002 वर्ष में संशोधन किया गया । यह मूल धारा निम्न प्रकार है-
प्राथमिक शिक्षा में विकास तथा शिक्षा का मूल अधिकार (Provision for Free and Compulsory Education) — धारा 45 में लिखा गया था, “बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रबन्ध – राज्य, इस संविधान के आरम्भ से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबन्ध (Provision) का प्रयास करेगा ।” सन् 2002 में इसमें ऊपर लिखित संशोधन किया गया ।
2. धारा 45 छोटे बच्चों की देखभाल तथा शिक्षा (Provision for Early Childhood Care and Education)– राज्य प्रारम्भिक अवस्था में बच्चों की देखभाल तथा शिक्षा के लिए उपबन्ध करने का प्रयास करेगा ।
3. अभिभावकों का कर्त्तव्य (Duty of Parents) — धारा 51A (क) — अभिभावक तथा संरक्षक का कर्त्तव्य होगा कि वह छः वर्ष से चौदह वर्ष के बीच आयु वाले बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करेगा। (यह धारा मूल संविधान में नहीं थी, 2002 में जोड़ी गई । )
अवसरों की समानता सम्बन्धी अधिकार (Rights Relating to Equality of Opportunity) —
धारा 28 – धार्मिक शिक्षा (Religious Education ) — कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतन्त्रता (Freedom as to Attendance at Religious Instruction of Religious Worship in Certain Educational Institutions) –(1) राज्य – निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी ।
(2) खण्ड (1) की कोई बात ऐसी शिक्षा संस्था को लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन राज्य करता है, किन्तु किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है।
(3) राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य निधि से सहायता पाने वाली संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जानी वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति ने या यदि यह अवयस्क है तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है ।
संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (Cultural and Educational Rights )
धारा 29- अल् संख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण (Protection of Interest of Minorities)—(1) भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा ।
(2) राज्य द्वारा पोषित या राज्य निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किस के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा ।
धारा 30– शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अलसंख्यक वर्गों का अधिकार (Right of Minorities to Establish and Administer Education Institutions) — धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा ।
कमजोर वर्गों की शिक्षा (Education of Weaker Sections)
धारा 46 – अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की अभिवृद्धि (Promotion of Education and Economic Interests of Scheduled Castes, Scheduled Tribes and other Weaker Sections ) — राज्य जनता के कमजोर वर्गों और विशेष तौर से अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के शैक्षिक एवं आर्थिक दायित्यों की विशेष रक्षा करेगा तथा उनको सभी प्रकार के शोषण से सामाजिक न्याय की सुरक्षा प्रदान करेगा ।
अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में संघ का नियन्त्रण (Control of the Union and the Administration of Scheduled Areas and the welfare of the Scheduled Tribes) — राष्ट्रपति, राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में आयोग की नियुक्ति करेगा । शिक्षा से सम्बन्धित कुछ विषय भी इसके अन्तर्गत आ जाते हैं ।
अल्पसंख्यकों के बच्चों की मातृभाषा में शिक्षा (Education of the Children of the Minorities )
धारा 350 – व्यथा के निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा – प्रत्येक व्यक्ति किसी व्यथा के निवारण के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को, यथास्थिति, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा ।
धारा 350 (क) – प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ – प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की प्रर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा जो वह ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।
धारा 350 (ख) भाषायी अल्पसंख्यक-वर्गों के लिए विशेष अधिकारी – (1) भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के लिए एक विशेष अधिकारी होगा जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करेगा ।
(2) विशेष अधिकारी का यह कर्त्तव्य होगा कि वह इस संविधान के अधीन भाषा अल्पसंख्यक वर्गों के लिए उपबंधित रक्षोपायों से सम्बन्धित सभी विषयों का अन्वेषण व और उन विषयों के सम्बन्ध में ऐसे अंतरालों पर जो राष्ट्रपति निर्दिष्ट करे, राष्ट्रपति प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसे सभी प्रतिवेदनों को संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाए। और सम्बन्धित राज्यों की सरकारों को भिजवाएगा।
धारा 351 – हिन्दी भाषा के विकास के लिए निर्देश- संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भरत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त
रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यत: संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।
शिक्षा, मूल अधिकार तथा कर्त्तव्य (Education, Fundamental Right and Duties) — इस सन्दर्भ में निम्नलिखित प्रावधान हैं—
धारा 14 – विधि के समक्ष समता – राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा ।
Article 14 – Equality before law — This State shall not deny to any person equality before the law or the equal protection of the laws within the territory of India.
धारा 15 – धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध—(1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा ।
(2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर ।
(क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
(ख) पूर्णत: या भागतः राज्य निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघरों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग के सम्बन्ध में किसी भी निर्योग्यता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा ।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी ।
(4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी ।
धारा 16 – लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता – ( 1 ) राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी ।
(2) राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के सम्बन्ध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा ।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात संसद को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन वाले किसी वर्ग या वर्गों के पद पर नियोजन या नियुक्ति के सम्बन्ध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती है ।
(4) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी ।
(4 क) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में किसी वर्ग या वर्गों के पदों पर प्रोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी ।
(5) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी जो यह उपबंध करती है कि किसी धार्मिक या सांप्रदायिक संस्था के कार्यकलाप से सम्बन्धित कोई पदधारी या उसके शासी निकाय का कोई सदस्य किसी विशिष्ट धर्म का मानने वाला या विशिष्ट संप्रदायक का ही हो ।
धारा 29 – अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण – (1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा ।
(2) राष्ट्र द्वारा पोषित या राज्य – निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया
जाएगा ।
धारा 30 – शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार – (1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा ।
(क) खंड (1) में निर्दिष्ट किसी अल्पसंख्यक-वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिचित करेगा की ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निबंधित या निराकृत न हो जाए ।
(2) शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आ पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक-वर्ग के प्रबंध में है
भाग 4 क (Part-IV A)
मूल कर्त्तव्य (Fundamental Duties)
धारा 51क – मूल कर्त्तव्य – भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह –
(क) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करे;
(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
(घ) देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें;
(ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हों, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं;
(च) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझे और उसका परिरक्षण करे;
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य हैं, रक्षा करे और उसका संवर्द्धन करें तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें;
(झ) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहे;
(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले ।
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